खाना खाने के बाद डकार आने को अकसर खाना सही से पच जाने की निशानी माना जाता है, लेकिन बार-बार डकार किसी स्वास्थ्य समस्या का भी संकेत हो सकता है। जब बार-बार डकार आए, तो क्या करें और क्या नहीं, बता रही...http://bit.ly/2L52VrVखाना खाने के बाद डकार आने को अकसर खाना सही से पच जाने की निशानी माना जाता है, लेकिन बार-बार डकार किसी स्वास्थ्य समस्या का भी संकेत हो सकता है। जब बार-बार डकार आए, तो क्या करें और क्या नहीं, बता रही...
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Health and beauty tips in hindi. and best tips for grow your health related improvement by nutrition and fitness grow plan for male and female.
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Friday, 26 April 2019
Tuesday, 27 November 2018
सावधान: जान भी ले सकती है भूलने की एक दुर्लभ बीमारी
आपको जानकर हैरानी होगी कि भूलने की एक दुर्लभ बीमारी जान भी ले सकती है। शोधकर्ताओं का दावा है कि डीएनए में उत्परिवर्तन से गर्भधारण के दौरान महिला को होने वाली यह बीमारी बहुत खतरनाक है।
यह बीमारी डिमेंशिया का एक प्रकार है। डेनमार्क की एक महिला के पति की मौत क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग (दिमाग की काम करने की क्षमता को कम करने वाला रोग) से हो गई थी। गर्भधारण के दौरान उसके पति के इस रोग का जीन भ्रूण में पहुंच गया। इससे भ्रूण के डीएनए में उत्परिवर्तन हो गया। उत्परिवर्तन के बाद भ्रूण से निकला एक जहरीला प्रोटीन प्लेसेंटा के जरिये महिला के दिमाग तक पहुंच गया। शोधकर्ताओं ने कहा, यह प्रोटीन धीरे-धीरे मस्तिष्क कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। यह घातक स्थिति अपरिवर्तनीय मस्तिष्क क्षति का कारण बनती है, जो महिला की मौत का कारण बनी।
सिगरेट से भी ज्यादा घातक है वायु प्रदूषण, घटा रहा है जिंदगी के 4 साल
कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में डेनमार्क के मरीजों पर अध्ययन के दौरान इस घातक बीमारी का खुलासा हुआ है। 85 प्रतिशत मामले डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) के होते है। इसमें से 10-15 प्रतिशत लोगों में आनुवांशिक कारणों से यह बीमारी होती है। एक प्रतिशत से भी कम घटनाओं में क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग की पहचान की गई। दरअसल क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग से पीड़ित गाय से यह रोग इनसान में फैलता है। जब कोई व्यक्ति इस रोग के शिकार जानवरों का मांस खाता है, जो यह बीमारी इनसान में पहुंच जाती है। लंदन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के मुताबिक, ब्रिटेन में हर साल दस साल लोगों में से एक को यह बीमारी होती है। गंदे रह गए सर्जरी के उपकरणों से भी ऑपरेशन के दौरान यह बीमारी हो सकती है।
यह बीमारी डिमेंशिया का एक प्रकार है। डेनमार्क की एक महिला के पति की मौत क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग (दिमाग की काम करने की क्षमता को कम करने वाला रोग) से हो गई थी। गर्भधारण के दौरान उसके पति के इस रोग का जीन भ्रूण में पहुंच गया। इससे भ्रूण के डीएनए में उत्परिवर्तन हो गया। उत्परिवर्तन के बाद भ्रूण से निकला एक जहरीला प्रोटीन प्लेसेंटा के जरिये महिला के दिमाग तक पहुंच गया। शोधकर्ताओं ने कहा, यह प्रोटीन धीरे-धीरे मस्तिष्क कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। यह घातक स्थिति अपरिवर्तनीय मस्तिष्क क्षति का कारण बनती है, जो महिला की मौत का कारण बनी।
सिगरेट से भी ज्यादा घातक है वायु प्रदूषण, घटा रहा है जिंदगी के 4 साल
कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में डेनमार्क के मरीजों पर अध्ययन के दौरान इस घातक बीमारी का खुलासा हुआ है। 85 प्रतिशत मामले डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) के होते है। इसमें से 10-15 प्रतिशत लोगों में आनुवांशिक कारणों से यह बीमारी होती है। एक प्रतिशत से भी कम घटनाओं में क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग की पहचान की गई। दरअसल क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग से पीड़ित गाय से यह रोग इनसान में फैलता है। जब कोई व्यक्ति इस रोग के शिकार जानवरों का मांस खाता है, जो यह बीमारी इनसान में पहुंच जाती है। लंदन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के मुताबिक, ब्रिटेन में हर साल दस साल लोगों में से एक को यह बीमारी होती है। गंदे रह गए सर्जरी के उपकरणों से भी ऑपरेशन के दौरान यह बीमारी हो सकती है।
Friday, 23 November 2018
सेहत का ख्याल रखेगा एयर पॉल्यूशन मॉनिटर
वातावरण में कई तरह की जहरीली गैस फैली होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर एक ऐसी डिवाइस है, जो समय-समय पर आपको खराब वातावरण की जानकारी देती रहती है। क्या है ये डिवाइस, बता रही हैं नीतिका श्रीवास्तव
बढ़ते प्रदूषण में सांस से संबंधित बीमारियों का होना आम बात है। हवा में गंदगी होने से अस्थमा और कई तरह की एलर्जी शरीर को घेर लेती हैं और अंदर ही अंदर शरीर को गलाने लगती हैं। ऐसे में हमें एक केयर टेकर की जरूरत होती है, जो आस-पास की हवा के बारे में सही जानकारी दे सके और समय-समय पर वातावरण को लेकर सक्रिय कर सके। कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर एक ऐसी ही डिवाइस है, जो आपको सेहत के प्रति सजग रख सकती है। क्या है ये डिवाइस और कैसे करती है काम, आइये जानें
क्या है ये डिवाइस
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर हाथ में आसानी से आ जाने वाली डिवाइस है, जिसे आसानी से कहीं पर भी साथ में ले जाया जा सकता है। इस डिवाइस का साथ में रहना बेहद जरूरी भी है। कॉम्पैक्ट आकार और यूएसबी कनेक्टिविटी एटमोट्यूब के साथ आने वाली ये डिवाइस आपको आसपास के वातावरण के बारे में सटीक जानकारी देती है, साथ ही जिस हवा में आप हैं, उसके तापमान के बारे में भी बताती है। उचित परिणाम जानने के लिए आपको अपने स्मार्टफोन को ब्लूटूथ के जरिये इस डिवाइस से कनेक्ट करना होता है।
कैसे करती है काम
ये डिवाइस खासकर अस्थमा और किसी भी तरह की एलर्जी से पीड़ित लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गयी है। इस डिवाइस में लगा सेंसर हवा में हानिकारक गैसों और कार्बनिक यौगिकों की मौजूदगी के बारे में सही समय पर सजग करता है। यह डिवाइस आसपास के वातावरण में हवा का तापमान और आद्र्रता को भी मापती है। इस डिवाइस को चार्ज करने के बाद इस्तेमाल में लाया जा सकता है, साथ ही कॉम्पैक्ट वायु गुणवत्ता वाली इस डिवाइस को हमेशा अपने साथ रख सकते हैं। हवा की जानकारी अपने स्मार्टफोन के स्क्रीन में भी आसानी से देख सकते हैं। भारतीय बाजार में इसकी कीमत 15 सौ रुपए से शुरू होती है। ब्रांड के हिसाब से कीमत बढ़ भी सकती है।
ये हैं खासियतें
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर वास्तविक समय पर एयर गुणवत्ता ट्रैक करके आपको अनुमानित परिणाम तो बताता ही है, साथ ही आपको अच्छे स्वास्थ के प्रति सचेत भी करता है। ये डिवाइस पोर्टेबल और पहनने योग्य भी है। ये डिवाइस एक मजबूत टाइटेनियम लेपित एटमोट्यूब से बनी होती है। डिवाइस देखने में बेहद आकर्षक है। इस डिवाइस की खासियत ये है कि जब भी आसपास की हवा में खराबी होगी, ये अलार्म के जरिये बार-बार अलर्ट कर देगी, जो आपको स्वस्थ रहने में मदद करती है।
बढ़ते प्रदूषण में सांस से संबंधित बीमारियों का होना आम बात है। हवा में गंदगी होने से अस्थमा और कई तरह की एलर्जी शरीर को घेर लेती हैं और अंदर ही अंदर शरीर को गलाने लगती हैं। ऐसे में हमें एक केयर टेकर की जरूरत होती है, जो आस-पास की हवा के बारे में सही जानकारी दे सके और समय-समय पर वातावरण को लेकर सक्रिय कर सके। कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर एक ऐसी ही डिवाइस है, जो आपको सेहत के प्रति सजग रख सकती है। क्या है ये डिवाइस और कैसे करती है काम, आइये जानें
क्या है ये डिवाइस
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर हाथ में आसानी से आ जाने वाली डिवाइस है, जिसे आसानी से कहीं पर भी साथ में ले जाया जा सकता है। इस डिवाइस का साथ में रहना बेहद जरूरी भी है। कॉम्पैक्ट आकार और यूएसबी कनेक्टिविटी एटमोट्यूब के साथ आने वाली ये डिवाइस आपको आसपास के वातावरण के बारे में सटीक जानकारी देती है, साथ ही जिस हवा में आप हैं, उसके तापमान के बारे में भी बताती है। उचित परिणाम जानने के लिए आपको अपने स्मार्टफोन को ब्लूटूथ के जरिये इस डिवाइस से कनेक्ट करना होता है।
कैसे करती है काम
ये डिवाइस खासकर अस्थमा और किसी भी तरह की एलर्जी से पीड़ित लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गयी है। इस डिवाइस में लगा सेंसर हवा में हानिकारक गैसों और कार्बनिक यौगिकों की मौजूदगी के बारे में सही समय पर सजग करता है। यह डिवाइस आसपास के वातावरण में हवा का तापमान और आद्र्रता को भी मापती है। इस डिवाइस को चार्ज करने के बाद इस्तेमाल में लाया जा सकता है, साथ ही कॉम्पैक्ट वायु गुणवत्ता वाली इस डिवाइस को हमेशा अपने साथ रख सकते हैं। हवा की जानकारी अपने स्मार्टफोन के स्क्रीन में भी आसानी से देख सकते हैं। भारतीय बाजार में इसकी कीमत 15 सौ रुपए से शुरू होती है। ब्रांड के हिसाब से कीमत बढ़ भी सकती है।
