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Wednesday 25 September 2024

Breathlessness: अक्सर होती रहती है सांस लेने में दिक्कत? हो जाइए सावधान, कहीं आपको ये गंभीर बीमारियां तो नहीं


 

शरीर स्वस्थ रहे और सभी अंगों को बेहतर तरीके से ऑक्सीजन मिलती रहे इसके लिए जरूरी है कि सांस लेने में सहायक सभी अंग ठीक तरीके से काम करते रहें। हालांकि अक्सर कई लोगों को सांस फूलने और सांस लेने में दिक्कत बनी रहती है। अगर आप भी इस तरह की समस्याओं के शिकार हैं तो समय रहते किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें। कुछ स्थितियों में ये गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों का भी संकेत हो सकता है।


हमारा दिल और फेफड़े शरीर के सभी ऊतकों तक रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन पहुंचाते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालते हैं। इसमें आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा के कई तरह के दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

सांस फूलने की समस्या को डिस्पेनिया के नाम से जाना जाता है जिसमें फेफड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इसमें ऐसा महसूस हो सकता है जैसे आपकी छाती में जकड़न है, सांस लेने के लिए हांफ रहे हैं या आपको सांस लेने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ रही है। दिल और फेफड़ों की बीमारियों में ये दिक्कत सामान्य है पर अगर अक्सर आप इस तरह की समस्या से परेशान रहते हैं तो खास तौर पर सावधान हो जाने की जरूरत है।


गंभीर समस्याओं का हो सकता है संकेत

डॉक्टर बताते हैं, सांस की तकलीफ कई मामलों में अस्थमा, एलर्जी या चिंता जैसी अन्य स्थितियों का भी संकेत हो सकती है। तीव्र व्यायाम या सर्दी-जुकाम होने से भी आपको सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। हालांकि क्रोनिक यानी लंबे समय से बनी रहने वाली सांस की समस्या कई बार गंभीर स्थितियों का भी संकेत मानी जाती है, जिसपर गंभीरता से ध्यान देते रहने की जरूरत होती है।

आइए जानते हैं कि इसके क्या कारण हो सकते हैं?
गंभीर श्वसन रोगों की समस्या

लंबे समय से सांस की तकलीफ बनी हुई है तो ये गंभीर श्वसन रोगों का संकेत हो सकता है। अस्थमा की बीमारी जो फेफड़ों में वायुमार्ग को प्रभावित करती है, इसमें भी आपको सांस की दिक्कत हो सकती है। इसी तरह सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) की स्थिति जो फेफड़ों में वायु प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली बीमारियों का एक समूह है, ऐसे रोगियों को भी सांस फूलने की समस्या महसूस होती है।

इन बीमारियों में त्वरित और लंबे समय तक चलने वाले उपचार की आवश्यकता होती है। इसलिए समय रहते इसका निदान और इलाज बहुत आवश्यक माना जाता है। 


हृदय रोगों का भी जोखिम

कमजोर या क्षतिग्रस्त हृदय के कारण भी ठीक से रक्त पंप कर पाना कठिन हो जाता है, जिससे फेफड़ों में तरल पदार्थ भरने लगता है और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। हार्ट फेलियर इसका एक प्रमुख कारण है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, अक्सर सांस लेने में बनी रहने वाली समस्या कई गंभीर हृदय रोगों जैसे कार्डियोमायोपैथी (हृदय की मांसपेशियों में समस्या), हार्ट फेलियर या पेरीकार्डिटिस (हृदय के आस-पास के ऊतकों की सूजन) का संकेत हो सकती है। इसपर समय पर ध्यान न देना जानलेवा हो सकती है।
पैनिक अटैक या स्ट्रेस की समस्या

मानसिक तनाव या घबराहट के कारण भी अचानक सांस फूलने की समस्या हो सकती है। पैनिक अटैक में सामान्य से तेज और सांस में उतार-चढ़ाव की दिक्कत बढ़ जाती है। स्ट्रेस और एंग्जाइटी या फिर डिप्रेशन जैसी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण भी सांस लेने में तकलीफ देखी जाती है। इन स्थितियों का समय पर निदान और उपचार करना बहुत जरूरी हो जाता है।
नोट: यह लेख डॉक्टर्स का सलाह और मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Mon, 09 Sep 2024 04:52 PM IST


अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।




World Lung Day 2024: क्यों होता है फेफड़ों में संक्रमण, बच्चे भी हो सकते हैं शिकार? विशेषज्ञ से जानिए सबकुछ

 


Lung Diseases and Infections:  फेफड़ों से संबंधित बीमारियां पिछले दो दशकों में काफी बढ़ गई हैं। कई प्रकार के वायरस, बैक्टीरिया और फंगस के कारण फेफड़ों में संक्रमण का खतरा भी अधिक देखा जा रहा है, गंभीर स्थितियों में इसके जानलेवा दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। सामान्य सर्दी और अन्य ऊपरी श्वसन संबंधी बीमारियों के कारण फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, किसी भी प्रकार के संक्रमण पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए, फेफड़ों के मामले में और अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।


डॉक्टर्स बताते हैं, फेफड़ों के अधिकांश संक्रमण एंटीबायोटिक या एंटीवायरल से ठीक हो सकते हैं, हालांकि कुछ मामलों में अस्पताल में भर्ती होने और गंभीर जटिलताओं का भी जोखिम रहता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक किसी भी उम्र के लोग फेफड़ों में संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। 

फेफड़ों के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इससे संबंधित बीमारियों की रोकथाम को लेकर हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग्स डे यानी विश्व फेफड़ा दिवस मनाया जाता है। आइए फेफड़ों में संक्रमण के कारण और इससे बचाव के बारे में समझते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

अमर उजाला से बातचीत में पुणे में श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ अमित प्रकाश बताते हैं, फेफड़ों का संक्रमण, चाहे वह किसी भी प्रकार या कारण से हो, आपके लिए जटिलताएं बढ़ा सकता है। इसलिए समय रहते इसके लक्षणों की पहचान और उचित इलाज जरूरी है। 
  • फेफड़ों के संक्रमण में बहुत ज्यादा या लंबे समय तक खांसी होना सबसे आम संकेत माना जाता है। 
  • इसमें बलगम भी आ सकता है। संक्रमण से ऊतकों की रक्षा करने और संक्रमण को रोकने में मदद के लिए हमारा शरीर बलगम का लेयर बनाता है। बलगम बनने का मतलब ये है कि आप संक्रमण या एलर्जी के शिकार हो गए हैं।
  • सांस छोड़ते समय घरघराहट होना, सांस लेते समय आवाज आना भी फेफड़ों की समस्या का संकेत माना जाता है।

फ्लू के कारण फेफड़ों में संक्रमण

मौसमी इन्फ्लूएंजा या फ्लू फेफड़ों के सबसे आम संक्रमणों में से एक है। इन्फ्लूएंजा वायरस छींकने-खांसने से निकलने वाली बूंदों के माध्यम से फैलता है। मौसम बदलने के साथ ये संक्रमण काफी अधिक हो जाता है। इन्फ्लूएंजा वायरस को निमोनिया संक्रमण का सबसे प्रमुख कारण माना जाता है, जो फेफड़ों को प्रभावित करने वाली समस्या है।

फ्लू से गले में खराश, नाक बहने, बुखार, ठंड लगने, शरीर में दर्द, खांसी और थकान जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। ये संक्रमण अगर ठीक नहीं हो रहा है तो सावधान हो जाना चाहिए। 
बच्चों और बुजुर्गों निमोनिया का खतरा

निमोनिया, बच्चों और बुजुर्गों में फेफड़ों का सबसे आम संक्रमण है। ये एक या दोनों फेफड़ों में मौजूद वायु की थैलियों में सूजन पैदा करता है। वायु थैलियों में तरल पदार्थ या मवाद भर जाता है, जिससे कफ या मवाद के साथ खांसी, बुखार, ठंड लगने और सांस लेने में कठिनाई जैसी दिक्क्तें होती हैं। बैक्टीरिया, वायरस सहित कई तरह के रोगजनक निमोनिया का कारण बन सकते हैं।

