Showing posts with label Zee News Hindi: Health News. Show all posts
Showing posts with label Zee News Hindi: Health News. Show all posts

Friday, 19 July 2019

मंहगी क्रीम नहीं ये विटामिन दूर करेंगे आपके स्ट्रेच मार्क्स, त्वचा होगी और भी खूबसूरत

मंहगी क्रीम नहीं ये विटामिन दूर करेंगे आपके स्ट्रेच मार्क्स, त्वचा होगी और भी खूबसूरतअक्सर ही महिलाएं त्वचा पर पड़ने वाले स्ट्रेच मार्क्स को लेकर टेंशन में दिखाई देती हैं. इनके चलते महिलाएं अपने पसंदीदा कपड़े पहनने से भी कतराने लगती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ये उनकी खूबसूरती को बिगाड़ सकते हैं और लोगों को भी यह देखने में अच्छे नहीं लगते. ऐसे में महिलाएं इन स्ट्रेच मार्क्स से छुटकारा पाने के लिए आए दिन तरह-तरह के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करती रहती हैं और इसी कोशिश में लगी रहती हैं कि कैसे भी करके ये मार्क्स उनके शरीर से चले जाएं. भले ही कितने ही पैसे क्यों न लग जाएं. अगर आप भी स्ट्रेच मार्क्स से परेशान हैं तो मंहगी क्रीमों को छोड़िए, क्योंकि विटामिन्स के जरिए भी स्ट्रेच मार्क्स को दूर किया जा सकता है. तो चलिए बताते हैं आपको कि आखिर वह कौन से विटामिन्स हैं जिनसे स्ट्रेच मार्क्स को दूर किया जा सकता है.
विटामिन ई
वैसे तो आपने विटामिन ई के कई फायदों के बारे में सुना होगा, लेकिन यह कम ही लोग जानते हैं कि विटामिन ई से स्ट्रेच मार्क्स से भी छुटकारा पाया जा सकता है. बता दें विटामिन ई डैमेज स्किन को रिपेयर करता है, जिससे यह स्ट्रेच मार्क्स को दूर करने में भी मदद करता है. इसे आप किसी लोशन में मिक्स करके इस्तेमाल कर सकती हैं.
विटामिन सी
विटामिन सी त्वचा को नया बनाता है और कॉलेजन प्रोडक्शन का भी काम करता है. अगर आप भरपूर मात्रा में विटामिन सी लेते हैं तो यह कुछ ही दिनों में आपके शरीर में मौजूद स्ट्रेच मार्क्स को दूर करके आपको नई और ग्लोइंग त्वचा देगा. इसके लिए आप खाने में संतरा, नींबू, आंवला जैसी चीजें शामिल कर सकते हैं.

विटामिन ए

विटामिन ए स्किन को ड्राय करके उसे नया बनाता है और स्ट्रेच मार्क्स को दूर करता है. विटामिन के लिए आप अपने भोजन में गाजर, एप्रीकॉट, फिश और ट्रॉपिकल फूड शामिल कर सकते हैं.

विटामिन के

यह कम ही लोग जानते हैं कि विटामिन के भी उन विटामिंस में से एक है जो त्वचा को खूबसूरत बनाता है और डार्क सर्किल्स को भी दूर करता है. इसके इस्तेमाल से स्ट्रेच मार्क्स तेजी से फेड होते हैं.

Thursday, 11 July 2019

बच्चे घर में जल्दी सीखकर सुधार सकते हैं स्‍कूल में रिजल्‍ट: शोध

बच्चे घर में जल्दी सीखकर सुधार सकते हैं स्‍कूल में रिजल्‍ट: शोधजीवन के शुरुआती सालों में ही यदि बच्चों को घर में पढ़ाई के लिए अच्छा माहौल मिल जाए, तो वे होम लर्निग के माध्यम से भविष्य में अच्छी श्रेणी में उत्‍तीर्ण हो सकते हैं और पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. एक शोध में यह बात सामने आई है. 'स्कूल प्रभावशीलता और स्कूल सुधार' में प्रकाशित शोध में यह बात सामने आई है कि जिन बच्चों के माता-पिता ने स्कूल भेजने से पहले ही बच्चों के साथ पढ़ा और किताबों के बारे में बात की, वे सभी 12 साल की उम्र में गणित के विषय में अच्छे अंक लेकर आए.
बामबर्ग विश्वविद्यालय हुए शोध के प्रमुख लेखक सिमोन लेहरल ने कहा, "हमारे परिणाम न केवल साक्षरता, बल्कि संख्यात्मकता में भी विकास के लिए बच्चों को पुस्तकों के लिए उजागर करने के महान महत्व को रेखांकित करते हैं." उन्होंने कहा, "प्रारंभिक भाषा कौशल न केवल एक बच्चे के पढ़ने में सुधार करते हैं, बल्कि उसकी गणितीय क्षमता को भी बढ़ाते हैं."
निष्कर्ष के लिए शोधकर्ताओं ने 229 जर्मन बच्चों का तीन साल की उम्र से लेकर माध्यमिक विद्यालय तक अध्ययन किया. प्रतिभागियों की साक्षरता और संख्यात्मक कौशल का परीक्षण उनके तीन साल के पूर्वस्कूली (उम्र 3-5) में किया और दूसरी बार फिर जब वे 12 या 13 वर्ष के हुए तब यह परीक्षण किया गया.
उन्होंने पाया कि बच्चों ने अपने पूर्वस्कूली वर्षों में साक्षरता, भाषा और अंकगणितीय कौशल घर के प्रोत्साहन से प्राप्त किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने इसके बाद घर में सीखने के माहौल की परवाह किए बिना माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने और गणितीय कौशल में उच्च परिणाम प्राप्त किए.

Tuesday, 9 July 2019

फिटनेस के लिए प्ररित करने वालें में पीएम मोदी सबसे आगे, रामदेव, अक्षय को पछाड़ा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहतर स्वास्थ्य के प्रति प्रेरित करने के मामले में देशभर में लगातार दूसरी बार अग्रणी रहे हैं. इसके बाद इस श्रेणी में बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार और योग गुरु बाबा रामदेव का नाम आता है.फिटनेस के लिए प्रेरित करने वालों में पीएम मोदी सबसे आगे, रामदेव, अक्षय को पछाड़ा
भारत की प्रमुख निवारक स्वास्थ्य देखभाल परितंत्र जीओक्यूआईआई ने मंगलवार को यह घोषणा की. स्वास्थ्य के लिए प्रेरित करने वाले अन्य प्रतिष्ठित लोगों की सूची में एमएस धोनी, रणवीर सिंह, करीना कपूर, टाइगर श्रॉफ, प्रियंका चोपड़ा, विराट कोहली और दीपिका पादुकोण शामिल हैं, जिन्होंने टॉप-10 में जगह बनाई.
जीओक्यूआईआई के संस्थापक एवं सीईओ विशाल गोंडल ने बयान में कहा, 'यह रिपोर्ट हमारे देश की सबसे प्रभावशाली हेल्थकेयर हस्तियों की पहचान करने का एक प्रयास है, जो भारत को स्वस्थ बनाने की ताकत रखती हैं, भारत सरकार के साथ ही हमारा भी यह लक्ष्य है.'
रिपोर्ट में कहा गया है, 'पीएम मोदी ने 2015 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस शुरू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो अब विश्व स्तर पर मनाया जाता है. वह न केवल भारत को बेहतर बनाने के लिए उत्सुक हैं, बल्कि भारतीयों के स्वास्थ्य और फिटनेस में सुधार के लिए भी उत्सुक हैं. वह 68 वर्ष के होने के बावजूद अभी भी फिट रहने के लिए उपाय करते हैं.' 
इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्षय निस्संदेह भारत के सबसे फिट सेलिब्रिटी हैं, जो मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित हैं और ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट भी हासिल कर चुके हैं. इसी के साथ रिपोर्ट में कहा गया है कि योगगुरु रामदेव के लिए योग जीवन का अभिन्न अंग है.
स्कोरिंग प्रणाली के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और यूट्यूब पर अनुयायियों की संख्या, समाचारों की संख्या और इस बात का अनुमान लगाया गया कि प्रत्येक व्यक्ति का करियर फिटनेस और स्वास्थ्य पर कितना ध्यान केंद्रित करता है. इस डेटा को जनवरी-मार्च की अवधि में एकत्र किया गया था.