ये हैं खासियतें
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर वास्तविक समय पर एयर गुणवत्ता ट्रैक करके आपको अनुमानित परिणाम तो बताता ही है, साथ ही आपको अच्छे स्वास्थ के प्रति सचेत भी करता है। ये डिवाइस पोर्टेबल और पहनने योग्य भी है। ये डिवाइस एक मजबूत टाइटेनियम लेपित एटमोट्यूब से बनी होती है। डिवाइस देखने में बेहद आकर्षक है। इस डिवाइस की खासियत ये है कि जब भी आसपास की हवा में खराबी होगी, ये अलार्म के जरिये बार-बार अलर्ट कर देगी, जो आपको स्वस्थ रहने में मदद करती है।
शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कैसे करें दुरुस्त, पढ़ें कारगर Tips
स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि आपकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो। इस प्रतिरोधक क्षमता को खान-पान, व्यायाम, अच्छी नींद आदि में संतुलन बनाकर ठीक कर सकते हैं, जिसके लिए यह मौसम भी अनुकूल है।
Health Tips: Simple and Natural Ways to Boost Your Immune System
इंद्रेश समीरUpdated: Fri, 23 Nov 2018 01:59 PM IST
अ+ अ-
अपने आसपास आप अकसर देखते होंगे कि सेहत और कद-काठी के मामले में एक जैसे दिखने वाले कई लोगों में से कुछ लोग बार-बार बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जबकि कुछ पर मौसम की मार या संक्रमण वगैरह का भी ज्यादा असर नहीं होता। आखिर वजह क्या है? असल में हर जीवित शरीर में प्रकृति ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई हुई है, जो उसे नुकसानदेह जीवाणुओं, विषाणुओं और माइक्रोब्स वगैरह से बचाती है। इसे ही रोगप्रतिरोधक शक्ति या इम्यूनिटी कहा जाता है।
जिसकी इम्यूनिटी मजबूत है, उसके शरीर में रोगाणु पहुंचकर भी नुकसान नहीं कर पाते, पर जिसकी इम्यूनिटी कमजोर हो गई हो, वह जरा-से मौसमी बदलाव में भी रोगाणुओं के आक्रमण को झेल नहीं पाता। जब बाहरी रोगाणुओं की तुलना में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, तो इसका असर सर्दी, जुकाम, फ्लू, खांसी, बुखार वगैरह के रूप में हम सबसे पहले देखते हैं। जो लोग बार-बार ऐसी तकलीफों से गुजरते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि उनकी इम्यूनिटी ठीक से उनका साथ नहीं दे रही है और उसे मजबूत किए जाने की जरूरत है। सर्दियों का मौसम एक तरह से रोगप्रतिरोधक शक्ति के परीक्षण का मौसम है, लेकिन अच्छी बात यह है कि रोगप्रतिरोधक शक्ति को मजबूत बनाने के लिए भी यही सबसे अच्छा मौसम है।
सेहत के लिए फायदेमंद है इंडोर गेम्स, जानें क्यों
क्यों होती है इम्यूनिटी कमजोर
- शरीर में चर्बी का अनावश्यक रूप से जमा होना।
- वजन बहुत कम होना।
- फास्टफूड, जंकफूड आदि का ज्यादा सेवन।
- शरीर को ठीक से पोषण न मिलना।
- धूम्रपान, शराब, ड्रग आदि का सेवन।
- पेनकिलर, एंटीबॉयोटिक आदि दवाओं का लंबे समय तक सेवन।
- लंबे समय तक तनाव में रहना।
- लंबे समय तक कम नींद लेना अथवा अनावश्यक रूप से देर तक सोना।
- शारीरिक श्रम का अभाव।
- प्रदूषित वातावरण में लंबे समय तक रहना।
- बचपन और बुढ़ापे में रोगप्रतिरोधक शक्ति सामान्य तौर पर कुछ कमजोर होती है, पर खराब जीवनशैली के चलते युवावस्था में भी यह कमजोर हो सकती है।
- गर्भवती स्त्री का खान-पान ठीक न हो या वह कुपोषण का शिकार हो तो होने वाले बच्चे की भी रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की संभावना बनी रहती है।
- अगर आप चीनी ज्यादा खाते हैं तो यह इम्यूनिटी के लिए नुकसानदेह है। अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन में छपे एक शोध के अनुसार सौ ग्राम या इससे अधिक शुगर खा लेने की स्थिति में श्वेत रुधिर कणिकाओं की रोगाणुओं को मारने की क्षमता पांच घंटे तक के लिए कमजोर पड़ जाती है।
- कम पानी पीने से इम्यूनिटी कमजोर पड़ती है, क्योंकि पर्याप्त पानी के अभाव में शरीर से विजातीय द्रव्यों को बाहर निकाल पाना कठिन हो जाता है।+
बदलते मौसम में इस घरेलू उपाय से मिलेगा आराम
ऐसे बढ़ाएं इम्यूनिटी
- आहार में एंटीऑक्सिडेंट की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। एंटीऑक्सिडेंट बीमार कोशिकाओं को दुरुस्त करते हैं और सेहत बरकरार रखते हुए उम्र के असर को कम करते हैं। बीटा केरोटिन, सेलेनियम, विटामिन-ए, विटामिन-बी2 व बी6, विटामिन-सी, विटामिन-ई, विटामिन-डी तर्था ंजक रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं। इन तत्त्वों की भरपाई के लिए गाजर, पालक, चुकंदर, टमाटर, फूलगोभी, खुबानी, जौ, भूरे चावल, शकरकंद, संतरा, पपीता, बादाम, दूध, दही, मशरूम, लौकी के बीज, तिल आदि उपयोगी हैं। हरी सब्जियों-फलों को विशेष रूप से भोजन में शामिल करें।
- सर्दी के मौसम में प्यास कम लगती है, पर याद करके दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं।
- भरपूर नींद लें।
- तनावमुक्त रहने का अभ्यास करें।
- अगर आप प्राय: बीमारियों की चपेट में रहते हैं तो इसका अर्थ यह भी है कि आपके शरीर में एंटीबॉडीज कम बन रहे हैं। इसके लिए प्रोटीन को समुचित मात्रा में सेवन किया जाना चाहिए।
- सर्दियों में सूर्य की रोशनी में सवेरे तेल मालिश करने से भी
रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। विटामिन-डी रोगप्रतिरोधकता के लिए महत्त्वपूर्ण कारक है।
- लहसुन एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल है। जाड़े के दिनों में दिन में एक-दो लहसुन सेवन करना चाहिए।
- दिन में तीन-चार बार ग्रीन-टी पीने से रोगप्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है।
- सर्दी के मौसम के सभी खट्टे फल इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करते हैं।
- सर्दियों में सब्जियों का सूप पीना इम्यूनिटी तो बढ़ाता ही है, सर्दी-जुकाम में भी फायदा करता है।
- सर्दी-जुकाम-खांसी वगैरह ज्यादा दिनों तक बने रहें तो इसे सामान्य न समझें और इलाज कराएं।
बेहतर है होम्योपैथी
सर्दी के मौसम में होने वाले सामान्य सर्दी-जुकाम के लिए अंग्रेजी दवाएं खाने से बचना चाहिए, पर होम्योपैथी दवाएं सही लक्षणों के आधार पर दी जाएं तो सर्दी-जुकाम से छुटकारा तो मिलता ही है, साथ ही शरीर का इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है।
योगासन-प्राणायाम
व्यायाम की तमाम पद्धतियों में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने की दृष्टि से योगासन और प्राणायाम सबसे अच्छे उपाय हैं। सवेरे के समय नियमित रूप से आधे से एक घंटे तक योगासन-प्राणायाम करने से शरीर के भीतर हार्मोन संतुलन कायम करने में मदद मिलती है। योगासन, खासतौर से प्राणायाम तनाव दूर करने में काफी मददगार हैं। किसी योग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर अपने अनुकूल योगासनों का चयन करना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार जिन्हें समय कम मिल पाता हो, वे 15 मिनट तक रोज सूक्ष्म यौगिक क्रियाएं करें।
हमारे विशेषज्ञ
- योगाचार्य अखिलेश तिवारी, तेलियरगंज, इलाहाबाद
- डॉ. ए. के. अरुण, होम्योपैथ, पश्चिम विहार, नई दिल्ली
- डॉ. संजय शर्मा, हृदय रोग विशेषज्ञ, जनकपुरी, दिल्ली
इनका ध्यान रखें
आंवला, नीबू, अदरक, कच्ची हल्दी और तुलसी को अपनी थाली में जरूर शामिल करें और इन्हें कम-से-कम 21 दिनों तक इस्तेमाल करें। यों पूरे मौसम भर इनका सेवन कर सकते हैं। 21 दिन के पीछे एक रहस्य है। वैद्य सदियों से ऐसा बताते रहे हैं, पर विज्ञान के नए शोधों ने भी प्रमाणित किया है कि कोई भी चीज तीन हफ्ते तक नियमित रूप से करने पर शरीर उसके प्रति अनुकूलता बैठाने लगता है। ये पांचों उपाय एक साथ भी कर सकते हैं, परंतु ऐसा करें तो कच्ची हल्दी को सवेरे के बजाय भोजन के साथ या दिन में अन्य किसी समय लें।
Health Tips: Simple and Natural Ways to Boost Your Immune System
इंद्रेश समीरUpdated: Fri, 23 Nov 2018 01:59 PM IST
अ+ अ-
अपने आसपास आप अकसर देखते होंगे कि सेहत और कद-काठी के मामले में एक जैसे दिखने वाले कई लोगों में से कुछ लोग बार-बार बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जबकि कुछ पर मौसम की मार या संक्रमण वगैरह का भी ज्यादा असर नहीं होता। आखिर वजह क्या है? असल में हर जीवित शरीर में प्रकृति ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई हुई है, जो उसे नुकसानदेह जीवाणुओं, विषाणुओं और माइक्रोब्स वगैरह से बचाती है। इसे ही रोगप्रतिरोधक शक्ति या इम्यूनिटी कहा जाता है।
जिसकी इम्यूनिटी मजबूत है, उसके शरीर में रोगाणु पहुंचकर भी नुकसान नहीं कर पाते, पर जिसकी इम्यूनिटी कमजोर हो गई हो, वह जरा-से मौसमी बदलाव में भी रोगाणुओं के आक्रमण को झेल नहीं पाता। जब बाहरी रोगाणुओं की तुलना में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, तो इसका असर सर्दी, जुकाम, फ्लू, खांसी, बुखार वगैरह के रूप में हम सबसे पहले देखते हैं। जो लोग बार-बार ऐसी तकलीफों से गुजरते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि उनकी इम्यूनिटी ठीक से उनका साथ नहीं दे रही है और उसे मजबूत किए जाने की जरूरत है। सर्दियों का मौसम एक तरह से रोगप्रतिरोधक शक्ति के परीक्षण का मौसम है, लेकिन अच्छी बात यह है कि रोगप्रतिरोधक शक्ति को मजबूत बनाने के लिए भी यही सबसे अच्छा मौसम है।
सेहत के लिए फायदेमंद है इंडोर गेम्स, जानें क्यों
क्यों होती है इम्यूनिटी कमजोर