निमोनिया एक गंभीर बीमारी मानी जाती है। वैसे तो कुछ दवाओं के साथ घर पर आसानी से ही इसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन कुछ लोगों में यह जानलेवा भी हो सकती है। इसलिए समय पर सही डॉक्टरी सलाह जरूरी है।
ट्यूबरक्लोसिस संक्रमण

ट्यूबरक्लोसिस या टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नाम के बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह फेफड़ों के लिए गंभीर संक्रमण में से एक हैं।  टीबी रोग वाले लोगों की खांसी या छींक से निकलने वाले बूंदों के माध्यम से आसपास के अन्य लोगों में संक्रमण का खतरा हो सकता है। लंबे समय से खांसी और खांसी में बलगम के साथ खून आना टीबी का संकेत होता है। ये संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है।

भारत साल 2025 तक तपेदिक (टीबी) को खत्म करने के लक्ष्य के साथ काम कर रहा है। 

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Wed, 25 Sep 2024 11:13 AM
नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।



Wednesday 18 September 2024

थायरॉइड की समस्या से हैं परेशान? तो रोजाना इन चार चीजों के सेवन से मिलेगा फायदा

 हम कैसा खाना खा रहे हैं? हमारा खाना हेल्दी है या नहीं? हमारे खाने में पोषक तत्व हैं या नहीं? हम समय पर खाना खा रहे हैं या नहीं? ऐसी नजाने कितनी बातें हमारे खानपान के लिए बेहद जरूरी हैं, क्योंकि अगर हमें बीमारियों से बचे रहना है तो एक हेल्दी डाइट का होना बेहद जरूरी है। हमारा पौष्टिक आहार हमें स्वस्थ और तंदुरुस्त रखने में मदद करता है। दरअसल, हमारे आसपास कई ऐसी बीमारियां मौजूद हैं जो पलक झपकते ही हमें अपना शिकार बना लेती हैं। ऐसे में फिर अस्पताल के चक्कर और कई दवाओं का सेवन करना पड़ता है। वहीं, हम चाहें तो अपने खानपान से कई चीजों पर नियंत्रण रख सकते हैं। जैसे- थायरॉइड, क्योंकि कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका सेवन किया जाए, तो हमारा थायरॉइड कंट्रोल होने में मदद मिल सकती है। तो चलिए जानते हैं इनके बारे में।

एंटीऑक्सीडेंट से भरी सब्जियां और फल
  • हमें ऐसे फलों और सब्जियों का जरूर सेवन करना चाहिए, जो एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। इनमें टमाटर, शिमला मिर्च और ब्लूबेरी जैसी चीजें शामिल हैं। इनके सेवन से थायरॉइड की ग्रंथि को काफी लाभ पहुंच सकता है।
    कम आयोडीन वाली चीजें
    • आप उन चीजों का सेवन कर सकते हैं, जिनमें आयोडीन कम होता है क्योंकि ये थायरॉइड हार्मोन को कम करने में मदद करता है। इसके लिए आप बिना आयोडीन वाला नमक, कॉफी, नट-बटर, घर का बना ब्रेड, आलू, शहद, वाइट एग जैसी चीजों का सेवन कर सकते है।
      टायरोसिन
      • टायरोसिन अमीनो एसिड का उपयोग थायरॉइड ग्रंथि द्वारा टी3 और टी4 के उत्पादन के लिए किया जाता है। इसलिए आप डेयरी उत्पाद, फलियां और मीट जैसी चीजों का सेवन कर सकते हैं। इनसे आपको थायरॉइड मे काफी लाभ मिल सकता है।गोभी
      aaj ka health tips Eat these four foods to control thyroid
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      • वैसे तो हम कई तरह की सब्जियों का सेवन करते हैं। लेकिन आप गोभी का सेवन कर सकते हैं, क्योंकि ये थायरॉइड को बढ़ने से रोकने में मदद करती है। इसके लिए आप ब्रोकली, कसावा, गोभी, पत्तागोभी, सरसों, शलजम, बांस की शाखा बोक टी जैसी चीजों का सेवन कर सकते हैं।