Friday, 5 April 2019

किडनी, थायरायड के मरीजों के लिए होम्योपैथी चिकित्सा फायदेमंद : डॉ. कल्याण बनर्जी

किडनी, थायरायड के मरीजों के लिए होम्योपैथी चिकित्सा फायदेमंद : डॉ. कल्याण बनर्जीनई दिल्ली: गुर्दा व गलग्रंथि (थायरायड) संबंधी रोग के उपचार के लिए होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति फायदेमंद है, यह बात एक अध्ययन की हालिया रिपोर्ट में साबित हुई है. अध्ययन पद्मश्री डॉ. कल्याण बनर्जी की अगुवाई में उनके दिल्ली स्थित क्लीनिक में किया गया. डॉ. बनर्जी ने कहा कि गुर्दे की खराबी की जानकारी शुरुआत में होने और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से मरीजों का इलाज समय से शुरू होने से 50 फीसदी मरीजों का सफल इलाज हो सकता है और गुर्दा संबंधी तकलीफ से उनको निजात मिल सकती है.
अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार, गुर्दे की खराबी के गंभीर रोग का इलाज आरंभ होने के बाद तीसरी बार क्लीनिक आने वाले गुर्दा के 50-58.3 फीसदी मरीजों में उनके सीरम यूरिया और क्रिएटिनिन के स्तर में सुधार पाया गया. वहीं, हाइपोथायरायडिज्म पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि इलाज आरंभ होने के बाद चौथी बार क्लीनिक आने वाले 35 फीसदी रोगियों में उनके सीरम थायराइड उत्तेजक हार्मोन की रीडिंग में सुधार देखा गया.
हाइपोथायरायडिज्म पर यह अध्ययन 2011-2015 के दौरान क्लीनिक में आए 2,083 मरीजों के रिकॉर्ड के आधार पर किया गया है.  वहीं, गुर्दा संबंधी रोग पर अध्ययन 2018 और 2019 में एक महीने के अंतराल पर क्लीनिक आए गुर्दा खराब होने की गंभीर बीमारी से ग्रस्त 61 मरीजों के रिकॉर्ड के आधार पर किया गया है.
डॉ. कल्याण बनर्जी क्लीनिक के संस्थापक डॉ. कल्याण बनर्जी ने कहा, "इस अध्ययन के शुरुआती अवलोकन काफी दिलचस्प हैं.  हाइपोथायरायडिज्म पर अध्ययन के आंकड़ों से संकेत मिला है कि रोगियों को दी जाने वाली विशिष्ट होम्योपैथिक दवाएं थायरॉयड ग्रंथि के कार्य में सुधार के लिए असरदार हैं, जिससे थायरॉयड उत्तेजक हार्मोन रीडिंग में कमी आई. 
यह हाइपोथायरायडिज्म के प्राकृतिक इतिहास की समझ के विपरीत है, जो बताता है कि इस बीमारी में वृद्धि को आमतौर पर नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. हाइपोथायरायडिज्म के एक तिहाई से अधिक मरीजों को होम्योपैथिक दवाओं से लाभ हो रहा है.  भारत की 11 फीसदी आबादी हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित है, जिसके लिए होम्योपैथी इलाज असरदार हो सकती है.
" डॉ. कल्याण बनर्जी ने कहा, "वर्तमान में उपलब्ध कोई भी उपचार सीरम यूरिया और क्रिएटिनिन रीडिंग में कमी करने में सक्षम नहीं है, जबकि हमारे अध्ययन की रीडिंग से यह निर्णय लेने में मदद मिलेगी कि डायलिसिस शुरू की जानी चाहिए या नहीं. " डॉ. कल्याण बनर्जी क्लीनिक के डॉ. कुशल बनर्जी ने कहा, "हमारा उद्देश्य यह पुष्टि करने का प्रयास करना था कि होम्योपैथिक उपचार से गुर्दा संबंधी गंभरी रोग और हाइपोथायरायडिज्म पीड़ित मरीजों को लाभ होता है. 
इन दोनों अध्ययनों के बाद, हम आशा करते हैं कि इन पर और भी अनुसंधान किए जाएंगे.  हम अपने निष्कर्षो को प्रकाशित करने और अपने उपचार प्रक्रिया को सार्वजनिक करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे ताकि दुनिया भर के रोगियों को लाभ मिल सके. " डॉ. कुशल बनर्जी ने कहा कि गुर्दे की खराबी के बारे में मरीजों को पहले पता नहीं चल पाता है क्योंकि 50 फीसदी तक गुर्दे की खराबी के बारे में रक्त की रिपोर्ट में सही जानकारी ही नहीं मिल पाती है.  

Monday, 1 April 2019

वजन ज्यादा है तो हो जाइए सावधान, हो सकती है यह जानलेवा बीमारी

वजन ज्यादा है तो हो जाइए सावधान, हो सकती है यह जानलेवा बीमारीवॉशिंगटन: पचास साल की उम्र से पहले ही कोई व्यक्ति यदि ज्यादा वजन का शिकार हो जाता है तो अग्न्याशय कैंसर से उसकी मौत का जोखिम काफी बढ़ जाता है. एक अध्ययन में यह पाया गया है. शोधकर्ताओं ने कहा कि अग्न्याशय कैंसर के मामले तुलनात्मक रूप से कम सामने आते हैं. कैंसर के सभी नए मामलों में से करीब तीन फीसदी मामले अग्न्याश्य कैंसर के होते हैं. हालांकि, यह काफी जानलेवा किस्म का होता है. इसमें पिछले पांच साल में जीवित बचने की दर महज 8.5 फीसदी रही है.
अमेरिकन कैंसर सोसाइटी में एपिडेमियोलॉजी रिसर्च के वरिष्ठ वैज्ञानिक निदेशक एरिक जे जैकब्स ने कहा, ‘‘वर्ष 2000 के बाद से ही अग्न्याशय कैंसर के मामलों में धीरे-धीरे बढ़ोतरी होती जा रही है.’’ उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘हम इस बढ़ोतरी से पसोपेश में है, क्योंकि अग्न्याशय कैंसर का बड़ा कारण धूम्रपान अब कम होता जा रहा है.’’ शोध टीम ने अमेरिका के 963,317 ऐसे वयस्कों से जुड़े डेटा का परीक्षण किया जिनका कैंसर का कोई इतिहास नहीं रहा. इन सभी लोगों ने अध्ययन की शुरुआत के समय सिर्फ एक बार अपना वजन और अपनी लंबाई बताई. उस वक्त इनमें से कुछ लोग 30 साल के भी थे तो कुछ 70 या 80 साल के भी थे.
शोधकर्ताओं ने ज्यादा वजन के संकेतक के तौर पर बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की गणना की. बाद में शोध में हिस्सा लेने वालों में से 8,354 की मौत अग्न्याशय कैंसर से हो गई, लेकिन जोखिम में यह बढ़ोतरी उनमें देखी गई थी जिनके बीएमआई का आकलन शुरुआती आयु में किया गया था. जैकब्स ने कहा कि अध्ययन के नतीजे संकेत देते हैं कि अत्यधिक वजन से अग्न्याशय कैंसर की चपेट में आने का खतरा कई गुना बढ़ गया है.  

फिर से विवादों में Johnson and Johnson, 'बेबी केयर शैम्पू' से कैंसर का खतरा!