- शरीर में चर्बी का अनावश्यक रूप से जमा होना।
- वजन बहुत कम होना।
- फास्टफूड, जंकफूड आदि का ज्यादा सेवन।
- शरीर को ठीक से पोषण न मिलना।
- धूम्रपान, शराब, ड्रग आदि का सेवन।
- पेनकिलर, एंटीबॉयोटिक आदि दवाओं का लंबे समय तक सेवन।
- लंबे समय तक तनाव में रहना।
- लंबे समय तक कम नींद लेना अथवा अनावश्यक रूप से देर तक सोना।
- शारीरिक श्रम का अभाव।
- प्रदूषित वातावरण में लंबे समय तक रहना।
- बचपन और बुढ़ापे में रोगप्रतिरोधक शक्ति सामान्य तौर पर कुछ कमजोर होती है, पर खराब जीवनशैली के चलते युवावस्था में भी यह कमजोर हो सकती है।
- गर्भवती स्त्री का खान-पान ठीक न हो या वह कुपोषण का शिकार हो तो होने वाले बच्चे की भी रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की संभावना बनी रहती है।
- अगर आप चीनी ज्यादा खाते हैं तो यह इम्यूनिटी के लिए नुकसानदेह है। अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन में छपे एक शोध के अनुसार सौ ग्राम या इससे अधिक शुगर खा लेने की स्थिति में श्वेत रुधिर कणिकाओं की रोगाणुओं को मारने की क्षमता पांच घंटे तक के लिए कमजोर पड़ जाती है।
- कम पानी पीने से इम्यूनिटी कमजोर पड़ती है, क्योंकि पर्याप्त पानी के अभाव में शरीर से विजातीय द्रव्यों को बाहर निकाल पाना कठिन हो जाता है।+
बदलते मौसम में इस घरेलू उपाय से मिलेगा आराम
ऐसे बढ़ाएं इम्यूनिटी
- आहार में एंटीऑक्सिडेंट की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। एंटीऑक्सिडेंट बीमार कोशिकाओं को दुरुस्त करते हैं और सेहत बरकरार रखते हुए उम्र के असर को कम करते हैं। बीटा केरोटिन, सेलेनियम, विटामिन-ए, विटामिन-बी2 व बी6, विटामिन-सी, विटामिन-ई, विटामिन-डी तर्था ंजक रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं। इन तत्त्वों की भरपाई के लिए गाजर, पालक, चुकंदर, टमाटर, फूलगोभी, खुबानी, जौ, भूरे चावल, शकरकंद, संतरा, पपीता, बादाम, दूध, दही, मशरूम, लौकी के बीज, तिल आदि उपयोगी हैं। हरी सब्जियों-फलों को विशेष रूप से भोजन में शामिल करें।
- सर्दी के मौसम में प्यास कम लगती है, पर याद करके दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं।
- भरपूर नींद लें।
- तनावमुक्त रहने का अभ्यास करें।
- अगर आप प्राय: बीमारियों की चपेट में रहते हैं तो इसका अर्थ यह भी है कि आपके शरीर में एंटीबॉडीज कम बन रहे हैं। इसके लिए प्रोटीन को समुचित मात्रा में सेवन किया जाना चाहिए।
- सर्दियों में सूर्य की रोशनी में सवेरे तेल मालिश करने से भी
रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। विटामिन-डी रोगप्रतिरोधकता के लिए महत्त्वपूर्ण कारक है।
- लहसुन एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल है। जाड़े के दिनों में दिन में एक-दो लहसुन सेवन करना चाहिए।
- दिन में तीन-चार बार ग्रीन-टी पीने से रोगप्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है।
- सर्दी के मौसम के सभी खट्टे फल इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करते हैं।
- सर्दियों में सब्जियों का सूप पीना इम्यूनिटी तो बढ़ाता ही है, सर्दी-जुकाम में भी फायदा करता है।
- सर्दी-जुकाम-खांसी वगैरह ज्यादा दिनों तक बने रहें तो इसे सामान्य न समझें और इलाज कराएं।
बेहतर है होम्योपैथी
सर्दी के मौसम में होने वाले सामान्य सर्दी-जुकाम के लिए अंग्रेजी दवाएं खाने से बचना चाहिए, पर होम्योपैथी दवाएं सही लक्षणों के आधार पर दी जाएं तो सर्दी-जुकाम से छुटकारा तो मिलता ही है, साथ ही शरीर का इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है।
योगासन-प्राणायाम
व्यायाम की तमाम पद्धतियों में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने की दृष्टि से योगासन और प्राणायाम सबसे अच्छे उपाय हैं। सवेरे के समय नियमित रूप से आधे से एक घंटे तक योगासन-प्राणायाम करने से शरीर के भीतर हार्मोन संतुलन कायम करने में मदद मिलती है। योगासन, खासतौर से प्राणायाम तनाव दूर करने में काफी मददगार हैं। किसी योग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर अपने अनुकूल योगासनों का चयन करना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार जिन्हें समय कम मिल पाता हो, वे 15 मिनट तक रोज सूक्ष्म यौगिक क्रियाएं करें।
हमारे विशेषज्ञ
- योगाचार्य अखिलेश तिवारी, तेलियरगंज, इलाहाबाद
- डॉ. ए. के. अरुण, होम्योपैथ, पश्चिम विहार, नई दिल्ली
- डॉ. संजय शर्मा, हृदय रोग विशेषज्ञ, जनकपुरी, दिल्ली
इनका ध्यान रखें
आंवला, नीबू, अदरक, कच्ची हल्दी और तुलसी को अपनी थाली में जरूर शामिल करें और इन्हें कम-से-कम 21 दिनों तक इस्तेमाल करें। यों पूरे मौसम भर इनका सेवन कर सकते हैं। 21 दिन के पीछे एक रहस्य है। वैद्य सदियों से ऐसा बताते रहे हैं, पर विज्ञान के नए शोधों ने भी प्रमाणित किया है कि कोई भी चीज तीन हफ्ते तक नियमित रूप से करने पर शरीर उसके प्रति अनुकूलता बैठाने लगता है। ये पांचों उपाय एक साथ भी कर सकते हैं, परंतु ऐसा करें तो कच्ची हल्दी को सवेरे के बजाय भोजन के साथ या दिन में अन्य किसी समय लें।
Friday, 9 November 2018
जानें डायबिटीज में कौन-कौन से व्यायाम करने चाहिए
देश में युवाओं की एक बड़ी संख्या है, जो डायबिटीज की शिकार है या उसके निशाने पर है। यूं राहत के लिए दवाएं मौजूद हैं, लेकिन डायबिटीज से बचना है या उसे काबू में रखना है तो रोज व्यायाम करना ही बेहतर उपाय ह
मो. आमिर खानUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:57 PM IST
अ+ अ-
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, व्यायाम का शुगर के स्तर पर 12 घंटे तक प्रभाव रहता है। जिन लोगों को डायबिटीज है, उनका नियमित रूप से व्यायाम करना उनके रक्त में शर्करा के स्तर को काबू रखने में मदद करता है, शरीर की इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है और यह इंसुलिन रोधी प्रवृत्ति को कम करता है। .
आंकड़ों की मानें तो डायबिटीज के मरीजों में से 80 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हृदय रोगों के कारण होती है। कई अनुसंधानों में ये बात सामने आई है कि जिन्हें डायबिटीज है, अगर वो सप्ताह में दो घंटे पैदल चलते हैं तो उनके हृदय रोगों की चपेट में आने की आशंका कम हो जाती है। लेकिन, चूंकि डायबिटीज में खून में ग्लूकोज के स्तर में उतार-चढ़ाव अधिक होता है, इसलिए व्यायाम के संबंध में विशेषज्ञों से सलाह लेना और कुछसावधानियां बरतना जरूरी है। .
जीवनशैली से जुड़ी है डायबिटीज
डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है। डायबिटीज तब होती है, जब अग्न्याशय यानी पैंक्रिअस पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या जब शरीर अग्न्याशय द्वारा स्रावित इंसुलिन का प्रभावकारी तरीके से उपयोग नहीं कर पाता है।
खानपान में गड़बड़ी, व्यायाम नहीं करने से हो सकती है यह बीमारी
इंसुलिन एक हार्मोन है, जो रक्त में शुगर को नियंत्रित रखता है। अनियंत्रित डायबिटीज के कारण रक्त में शुगर का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लाइसेमिया कहते हैं। वहीं जब रक्त में शुगर का स्तर बहुत कम हो जाता है तो इसे हाइपोग्लाइसेमिया कहते हैं। दोनों ही स्थितियां शरीर के लिए घातक हैं। चूंकि डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है, इसलिए जीवनशैली में परिवर्तन और नियमित रूप से व्यायाम करना, इसके प्रबंधन का एक प्रमुख हिस्सा है। अगर आप सक्रिय रहते हैं तो डायबिटीज को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं और खून में शुगर के स्तर को काबू कर पाएंगे। साथ ही दूसरे रोगों से बचे रह सकते हैं।
करें नियमित व्यायाम
व्यायाम के कईफायदे हैं। लेकिन उनमें से सबसे बड़ा फायदा है कि इससे खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। जिन लोगों को टाइप 2 डायबिटीज होती है, उनके रक्त में ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक होता है। उनका शरीर या तो पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं करता है, या इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण शरीर ठीक प्रकार से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाता है। डायबिटीज के मरीजों में कुछ स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है-जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, किडनी के रोग, और तंत्रिका तंत्र संबंधी रोग। अगर खून में शुगर का स्तर काबू में रहेगा तो इन जटिलताओं के विकसित होने का खतरा कम हो जाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए व्यायाम कईतरह से असरदार साबित होता है-.
- रक्त में शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है.
- रक्त दाब कम होता है.
- कोलेस्ट्रॉल का स्तर नहीं बढ़ता .
- इंसुलिन का इस्तेमाल करने की क्षमता बढ़ना.
- स्ट्रोक और हृदय रोगों का खतरा कम होना 'मोटापे से बचाव व तनाव से राहत .
Health Tips: सेहतमंद बने रहने के लिए अपनाएं ये बेसिक टिप्स
ये सावधानियां हैं जरूरी .
- व्यायाम करते समय ग्लूकोज, खून से निकलकर मांसपेशियों तक अधिक तेजी से पहुंचता है, जिसके कारण हाइपोग्लाइसेमिया हो सकता है। जो लोग इंसुलिन या दूसरी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें विशेष सावधानी रखने की जरूरत है। .