      नोट: प्रिया पांडेय योग्य और अनुभवी डायटिशियन (आहार विशेषज्ञ) हैं। उन्होंने कानपुर के सी.एस.जे.एम. विश्वविद्यालय से मानव पोषण में बी.एस.सी. किया है। उन्होंने कानपुर के आभा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में आहार विशेषज्ञ के रूप में काम किया है। उन्होंने जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में पोषण व्याख्यान के विषय के प्रतिनिधि के रूप में भी भाग लिया है। उनका इस क्षेत्र में 8 वर्ष का लंबा अनुभव है। 

      अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

Friday 13 September 2024

Vitamin D Deficiency: विटामिन-डी की कमी मचा सकती है शरीर में हड़कंप, दर्द और अकड़न से हो जाएगा हाल बेहाल


 

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। विटामिन-डी, जिसे सनशाइन विटामिन भी कहा जाता है, हमारे शरीर के लिए एक बेहद जरूरी पोषक तत्व है। यह हमारी हड्डियों, इम्यून सिस्टम और मूड को बेहतर बनाए रखने के साथ-साथ और भी कई चीजों के लिए जरूरी होता है। हालांकि, अक्सर लोगों में इस विटामिन की कमी (Vitamin D Deficiency) रहती है।

इसके कारण कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें कमजोर हड्डियां, डिप्रेशन और थायरॉइड की समस्या भी हो सकती है। इसलिए इसकी कमी से बचाव करना जरूरी है। इस आर्टिकल में, हम विटामिन-डी की कमी के कुछ सामान्य लक्षणों (Vitamin D Deficiency Signs) के बारे में जानेंगे और साथ ही, ये किन वजहों से होता है (Vitamin D Deficiency Causes) इस बारे में भी जानने की कोशिश करेंगे।

  • थकान- विटामिन-डी की कमी से अक्सर थकान और कमजोरी होती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि विटामिन-डी हमारे शरीर की मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन कम होता है।
  • हड्डियों का दर्द- विटामिन-डी हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। इसकी कमी से हड्डियों में कमजोरी और दर्द हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि विटामिन-डी कैल्शियम के अवशोषण के लिए जरूरी है।
  • मांसपेशियों की कमजोरी- विटामिन-डी की कमी से मांसपेशियों में कमजोरी और दर्द हो सकता है। इससे मांसपेशियों के काम करने की क्षमता प्रभावित होती है।
  • माइग्रेन- कुछ लोगों के लिए, विटामिन-डी की कमी से माइग्रेन या सिरदर्द हो सकता है।
  • मूड स्विंग्स- विटामिन-डी हमारे दिमाग के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसकी कमी से मूड स्विंग्स, चिंता और डिप्रेशन हो सकता है।
  • मुंहासे- विटामिन-डी की कमी से मुंहासे की समस्या बढ़ सकती है।
  • इन्फेक्शन- विटामिन-डी हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। लेकिन इसकी कमी से इम्युनिटी कमजोर होती है और बार-बार संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • बालों का झड़ना- विटामिन-डी बालों के स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है। इसकी कमी से बालों का झड़ना हो सकता है।
  • दांतों की समस्याएं- विटामिन-डी दांतों के स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है। इसकी कमी से दांतों की समस्याएं जैसे कैविटी और मसूड़े की बीमारी हो सकती है।

विटामिन-डी की कमी के कारण (Vitamin D Deficiency Causes)

विटामिन-डी की कमी के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं-

  • धूप में कम रहना- विटामिन-डी मुख्य रूप से सूरज की रोशनी का हमारी त्वचा के संपर्क में आने से बनता है। यदि आप पर्याप्त समय धूप में नहीं बिताते हैं, तो आप में विटामिन-डी की कमी हो सकती है।
  • डाइट में विटामिन-डी की कमी- विटामिन-डी कुछ फूड आइटम्स में भी पाया जाता है, जैसे मछली, अंडे, और मशरूम। यदि आप इन फूड आइटम्स का भरपूर सेवन नहीं करते हैं, तो आपको विटामिन-डी की कमी हो सकती है।
  • मोटापा- मोटापा विटामिन-डी के अवशोषण को प्रभावित कर सकता है।
  • कुछ दवाएं- कुछ दवाएं भी विटामिन-डी के अवशोषण को कम कर सकती हैं।
  • बुढ़ापा- उम्र बढ़ने के साथ विटामिन-डी का अवशोषण कम हो सकता है।

