Tuesday, 1 October 2024

Health Alert: देशभर में बढ़ रहे हैं डेंगू-मलेरिया के मामले, दोनों के लक्षण बिल्कुल एक जैसे; कैसे करें अंतर?


 

देश के कई राज्य इन दिनों मच्छर जनित बीमारियों का प्रकोप झेल रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, इस साल मानसून का असर अधिक रहने के कारण बाढ़-जलजमाव जैसी स्थिति भी अधिक देखी गई है जिसके कारण बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। जुलाई-अगस्त के माह में कर्नाटक और फिर असम में डेंगू के कारण पिछले कई सालों के रिकॉर्ड टूट गए। राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भी मच्छरों से होने वाली बीमारियों के केस पिछले कुछ हफ्तों में बढ़े हैं।


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में डेंगू के साथ-साथ मलेरिया के रोगियों की संख्या भी अधिक देखी जा रही है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) द्वारा शनिवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, अकेले शुक्रवार को ही लखनऊ में डेंगू के 39 और मलेरिया के तीन नए मामले सामने आए। इसके साथ अब शहर में मच्छर जनित बीमारियों का आंकड़ा 837 पहुंच गया है। इसमें डेंगू के 429 और मलेरिया के 408 मामले हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सभी लोगों को मच्छरों के काटने से बचने के लिए प्रयास करते रहने की सलाह दी है। 

दिल्ली-एनसीआर में कैसे हैं हालात?

उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राष्ट्रीय राजधानी भी डेंगू-मलेरिया का प्रकोप झेल रही है। सितंबर-अक्तूबर में हर बार इस रोग के कारण बड़ी संख्या में लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार राजधानी में सितंबर के आखिरी हफ्तें में डेंगू के 300 से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं। इस साल 20 सितंबर तक दिल्ली में डेंगू के कुल 1229 मामले दर्ज किए गए और दो लोगों की मौतें भी हुई।

डेंगू के साथ मलेरिया के आंकड़े भी स्वास्थ्य विशेषों के लिए चिंता बढ़ा रहे हैं। 26 सितंबर तक के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में मलेरिया के 363 मामले सामने आए हैं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में ये आंकड़ा 294 था। 


क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

अमर उजाला से बातचीत में दिल्ली स्थित एक निजी अस्पताल के डॉ अरविंद कुमार बताते हैं, डेंगू हो या मलेरिया इसका खतरा सभी उम्र के लोगों को होता है। बच्चों में डेंगू के गंभीर रूप लेने का जोखिम अधिक देखा जाता है। डेंगू की गंभीर स्थिति में प्लेटलेट्स काउंट कम होने और आंतरिक रक्तस्राव का खतरा रहता है जिसके जानलेवा दुष्प्रभाव हो सकते हैं। वहीं मलेरिया के कारण भी स्वास्थ्य पर गंभीर असर हो सकता है।

डेंगू और मलेरिया के शुरुआती लक्षण लगभग एक जैसे होते हैं, ऐसे में इसमें अतंर कर पाना कठिन हो सकता है।आइए जानते हैं कि इसकी पहचान कैसे की जा सकती है।
डेंगू में क्या होते हैं लक्षण?

डेंगू की स्थिति में अचानक तेज बुखार आने के साथ सिरदर्द, आंखों में जलन, भूख न लगने की समस्या, मसूड़ों से खून आने और त्वचा पर चकत्ते-दाने निकलने की दिक्कत हो सकती है। गंभीर स्थितियों में डेंगू के कारण ब्लड प्लेटलेस्टस काउंट कम होने लग जाता है। प्लेटलेट्स खून का थक्का बनाने में मदद करते हैं, ऐसे में इसकी कमी हो जाने के कारण रक्तस्राव होने लगता है जिसके कारण स्थिति बिगड़ सकती है।
मलेरिया में क्या होता  है?

मलेरिया भी मच्छरों के काटने से होने वाला बुखार है, इसमें भी अधिकतर लक्षण डेंगू के जैसे ही होते हैं। मलेरिया के कारण बुखार के साथ ठंड लगने, उल्टी, सूखी खांसी, पसीना आने और बेहोशी की समस्या होने का खतरा रहता है। गंभीर स्थितियों में मलेरिया के कारण चेतना में कमी, सांस लेने में कठिनाई, गहरे रंग का या पेशाब से खून आने की समस्या हो सकती है।
डेंगू और मलेरिया में क्या अंतर है?