अपने डॉक्टर से बात करें : किसी भी तरह के एक्सरसाइज प्रोग्राम को शुरू करने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें, ताकि वो आपको बता सके कि कब और कितनी देर व्यायाम करना आपके लिए ठीक रहेगा।
ब्लड ग्लूकोज के स्तर को जांचें : व्यायाम से पहले, उसके दौरान और बाद में ख्ूान में शर्करा के स्तर की जांच करें। इससे आपको अपना व्यायाम शेड्यूल बनाने में मदद मिलेगी।
स्ट्रेस टेस्ट : अगर आपको हृदय रोगों का खतरा है तो आप स्ट्रेस टेस्ट (आपका शरीर कितना शारीरिक श्रम सह सकता है) भी कराएं। .
अपने शरीर की सुनें : जहां भी, जब भी एक्सरसाइज करें, सतर्क रहें। अपने शरीर के संकेतों को पहचानें। ढेर सारा पानी पिएं। अपने साथ हमेशा कोई कैंडी या ग्लूकोज की टैबलेट रखें। रक्त में शुगर का स्तर कम होने पर तुरंत इसे ले लें। हमेशा मेडिकल अलर्ट करने वाला ब्रेसलेट पहनें। साथ ग्लूकोज मीटर भी रख सकते हैं। शरीर सहन कर सके, उतना ही व्यायाम करें। .
कौन से व्यायाम हैं बेहतर
एरोबिक और रेजिस्टेंस ट्रेनिंग, दोनों करें तो अधिक प्रभावी होगा। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार भी डायबिटीज के प्रबंधन के लिए एरोबिक व स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग दोनों तरह के व्यायाम करना अच्छा रहता है।.
एरोबिक एक्सरसाइज : इस तरह के एक्सरसाइज में हृदय गति बढ़ाने के लिए एक लय में हाथों और पैरों का लगातार इस्तेमाल किया जाता है। .
इसमें सम्मिलित हैं दौड़ना, भागना, नाचना, साइकिल चलाना, तेज चलना और जॉगिंग। एरोबिक्स से अग्न्याशय, हृदय और फेफड़े बेहतर तरीके से काम करते हैं। शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है। शरीर के सभी हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचती है। .
स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग : इसे रेजिस्टेंस ट्रेनिंग भी कहते हैं। यह व्यायाम शरीर को इंसुलिन के प्रति संवेदनशील बनाता है। खून में शुगर का स्तर कम करने में मदद करता है। इसे सप्ताह में दो बार करें, पर लगातार दो दिन न करें। वेट लिफ्टिंग, पुश-अप्स, लिफ्ट-अप्स, स्क्वैट, प्लांक, रेजिस्टेंस बैंड का इस्तेमाल आदि इसमें *आते हैं।.
(विशेषज्ञ: डॉ. रमन कुमार, अध्यक्ष, एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया, दिल्ली)
(डॉ. सबिता, न्युट्रिशनिस्ट एंड डायबिटीज एजुकेटर, फ्लोरेंस हॉस्पिटल, गाजियाबाद)
कितना कारगर है योग
योग तन-मन को ठीक रखने और सेहत से जुड़ी विभिन्न समस्याओं को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेडिकल साइंस ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कई योगासन हैं, जिनसे अग्न्याशय की बी-सेल्स अधिक बेहतर तरीके से काम करती हैं और शरीर में इंसुलिन का स्राव बेहतर होता है। .
कपालभाति :नियमित रूप से कपालभाति करने से डायबिटीज का प्रबंधन बेहतर तरीके से होता है। जमीन पर सीधे बैठ जाएं और नाक से सांस को तेजी से बाहर की ओर छोड़ें, ऐसा करते समय पेट को अंदर की तरफ खीचें। फिर तुरंत ही नाक से सांस को अंदर की ओर खीचें और पेट को बाहर निकालें। इसे रोजाना 70-100 बार करें। .
मंडूक आसन : इससे अग्न्याशय की कार्यप्रणाली दुरुस्त होती है। यह पेट और हृदय के लिए भी अच्छा आसन है। पैरों को सटाते हुए, घुटनों के बल बैठ जाएं, अपने नितंबों को एड़ियों पर टिका लें। आप दोनों हाथों की मुट्ठियां बंद कर लें। अब दोनों मुट्ठियों को नाभि के दोनों ओर लगाकर श्वास बाहर निकालते हुए सामने झुकते हुए ठोड़ी को भूमि पर टिका दें। थोड़ी देर इस स्थिति में रहने के बाद सीधे हो जाएं। .
धनुरासन : धनुरासन से अग्न्याशय सक्रिय होता है और इंसुलिन के स्राव में मदद मिलती है, जो रक्त में शर्करा का स्तर नियंत्रित करने के लिए जरूरी है। टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज, दोनों के रोगियों के लिए ये अच्छा है।.
वृक्षासन : वृक्षासन का नाम वृक्ष शब्द से पड़ा है, क्योंकि इस आसन में पेड़ की मुद्रा में खड़े होना होता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए ये बहुत लाभदायक है।.
कुछ खास बातें
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा प्रकाशित विशेष हेल्थ रिपोर्ट, ‘लिविंग विद डायबिटीज' के अनुसार, डायबिटीज में हर रोज व्यायाम करना फायदेमंद है, पर कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।
- 'सप्ताह में 5 बार, 30 मिनट व्यायाम करें। डायबिटीज साइंस एंड टेक्नोलॉजी जनरल में 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जो लोग इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, अगर वो खाना खाने के पहले व्यायाम करते हैं तो रक्त में शर्करा का स्तर अधिक नहीं बढ़ता है। जो लोग इंसुलिन लेते हैं, उन्हें हाइपोग्लाइसेमिया की आशंका अधिक होती है, ऐसे लोगों का खाना खाने के 1-3 घंटे के भीतर व्यायाम करना अच्छा रहता है। आधे घंटे से अधिक एक्सरसाइज न करें, क्योंकि इससे रक्त में शुगर के स्तर में तेजी से कमी आ सकती है। आपने कभी एक्सरसाइज नहीं किया है तो शुरुआत 5-10 मिनट से करें।.
- अगर आप एक्सरसाइज न कर पाएं तो चढ़ने-उतरने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल करें, घर की सफाई करें, बाजार में पैदल घूमकर शॉपिंग करें, बागवानी करें, बच्चों और पालतू पशुओं के साथ खेलें।
शुगर लेवल कम होने पर ये करें
यह बहुत जरूरी है कि एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर के स्तर की जांच करें। अगर एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर का स्तर 100 एमजी/डीएल है, तो कोई फल या स्नैक्स ले लें, इससे रक्त में शुगर का स्तर बढ़ जाएगा और आप हाइपोग्लाइसेमिया से बच जाएंगे। 30 मिनट बाद फिर जांचें कि आपके रक्त में शुगर स्तर स्थिर है या नहीं। वर्कआउट के बाद भी शुगर की जांच करें। अगर आप इंसुलिन ले रहे हैं तो एक्सरसाइज के बाद हाइपोग्लाइसेमिया का रिस्क बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आपका शुगर लेवल बहुत अधिक (250 के ऊपर) हो तो भी एक्सरसाइज न करें, क्योंकि कई बार एक्सरसाइज करने से रक्त में शुगर का स्तर और बढ़ जाता है।.
तो व्यायाम बंद कर दें.
'सिर हल्का होना या चक्कर आना
- 'हृदय की धड़कनें तेज हो जाना
- छाती में जकड़न 'जी मिचलाना
- 'अचानक कमजोरी महसूस होना 'सांस लेने में परेशानी होना
- 'गंभीर थकान या उनींदापन महसूस होना।
मो. आमिर खानUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:57 PM IST
अ+ अ-
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, व्यायाम का शुगर के स्तर पर 12 घंटे तक प्रभाव रहता है। जिन लोगों को डायबिटीज है, उनका नियमित रूप से व्यायाम करना उनके रक्त में शर्करा के स्तर को काबू रखने में मदद करता है, शरीर की इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है और यह इंसुलिन रोधी प्रवृत्ति को कम करता है। .
आंकड़ों की मानें तो डायबिटीज के मरीजों में से 80 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हृदय रोगों के कारण होती है। कई अनुसंधानों में ये बात सामने आई है कि जिन्हें डायबिटीज है, अगर वो सप्ताह में दो घंटे पैदल चलते हैं तो उनके हृदय रोगों की चपेट में आने की आशंका कम हो जाती है। लेकिन, चूंकि डायबिटीज में खून में ग्लूकोज के स्तर में उतार-चढ़ाव अधिक होता है, इसलिए व्यायाम के संबंध में विशेषज्ञों से सलाह लेना और कुछसावधानियां बरतना जरूरी है। .
जीवनशैली से जुड़ी है डायबिटीज
डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है। डायबिटीज तब होती है, जब अग्न्याशय यानी पैंक्रिअस पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या जब शरीर अग्न्याशय द्वारा स्रावित इंसुलिन का प्रभावकारी तरीके से उपयोग नहीं कर पाता है।
खानपान में गड़बड़ी, व्यायाम नहीं करने से हो सकती है यह बीमारी
इंसुलिन एक हार्मोन है, जो रक्त में शुगर को नियंत्रित रखता है। अनियंत्रित डायबिटीज के कारण रक्त में शुगर का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लाइसेमिया कहते हैं। वहीं जब रक्त में शुगर का स्तर बहुत कम हो जाता है तो इसे हाइपोग्लाइसेमिया कहते हैं। दोनों ही स्थितियां शरीर के लिए घातक हैं। चूंकि डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है, इसलिए जीवनशैली में परिवर्तन और नियमित रूप से व्यायाम करना, इसके प्रबंधन का एक प्रमुख हिस्सा है। अगर आप सक्रिय रहते हैं तो डायबिटीज को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं और खून में शुगर के स्तर को काबू कर पाएंगे। साथ ही दूसरे रोगों से बचे रह सकते हैं।
करें नियमित व्यायाम
व्यायाम के कईफायदे हैं। लेकिन उनमें से सबसे बड़ा फायदा है कि इससे खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। जिन लोगों को टाइप 2 डायबिटीज होती है, उनके रक्त में ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक होता है। उनका शरीर या तो पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं करता है, या इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण शरीर ठीक प्रकार से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाता है। डायबिटीज के मरीजों में कुछ स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है-जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, किडनी के रोग, और तंत्रिका तंत्र संबंधी रोग। अगर खून में शुगर का स्तर काबू में रहेगा तो इन जटिलताओं के विकसित होने का खतरा कम हो जाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए व्यायाम कईतरह से असरदार साबित होता है-.
- रक्त में शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है.
- रक्त दाब कम होता है.
- कोलेस्ट्रॉल का स्तर नहीं बढ़ता .
- इंसुलिन का इस्तेमाल करने की क्षमता बढ़ना.
- स्ट्रोक और हृदय रोगों का खतरा कम होना 'मोटापे से बचाव व तनाव से राहत .
Health Tips: सेहतमंद बने रहने के लिए अपनाएं ये बेसिक टिप्स
ये सावधानियां हैं जरूरी .