फिर से विवादों में Johnson and Johnson, 'बेबी केयर शैम्पू' से कैंसर का खतरा!आशुतोष शर्मा, जयपुर: हर माता-पिता अपने बच्चों के लिए सबसे बेहतर और बड़ी कंपनी के प्रोडक्ट्स खरीदकर इस्तेमाल करते हैं ताकि उनका बच्चा स्वस्थ रहे और बच्चे की हेल्थ पर कोई दुष्प्रभाव ना पड़े. मगर एक ताजा मामला आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगा कि जो प्रोडक्ट बड़ी बेफिक्री से आप अपने बच्चे के लिए खरीद रहे है कही वो आपके बच्चे के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो नहीं है. मशहूर ब्रांड जॉनसन एंड जॉनसन का एक ताजा मामला सामने आया है. ये कंपनी हिमाचल प्रदेश के बद्दी में बच्चों के लिए कई उत्पादों का निर्माण करती है. इस कंपनी के बेबी शैम्पू जिसका बैच नंबर बीबी 58177 और बीबी 58204 है, इस प्रोडक्ट में पिछले दिनों हुई जांच के दौरान हानिकारक तत्व पाए गए हैं.
इस बारे में सचेत करते हुए राजस्थान राज्य के सभी ड्रग्स कंट्रोल अफसरों को ड्रग्स बुलेटिन जारी कर सचेत किया गया है. राजस्थान ड्रग्स कंट्रोलर राजाराम शर्मा द्वारा जारी पत्र में बताया गया है कि जॉनसन बेबी शैम्पू के उपरोक्त दोनों बैच मानकों के अनुसार खरे नहीं उतरे हैं, जो कि खरीदारों के लिए नुकसानदेह हैं. इसलिए इस कंपनी के उक्त उत्पाद की बिक्री पर रोक  लगाते हुए बाजार से इसके स्टॉक को वापस मंगाया जाए. साथ ही वे कंपनी के अन्य बैचों की भी समय-समय पर जांच करें.
इस शैंपू में हानिकारक फार्मेल्डिहाइड होने की रिपोर्ट है. बता दें, फार्मेल्डिहाइड से कैंसर होने का खतरा होता है. राजस्थान ड्रग रेगुलेटर ने इस शैम्पू के 2 बैच- 'BB58204' औप 'BB58177'को टेस्ट किया था. ये शैम्पू सितंबर 2021 में एक्सपायर हो जाएंगे. राजस्थान ड्रग्स वॉचडॉग ने ड्रग्स कंट्रोल अफसर से नोटिस में कहा कि 'इन स्टॉक्स को किसी के भी द्वारा इस्तेमाल ना किया जाए. साथ ही मौजूदा स्टॉक को मार्केट से हटाया जाए. इसके अलावा ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत जो भी एक्शन लिया जा सकता है वो लिया जाए.'
2018 में अमेरिका में कुछ महिलाओं में जॉनसन एंड जॉनसन बेबी पाउडर की वजह से ओवेरियन (गर्भाशय) कैंसर के लक्षण मिले थे. मामला जब कोर्ट में पहुंचा तो महिला के वकीलों ने कहा कि उनके क्लाइंट को बेबी पाउडर में मौजूद अस्बस्ट्स की वजह से ओवेरियन कैंसर हुआ है. वकीलों का कहना है कि बेबी पाउडर में अबस्टस की मौजूदगी साल 1970 से प्रमाणित है. सुनवाई के बाद कोर्ट ने 22 पीड़ित महिलाओं को 4.69 अरब डॉलर मुआवजे का आदेश दिया था.
इससे पहले 1982 में भी जॉनसन एंड जॉनसन की एक दवा से कुछ लोगों की मौत हो गई थी. विवाद बढ़ने के बाद कंपनी ने 3.1 करोड़ बोतलों को तुरंत वापस लिया था. 2008 में आरोप लगा कि कई उत्पाद में बदूब आ रहे हैं, इस शिकायत के बाद करीब तीन करोड़ यूनिट प्रोडक्स वापस लिए गए.

Friday, 29 March 2019

देशवासियों की सेहत का ध्यान रखेगी Coca Cola, आम पना और छाछ की बिक्री करेगी

देशवासियों की सेहत का ध्यान रखेगी Coca Cola, आम पना और छाछ की बिक्री करेगीनई दिल्ली : पिछले कुछ सालों में सेहत के प्रति बढ़ी जागरूकता और कोल्ड ड्रिंक की सेल घटने से सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है. नई योजना के तहत कोका-कोला (Coca Cola) जैसी दिग्गज कंपनियां दो हजार साल से प्रचलित स्वादिष्ट और सेहतमंद घरेलू पेय जैसे जलजीरा और आम पना बेचने के लिए तैयार है. कंपनी की तरफ से जलजीरा को पहले ही लॉन्च किया जा चुका है. अब गर्मियों को ध्यान में रखते हुए आम पना को पेश करने की योजना है. कंपनी की तरफ से यह निर्णय बढ़ती गर्मी में आम पना की बढ़ती डिमांड को देखकर लिया जा रहा है.
कोल्ड ड्रिंक पीना सेहत के लिए नुकसानदेह
कई रिपोटर्स से यह साफ हो चुका है कि कोल्ड ड्रिंक का सेवन सेहत के लिए नुकसानदेह है. ऐसे में लोग कोल्ड ड्रिंक पीने से परहेज करने लगे हैं. आम पना और जलजीरा को घरेलू मसालों और फलों से तैयार किया जा सकता है. पिछले कुछ सालों में इनके पैकड पैकेट की मांग बढ़ी है. एक आंकड़े के अनुसार यह मांग कोल्ड ड्रिंक से तीन गुना ज्यादा है. ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार कोक के भारत में CEO टी कृष्‍णकुमार ने कहा कि देश के 29 राज्‍य कंपनी के लिए 29 देशों के बराबर हैं. यहां पर कुछ किमी की दूरी पर बोली और खानपान में बदलाव आ जाता है.
छोटे-छोटे स्टार्टअप कर रहे जलजीरा की बिक्री
छोटे-छोटे स्टार्टअप की तरफ से पेश किए गए जलजीरा और आम पना की बिक्री में इजाफा आने से कोक भी इसी ओर रुख कर रही है. राज्स्थान बेस्ड एक एक ग्रुप का स्लोगन है 'Be Indian Buy Indian'. कोक भी इसी का अनुसरण करते हुए पहले जलजीरा लॉन्च कर चुका है. अब कंपनी जल्द ही आम पन्ना लाने की तैयारी में है. कंपनी का लक्ष्य कम कीमत में भारतीय शीतल पेय लोगों तक पहुंचाने की है.
आम और लिची का उत्पादन करेगी कंपनी
कंपनी की तरफ से आम और लिची का उत्पादन भी शुरू किया जाएगा. इसके लिए कंपनी 1.7 अरब डॉलर का निवेश करेगी. कृष्‍णकुमार के अनुसार भारत का जूस मार्केट 3.6 अरब डॉलर का है. इसमें 72 प्रतिशत स्‍थानीय स्‍तर पर ठेलों पर बिकने वाला जूस है. इसके अलावा कंपनी छाछ और लस्सी की बिक्री भी करेगी. इससे यह कहा जा सकता है कि इन गर्मियों कंपनी देशवासियों को ध्यान में रखते हुए नए प्रोडक्ट ला रही है.

6 महीने के केन्याई बच्चे की हालत थी नाजुक, दिल्ली के डॉक्टरों ने नहीं मानी हार, बचाई जान