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, इन दिनों अगर आप तेज बुखार की समस्या के साथ परेशान हैं तो पहले ये जानना जरूरी है कि आपको डेंगू है या मलेरिया? 

मलेरिया में शाम को बुखार बढ़ने के साथ कमजोरी और ठंड लगने की दिक्कत हो सकती है जबकि डेंगू में तेज बुखार के साथ जोड़ों, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्द के साथ त्वचा पर चकत्ते और दाने होने लगते हैं। इन लक्षणों के साथ आप बीमारी में आसानी से अंतर कर सकते हैं। हालांकि बीमारी की पुष्टि के लिए डॉक्टर के सलाह पर ब्लड टेस्ट जरूर कराएं। इन दोनों बीमारियों का समय पर इलाज प्राप्त करना बहुत जरूरी है।

नोट: यह लेख डॉक्टर्स का सलाह और मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 





Coffee Day 2024: कॉफी पीना इतना फायदेमंद हो सकता है सोचा भी नहीं होगा आपने, शोध में सामने आई बड़ी जानकारी


 चाय या कॉफी के शौकीन निश्चित तौर पर आप भी होंगे। पर ये फायदेमंद है या नुकसानदायक, लंबे समय से बड़ा सवाल रहा है। इस संबंध में किए गए अध्ययनों में बताया गया है कि अगर इनका सीमित मात्रा में सेवन किया जाए तो शरीर को कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं। विशेषतौर पर कॉफी पीने को सेहत के लिए बहुत लाभकारी पाया गया है।


जॉन्स हॉप्किंस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि नियमित रूप से अगर आप दो-तीन कप कॉफी पीते हैं तो इससे लिवर की बीमारियों का तो खतरा कम होता ही है, साथ ही इसे मस्तिष्क से संबंधित कई प्रकार की बीमारियों से बचाने वाला भी पाया गया है। कॉफी में कई प्रकार के प्रभावी एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जिनसे गंभीर क्रोनिक बीमारियों के जोखिम से भी बचाव किया जा सकता है। 

कॉफी और इससे होने वाले लाभ

आमतौर पर कॉफी को उत्तेजक के रूप में जाना जाता है, कॉफी आपके ऊर्जा को बढ़ाने और तरोताजा महसूस करने में मदद करती है। हालांकि इसके लाभ यहीं तक सीमित नहीं हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि नियमित तौर पर अगर इसका सेवन किया जाए तो टाइप-2 डायबिटीज और डिप्रेशन के जोखिमों को कम करने से लेकर, वजन को नियंत्रित रखने, लिवर की बीमारियों से बचाने और कुछ प्रकार के कैंसर के खतरे को कम करने में भी इससे लाभ पाया जा सकता है।

लिवर की गंभीर बीमारियों से बचाव करने में भी इसके नियमित सेवन को फायदेमंद पाया गया है।

पेट और लिवर के लिए फायदेमंद

अध्ययनों से पता चलता है कि कॉफी, लिवर को स्वस्थ बनाने और इससे संबंधित बीमारियों से बचाने में मदद कर सकती है। एक अध्ययन में पाया गया कि प्रतिदिन दो-तीन कप कॉफी पीने से लिवर की बीमारी वाले लोगों में लिवर स्केयर्स और लिवर कैंसर दोनों का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा कॉफी में मौजूद पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स क्रोनिक लिवर रोगियों में असमय मृत्यु के खतरे को कम करने में भी फायदेमंद है। पेट को स्वस्थ रखने और इससे संबंधित बीमारियों से बचाव के लिए कॉफी पीना बहुत फायदेमंद है।

डायबिटीज रोगियों के लिए फायदेमंद

कुछ शोध बताते हैं कि नियमित रूप से कॉफी का सेवन आपमें टाइप-2 डायबिटीज के जोखिम को कम करने में भी मददगार है। 30 अध्ययनों की एक समीक्षा में शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रतिदिन 2 कप कॉफी पीने से इस प्रकार के मधुमेह होने का खतरा 6% तक कम हो सकता है। कॉफी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स को इंसुलिन संवेदनशीलता को ठीक रखने में भी फायदेमंद पाया गया है। हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है कि अधिक मात्रा में इसका सेवन शरीर के लिए कई प्रकार से नुकसानदायक भी हो सकता है। 