विटामिन-डी की कमी का इलाज

  • यदि आपको विटामिन-डी की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं, तो अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। वो ब्लड टेस्ट करके ये पता लगा सकते हैं कि आपके आपके शरीर में विटामिन-डी का स्तर क्या है और उसके मुताबिक इलाज बता सकते हैं।
  • हालांकि, विटामिन-डी की कमी का इलाज आमतौर पर विटामिन-डी की सप्लीमेंट्स लेने से किया जाता है। आपका डॉक्टर आपके शरीर की जरूरतों के आधार पर खुराक निर्धारित कर सकते हैं। इसके साथ ही, धूप में समय बिताने और विटामिन-डी से भरपूर फूड्स खाने से भी इसकी कमी को दूर किया जा सकता है।

Friday 6 September 2024

Chai And Cholesterol: क्या चाय पीने से भी बढ़ सकता है आपका कोलेस्ट्रॉल? जानें क्या हो सकते हैं खतरे

 



Chai for Cholesterol : भारत में ज्यादातर लोगों के दिन की शुरुआत चाय या कॉफी से होती है. कई लोग तो दिन में कई-कई बार चाय या कॉफी पीते हैं. कुछ लोग आलस भगाने के लिए चाय पीना पसंद करते हैं. इससे इंस्टैंट एनर्जी और ताजगी महसूस होती है. हालांकि ज्यादा चाय (Chai Benefits and Side Effects) सेहत के लिए ठीक नहीं है. इससे कई दिक्कतें हो सकती हैं. नींद और भूख तक प्रभावित हो सकती है. इतना ही नहीं हार्ट तक की बीमारी हो सकती है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चाय पीने से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है. आइए जानते हैं...

ज्यादा चाय पीने से क्या नुकसान

1. ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, सैचुरेटेड फैट बढ़ता है.

2. एसिडिटी की समस्या

3. मुंहासे, पिंपल्स

4. नींद कम आना

5. पेट के अंदरुनी सतह पर घाव यानी अल्सर

6. हड्डियों को नुकसान

7. डिहाइड्रेशन

8. घबराहट हो सकती है

कोलेस्ट्रॉल कैसे बढ़ता है

खानपान में गड़बड़ी और खराब लाइफस्टाइल की वजह से कोलेस्ट्रॉल तेजी से बढ़ सकता है. इसकी वजह से हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट स्ट्रोक, हार्ट अटैक और कोरोनरी आर्टरी डिजीज का जोखिम रहता है. शरीर में अनहेल्दी फैट जमा होने से यह धमनियों में जम जाता है और ब्लड सर्कुलेशन को प्रभावित कर सकता है. जिससे हार्ट डिजीज का जोखिम बढ़ जाता है. यही कारण है कि डॉक्टर हाई कोलेस्ट्रॉल में सावधान रहने के लिए कहते हैं.

क्या चाय पीने से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है

हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, ज्यादा दूध वाली चाय पीने से कोलेस्ट्रॉल और सैचुरेटेड फैट बढ़ता है. इससे आर्टरी यानी धमनियां सिकुड़ जाती है और ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है. एक्सपर्ट्स के अनुसार, दूध वाली चाय मेटाबॉलिज्म को कमजोर कर सकता है. इसकी वजह से शरीर में फैट बर्निंग प्रॉसेस कमजोर होता है. बहुत ज्यादा दूध वाली चाय पीने से कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ सकता है. हालांकि, हर्बल चाय पी सकते हैं लेकिन उसकी भी एक लिमिट होनी चाहिए.

कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से क्या खतरें

1. दिल की सेहत बिगड़ सकती है.

2. हार्ट अटैक, स्ट्रोक का खतरा

3. चेस्ट पेन हो सकता है.

4. हाथ-पैर सुन्न हो सकते हैं.

5. गॉलस्टोन का जोखिम

6. ब्लड फ्लो घटता है.

7. जबड़ों में दिक्कत सकती है.

8. मेमोरी पर असर, ब्रेन स्ट्रोक का खतरा

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.