6 महीने के केन्याई बच्चे की हालत थी नाजुक, दिल्ली के डॉक्टरों ने नहीं मानी हार, बचाई जाननई दिल्ली: छह महीने की नाजुक उम्र में केन्या से आए बच्चे इमेन्युअल लीला कमांक की ओपन हार्ट सर्जरी इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में की गई. बच्चा एक दुर्लभ जन्मजात दिल की बीमारी सायनोटिक टॉसिंग-बिंग एनोमली से पीड़ित था. पैदा होने के चार दिनों के बाद इस बीमारी का पता चला. बच्चे की हालत बिगड़ती जा रही थी, जिसके चलते उसे सर्जरी के लिए दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल लाया गया.  इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स, नई दिल्ली के सीनियर कंसल्टेंट व पीडिएट्रिक कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ. मुथु जोथी ने कहा, "जब इमेन्युअल को अपोलो लाया गया, वह सायनोटिक से पीड़ित था. उसके खून में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण त्वचा का रंग नीला पड़ता जा रहा था.
जांच करने पर हमने पाया कि उसकी सांस लेने की दर प्रति मिनट सिर्फ 20 थी, जो सामान्य से बहुत कम थी." डॉ. जोथी ने कहा, "बच्चे में आयोर्टा दाएं वेंट्रिकल से जुड़ी हुई थी, जबकि सामान्य अवस्था में यह बाएं वेट्रिकल से जुड़ी होती है. साथ ही उसकी पल्मोनरी आर्टरी भी दाएं वेंट्रिकल से जुड़ी थी, जो असामान्य है. इसे डबल आउटलेट राइट वेंट्रिकल डिफेक्ट कहा जाता है.
जांच करने पर पता चला कि उसकी आयोर्टा में एक ब्लॉक भी था. इसके अलावा बच्चे में बड़ा सब-पल्मोनरी वेंट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट, आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट और पेटेंट डक्टस आर्टीरियोसस भी था. इस बीमारी में जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो खुली ब्लड वैसल जिसे बंद हो जाना चाहिए, वह बंद नहीं हो पाती."
उन्होंने कहा, "यह मामला बेहद गंभीर था, सर्जरी के बाद भी बच्चे के ठीक होने की संभावना बहुत कम थी. हालात को देखते हुए हमने इलाज की योजना बनाई. हमने परिवार को जानकारी दी कि उसकी सर्जरी में 50-60 फीसदी जोखिम है. परिवार ने जोखिम लेने के लिए सहमति दी और हमने सर्जरी करने का फैसला ले लिया." 21 जनवरी, 2019 को डॉ. मुथु जोथी ने बच्चे की सर्जरी की.
उनकी टीम में डॉ मनीषा चक्रवर्ती और डॉ. रीतेश गुप्ता शामिल थे. डॉ. मुथु जोथी ने कहा, "पूरी प्रक्रिया टोटल सकुर्लेटरी अरेस्ट में की गई, यानी शरीर के पूरी खून को हार्ट लंग मशीन में ड्रेन किया जा रहा था. इससे पहले हमें बच्चे के शरीर को 16 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा रखना था. यह मनुष्य के शरीर के लिए जमा देने वाला तापमान होता है.
हमें उसके दिमाग की सतह पर पर बर्फ रखनी पड़ी." उन्होंने कहा, "बिना सकुर्लेशन के हम मरीज को अधिकतम 45 मिनट के लिए रख सकते हैं. इसके बाद दिमाग, स्पाइनल कोर्ड, किडनी एवं अन्य अंगों को नुकसान पहुंचने का खतरा होता है. इमेन्युअल को 30 मिनट के लिए टोटल सकुर्लेटरी अरेस्ट पर रखा गया.
इस दौरान हमने आयोर्टिक आर्च की मरम्मत की, इसके लिए पीडीए ब्लड वैसल को डिसकनेक्ट किया और इसे आयोर्टिक आर्च के साथ कनेक्ट किया गया." उन्होंने कहा, "इसके बाद हमने बच्चे को फिर से हार्ट-लंग मशीन पर डाला, और खून की वाहिकों की पॉजिशन ठीक की.
इंट्राम्यूरल कोरोनरी आर्टरी बहुत ही मुश्किल स्थिति में थी, हमें इस वाहिका को नई आयोर्टा में इम्प्लांट करना था. इस प्रक्रिया में आधे मिलीमीटर की गलती भी हार्ट अटैक का कारण बन सकती है. इसके बाद वेंट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट और आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट को ठीक किया गया. सर्जरी 9 घंटे तक चली." इसके बाद बच्चा धीरे-धीरे ठीक होने लगा और 17वें दिन उसे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई.

Thursday, 28 March 2019

स्टेशन नींबू पानी बनाने का वीडियो वायरल, Railway ने बिक्री पर लगाई रोक

स्टेशन पर नींबू पानी बनाने का वीडियो वायरल, Railway ने बिक्री पर लगाई रोकनई दिल्ली : पिछले दिनों मुंबई के कुर्ला रेलवे स्टेशन पर एक कर्मचारी द्वारा तैयार किए जा रहे नींबू पानी का वीडियो वायरल होने के बाद सेंट्रल रेलवे ने सख्त कदम उठाया है. इस पूरे मामले में सेंट्रल रेलवे की लापरवाही उजागर हो गई है. सेंट्रल रेलवे (मुंबई डिवीजन) ने सभी कैटरिंग यूनिट को स्टेशन परिसर में नींबू पानी, ऑरेंज जूस और काला खट्टा की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का आदेश दिया है. सेंट्रल रेलवे की तरफ से यह कार्रवाई कुर्ला रेलवे स्टेशन का वीडियो वायरल होने के बाद ली गई है.
गंदे हाथों से बना रहा नींबू पानी
दरअसल करीब एक हफ्ते पहले मुंबई के कुर्ला स्टेशन पर एक यात्री द्वारा बनाए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि एक स्टॉल का कर्मचारी बाल्टी में गंदे हाथों से नींबू निचोड़ रहा है. इतना ही नहीं वह नींबू पानी बनाने के लिए ओवर हैड टैंक में भरे पानी का इस्तेमाल कर रहा है, बीच-बीच में वह टंकी में भरे पानी को बाल्टी में ले रहा है और नींबू पानी तैयार कर रहा है. नींबू पानी से भरे इस ड्रम को वह कर्मचारी बाद में स्टॉल पर रखकर बिक्री करता है.
सोशल मीडिया में वायरल हुआ वीडियो
एक यात्री की तरफ से स्टॉल वाले का बनाया गया यह वीडियो कई दिन से सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहा है. इसके बाद सेंट्रल रेलवे की किरकिरी हो गई और रेलवे की तरफ से यह कदम उठाया गया. जिस यात्री ने कुर्ला रेलवे स्टेशन पर इस वीडियो को बनाया था, उसने सेंट्रल रेवले को टैग कर इस मामले में संज्ञान लेने की गुजारिश की थी.
वीडियो देखने के बाद कार्रवाई करते हुए रेलवे अधिकारियों ने कुर्ला स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 7 और 8 पर स्थित स्टॉल से फूड सैंपल एकत्रित किए और इसे सील कर दिया. स्टॉल का लाइसेंस रखने वाले शख्स को भी जांच कमेटी के सामने पेश होने के लिए समन जारी किया गया है. आपको बता दें कि रेलवे की तरफ से मशीन से निकाले गए जूस पर पाबंदी नहीं लगाई गई है.

टाइप-2 डायबिटीज से बढ़ा दिल पर खतरा, बन रहा है 58 फीसदी मरीजों की मौत कारण

टाइप-2 डायबिटीज से बढ़ा दिल पर खतरा, बन रहा है 58 फीसदी मरीजों की मौत कारणनई दिल्ली: मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित लोगों को दिल की बीमारियों से मौत का खतरा बढ़ जाता है. टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में लगभग 58 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी परेशानियों के कारण होती हैं. मधुमेह के साथ जुड़े ग्लूकोज के उच्च स्तर से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जिससे रक्तचाप और नजर, जोड़ों में दर्द तथा अन्य परेशानियां हो जाती हैं.
चिकित्सक के अनुसार, टाइप-2 मधुमेह सामान्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन युवा भारतीयों में भी यह अब तेजी से देखा जा रहा है. वे गुर्दे की क्षति और हृदय रोग के साथ-साथ जीवन को संकट में डालने वाली जटिलताओं के जोखिम को झेल रहे हैं.
पद्मश्री से सम्मानित डॉ केके अग्रवाल ने कहा, "देश में युवाओं के मधुमेह से ग्रस्त होने के पीछे जो कारक जिम्मेदार हैं, उनमें प्रमुख है प्रोसेस्ड और जंक फूड से भरपूर अधिक कैलारी वाला भोजन, मोटापा तथा निष्क्रियता. समय पर ढंग से जांच न कर पाना और डॉक्टर की सलाह का पालन न करना उनके लिए और भी जोखिम भरा हो जाता है, जिससे उन्हें अपेक्षाकृत कम उम्र में ही जानलेवा स्थितियों से गुजरना पड़ जाता है."
उन्होंने कहा कि लोगों में एक आम धारणा है कि टाइप-2 मधुमेह वाले युवाओं को इंसुलिन की जरूरत नहीं होती है, इसलिए ऐसा लगता है कि यह भयावह स्थिति नहीं है. हालांकि, ऐसा सोचना गलत है. इस स्थिति में तत्काल उपचार और प्रबंधन की जरूरत होती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले युवाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यदि कुछ दिखते भी हैं, तो वे आमतौर पर हल्के हो सकते हैं, और ज्यादातर मामलों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं, जिनमें अधिक प्यास और बार-बार मूत्र त्याग करना शामिल है.
डॉ अग्रवाल ने कहा, "यदि घर के बड़े लोग अच्छी जीवनशैली का उदाहरण पेश करते हैं तो यह युवाओं के लिए भी प्रेरणादायी होगा. इस तरह के बदलाव एक युवा को अपना वजन कम करने में मदद कर सकते हैं (अगर ऐसी समस्या है तो) या उन्हें खाने-पीने के बेहतर विकल्प खोजने में मदद कर सकते हैं, जिससे टाइप-2 मधुमेह विकसित होने की संभावना कम हो जाती है. जिनके परिवार में पहले से ही डायबिटीज की समस्या रही है, उनके लिए तो यह और भी सच है.
कुछ सुझाव जिनसे मिलेगी मदद:
- खाने में स्वस्थ खाद्य पदार्थ ही चुनें.
- प्रतिदिन तेज रफ्तार में टहलें. 
- अपने परिवार के साथ अपने स्वास्थ्य और मधुमेह व हृदय रोग के जोखिम के बारे में बात करें.
- यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ने की पहल करें. 
- अपने लिए, अपने परिवार के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए मधुमेह और इसकी जटिलताओं संबंधी जोखिम को कम करने खातिर जीवनशैली में बदलाव करें.