अल्जाइमर रोग का कम हो सकता है जोखिम

अध्ययनों से पता चला है कि कॉफी पीने वाली महिलाओं में कोरोनरी हार्ट डिजीज, स्ट्रोक, मधुमेह और किडनी की बीमारियों के कारण मरने की आशंका कम होती है। कॉफी, अल्जाइमर रोग और पार्किंसंस रोग सहित कई अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों से बचाने में भी मदद कर सकती है। 13 अध्ययनों की एक समीक्षा में पाया गया कि जो लोग नियमित रूप से कैफीन का संयमित मात्रा में सेवन करते थे, उनमें पार्किंसंस रोग विकसित होने का जोखिम काफी कम था।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Tue, 01 Oct 2024 10:37 AM IST 

Monday, 30 September 2024

Hyper Sensitive: क्या बला है हाइपर सेंसटिव, कोई बीमारी या मन का भ्रम

 

Hyper Sensitive : कुछ लोग हद से ज्यादा सेंसेटिव होते हैं, जल्दी-जल्दी बीमार हो जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को लेकर परेशान हो जाते हैं, इससे उन्हें कई तरह की समस्याएं होने लगती है. इसे साइकोलॉजिकल भाषा में 'हाइपर सेंसटिव' कहते हैं. 

एक्सपर्ट्स का कहना है कि हाइपर सेंसटिव इंसान वह होता है, जिसमें किसी चीज को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं. हालांकि, सेंसिटिविटी हद से ज्यादा बढ़ने पर लाइफ नेगेटिव तरह से प्रभावित होने लगती है. बहुत से लोग हाई सेंसिटिव लोगों को मेंटल डिसऑर्डर (Mental Disorder) मानते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हाइपर सेंसटिव कोई बीमारी है? 

हाइपर सेंसटिव क्या कोई बीमारी

डॉक्टर का कहना है कि यह एक तरह का नेचर है लेकिन जब आपका यह बिहैवियर सोशल, प्रोफेशन और डेली लाइफ पर असर डालने लग जाए तो यह बीमारी बन जाती है. इसमें रिलेशन बनाने से लेकर काम करने तक में काफी दिक्कतें होती हैं.

कोई इतना ज्यादा सेंसेटिव क्यों हो जाता है

डॉक्टर्स का कहना है कि इसके पीछे एक नहीं कई कारण हो सकते हैं. जैसे अगर कोई तनाव में है या किसी बात को लेकर परेशान है या बार-बार किसी चीज के बारें में सोचता है तो वह सेंसेटिव हो जाता है. इसके अलावा ऐसा पारिवारिक माहौल जहां सिर्फ अभाव की बाते हों या एक-दूसरे पर तंज कसा जाए या नीचा दिखाया जाए या बहुत ज्यादा जिम्मेदारी बढ़ जाए तो भी इंसान बहुत ज्यादा सेंसेटिव हो जाता है.

क्या पढ़ा लिखा होना भी सेंसेटिव बनाता है

डॉक्टर्स का कहना है कि आमतौर पर ज्यादा पढ़ा-लिखा होना भी किसी के नेचर को सेंसेटिव बना सकता है, क्योंकि इस तरह के इंसान को किसी सब्जेक्ट को लेकर अलग तरह से देखने, गहराई से समझने की क्षमता होती है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि ज्यादा पढ़ना बेकार ही है. 

क्या रिस्पांसिबिलिटी भी सेंसेटिव बिहैवियर का कारण

डॉक्टर्स बताते हैं कि अगर कोई हाई पोस्ट पर है तो उस पर अच्छे रिजल्ट की साइकोलॉजिकल रिस्पांसिबिलिटी होती है, जो उसे सेंसेटिव बना सकती है. इसके अलावा, ऐसे बच्चे, जिन्हें बचपन में पैरेंट्स का ज्यादा प्यार मिला हो, वे आगे चलकर अक्सर इस बिहैवियर के हो जाते हैं. ऐसे लोगों को अपनी लाइफ में कई तरह की दिक्कतें होती हैं. ओवरथिंकिंग उन्हें परेशानी में डाल सकता है.