- व्यायाम करते समय ग्लूकोज, खून से निकलकर मांसपेशियों तक अधिक तेजी से पहुंचता है, जिसके कारण हाइपोग्लाइसेमिया हो सकता है। जो लोग इंसुलिन या दूसरी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें विशेष सावधानी रखने की जरूरत है। .
अपने डॉक्टर से बात करें : किसी भी तरह के एक्सरसाइज प्रोग्राम को शुरू करने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें, ताकि वो आपको बता सके कि कब और कितनी देर व्यायाम करना आपके लिए ठीक रहेगा।
ब्लड ग्लूकोज के स्तर को जांचें : व्यायाम से पहले, उसके दौरान और बाद में ख्ूान में शर्करा के स्तर की जांच करें। इससे आपको अपना व्यायाम शेड्यूल बनाने में मदद मिलेगी।
स्ट्रेस टेस्ट : अगर आपको हृदय रोगों का खतरा है तो आप स्ट्रेस टेस्ट (आपका शरीर कितना शारीरिक श्रम सह सकता है) भी कराएं। .
अपने शरीर की सुनें : जहां भी, जब भी एक्सरसाइज करें, सतर्क रहें। अपने शरीर के संकेतों को पहचानें। ढेर सारा पानी पिएं। अपने साथ हमेशा कोई कैंडी या ग्लूकोज की टैबलेट रखें। रक्त में शुगर का स्तर कम होने पर तुरंत इसे ले लें। हमेशा मेडिकल अलर्ट करने वाला ब्रेसलेट पहनें। साथ ग्लूकोज मीटर भी रख सकते हैं। शरीर सहन कर सके, उतना ही व्यायाम करें। .
कौन से व्यायाम हैं बेहतर
एरोबिक और रेजिस्टेंस ट्रेनिंग, दोनों करें तो अधिक प्रभावी होगा। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार भी डायबिटीज के प्रबंधन के लिए एरोबिक व स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग दोनों तरह के व्यायाम करना अच्छा रहता है।.
एरोबिक एक्सरसाइज : इस तरह के एक्सरसाइज में हृदय गति बढ़ाने के लिए एक लय में हाथों और पैरों का लगातार इस्तेमाल किया जाता है। .
इसमें सम्मिलित हैं दौड़ना, भागना, नाचना, साइकिल चलाना, तेज चलना और जॉगिंग। एरोबिक्स से अग्न्याशय, हृदय और फेफड़े बेहतर तरीके से काम करते हैं। शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है। शरीर के सभी हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचती है। .
स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग : इसे रेजिस्टेंस ट्रेनिंग भी कहते हैं। यह व्यायाम शरीर को इंसुलिन के प्रति संवेदनशील बनाता है। खून में शुगर का स्तर कम करने में मदद करता है। इसे सप्ताह में दो बार करें, पर लगातार दो दिन न करें। वेट लिफ्टिंग, पुश-अप्स, लिफ्ट-अप्स, स्क्वैट, प्लांक, रेजिस्टेंस बैंड का इस्तेमाल आदि इसमें *आते हैं।.
(विशेषज्ञ: डॉ. रमन कुमार, अध्यक्ष, एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया, दिल्ली)
(डॉ. सबिता, न्युट्रिशनिस्ट एंड डायबिटीज एजुकेटर, फ्लोरेंस हॉस्पिटल, गाजियाबाद)
कितना कारगर है योग
योग तन-मन को ठीक रखने और सेहत से जुड़ी विभिन्न समस्याओं को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेडिकल साइंस ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कई योगासन हैं, जिनसे अग्न्याशय की बी-सेल्स अधिक बेहतर तरीके से काम करती हैं और शरीर में इंसुलिन का स्राव बेहतर होता है। .
कपालभाति :नियमित रूप से कपालभाति करने से डायबिटीज का प्रबंधन बेहतर तरीके से होता है। जमीन पर सीधे बैठ जाएं और नाक से सांस को तेजी से बाहर की ओर छोड़ें, ऐसा करते समय पेट को अंदर की तरफ खीचें। फिर तुरंत ही नाक से सांस को अंदर की ओर खीचें और पेट को बाहर निकालें। इसे रोजाना 70-100 बार करें। .
मंडूक आसन : इससे अग्न्याशय की कार्यप्रणाली दुरुस्त होती है। यह पेट और हृदय के लिए भी अच्छा आसन है। पैरों को सटाते हुए, घुटनों के बल बैठ जाएं, अपने नितंबों को एड़ियों पर टिका लें। आप दोनों हाथों की मुट्ठियां बंद कर लें। अब दोनों मुट्ठियों को नाभि के दोनों ओर लगाकर श्वास बाहर निकालते हुए सामने झुकते हुए ठोड़ी को भूमि पर टिका दें। थोड़ी देर इस स्थिति में रहने के बाद सीधे हो जाएं। .
धनुरासन : धनुरासन से अग्न्याशय सक्रिय होता है और इंसुलिन के स्राव में मदद मिलती है, जो रक्त में शर्करा का स्तर नियंत्रित करने के लिए जरूरी है। टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज, दोनों के रोगियों के लिए ये अच्छा है।.
वृक्षासन : वृक्षासन का नाम वृक्ष शब्द से पड़ा है, क्योंकि इस आसन में पेड़ की मुद्रा में खड़े होना होता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए ये बहुत लाभदायक है।.
कुछ खास बातें
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा प्रकाशित विशेष हेल्थ रिपोर्ट, ‘लिविंग विद डायबिटीज' के अनुसार, डायबिटीज में हर रोज व्यायाम करना फायदेमंद है, पर कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।
- 'सप्ताह में 5 बार, 30 मिनट व्यायाम करें। डायबिटीज साइंस एंड टेक्नोलॉजी जनरल में 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जो लोग इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, अगर वो खाना खाने के पहले व्यायाम करते हैं तो रक्त में शर्करा का स्तर अधिक नहीं बढ़ता है। जो लोग इंसुलिन लेते हैं, उन्हें हाइपोग्लाइसेमिया की आशंका अधिक होती है, ऐसे लोगों का खाना खाने के 1-3 घंटे के भीतर व्यायाम करना अच्छा रहता है। आधे घंटे से अधिक एक्सरसाइज न करें, क्योंकि इससे रक्त में शुगर के स्तर में तेजी से कमी आ सकती है। आपने कभी एक्सरसाइज नहीं किया है तो शुरुआत 5-10 मिनट से करें।.
- अगर आप एक्सरसाइज न कर पाएं तो चढ़ने-उतरने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल करें, घर की सफाई करें, बाजार में पैदल घूमकर शॉपिंग करें, बागवानी करें, बच्चों और पालतू पशुओं के साथ खेलें।
शुगर लेवल कम होने पर ये करें
यह बहुत जरूरी है कि एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर के स्तर की जांच करें। अगर एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर का स्तर 100 एमजी/डीएल है, तो कोई फल या स्नैक्स ले लें, इससे रक्त में शुगर का स्तर बढ़ जाएगा और आप हाइपोग्लाइसेमिया से बच जाएंगे। 30 मिनट बाद फिर जांचें कि आपके रक्त में शुगर स्तर स्थिर है या नहीं। वर्कआउट के बाद भी शुगर की जांच करें। अगर आप इंसुलिन ले रहे हैं तो एक्सरसाइज के बाद हाइपोग्लाइसेमिया का रिस्क बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आपका शुगर लेवल बहुत अधिक (250 के ऊपर) हो तो भी एक्सरसाइज न करें, क्योंकि कई बार एक्सरसाइज करने से रक्त में शुगर का स्तर और बढ़ जाता है।.
तो व्यायाम बंद कर दें.
'सिर हल्का होना या चक्कर आना
- 'हृदय की धड़कनें तेज हो जाना
- छाती में जकड़न 'जी मिचलाना
- 'अचानक कमजोरी महसूस होना 'सांस लेने में परेशानी होना
- 'गंभीर थकान या उनींदापन महसूस होना।
अब लौट आइए सेहत की ओर, दूर करें त्योहारों की थकान, अपनाएं ये Tips
त्योहार के मौसम में सबसे पहले सेहत की ही अनदेखी होती है। खान-पान बिगड़ जाता है, भाग-दौड़ थका देती है और हवा में प्रदूषण तो है ही। चूंकि ठंड दस्तक दे चुकी है, तो जरूरत है अपनी दिनचर्या ठीक करने की।
health Tips
शमीम खान,नई दिल्लीUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:43 PM IST
अ+ अ-
त्योहारों के दौरान अनियमित जीवनशैली, व्यस्तता, बढ़ा हुआ धूल और धुएं का स्तर, सेहत पर बुरा असर डालने लगते हैं। इस वजह से शरीर में टॉक्सिन्स यानी विषैले तत्वों की मात्रा बढ़ने लगती है। एसिडिटी और कब्ज भी परेशान करने लगते हैं। सेहत को पटरी पर वापस लाने के लिए सबसे पहले शरीर के आंतरिक तंत्र को विषैले और हानिकारक रसायनों से मुक्त करना जरूरी हो जाता है। कुछ दिन के लिए कुछबातों का ध्यान रखना शरीर को टॉक्सिन फ्री करने में मदद कर सकता है।
खान-पान में बदलाव करें
एल्कोहल, कॉफी, धूम्रपान, रिफाइंड शुगर और सैचुरेटेड फैट, ये सब शरीर में विषैले तत्व बढ़ाते हैं, जिससे शरीर की कार्यप्रणाली गड़बड़ाने लगती है।
खूब पानी पिएं
एक अच्छी डिटॉक्स डाइट में 60 प्रतिशत तरल और 40 प्रतिशत ठोस खाद्य पदार्थ होना चाहिए। शरीर से टॉक्सिन बाहर निकालने का पहला नियम है कि खूब पानी पिएं। शरीर में पानी की कमी न होने दें।
फल खाएं व जूस पिएं
मौसमी फलों का जूस पिएं। पपीता और खीरे का जूस भी आंतों की सफाई करता है। अंगूर का रस न पिएं। यह सफाई की प्रक्रिया में ब्लॉकिंग एजेंट के रूप में काम करता है।
खूब सब्जियां खाएं
पपीता और अनन्नास, दोनों ही पेट को फायदा पहुंचाते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां, फूलगोभी, पत्तागोभी और ब्रोकली का सेवन करें। प्याज भी अच्छा क्लींजिंग एजेंट है। शलजम लिवर को डिटॉक्स करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कम मसालेदार उबली हुई सब्जियां खाएं।
बीजों की ताकत
अलसी, तिल, सूरजमुखी और कद्दू के बीजों का सेवन करें। ताकत भी मिलेगी और जरूरी पोषक तत्वों का पोषण भी।
कैसे करें शुरुआत
सप्ताह में एक बार डिटॉक्स डाइट पर रहें। चार सप्ताह तक ऐसा करें। वजन ज्यादा है तो सप्ताह में दो बार भी डिटॉक्स डाइट अपना सकते हैं। इस दौरान कैफीन युक्त चीजें न लें। अधिक चीनी व नमक न खाएं। जंक फूड का सेवन न करें। सप्ताह में एक से दो दिन ही पर्याप्त है, वरना कमजोरी महसूस होने लगेगी।
किस तरह होता है असर
हल्का व सुपाच्य भोजन पाचन तंत्र को राहत देता है। अंगों पर कम दबाव पड़ता है। लिवर की कार्य क्षमता बढ़ने से विषैले तत्व तेजी से बाहर निकलने लगते हैं। किडनी, आंत और त्वचा की अंदरूनी सफाईहोती है। रक्त संचार बेहतर होने के साथ दर्द व सूजन जैसे लक्षणों में भी कमी आती है। कमर या पैरों में दर्द की समस्या है तो पहले मसाज, गर्म व ठंडे पानी की सेंक या फिजियो-थेरेपी की मदद से दर्द व सूजन को कम करने पर ध्यान दें। डॉक्टर के बताएं व्यायाम को नियमित करें।
पेट को दें आराम
- दिन की शुरुआत एक गिलास गुनगुने पानी से करें। इसमें आधा चम्मच शहद और एक चम्मच नीबू का रस भी मिला लें।
- खाने के साथ सलाद, दही, छाछ और सूप जरूर लें।.