Tuesday, 26 March 2019

डायबिटीज पीड़ितों को ज्यादा रहता है हार्ट अटैक का खतरा, इन चीजों से आज ही कर लें तौबा

डायबिटीज पीड़ितों को ज्यादा रहता है हार्ट अटैक का खतरा, इन चीजों से आज ही कर लें तौबानई दिल्ली : मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित लोगों को दिल की बीमारियों से मौत का खतरा बढ़ जाता है. टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में लगभग 58 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी परेशानियों के कारण होती हैं. मधुमेह के साथ जुड़े ग्लूकोज के उच्च स्तर से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जिससे रक्तचाप और नजर, जोड़ों में दर्द तथा अन्य परेशानियां हो जाती हैं.
चिकित्सक के अनुसार, टाइप-2 मधुमेह सामान्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन युवा भारतीयों में भी यह अब तेजी से देखा जा रहा है. वे गुर्दे की क्षति और हृदय रोग के साथ-साथ जीवन को संकट में डालने वाली जटिलताओं के जोखिम को झेल रहे हैं.
पद्मश्री से सम्मानित डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "देश में युवाओं के मधुमेह से ग्रस्त होने के पीछे जो कारक जिम्मेदार हैं, उनमें प्रमुख है प्रोसेस्ड और जंक फूड से भरपूर अधिक कैलारी वाला भोजन, मोटापा तथा निष्क्रियता. समय पर ढंग से जांच न कर पाना और डॉक्टर की सलाह का पालन न करना उनके लिए और भी जोखिम भरा हो जाता है, जिससे उन्हें अपेक्षाकृत कम उम्र में ही जानलेवा स्थितियांे से गुजरना पड़ जाता है."
उन्होंने कहा कि लोगों में एक आम धारणा है कि टाइप-2 मधुमेह वाले युवाओं को इंसुलिन की जरूरत नहीं होती है, इसलिए ऐसा लगता है कि यह भयावह स्थिति नहीं है. हालांकि, ऐसा सोचना गलत है. इस स्थिति में तत्काल उपचार और प्रबंधन की जरूरत होती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले युवाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यदि कुछ दिखते भी हैं, तो वे आमतौर पर हल्के हो सकते हैं, और ज्यादातर मामलों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं, जिनमें अधिक प्यास और बार-बार मूत्र त्याग करना शामिल है.
डॉ. अग्रवाल ने कहा, "यदि घर के बड़े लोग अच्छी जीवनशैली का उदाहरण पेश करते हैं तो यह युवाओं के लिए भी प्रेरणादायी होगा. इस तरह के बदलाव एक युवा को अपना वजन कम करने में मदद कर सकते हैं (अगर ऐसी समस्या है तो) या उन्हें खाने-पीने के बेहतर विकल्प खोजने में मदद कर सकते हैं, जिससे टाइप-2 मधुमेह विकसित होने की संभावना कम हो जाती है. जिनके परिवार में पहले से ही डायबिटीज की समस्या रही है, उनके लिए तो यह और भी सच है. 
उन्होंने कुछ सुझाव दिए :
- खाने में स्वस्थ खाद्य पदार्थ ही चुनें.
- प्रतिदिन तेज रफ्तार में टहलें. 
- अपने परिवार के साथ अपने स्वास्थ्य और मधुमेह व हृदय रोग के जोखिम के बारे में बात करें.
- यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ने की पहल करें. 
- अपने लिए, अपने परिवार के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए मधुमेह और इसकी जटिलताओं संबंधी जोखिम को कम करने खातिर जीवनशैली में बदलाव करें.

Sunday, 24 March 2019

1000 से अधिक डॉक्टरों ने PM को लिखा पत्र, कहा- ई-सिगरेट पर लगाया जाए प्रतिबंध

1000 से अधिक डॉक्टरों ने PM को लिखा पत्र, कहा- ई-सिगरेट पर लगाया जाए प्रतिबंध नई दिल्ली: भारत के 24 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 1000 से अधिक चिकित्सकों ने इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. इसमें ईएनडीएस ई-सिगरेट, ई-हुक्का भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में इन चिकित्सकों ने चिंता व्यक्त की है कि युवाओं के बीच ईएनडीएस महामारी बन कर फैल जाए, इससे पहले इस पर रोक लगाना बेहद जरूरी है. पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले ये 1,061 डॉक्टर इस बात से बेहद चिंतित हैं कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे पर, व्यापार और उद्योग संगठन ई-सिगरेट के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दे रहे हैं.
ई-सिगरेट को ई-सिग, वेप्स, ई-हुक्का, वेप पेन भी कहा जाता है, जो इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) है. कुछ ई-सिगरेट नियमित सिगरेट, सिगार या पाइप जैसे दिखते हैं. कुछ यूएसबी फ्लैश ड्राइव, पेन और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं की तरह दिखते हैं, जो युवाओं को बेहद आकर्षित करते हैं. डॉक्टरों के समूह ने 30 संगठनों द्वारा आईटी मंत्रालय को लिखे एक पत्र पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य का मामला है और इसलिए व्यावसायिक हितों की रक्षा नहीं की जानी चाहिए.
मीडिया रपट के अनुसार, 30 संगठनों ने इंटरनेट पर ईएनडीएस के प्रचार पर प्रतिबंध न लगाने के लिए आईटी मंत्रालय को लिखा था. उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त, 2018 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को ईएनडीएस पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक परामर्श जारी किया था. इस साल मार्च में एमओएचएफडब्ल्यू द्वारा नियुक्त स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक पैनल ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसमें ईएनडीएस पर 251 शोध अध्ययनों का विश्लेषण किया गया है. पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि ईएनडीएस किसी भी अन्य तंबाकू उत्पाद जितना ही खराब है और निश्चित रूप से असुरक्षित है.
टाटा मेमोरियल अस्पताल के उप निदेशक एवं हेड नेक कैंसर सर्जन डॉ. पंकज चतुर्वेदी का कहना है, "यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि निकोटीन को जहर माना जाए. यह दुख:द है कि ईएनडीएस लॉबी ने डॉक्टरों के एक समूह को लामबंद किया है, जो ईएनडीएस उद्योग के अनुरूप भ्रामक, विकृत जानकारी साझा कर रहे हैं.
मैं भारत सरकार की सराहना करता हूं कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के अपने लक्ष्य के अनुरूप, इसने निकोटीन वितरण उपकरणों (ईएनडीएस) के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है." डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि ई सिगरेट को किसी भी रूप में सुरक्षित प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए. एकमात्र तरीका पूरी तरह से धूम्रपान छोड़ना है और किसी भी तंबाकू उत्पाद का उपयोग शुरू नहीं करना है.
वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिम के इस अभियान से जुड़े डॉक्टर इस बात से चिंतित हैं कुछ डॉक्टरों का वर्ग ईएनडीएस लाबी से बेहद प्रभावित हो रहा है. कुछ निहित स्वार्थ वाले डॉक्टर अत्यधिक सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संघों की रिपोर्ट को गलत संदर्भ में ले रहे हैं. एम्स दिल्ली के कार्डियो-थोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) के प्रमुख डॉ. शिव चौधरी कहते हैं, "शोध से साबित हुआ है कि ईएनडीएस सुरक्षित नहीं है या धूम्रपान छोड़ने का विकल्प नहीं है.
निकोटीन पर निर्भरता स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा है. एक डॉक्टर के रूप में, मैं कभी भी चिकित्सकीय पर्यवेक्षण के बिना किसी भी निकोटीन उत्पाद के उपयोग की सिफारिश नहीं करूंगा." द अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (एसीएस) और द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज इंजीनियरिंग मेडिसिन (एनएएसईएम) दोनों का मानना है कि ई-सिगरेट से शुरू करने वाले युवाओं का सिगरेट के इस्तेमाल करने के आदी होने और इन्हें नियमित धूम्रपान करने वालों में भी बदल जाने की संभावना अधिक होती है.
वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) की निदेशक आशिमा सरीन ने अमेरिकन कैंसर सोसायटी, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन जैसे प्रतिष्ठित संगठनों का हवाला देते हुए कहा, "ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (2017) के अनुसार, भारत में 10 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं, जो ईएनडीएस के निर्माताओं के लिए एक बड़ा बाजार है." 