By : ABP News | Updated at : 30 Sep 2024 07:05 AM (IST)

Body Pain: शरीर में दिनभर बना रहता है दर्द तो नजरअंदाज करने की न करें गलती, हो सकता है सेहत के लिए खतरनाक

 Body Pain Reasons

 : शरीर में दर्द कई कारणों से हो सकता है. शरीर हेल्दी होने के बावजदू कई बार हाथ-पैर, गर्दन-पीठ का दर्द होता है, जो नॉर्मल हो सकता है लेकिन अगर दर्द लगातार बना रहता है तो नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, वरना क्रॉनिक पेन (Chronic Body Pain Reason) का कारण बन सकती है. इसमें शरीर में अक्सर ही और लंबे समय तक दर्द होता है. डॉक्टर्स पर इसे हल्के में लेने की बजाय सावधानी बरतने की सलाह देते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं क्या करना चाहिए और क्या नहीं...

क्रॉनिक बॉडी पेन कितनी खतरनाक

हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दुनियाभर में 1.5 बिलियन से ज्यादा लोग क्रॉनिक पेन की चपेट में हैं. इसकी वजह से दिव्यांगता और लाइफ क्वॉलिटी में खराबी आ सकती है. पिछले कुछ सालों में पीठ, गर्दन, पेल्विक पेन और गठिया के दर्द कॉमन बन गया है. इसकी वजह से फिजिकल ही नहीं इमोशनल हेल्थ भी बिगड़ रही है. सबसे बड़ी चिंता की बात है कि ज्यादातर लोग इसका इलाज ही नहीं करवा रहे हैं.

शरीर में दर्द बना रहने का कारण क्या है

डॉक्टर्स का कहना है कि शरीर में कई वजहों से दर्द हो सकता है. ऑटोइम्यून बीमारी, गठिया, पुराना इंफेक्शन या विटामिन-प्रोटीन की कमी से भी शरीर में दर्द अक्सर ही बना रहता है. कुछ दर्द ऐसे होते हैं, जिनका अगर समय पर इलाज न कराया जाए तो बाद के लिए खतरनाक बन सकते हैं.

शरीर में दर्द का इलाज 

डॉक्टर्स के मुताबिक, PRP थेरेपी जैसी रीजेनरेटिव मेडिसिन से दर्द से छुटकारा मिल सकता है. यह जॉइंट पेन में ज्यादा कारगर है. क्रॉनिक पेन के लिए कई तरह से डॉक्टर इलाज करते हैं. कुछ मरीज दवाईयों से ही ठीक हो जाते हैं, जबकि कुछ को एपिड्यूरल स्टेरॉयड इंजेक्शन,रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन और ट्रिगर पॉइंट इंजेक्शन देने की जरूरत पड़ सकती है. पर्सनलाइज्ड फिजिकल थेरेपी से भी इसका इलाज किया जाता है.

क्रॉनिक पेन का इलाज AI से

आजकल एआई काफी चर्चा में है. इसकी मदद से भी क्रॉनिक पेन का ट्रीटमेंट किया जा रहा है. अगर आपके शरीर के भी किसी हिस्से में दर्द बना रहता है तो इसे कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए. यह किसी गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकता है. अगर कई सालों से दर्द की समस्या है तो तुरंत जाकर डॉक्टर से मिलना चाहिए.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.



Thursday, 26 September 2024

Hair Loss: कम उम्र में ही झड़ने लगे हैं बाल, बढ़ रहा है गंजापन? कहीं आपमें इन पोषक तत्वों की कमी तो नहीं

बालों का झड़ना एक सामान्य समस्या है, कम उम्र के लोग भी इसका शिकार देखे जा रहे हैं। 30 से कम आयु वालों में भी बालों की कमजोरी और इसके असमजय झड़ने की दिक्कतें सामने आ रही हैं। जिन लोगों के परिवार में पहले से किसी को ये समस्या रही है उनमें आनुवांशिक रूप से इसका खतरा अधिक हो सकता है। इसके अलावा लाइफस्टाइल और आहार से संबंधित दिक्कतें भी बालों के लिए समस्याकारक हो सकती है। 

क्या आप भी बालों की दिक्कतों से परेशान हैं? स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, बाल झड़ने के लिए कई स्थितियों को जिम्मेदार माना जा सकता है। इनमें से एक प्रमुख कारण शरीर में आवश्यक विटामिन्स और पोषक तत्वों की कमी है।