- अधिक मसालेदार भोजन न करें।
- हल्के-फुल्के नाश्ते के तौर पर केला, मखाना या पोहा आदि लें।
थकान दूर करें
त्योहारों के दौरान पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है। उस पर अगर नींद पूरी नहीं हुई है तो थकान का असर पूरे शरीर पर पड़ने लगता है। अधिक तला-भुना खाने से परहेज करें। साथ ही नींद पूरी करने पर ध्यान दें। नियमित व्यायाम करने से रक्त संचरण सुधरता है और शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ता है।
दमा रोगी रखें ध्यान
दिवाली के तुरंत बाद वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड का प्रतिशत 10 गुना और विषैले तत्वों की मात्रा 2-3 गुना तक बढ़ जाती है। कई जगह प्रदूषण का स्तर 200 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। धुंध के कारण प्रदूषक तत्व हवा में नीचे ही रहने लगते हैं। बेहतर है कुछ दिन तड़के सुबह घर से बाहर न निकलें। मास्क पहन कर रखें। दवाएं लेने में लापरवाही न बरतें। ये उपाय श्वास नली को आराम देंगे। सुबह घर में ही सांस से जुड़े व्यायाम करें। - शमीम खान
health Tips
शमीम खान,नई दिल्लीUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:43 PM IST
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त्योहारों के दौरान अनियमित जीवनशैली, व्यस्तता, बढ़ा हुआ धूल और धुएं का स्तर, सेहत पर बुरा असर डालने लगते हैं। इस वजह से शरीर में टॉक्सिन्स यानी विषैले तत्वों की मात्रा बढ़ने लगती है। एसिडिटी और कब्ज भी परेशान करने लगते हैं। सेहत को पटरी पर वापस लाने के लिए सबसे पहले शरीर के आंतरिक तंत्र को विषैले और हानिकारक रसायनों से मुक्त करना जरूरी हो जाता है। कुछ दिन के लिए कुछबातों का ध्यान रखना शरीर को टॉक्सिन फ्री करने में मदद कर सकता है।
खान-पान में बदलाव करें
एल्कोहल, कॉफी, धूम्रपान, रिफाइंड शुगर और सैचुरेटेड फैट, ये सब शरीर में विषैले तत्व बढ़ाते हैं, जिससे शरीर की कार्यप्रणाली गड़बड़ाने लगती है।
खूब पानी पिएं
एक अच्छी डिटॉक्स डाइट में 60 प्रतिशत तरल और 40 प्रतिशत ठोस खाद्य पदार्थ होना चाहिए। शरीर से टॉक्सिन बाहर निकालने का पहला नियम है कि खूब पानी पिएं। शरीर में पानी की कमी न होने दें।
फल खाएं व जूस पिएं
मौसमी फलों का जूस पिएं। पपीता और खीरे का जूस भी आंतों की सफाई करता है। अंगूर का रस न पिएं। यह सफाई की प्रक्रिया में ब्लॉकिंग एजेंट के रूप में काम करता है।
खूब सब्जियां खाएं
पपीता और अनन्नास, दोनों ही पेट को फायदा पहुंचाते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां, फूलगोभी, पत्तागोभी और ब्रोकली का सेवन करें। प्याज भी अच्छा क्लींजिंग एजेंट है। शलजम लिवर को डिटॉक्स करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कम मसालेदार उबली हुई सब्जियां खाएं।
बीजों की ताकत
अलसी, तिल, सूरजमुखी और कद्दू के बीजों का सेवन करें। ताकत भी मिलेगी और जरूरी पोषक तत्वों का पोषण भी।
कैसे करें शुरुआत
सप्ताह में एक बार डिटॉक्स डाइट पर रहें। चार सप्ताह तक ऐसा करें। वजन ज्यादा है तो सप्ताह में दो बार भी डिटॉक्स डाइट अपना सकते हैं। इस दौरान कैफीन युक्त चीजें न लें। अधिक चीनी व नमक न खाएं। जंक फूड का सेवन न करें। सप्ताह में एक से दो दिन ही पर्याप्त है, वरना कमजोरी महसूस होने लगेगी।
किस तरह होता है असर
हल्का व सुपाच्य भोजन पाचन तंत्र को राहत देता है। अंगों पर कम दबाव पड़ता है। लिवर की कार्य क्षमता बढ़ने से विषैले तत्व तेजी से बाहर निकलने लगते हैं। किडनी, आंत और त्वचा की अंदरूनी सफाईहोती है। रक्त संचार बेहतर होने के साथ दर्द व सूजन जैसे लक्षणों में भी कमी आती है। कमर या पैरों में दर्द की समस्या है तो पहले मसाज, गर्म व ठंडे पानी की सेंक या फिजियो-थेरेपी की मदद से दर्द व सूजन को कम करने पर ध्यान दें। डॉक्टर के बताएं व्यायाम को नियमित करें।
पेट को दें आराम
- दिन की शुरुआत एक गिलास गुनगुने पानी से करें। इसमें आधा चम्मच शहद और एक चम्मच नीबू का रस भी मिला लें।
- खाने के साथ सलाद, दही, छाछ और सूप जरूर लें।.
- अधिक मसालेदार भोजन न करें।
- हल्के-फुल्के नाश्ते के तौर पर केला, मखाना या पोहा आदि लें।
थकान दूर करें
त्योहारों के दौरान पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है। उस पर अगर नींद पूरी नहीं हुई है तो थकान का असर पूरे शरीर पर पड़ने लगता है। अधिक तला-भुना खाने से परहेज करें। साथ ही नींद पूरी करने पर ध्यान दें। नियमित व्यायाम करने से रक्त संचरण सुधरता है और शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ता है।
दमा रोगी रखें ध्यान
दिवाली के तुरंत बाद वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड का प्रतिशत 10 गुना और विषैले तत्वों की मात्रा 2-3 गुना तक बढ़ जाती है। कई जगह प्रदूषण का स्तर 200 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। धुंध के कारण प्रदूषक तत्व हवा में नीचे ही रहने लगते हैं। बेहतर है कुछ दिन तड़के सुबह घर से बाहर न निकलें। मास्क पहन कर रखें। दवाएं लेने में लापरवाही न बरतें। ये उपाय श्वास नली को आराम देंगे। सुबह घर में ही सांस से जुड़े व्यायाम करें। - शमीम खान
Wednesday, 7 November 2018
खूब मस्ती से मनाएं दिवाली, लेकिन सेहत के लिए रखें इन बातों का विशेष ध्यान
रोशनी का त्योहार कब प्रदूषण के त्योहार में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला! दिवाली की खुशियों के बीच सेहत का ध्यान कैसे रखें, बता रही हैं स्वाति गौड़
तो दिवाली का त्योहार रोशनी का प्रतीक है, इसलिए लोग इस अवसर पर खूब दीये जलाते हैं और जमकर लाइटिंग वगैरह भी करते हैं, लेकिन खूब सारी रोशनी के साथ-साथ दिवाली पर कानफोड़ू पटाखे भी भारी मात्रा में छोड़े जाते हैं, जिससे फैलने वाले प्रदूषण से हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ आस-पास के पर्यावरण पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है।
हालांकि दिवाली पर प्रदूषण की मार से बचने के लिए इस साल भी सुप्रीम कोर्ट से दिशा-निर्देश जारी हुए हैं, जिसमें पटाखे छोड़ने के समय आदि के संबंध में कई बातें कही गयी हैं। लेकिन इन दिनों मौसम के बदलने और दिवाली के कारण पटाखों के साथ-साथ अन्य कई चीजों से पैदा होने वाले दमघोंटू प्रदूषण से बचने के लिए आपको अपने स्तर पर भी पुख्ता तैयारी करने की जरूरत है। विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों व सांस की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को बहुत अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता है।
बच्चों का ऐसे रखें ध्यान
दिवाली पर छोड़े जाने वाले कुछ पटाखे बहुत ज्यादा तेज आवाज के होते हैं, जो छोटे बच्चों की सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए कोशिश करें कि बच्चे को घर के अंदर ऐसे किसी स्थान पर रखें, जहां तेज पटाखों की आवाज कम से कम आये। कानों में रुई लगा देने से भी तेज आवाज से बचा जा सकता है। इसके अलावा पटाखों से निकलने वाला हानिकारक धुआं बच्चों के फेफड़ों को बहुत ज्यादा
नुकसान पहुंचा सकता है, जिसकी वजह से उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इसलिए घर के खिड़की-दरवाजे अच्छी तरह से बंद रखें, ताकि हानिकारक और जहरीला धुआं घर में प्रवेश न कर पाये।
घर में यदि बुजुर्ग हों तो
घर में बुजुर्ग व्यक्ति के होने पर कोशिश करें कि बहुत ज्यादा तेज आवाज वाले पटाखे न छोड़ें। न ही बुजुर्ग व्यक्ति खुद से ऐसे पटाखे छोड़ें, जिन्हें छोड़ने के तुरंत बाद तेजी से दूर जाना पड़ता है। उदाहरण के लिए रॉकेट, क्योंकि यह तेजी से हवा में जाता है और इससे बहुत हानिकारक धुआं भी निकलता है। अगर बच्चों के साथ पटाखे छोड़ रहे हैं, तो हानिकारक धुएं से बचने के लिए खुद मास्क जरूर पहनें।
सांस के मरीज बरतें विशेष सावधानी
जिन लोगों को सांस लेने में वैसे भी दिक्कत रहती है, उन्हें सलाह है कि वह दिवाली से पहले एक बार अपने डॉक्टर से जरूर मिल लें। डॉक्टर से दिवाली से पहले और बाद में होने वाले प्रदूषण के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जरूरी दवाइयां लेना न भूलें। दिवाली वाले दिन घर से बाहर निकलने से परहेज करें। यदि धुएं की वजह से छाती में जकड़न व सांस लेने में तकलीफ हो तो तुरंत डॉक्टर द्वारा बताया गया इनहेलर लें या जरूरत पड़ने पर नेबुलाइजर जरूर लें। ऐसे में भाप लेने से भी थोड़ी-बहुत राहत मिल सकती है। लेकिन इसके बावजूद आराम न मिले और सांस लेने में दिक्कत हो रही हो, तो तुरंत किसी नजदीकी अस्पताल में चले जाएं।
दिवाली के बाद भी रहता है प्रदूषण पटाखों से निकलने वाला जहरीला धुआं और गैस वातारण में लंबे समय तक बने रहते हैं और अपना दुष्प्रभाव छोड़ते रहते हैं। इसलिए दिवाली बाद भी आप प्रदूषण के खतरों के प्रति सचेत रहें। कोशिश करें कि दिवाली की अगली सुबह या कुछ दिनों बाद तक तड़के घर से न निकलें। यदि निकलना भी पड़े तो कोशिश करें कि दोपहर के बाद ही घर से निकलें।