Wednesday, 20 March 2019

होली का मजा न करें किरकिरा, इस तरह रखें अपनी सेहत का ध्यान

नई दिल्ली: होली का त्योहार दस्तक दे चुका है. सभी लोगों के लिए रंगों का यह उत्साह से भरने वाला है. होली की तैयारियां भी लोगों ने शुरू कर दी है. कहीं मिठाइयां बनाई जा रही हैं, तो कहीं रंगों की खरीददारी भी शुरू हो गई है. लोग अपनी होली को खास बनाने की तैयारियों में लगे हुए हैं लेकिन इसी बीच वह अपनी सेहत का ख्याल भूल जाते हैं.

त्योहार के वक्त बीमार होने से केवल खुद का ही नहीं बल्कि सबका ही मजा किरकिरा हो जाता है. इसलिए आज के अपने इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे आसान टिप्स बताने वाले हैं जिन्हें फॉलो करके आप आसानी से बीमारियों से बच सकते हैं और त्योहार का पूरा मजा ले सकते हैं.

1. अधिक पानी पिएं- होली के वक्त मौसम में बदलाव और लगातार भागदौड़ के चलते काफी ज्यादा थकावट हो जाती है. वहीं धूप में होली खेलने से भी बॉडी डीहाइट्रेट हो सकती है. इसलिए होली के दिन पानी पीना ना भूलें, ताकि आपके शरीर में पानी की कमी न हो.

2. मावे वाली मिठाई की क्वालिटी चैक करें- कोई भी त्योहार बिना मिठाई के पूरा नहीं होता. त्योहारों के वक्त में लोग जमकर मिठाई खाते हैं और खरीदते हैं. इसलिए मिठाई खरीदने से पहले मिठाई की अच्छी तरह से जांच करें. खोए की क्वालिटी जरूर जांच ले. अगर खोया मूंह में चिपकता है तो समझ जाएं कि वो नकली है और अगर नहीं चिपकता तो मतलब खोया असली है.

3. हर्बल रंगों से खेलें- होली का त्योहार रंगों के बिना कैसे पूरा हो सकता है लेकिन जिस तरह से आज के वक्त में मिलावटी मिठाई बाजार में बिकती है उसी तरह रंगों में भी मिलावट होती है. इसलिए हर्बल रंगों से ही होली खेलें. होली के लिए आप अपने ही घर में विभिन्न फूल या सब्जियों से रंग बना सकते हैं.

4. भांग पीने से बचें- होली पर भांग का सेवन बहुत आम है लेकिन भांग से सेहत पर गलत प्रभाव पड़ सकता है. होली के दिन भांग की जगह आप आम पन्ना, जलजीरा, लस्सी या नारियल के पानी का भी सेवन कर सकते हैं. बता दें, इससे आपकी सेहत पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.

Tuesday, 19 March 2019

बेहद फायदेमंद है रोजाना एक कप कॉफी की आदत, कैंसर के खतरे को करती है कम

टोक्यो : सुबह का बेहतरीन पेय होने के साथ ही कॉफी प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिससे दवा-प्रतिरोधी कैंसर के इलाज का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. जापान के कनाजावा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल तत्वों की पहचान की है, जो प्रोस्टेट कैंसर की वृद्धि को रोक सकते हैं.

ये दोनों तत्व हाइड्रोकॉर्बन यौगिक हैं, जो प्राकृतिक रूप से अरेबिका कॉफी में पाए जाते हैं. इसके पायलट अध्ययन से पता चलता है कि कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल कोशिकाओं की वृद्धि को रोक सकते हैं, जो आम कैंसर रोधी दवाओं जैसे कबाजिटेक्सेल का प्रतिरोधी है. शोध के प्रमुख लेखक हिरोकी इवामोटो ने कहा, "हमने पाया कि कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल ने चूहों में कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रोक दी, लेकिन इसका संयोजन एक साथ ज्यादा प्रभावी होगा."

इस शोध के लिए दल ने कॉफी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले छह तत्वों का परीक्षण किया. इस शोध को यूरोपियन एसोसिएशन ऑफ यूरोलॉजी कांग्रेस में बार्सिलोना में प्रस्तुत किया गया. शोध के तहत मानव की प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं पर प्रयोगशाला में अध्ययन किया गया.

Sunday, 17 March 2019

कुपोषण पर तेजी से हो रहा नियंत्रण, लेकिन अभी भी देश में 4.66 करोड़ कुपोषित बच्चे

नई दिल्ली: ताजा सर्वेक्षण रपट के अनुसार देश में कुपोषण के कारण कमजोर बच्चों का अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में करीब दो प्रतिशत कम होकर 34.70 प्रतिशत पर आ गया. इससे पहले एक दस वर्ष में इसमें सालाना एक प्रतिशत की दर से कमी दर्ज की गयी थी. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुख्य रूप से सरकारी मुहिम के कारण कुपोषण से बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट में यह कमी आयी है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण के कारण औसत से कम लंबाई और भार वाले बच्चों का अनुपात 2004-05 के 48 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 38.40 प्रतिशत पर आ गया. अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘‘ यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश में कुपोषण से अवरुद्ध शारीरिक-विकास वाले बच्चों का अनुपात 2015-16 के 38.40 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 34.70 प्रतिशत पर आ गया है.

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

वर्ष 2004-05 से 2015-16 की दस वर्ष की अवधि के दौरान छह साल के कुपोषण प्रभावित ऐसे बच्चों के अनुपात में सालाना एक प्रतिशत की दर से 10 प्रतिशत की कमी आयी थी. उसने कहा, ‘‘यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय के नये सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 से 2017-18 के दौरान कुपोषण चार प्रतिशत कम हुआ. यह सालाना दो प्रतिशत की कमी है जो कि बड़ी उपलब्धि है.’’ यह सर्वेक्षण 1.12 लाख परिवारों को लेकर किया गया.

अधिकारी ने कहा, ‘‘अब कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपात में करीब दो प्रतिशत सालाना की कमी की दर को हासिल कर लिया गया है ऐसे में सरकार का ‘पोषण अभियान का लक्ष्य’ छोटा लगने लगा है.’’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की. इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 प्रतिशत से घटाकर 2022 में 25 प्रतिशत पर लाना है.

अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) जैसे अन्य मुख्य स्वास्थ्य सूचकांकों पर भी सुधार देखने को मिला है. उन्होंने कहा कि महिलाओं में खून की कमी 2015-16 के 50-60 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 40 प्रतिशत पर आ गयी है. वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया में कुपोषण के कारण कमजोर शरीर वाले एक तिहाई बच्चे भारत में हैं. भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 4.66 करोड़ है. इसके बाद नाइजीरिया (13.9%) और पाकिस्तान (10.7%) का नाम आता है.

2% की दर से घटा कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपातः सर्वे

नई दिल्ली: ताजा सर्वेक्षण रपट के अनुसार देश में कुपोषण के कारण कमजोर बच्चों का अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में करीब दो प्रतिशत कम होकर 34.70 प्रतिशत पर आ गया. इससे पहले एक दस वर्ष में इसमें सालाना एक प्रतिशत की दर से कमी दर्ज की गयी थी. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुख्यत: सरकारी मुहिम के कारण कुरोषण से बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट में यह कमी आई है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण के कारण औसत से कम लंबाई और भार वाले बच्चों का अनुपात 2004-05 के 48 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 38.40 प्रतिशत पर आ गया.

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर पीटीआई भाषा से कहा, ''यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश में कुपोषण से अवरुद्ध शारीरिक-विकास वाले बच्चों का अनुपात 2015-16 के 38.40 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 34.70 प्रतिशत पर आ गया है. वर्ष 2004-05 से 2015-16 की दस वर्ष की अवधि के दौरान छह साल के कुपोषण प्रभावित ऐसे बच्चों के अनुपात में सालाना एक प्रतिशत की दर से 10 प्रतिशत की कमी आयी थी.

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्र

उसने कहा, ''यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय के नये सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 से 2017-18 के दौरान कुपोषण चार प्रतिशत कम हुआ. यह सालाना दो प्रतिशत की कमी है जो कि बड़ी उपलब्धि है.'' यह सर्वेक्षण 1.12 लाख परिवारों को लेकर किया गया. अधिकारी ने कहा, ''अब कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपात में करीब दो प्रतिशत सालाना की कमी की दर को हासिल कर लिया गया है ऐसे में सरकार का 'पोषण अभियान का लक्ष्य' छोटा लगने लगा है.''

सुबह-सुबह पीएं आजवायन पानी, एक महीने में 3-4 किलोग्राम वजन कम होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की. इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 प्रतिशत से घटाकर 2022 में 25 प्रतिशत पर लाना है. अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) जैसे अन्य मुख्य स्वास्थ्य सूचकांकों पर भी सुधार देखने को मिला है.

वायु प्रदूषण से दुनियाभर में 88 लाख लोगों की हर साल हुई मौत, स्टडी का दावा

उन्होंने कहा कि महिलाओं में खून की कमी 2015-16 के 50-60 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 40 प्रतिशत पर आ गई. वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया में कुपोषण के कारण कमजोर शरीर वाले एक तिहाई बच्चे भारत में हैं. भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 4.66 करोड़ है. इसके बाद नाइजीरिया (13.9%) और पाकिस्तान (10.7%) का नाम आता है. (इनपुटः भाषा)

Friday, 15 March 2019

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

नई दिल्लीः बदलती जीवनशैली और काम के चलते होने वाली भागदौड़ के कारण पर्याप्त नींद तो जैसे लोगों के लिए एक सपना बन कर रह गई है. कभी काम तो कभी मोबाइल और कंप्यूटर लोगों की रातों की नींदे चोरी करती जा रही हैं. जिसके चलते लोग स्लीपिंग डिसऑर्डर और इससे होने वाली बीमारियों से घिरते जा रहे हैं. आज यानि 15 मार्च को 'वर्ल्ड स्लीप डे' है. इसलिए आज हम आपसे चर्चा कर रहे हैं स्लीपिंग डिसऑर्डर और इससे होने वाले नुकसानों के बारे में. बता दें स्लीपिंग डिसऑर्डर को लेकर हाल ही में एक सर्वे हुआ है, जो आपको चौंकाने के लिए काफी है. दरअसल, हाल ही में GOQii India ने World Sleeping Day पर एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें कहा गया है कि 'मधुमेह, हार्ट डिजीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी खतरनाक बीमारियां स्लीपिंग डिसऑर्डर और अनियमित जीवनशैली की देन हो सकती हैं.'

गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर से महिलाओं को ये खतरा, जानकर हो जाएंगे हैरान

बता दें एक अध्ययन में GOQii India ने न्यूट्रीशन्स, पानी, तनाव, नींद, धूम्रपान और शराब की खपत के आधार पर लिंग और प्रमुख शहरों के अनुसार वर्गीकृत करके कुछ ग्रुप बनाए थे. जिसमें महिलाओं और पुरुषों के स्लीप पैटर्न का एनालिसिस किया गया. फिट इंडिया द्वारा किए इस अध्ययन में कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए, जिनमें कहा गया है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कम नींद लेती हैं और पुरुष महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा सुकून से सोते हैं. वहीं नींद को लेकर कुछ और भी खुलासे इस रिपोर्ट में हुए हैं, जो इस तरह से हैं-

अगर है हाई ब्लड प्रेशर की समस्या, तो खाने में शामिल करें ये फल और सब्जियां

- पिछले साल की तुलना में कुल नींद 6.54 से बढ़कर 6.85 घंटे हो गई है.
- नींद के मामले में चेन्नई इस साल कोलकाता से आगे निकल कर पहली रैंक पर आ गया है, जिसमें कुल नींद 6.31 घंटे से बढ़कर 6.93 घंटे है.
- केवल 19% लोग जागने पर आराम और ताजगी महसूस करते हैं, जबकि 24% ने कहा कि वे जागने के बाद भी नींद महसूस करते हैं.
- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को थोड़ी अधिक मात्रा में नींद आती है.
- पुरुषों को कम नींद आती है, जिससे परेशान नींद अधिक होती है
- युवा वयस्कों (20-30) को मात्रा और गुणवत्ता दोनों के मामले में सबसे अधिक नींद आती है, इसके बाद किशोर और वयस्क होते हैं.
- सीनियर्स (60+) और पुराने वयस्कों (45-60) को कम से कम मात्रा में नींद लेते देखा जाता है-
- 55% किशोरों ने कहा कि उन्हें गहरी नींद आती है, जबकि सीनियर्स में केवल 21% ने ही ऐसा कहा.
- लगभग 45% सीनियर्स नींद के बीच में उठते हैं, लेकिन तुरंत सो जाते हैं.

राप्ती-सागर एक्सप्रेस में अंडा बिरयानी खाने से फूड पॉयजनिंग, 20 यात्री बीमार

भोपालः ट्रेनों में अच्छी केटरिंग सर्विस को लेकर किए जाने वाले दावों की आए दिन पोल खुलती नजर आती रहती है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है त्रिवेंद्रम से गोरखपुर जा रही राप्ती सागर एक्सप्रेस 12512 से, जहां अंडा बिरयानी खाने से करीब 20 यात्री फूड पॉयजनिंग का शिकार हो गए. जिससे इन यात्रियों की ट्रेन में ही हालत खराब हो गई. यात्रियों के मुताबिक राप्ती सागर एक्सप्रेस में यात्रियों ने खाने के लिए अंडा बिरयानी ऑर्डर किया था, जिसे खाने के कुछ देर बाद ही उन्हें मतली, उल्टी और पेट दर्द की शिकायत होने लगी. यात्रियों की तबीयत खराब होने के बाद इटारसी रेलवे स्टेशन पर अलर्ट जारी किया गया. जिसके बाद नागपुर में डॉक्टर्स की एक टीम ने चिकित्सकीय परीक्षण और उपचार कर आगे की यात्रा के लिए रवाना कर दिया.

मथुरा: जहरीली मिठाई खाने से एक ही परिवार के 12 लोग बीमार, 2 की हालत गंभीर

वहीं घटना की जानकारी मिलने के बाद रेल प्रशासन में हड़कंप मच गया. हालांकि, मिली जानकारी के मुताबिक उपचार के बाद सभी यात्रियों की हालत सामान्य हो गई और पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही उन्हे आगे के लिए रवाना किया गया. नागपुर रेल मंडल के जनसंपर्क अधिकारी अनिल वाल्डे ने बताया कि ''यात्रियों को बल्लारशा स्टेशन से पेट में दर्द, उल्टी और मितली की शिकायत होने की सूचना के बाद नागपुर रेलवे स्टेशन पर छह डाक्टरों के दल ने सभी यात्रियों का उपचार किया. बीमार हुए यात्री ट्रेन के एस 7 कोच में सफर कर रहे थे.''