बालों की सेहत को ठीक बनाए रखने के लिए शरीर को पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। जिन लोगों में विटामिन्स-मिनरल्स की कमी होती है उन्हें बालों की दिक्कतों का सामना कम उम्र में भी करना पड़ सकता है।

बालों को स्वस्थ रखने के लिए जरूर हैं पोषक तत्व

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, बालों का झड़ना पहले की तुलना में अब अधिक आम होता जा रहा है। संतुलित आहार जैसे जिसमें विटामिन डी, बी7 (बायोटिन), विटामिन ई और ए वाली चीजें बालों की जड़ों को मजबूती देती हैं। इनकी कमी से कम आयु में गंजेपन का खतरा बढ़ जाता है।

यदि आपके बाल तेजी से झड़ रहे हों, तो आहार और पोषण की जांच करवाना और सही उपचार प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं कि किन पोषक तत्वों की कमी से बालों की समस्या बढ़ जाती है?

बायोटिन (विटामिन B7) की कमी

बायोटिन बालों, त्वचा और नाखूनों के लिए महत्वपूर्ण विटामिन है। यह केराटिन उत्पादन में मदद करता है, जो बालों की मजबूती और स्वस्थ वृद्धि के लिए आवश्यक है। बायोटिन की कमी से बालों के पतला होने और टूटने की दिक्कत हो सकती है। यह स्थिति अक्सर गर्भावस्था, कुछ दवाओं या असंतुलित आहार के कारण हो सकती है।

आहार में इस पोषक तत्व को शामिल करके या डॉक्टरी सलाह पर बायोटिन के सप्लीमेट्स लेकर आप दिक्कतों को कम कर सकते हैं।
विटामिन-ए की कमी

विटामिन-ए बालों की ग्रंथियों में सीबम उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है, जो बालों और स्कैल्प को मॉइस्चराइज रखने के लिए जरूरी है। जिन लोगों में विटामिन-ए की कमी होती है उनका स्कैल्प सूखा रह सकता है, जिससे बाल कमजोर होकर झड़ने लगते हैं। हालांकि विटामिन-ए की अधिकता भी बाल झड़ने का कारण बन सकती है, इसलिए इसे सही मात्रा में इसका सेवन आवश्यक है।

विटामिन-ई भी जरूरी

बालों की अच्छी सेहत के लिए विटामिन-ई भी आवश्यक है। विटामिन-ई एक एंटीऑक्सीडेंट है, जो बालों के रोम और स्कैल्प को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाती है। विटामिन ई की कमी से स्कैल्प की कोशिकाओं को नुकसान हो सकता है, जिससे बालों के गिरने की समस्या बढ़ सकती है। यह बालों की वृद्धि को भी प्रभावित करती है, इसलिए आहार में विटामिन-ई वाली चीजों को जरूर शामिल करें। 
प्रोटीन की कमी

बाल मुख्यरूप से प्रोटीन से बने होते हैं, विशेषकर केराटिन नामक प्रोटीन से। ऐसे में प्रोटीन की कमी बालों की मजबूती और वृद्धि को प्रभावित करती है। अगर शरीर में प्रोटीन की कमी है, तो बाल कमजोर हो जाते हैं और जल्दी टूट सकते हैं। लंबे समय तक प्रोटीन की कमी बालों के झड़ने और गंजापन का कारण बन सकती है। इसी तरह जिंक, बालों के ऊतकों की मरम्मत और बालों की वृद्धि को बढ़ावा देने में मदद करता है। यह हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है। इसकी कमी भी आपके लिए दिक्कतें बढ़ा सकती है। 

नोट: यह लेख डॉक्टर्स का सलाह और मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 











Wednesday, 25 September 2024

Breathlessness: अक्सर होती रहती है सांस लेने में दिक्कत? हो जाइए सावधान, कहीं आपको ये गंभीर बीमारियां तो नहीं


 

शरीर स्वस्थ रहे और सभी अंगों को बेहतर तरीके से ऑक्सीजन मिलती रहे इसके लिए जरूरी है कि सांस लेने में सहायक सभी अंग ठीक तरीके से काम करते रहें। हालांकि अक्सर कई लोगों को सांस फूलने और सांस लेने में दिक्कत बनी रहती है। अगर आप भी इस तरह की समस्याओं के शिकार हैं तो समय रहते किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें। कुछ स्थितियों में ये गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों का भी संकेत हो सकता है।