दरअसल, दिवाली के बाद वातावरण में जो धुएं की मोटी परत जम जाती है उसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए बाद में भी मास्क पहनें और ज्यादा दिक्कत होने पर गीला रूमाल नाक पर बांधें।
(डॉ. विजय दत्ता, सीनियर कंसल्टेंट, रेस्पाइरेटरी मेडिसिन, इंडियन स्पायनल इंजरी सेंटर, वसंत कुंज, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित)
तो दिवाली का त्योहार रोशनी का प्रतीक है, इसलिए लोग इस अवसर पर खूब दीये जलाते हैं और जमकर लाइटिंग वगैरह भी करते हैं, लेकिन खूब सारी रोशनी के साथ-साथ दिवाली पर कानफोड़ू पटाखे भी भारी मात्रा में छोड़े जाते हैं, जिससे फैलने वाले प्रदूषण से हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ आस-पास के पर्यावरण पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है।
हालांकि दिवाली पर प्रदूषण की मार से बचने के लिए इस साल भी सुप्रीम कोर्ट से दिशा-निर्देश जारी हुए हैं, जिसमें पटाखे छोड़ने के समय आदि के संबंध में कई बातें कही गयी हैं। लेकिन इन दिनों मौसम के बदलने और दिवाली के कारण पटाखों के साथ-साथ अन्य कई चीजों से पैदा होने वाले दमघोंटू प्रदूषण से बचने के लिए आपको अपने स्तर पर भी पुख्ता तैयारी करने की जरूरत है। विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों व सांस की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को बहुत अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता है।
बच्चों का ऐसे रखें ध्यान
दिवाली पर छोड़े जाने वाले कुछ पटाखे बहुत ज्यादा तेज आवाज के होते हैं, जो छोटे बच्चों की सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए कोशिश करें कि बच्चे को घर के अंदर ऐसे किसी स्थान पर रखें, जहां तेज पटाखों की आवाज कम से कम आये। कानों में रुई लगा देने से भी तेज आवाज से बचा जा सकता है। इसके अलावा पटाखों से निकलने वाला हानिकारक धुआं बच्चों के फेफड़ों को बहुत ज्यादा
नुकसान पहुंचा सकता है, जिसकी वजह से उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इसलिए घर के खिड़की-दरवाजे अच्छी तरह से बंद रखें, ताकि हानिकारक और जहरीला धुआं घर में प्रवेश न कर पाये।
घर में यदि बुजुर्ग हों तो
घर में बुजुर्ग व्यक्ति के होने पर कोशिश करें कि बहुत ज्यादा तेज आवाज वाले पटाखे न छोड़ें। न ही बुजुर्ग व्यक्ति खुद से ऐसे पटाखे छोड़ें, जिन्हें छोड़ने के तुरंत बाद तेजी से दूर जाना पड़ता है। उदाहरण के लिए रॉकेट, क्योंकि यह तेजी से हवा में जाता है और इससे बहुत हानिकारक धुआं भी निकलता है। अगर बच्चों के साथ पटाखे छोड़ रहे हैं, तो हानिकारक धुएं से बचने के लिए खुद मास्क जरूर पहनें।
सांस के मरीज बरतें विशेष सावधानी
जिन लोगों को सांस लेने में वैसे भी दिक्कत रहती है, उन्हें सलाह है कि वह दिवाली से पहले एक बार अपने डॉक्टर से जरूर मिल लें। डॉक्टर से दिवाली से पहले और बाद में होने वाले प्रदूषण के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जरूरी दवाइयां लेना न भूलें। दिवाली वाले दिन घर से बाहर निकलने से परहेज करें। यदि धुएं की वजह से छाती में जकड़न व सांस लेने में तकलीफ हो तो तुरंत डॉक्टर द्वारा बताया गया इनहेलर लें या जरूरत पड़ने पर नेबुलाइजर जरूर लें। ऐसे में भाप लेने से भी थोड़ी-बहुत राहत मिल सकती है। लेकिन इसके बावजूद आराम न मिले और सांस लेने में दिक्कत हो रही हो, तो तुरंत किसी नजदीकी अस्पताल में चले जाएं।
दिवाली के बाद भी रहता है प्रदूषण पटाखों से निकलने वाला जहरीला धुआं और गैस वातारण में लंबे समय तक बने रहते हैं और अपना दुष्प्रभाव छोड़ते रहते हैं। इसलिए दिवाली बाद भी आप प्रदूषण के खतरों के प्रति सचेत रहें। कोशिश करें कि दिवाली की अगली सुबह या कुछ दिनों बाद तक तड़के घर से न निकलें। यदि निकलना भी पड़े तो कोशिश करें कि दोपहर के बाद ही घर से निकलें।
दरअसल, दिवाली के बाद वातावरण में जो धुएं की मोटी परत जम जाती है उसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए बाद में भी मास्क पहनें और ज्यादा दिक्कत होने पर गीला रूमाल नाक पर बांधें।
(डॉ. विजय दत्ता, सीनियर कंसल्टेंट, रेस्पाइरेटरी मेडिसिन, इंडियन स्पायनल इंजरी सेंटर, वसंत कुंज, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित)
Monday, 5 November 2018
Diwali 2018:दिवाली के दौरान प्रदूषण से बचने के लिए बरतें ये सावधानियां, डॉक्टर से जानें टिप्स
दिवाली में पटाखों की धूम नहीं हो तो शायद कुछ कमी सी लगती है, लेकिन अगर पटाखें हमारे स्वास्थ्य को नुकसान व पयार्वरण को हानि पहुंचा रहे हैं तो हमें इनके इस्तेमाल के बारे में सही से सोचने की जरूरत है। दिवाली की धूम-धड़ाम के बीच स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से अपने को किस तरह से बचें व पटाखों से किस तरह बुजुर्ग व बीमार लोग अपनी स्वास्थ्य की देखभाल करें।
दिवाली अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आता है, लेकिन दमा, सीओपीडी या एलर्जिक रहाइनिटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों बढ़ जाती है। पटाखों में मौजूद छोटे कण सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिसका असर फेफड़ों पर पड़ता है। इस तरह से पटाखों के धुंए से फेफड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और हालात यहां तक भी पहुंच सकते हैं कि ऑगेर्न फेलियर और मौत तक हो सकती है। ऐसे में धुएं से बचने की कोशिश करें।
पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा या दमा का अटैक आ सकता है। हानिकारक विषाक्त कणों के फेफड़ों में पहुंचने से ऐसा हो सकता है, जिससे व्यक्ति को जान का खतरा भी हो सकता है। ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हों, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए।
पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है। पटाखों में मौजूद लैड सेहत के लिए खतरनाक है, इसके कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है। जब पटाखों से निकलने वाला धुंआ सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रुकावट आने लगती है। दिमाग को पयार्प्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है।
बच्चे और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के शोर व धुएं से बचकर रहना चाहिए। पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा करता है। पटाखों में हानिकर रसायन होते हैं, जिनके कारण बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है और उनके विकास में रुकावट पैदा करता है। पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए।
पटाखे को रंग-बिरंगा बनाने के लिए इनमें रेडियोएक्टिव और जहरीले पदाथोर्ं का इस्तेमाल किया जात है। ये पदार्थ जहां एक ओर हवा को प्रदूषित करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे कैंसर की आशंका भी रहती है।
धुएं से दिवाली के दौरान हवा में पीएम बढ़ जाता है। जब लोग इन प्रदूषकों के संपर्क में आते हैं तो उन्हें आंख, नाक और गले की समस्याएं हो सकती हैं। पटाखों का धुआं, सदीर् जुकाम और एलजीर् का काररण बन सकता है और इस कारण छाती व गले में कन्जेशन भी हो सकता है।
इसके धुएं में मौजूद कॉपर से सांस की समस्याएं, कैडमियम-खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम करता है, जिससे व्यक्ति एनिमिया का शिकार हो सकता है। जिंक की वजह से उल्टी व बुखार व लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है। मैग्निशियम व सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि 1०० डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शहरों के लिए 45 डेसिबल की आवाज अनुकूल है। लेकिन भारत के बड़े शहरों में शोर का स्तर 9० डेसिबल से भी अधिक है। मनुष्य के लिए उचित स्तर 85 डेसिबल तक ही माना गया है। अनचाही आवाज मनुष्य पर मनोवैज्ञानिक असर पैदा करती है।
शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, टिन्नीटस, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है। तनाव और उच्च रक्तचाप सेहत के लिए घातक है, वहीं टिन्नीटस के कारण व्यक्ति की याददाश्त जा सकती है, वडिप्रेशन का शिकार हो सकता है। ज्यादा शोर दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं। शोर में रहने से रक्तचाप पांच से दस गुना बढ़ जाता है और तनाव बढ़ता है। ये सभी कारक उच्च रक्तचाप और कोरोनरी आर्टरी रोगों का कारण बन सकते हैं।
पटाखों व प्रदूषण से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतें?