झारखंड : लोहरदगा में प्रसाद खाने से 40 बच्चे बीमार, 2 की हालत नाजुक

अधिकारी अनिल वाल्डे ने आगे बताया कि इसी ट्रेन में यात्रा कर रहे एक यात्री अनिल थापा की मौत हो गई है, जिनका शव आमला रेलवे स्टेशन पर उतारा गया है. हांलकि यह मौत फूड पॉयजनिंग से न होकर बीमारी से बताई जा रही है. बता दें यह पहली बार नहीं है जब ट्रेन में इस तरह का दूषित खाना खाने से यात्रियों के बीमार होने का मामला सामने आया हो. इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां ट्रेन का खाना खाने से यात्री बुरी तरह से बीमार पड़ चुके हैं. वहीं फूड पॉयजनिंग की शिकायत मिलने के बाद अधिकारियों ने खाने के नमूने परीक्षण के लिए भेज दिए हैं.

Wednesday, 13 March 2019

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्र

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्रनैरोबी: दुनिया भर में समय से पहले और बीमारियों से जितनी मौत होती है, उसमें एक चौथाई मृत्यु मानवनिर्मित प्रदूषण और पर्यावरण को हुए नुकसान के कारण होती है. संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को एक रिपोर्ट में यह कहा है. 
इसमें आगाह किया गया है कि दम घोंटू उत्सर्जन, केमिकल से प्रदूषित पेयजल और पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाला नुकसान दुनिया भर में अरबों लोगों की रोजी-रोटी को प्रभावित कर रहे हैं. विश्व की अर्थव्यवस्था को भी इससे चोट पहुंच रही है. 
वैश्विक पर्यावरण परिदृश्य रिपोर्ट अमीर और गरीब देशों के बीच की बढ़ती खाई को प्रदर्शित करती है क्योंकि विकसित दुनिया में बढते उपभोग, प्रदूषण और खाद्य अपशिष्ट से हर जगह भुखमरी, गरीबी और बीमारी फैल रही है. यह रिपोर्ट छह साल में आती है और 70 देशों के 250 वैज्ञानिकों ने इसे तैयार किया है. 
ग्रीन हाउस गैस के बढ़ते उत्सर्जन से सूखा, बाढ़ और तूफान के खतरे के बीच समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और इस पर सहमति बन रही है कि जलवायु परिवर्तन से अरबों लोगों के भविष्य को खतरा होगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ पेयजल नहीं मिलने से हर साल 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इसी तरह समुद्र में बह कर पहुंचे रसायन के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है. विशाल पैमाने पर खेती के चलते तथा वन काटे जाने से भूमि क्षरण के कारण 3.2 अरब लोग प्रभावित होते हैं.  रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 60-70 लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है. 

किडनी रोग : महिलाओं पर भारी, हर साल लेता है छह लाख जानें

किडनी रोग : महिलाओं पर भारी, हर साल लेता है छह लाख जानेंनई दिल्ली : महिला दिवस पर महिलाओं की तमाम उपलब्धियों और उनके सामाजिक, आर्थिक सशक्तीकरण के बारे में बात करने वालों के लिए यह तथ्य परेशान करने वाला हो सकता है कि पुरूषों के मुकाबले महिलाओं को किडनी की बीमारी ज्यादा होती है और हर वर्ष तकरीबन छह लाख महिलाएं इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा देती हैं. हमारा शरीर अपने आप में एक अनूठी मशीन है, जिसका हर पुर्जा अपने हिस्से का काम बिना रूके करता रहता है, लेकिन अगर किसी तरह की लापरवाही हो तो बीमारी अपना सिर उठाने लगती है और एक हिस्से की बीमारी दूसरे अंगों पर भी असर डालती है.
जानलेवा हो सकती है लापरवाही
किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसके प्रति लापरवाही जानलेवा हो सकती है. हाल के वर्ष खान-पान और दिनचर्या में बदलाव के चलते दुनियाभर में किडनी की बीमारी से प्रभावित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. मेडिकल साइंस में क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के नाम से पुकारे जाने वाले रोग का मतलब किडनी का काम करना बंद कर देना होता है. इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मार्च के दूसरे गुरुवार को 'वर्ल्ड किडनी डे' मनाया जाता है.
20 करोड़ महिलाएं किडनी की समस्या से ग्रस्त
साल 2019 के 'वर्ल्ड किडनी डे' का थीम 'किडनी हेल्थ फॉर एवरी वन, एवरी वेयर' है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के आसपास आने वाले इस दिन पर महिलाओं को इस रोग के बारे में विशेष रूप से जागरूक किए जाने की जरूरत है. श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में सीनियर कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट डाक्टर राजेश अग्रवाल के अनुसार देश में औसतन 14 प्रतिशत महिलाएं और 12 प्रतिशत पुरुष किडनी की समस्या से पीड़ित हैं और पूरे विश्व में 19.5 करोड़ महिलाएं किडनी की समस्या से पीड़ित है.
हर साल 2 लाख लोग इसकी चपेट में आ रहे
भारत में भी यह संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है, यहां हर साल 2 लाख लोग इस रोग की चपेट में आते हैं. शुरुआती अवस्था में बीमारी को पकड़ पाना मुश्किल होता है, क्योंकि दोनों किडनी 60 प्रतिशत खराब होने के बाद ही मरीज को इसका पता चल पाता है. उन्होंने बताया कि किडनी या गुर्दा 'राजमा' की शक्ल जैसा अंग है, जो पेट के दायें और बायें भाग में पीछे की तरफ स्थित होता है. किडनी खराब होने पर शरीर में खून साफ नहीं हो पाता और क्रिएटनिन बढ़ने लगता है. यदि दोनों किडनी अपना कार्य करने में सक्षम नहीं हों, तो उसे आम भाषा में किडनी फेल हो जाना कहते है.
नारायणा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, गुरुग्राम में कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डाक्टर सुदीप सिंह के अनुसार खून को साफ कर ब्लड सर्कुलेशन में मदद करने वाले गुर्दे कई कारणों से खराब हो सकते हैं. इनमें खानपान की खराब आदतों के अलावा नियमित रूप से दर्दनिवारक दवाओं का सेवन भी एक बड़ी वजह हो सकता है. धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजी डाक्टर सुमन लता ने कहा, 'इस वर्ल्ड किडनी डे' हम डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या लम्बे समय से किसी बीमारी से पीड़ित लोगों से अपनी किडनी को स्वस्थ रखने की अपील करते हैं.
यूरीन टेस्ट के साथ केएफटी जैसे सरल परीक्षण किडनी की जांच का सस्ता और सुविधाजनक तरीका है. इसमें लापरवाही न बरतें. 'उन्होंने बताया कि आमतौर पर मूत्र मार्ग में संक्रमण और गर्भावस्था की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण महिलाओं में किडनी रोग होने की आशंका बढ़ जाती है. रोग के शुरूआती लक्षणों में लगातार उल्टी आना, भूख नहीं लगना, थकान और कमजोरी महसूस होना, पेशाब की मात्रा कम होना, खुजली की समस्या होना, नींद नहीं आना और मांसपेशियों में खिंचाव होना प्रमुख हैं.
उन्होंने बताया कि किडनी फेल होना दुनियाभर में महिलाओं की मौत का आठवां बड़ा कारण है. नियमित जांच कराने से रोग की शुरुआत में ही इसका पता चल जाता है और दवा से इसे ठीक करना संभव हो पाता है, लेकिन यदि समय रहते इसके बारे में पता न चले तो खून को साफ करने के लिए डायलिसिस की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है या फिर किडनी बदलवानी पड़ती है, जो एक लंबी, खर्चीली और कष्टकारी प्रक्रिया है जो हर जगह उपलब्ध भी नहीं है.