हमारा दिल और फेफड़े शरीर के सभी ऊतकों तक रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन पहुंचाते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालते हैं। इसमें आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा के कई तरह के दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

सांस फूलने की समस्या को डिस्पेनिया के नाम से जाना जाता है जिसमें फेफड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इसमें ऐसा महसूस हो सकता है जैसे आपकी छाती में जकड़न है, सांस लेने के लिए हांफ रहे हैं या आपको सांस लेने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ रही है। दिल और फेफड़ों की बीमारियों में ये दिक्कत सामान्य है पर अगर अक्सर आप इस तरह की समस्या से परेशान रहते हैं तो खास तौर पर सावधान हो जाने की जरूरत है।


गंभीर समस्याओं का हो सकता है संकेत

डॉक्टर बताते हैं, सांस की तकलीफ कई मामलों में अस्थमा, एलर्जी या चिंता जैसी अन्य स्थितियों का भी संकेत हो सकती है। तीव्र व्यायाम या सर्दी-जुकाम होने से भी आपको सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। हालांकि क्रोनिक यानी लंबे समय से बनी रहने वाली सांस की समस्या कई बार गंभीर स्थितियों का भी संकेत मानी जाती है, जिसपर गंभीरता से ध्यान देते रहने की जरूरत होती है।

आइए जानते हैं कि इसके क्या कारण हो सकते हैं?
गंभीर श्वसन रोगों की समस्या

लंबे समय से सांस की तकलीफ बनी हुई है तो ये गंभीर श्वसन रोगों का संकेत हो सकता है। अस्थमा की बीमारी जो फेफड़ों में वायुमार्ग को प्रभावित करती है, इसमें भी आपको सांस की दिक्कत हो सकती है। इसी तरह सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) की स्थिति जो फेफड़ों में वायु प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली बीमारियों का एक समूह है, ऐसे रोगियों को भी सांस फूलने की समस्या महसूस होती है।

इन बीमारियों में त्वरित और लंबे समय तक चलने वाले उपचार की आवश्यकता होती है। इसलिए समय रहते इसका निदान और इलाज बहुत आवश्यक माना जाता है। 


हृदय रोगों का भी जोखिम

कमजोर या क्षतिग्रस्त हृदय के कारण भी ठीक से रक्त पंप कर पाना कठिन हो जाता है, जिससे फेफड़ों में तरल पदार्थ भरने लगता है और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। हार्ट फेलियर इसका एक प्रमुख कारण है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, अक्सर सांस लेने में बनी रहने वाली समस्या कई गंभीर हृदय रोगों जैसे कार्डियोमायोपैथी (हृदय की मांसपेशियों में समस्या), हार्ट फेलियर या पेरीकार्डिटिस (हृदय के आस-पास के ऊतकों की सूजन) का संकेत हो सकती है। इसपर समय पर ध्यान न देना जानलेवा हो सकती है।
पैनिक अटैक या स्ट्रेस की समस्या

मानसिक तनाव या घबराहट के कारण भी अचानक सांस फूलने की समस्या हो सकती है। पैनिक अटैक में सामान्य से तेज और सांस में उतार-चढ़ाव की दिक्कत बढ़ जाती है। स्ट्रेस और एंग्जाइटी या फिर डिप्रेशन जैसी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण भी सांस लेने में तकलीफ देखी जाती है। इन स्थितियों का समय पर निदान और उपचार करना बहुत जरूरी हो जाता है।
नोट: यह लेख डॉक्टर्स का सलाह और मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Mon, 09 Sep 2024 04:52 PM IST


अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।




World Lung Day 2024: क्यों होता है फेफड़ों में संक्रमण, बच्चे भी हो सकते हैं शिकार? विशेषज्ञ से जानिए सबकुछ

 


Lung Diseases and Infections:  फेफड़ों से संबंधित बीमारियां पिछले दो दशकों में काफी बढ़ गई हैं। कई प्रकार के वायरस, बैक्टीरिया और फंगस के कारण फेफड़ों में संक्रमण का खतरा भी अधिक देखा जा रहा है, गंभीर स्थितियों में इसके जानलेवा दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। सामान्य सर्दी और अन्य ऊपरी श्वसन संबंधी बीमारियों के कारण फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, किसी भी प्रकार के संक्रमण पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए, फेफड़ों के मामले में और अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।