कोशिश रहे कि पटाखें न जलाएं या कम पटाखे फोड़ें। पटाखों के जलने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं जो दमा के मरीजों के लिए खतरनाक हैं। हवा में मौजूदा धुंआ बच्चों और बुजुगोर्ं के लिए घातक हो सकता है।
प्रदूषित हवा से बचें, क्योंकि यह तनाव और एलजीर् का कारण बन सकती है। एलजीर् से बचने के लिए अपने मुंह को रूमाल या कपड़े से ढक लें। दमा आदि के मरीज अपना इन्हेलर अपने साथ रखें। अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो तो तुरंत इसका इस्तेमाल करें और इसके बाद डॉक्टर की सलाह लें। त्योहारों के दौरान स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। अगर आपको किसी तरह असहजता महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।
दिवाली अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आता है, लेकिन दमा, सीओपीडी या एलर्जिक रहाइनिटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों बढ़ जाती है। पटाखों में मौजूद छोटे कण सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिसका असर फेफड़ों पर पड़ता है। इस तरह से पटाखों के धुंए से फेफड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और हालात यहां तक भी पहुंच सकते हैं कि ऑगेर्न फेलियर और मौत तक हो सकती है। ऐसे में धुएं से बचने की कोशिश करें।
पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा या दमा का अटैक आ सकता है। हानिकारक विषाक्त कणों के फेफड़ों में पहुंचने से ऐसा हो सकता है, जिससे व्यक्ति को जान का खतरा भी हो सकता है। ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हों, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए।
पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है। पटाखों में मौजूद लैड सेहत के लिए खतरनाक है, इसके कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है। जब पटाखों से निकलने वाला धुंआ सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रुकावट आने लगती है। दिमाग को पयार्प्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है।
बच्चे और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के शोर व धुएं से बचकर रहना चाहिए। पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा करता है। पटाखों में हानिकर रसायन होते हैं, जिनके कारण बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है और उनके विकास में रुकावट पैदा करता है। पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए।
पटाखे को रंग-बिरंगा बनाने के लिए इनमें रेडियोएक्टिव और जहरीले पदाथोर्ं का इस्तेमाल किया जात है। ये पदार्थ जहां एक ओर हवा को प्रदूषित करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे कैंसर की आशंका भी रहती है।
धुएं से दिवाली के दौरान हवा में पीएम बढ़ जाता है। जब लोग इन प्रदूषकों के संपर्क में आते हैं तो उन्हें आंख, नाक और गले की समस्याएं हो सकती हैं। पटाखों का धुआं, सदीर् जुकाम और एलजीर् का काररण बन सकता है और इस कारण छाती व गले में कन्जेशन भी हो सकता है।
इसके धुएं में मौजूद कॉपर से सांस की समस्याएं, कैडमियम-खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम करता है, जिससे व्यक्ति एनिमिया का शिकार हो सकता है। जिंक की वजह से उल्टी व बुखार व लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है। मैग्निशियम व सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि 1०० डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शहरों के लिए 45 डेसिबल की आवाज अनुकूल है। लेकिन भारत के बड़े शहरों में शोर का स्तर 9० डेसिबल से भी अधिक है। मनुष्य के लिए उचित स्तर 85 डेसिबल तक ही माना गया है। अनचाही आवाज मनुष्य पर मनोवैज्ञानिक असर पैदा करती है।
शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, टिन्नीटस, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है। तनाव और उच्च रक्तचाप सेहत के लिए घातक है, वहीं टिन्नीटस के कारण व्यक्ति की याददाश्त जा सकती है, वडिप्रेशन का शिकार हो सकता है। ज्यादा शोर दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं। शोर में रहने से रक्तचाप पांच से दस गुना बढ़ जाता है और तनाव बढ़ता है। ये सभी कारक उच्च रक्तचाप और कोरोनरी आर्टरी रोगों का कारण बन सकते हैं।
पटाखों व प्रदूषण से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतें?
कोशिश रहे कि पटाखें न जलाएं या कम पटाखे फोड़ें। पटाखों के जलने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं जो दमा के मरीजों के लिए खतरनाक हैं। हवा में मौजूदा धुंआ बच्चों और बुजुगोर्ं के लिए घातक हो सकता है।
प्रदूषित हवा से बचें, क्योंकि यह तनाव और एलजीर् का कारण बन सकती है। एलजीर् से बचने के लिए अपने मुंह को रूमाल या कपड़े से ढक लें। दमा आदि के मरीज अपना इन्हेलर अपने साथ रखें। अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो तो तुरंत इसका इस्तेमाल करें और इसके बाद डॉक्टर की सलाह लें। त्योहारों के दौरान स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। अगर आपको किसी तरह असहजता महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।
Friday, 2 November 2018
Health Tips: सर्दी और फ्लू से बचाएगी लेमन टी, जानें इसके और भी फायदे
लेमन टी स्वाद में अच्छी होने के साथ ही शरीर के लिए भी काफी फायदेमंद रहती है। नींबू में कुछ ऐसे नेचुरल तत्व होते है जो हमारी त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होते है। इसके साथ ही ये आपको तरोताजा भी रखता है साथ ही ये हमारे शरीर के लिए भी बहुत फायदेमंद है।
आइए जानते है लेमन टी के कुछ फयदे
1. नींबू में सिट्रिक एसिड पाया जाता है। जो आपकी पाचन क्रिया को ठीक बनाए रखता है। इसे रोज सुबह पिएं।
2. लेमन टी में फ्लेवोनोइड्स नाम का केमिकल पाया जाता है। इससे धमनियों में रक्त के थक्के नहीं बनते जिसके कारण हार्टअटैक का खतरा कम होता है।
3. लेमन टी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।
4. लेमन टी पीने से सर्दी और फ्लू जैसी समस्या भी नहीं होती।
5. लेमन टी में काफी एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। इसके साथ ही इसमें पोलीफीनोल और विटामिन c भी अधिकता में होता है। जो शरीर में कैंसर सेल्स को बनने से रोकता है।
आइए जानते है लेमन टी के कुछ फयदे
1. नींबू में सिट्रिक एसिड पाया जाता है। जो आपकी पाचन क्रिया को ठीक बनाए रखता है। इसे रोज सुबह पिएं।
2. लेमन टी में फ्लेवोनोइड्स नाम का केमिकल पाया जाता है। इससे धमनियों में रक्त के थक्के नहीं बनते जिसके कारण हार्टअटैक का खतरा कम होता है।
3. लेमन टी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।
4. लेमन टी पीने से सर्दी और फ्लू जैसी समस्या भी नहीं होती।
5. लेमन टी में काफी एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। इसके साथ ही इसमें पोलीफीनोल और विटामिन c भी अधिकता में होता है। जो शरीर में कैंसर सेल्स को बनने से रोकता है।
Monday, 29 October 2018
हेल्थ टिप्स : इस मौसम में सेहत को दुरुस्त रखेंगे ये 6 आदतें
आजकल तापमान तेजी से गिरना शुरू हो गया है। दिन अब पहले से छोटे हो रहे हैं। यह एक ऐसा मौसम है कि जगह -जग मच्छर पनप रहे हैं और जरा लापरवाही में शर्दी जुकाम पकड़ रहा है। कुछ लोगों को खांसी बुखार अपनी चपेट में ले रहा है। ऐसे में खुद को सेहतमंद बनाए रखने के लिए दैनिक लाइफ स्टाइल और खान -पान में कुछ बलाव की जरूरत है। यहां 6 आदतों के बारे में बता रहे हैं जो आपको इस मौसम के बदलाव में बीमार होने स बचाएंगे-
ये 6 आदतें बीमार होने से बचाएंगी-
1- अपने भोजन में साबुत अनाज/बीन्स सामिल करें - इन्हें आप सब्जी, सलाद, दाल और स्प्राउट्स के रूप में ले सकते हैं।
2- हल्दी का इस्तेमाल बढ़ाएं- मौसम का तापमान गिरने पर हल्दी का प्रयोग आपको बीमार होने से बचाता है। हल्दी में स्ट्रॉन्ग एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो सर्दी जुकाम से हमारी रक्षा करते हैं। इसलिए खाने में हल्दी मसाले के रूप में जरूर शामिल करें।
3- सेब खाएं - कहावत है कि एक सेब खाने से डॉक्टर दूर रहता है। यानी इस मौसम में सेब का सेवन बेहतर है। इसमें कई प्रकार के विटाइमिन्स और फाइबर होने के कारण यह काफी लाभकारी है।
4- पर्याप्त नींद लें - बहुत सी बीमारियां और कमजोरी कम नींद के कारण होती हैं, इसलिए जरूरी है कि आप भरपूर नींद लें और बीमारियों को दूर रखें।
5- दालचीनी खाएं - गर्म मसालों में दालचीनी प्रमुख है। आजकल के मौसम में सब्जियों के साथ मसाले के रूप में दालचीनी का सेवन काफी लाभदायक साबित हो सकता है। इसकी खुशबू भी आपको खुशनुमा रखती है।
6- कद्दू की सब्जी खांए - कद्दू का नाम सुनने में भले ही ज्यादा अच्छा न लगता हो लेकिन यह सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है। यह बहुत सुपाच्य और हल्का होता है। इसमें मिनरल भी भरपूर मात्रा में होते हैं।
ये 6 आदतें बीमार होने से बचाएंगी-
1- अपने भोजन में साबुत अनाज/बीन्स सामिल करें - इन्हें आप सब्जी, सलाद, दाल और स्प्राउट्स के रूप में ले सकते हैं।
2- हल्दी का इस्तेमाल बढ़ाएं- मौसम का तापमान गिरने पर हल्दी का प्रयोग आपको बीमार होने से बचाता है। हल्दी में स्ट्रॉन्ग एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो सर्दी जुकाम से हमारी रक्षा करते हैं। इसलिए खाने में हल्दी मसाले के रूप में जरूर शामिल करें।
3- सेब खाएं - कहावत है कि एक सेब खाने से डॉक्टर दूर रहता है। यानी इस मौसम में सेब का सेवन बेहतर है। इसमें कई प्रकार के विटाइमिन्स और फाइबर होने के कारण यह काफी लाभकारी है।
4- पर्याप्त नींद लें - बहुत सी बीमारियां और कमजोरी कम नींद के कारण होती हैं, इसलिए जरूरी है कि आप भरपूर नींद लें और बीमारियों को दूर रखें।
5- दालचीनी खाएं - गर्म मसालों में दालचीनी प्रमुख है। आजकल के मौसम में सब्जियों के साथ मसाले के रूप में दालचीनी का सेवन काफी लाभदायक साबित हो सकता है। इसकी खुशबू भी आपको खुशनुमा रखती है।
6- कद्दू की सब्जी खांए - कद्दू का नाम सुनने में भले ही ज्यादा अच्छा न लगता हो लेकिन यह सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है। यह बहुत सुपाच्य और हल्का होता है। इसमें मिनरल भी भरपूर मात्रा में होते हैं।
Thursday, 25 October 2018
Health Tips: स्वस्थ रहने के देसी तरीके, जरूर अपनाएं
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग का निवास होता है। जिस व्यक्ति की काया निरोग रहती है, वह हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति का ही शरीर और दिमाग पूर्ण सक्रिय रहता है। स्वस्थ...
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