डॉक्टर्स बताते हैं, फेफड़ों के अधिकांश संक्रमण एंटीबायोटिक या एंटीवायरल से ठीक हो सकते हैं, हालांकि कुछ मामलों में अस्पताल में भर्ती होने और गंभीर जटिलताओं का भी जोखिम रहता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक किसी भी उम्र के लोग फेफड़ों में संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। 

फेफड़ों के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इससे संबंधित बीमारियों की रोकथाम को लेकर हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग्स डे यानी विश्व फेफड़ा दिवस मनाया जाता है। आइए फेफड़ों में संक्रमण के कारण और इससे बचाव के बारे में समझते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

अमर उजाला से बातचीत में पुणे में श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ अमित प्रकाश बताते हैं, फेफड़ों का संक्रमण, चाहे वह किसी भी प्रकार या कारण से हो, आपके लिए जटिलताएं बढ़ा सकता है। इसलिए समय रहते इसके लक्षणों की पहचान और उचित इलाज जरूरी है। 
  • फेफड़ों के संक्रमण में बहुत ज्यादा या लंबे समय तक खांसी होना सबसे आम संकेत माना जाता है। 
  • इसमें बलगम भी आ सकता है। संक्रमण से ऊतकों की रक्षा करने और संक्रमण को रोकने में मदद के लिए हमारा शरीर बलगम का लेयर बनाता है। बलगम बनने का मतलब ये है कि आप संक्रमण या एलर्जी के शिकार हो गए हैं।
  • सांस छोड़ते समय घरघराहट होना, सांस लेते समय आवाज आना भी फेफड़ों की समस्या का संकेत माना जाता है।

फ्लू के कारण फेफड़ों में संक्रमण

मौसमी इन्फ्लूएंजा या फ्लू फेफड़ों के सबसे आम संक्रमणों में से एक है। इन्फ्लूएंजा वायरस छींकने-खांसने से निकलने वाली बूंदों के माध्यम से फैलता है। मौसम बदलने के साथ ये संक्रमण काफी अधिक हो जाता है। इन्फ्लूएंजा वायरस को निमोनिया संक्रमण का सबसे प्रमुख कारण माना जाता है, जो फेफड़ों को प्रभावित करने वाली समस्या है।

फ्लू से गले में खराश, नाक बहने, बुखार, ठंड लगने, शरीर में दर्द, खांसी और थकान जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। ये संक्रमण अगर ठीक नहीं हो रहा है तो सावधान हो जाना चाहिए। 
बच्चों और बुजुर्गों निमोनिया का खतरा

निमोनिया, बच्चों और बुजुर्गों में फेफड़ों का सबसे आम संक्रमण है। ये एक या दोनों फेफड़ों में मौजूद वायु की थैलियों में सूजन पैदा करता है। वायु थैलियों में तरल पदार्थ या मवाद भर जाता है, जिससे कफ या मवाद के साथ खांसी, बुखार, ठंड लगने और सांस लेने में कठिनाई जैसी दिक्क्तें होती हैं। बैक्टीरिया, वायरस सहित कई तरह के रोगजनक निमोनिया का कारण बन सकते हैं।

निमोनिया एक गंभीर बीमारी मानी जाती है। वैसे तो कुछ दवाओं के साथ घर पर आसानी से ही इसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन कुछ लोगों में यह जानलेवा भी हो सकती है। इसलिए समय पर सही डॉक्टरी सलाह जरूरी है।
ट्यूबरक्लोसिस संक्रमण

ट्यूबरक्लोसिस या टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नाम के बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह फेफड़ों के लिए गंभीर संक्रमण में से एक हैं।  टीबी रोग वाले लोगों की खांसी या छींक से निकलने वाले बूंदों के माध्यम से आसपास के अन्य लोगों में संक्रमण का खतरा हो सकता है। लंबे समय से खांसी और खांसी में बलगम के साथ खून आना टीबी का संकेत होता है। ये संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है।

भारत साल 2025 तक तपेदिक (टीबी) को खत्म करने के लक्ष्य के साथ काम कर रहा है। 

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Wed, 25 Sep 2024 11:13 AM
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