Monday 30 September 2024

Hyper Sensitive: क्या बला है हाइपर सेंसटिव, कोई बीमारी या मन का भ्रम

 

Hyper Sensitive : कुछ लोग हद से ज्यादा सेंसेटिव होते हैं, जल्दी-जल्दी बीमार हो जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को लेकर परेशान हो जाते हैं, इससे उन्हें कई तरह की समस्याएं होने लगती है. इसे साइकोलॉजिकल भाषा में 'हाइपर सेंसटिव' कहते हैं. 

एक्सपर्ट्स का कहना है कि हाइपर सेंसटिव इंसान वह होता है, जिसमें किसी चीज को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं. हालांकि, सेंसिटिविटी हद से ज्यादा बढ़ने पर लाइफ नेगेटिव तरह से प्रभावित होने लगती है. बहुत से लोग हाई सेंसिटिव लोगों को मेंटल डिसऑर्डर (Mental Disorder) मानते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हाइपर सेंसटिव कोई बीमारी है? 

हाइपर सेंसटिव क्या कोई बीमारी

डॉक्टर का कहना है कि यह एक तरह का नेचर है लेकिन जब आपका यह बिहैवियर सोशल, प्रोफेशन और डेली लाइफ पर असर डालने लग जाए तो यह बीमारी बन जाती है. इसमें रिलेशन बनाने से लेकर काम करने तक में काफी दिक्कतें होती हैं.

कोई इतना ज्यादा सेंसेटिव क्यों हो जाता है

डॉक्टर्स का कहना है कि इसके पीछे एक नहीं कई कारण हो सकते हैं. जैसे अगर कोई तनाव में है या किसी बात को लेकर परेशान है या बार-बार किसी चीज के बारें में सोचता है तो वह सेंसेटिव हो जाता है. इसके अलावा ऐसा पारिवारिक माहौल जहां सिर्फ अभाव की बाते हों या एक-दूसरे पर तंज कसा जाए या नीचा दिखाया जाए या बहुत ज्यादा जिम्मेदारी बढ़ जाए तो भी इंसान बहुत ज्यादा सेंसेटिव हो जाता है.

क्या पढ़ा लिखा होना भी सेंसेटिव बनाता है

डॉक्टर्स का कहना है कि आमतौर पर ज्यादा पढ़ा-लिखा होना भी किसी के नेचर को सेंसेटिव बना सकता है, क्योंकि इस तरह के इंसान को किसी सब्जेक्ट को लेकर अलग तरह से देखने, गहराई से समझने की क्षमता होती है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि ज्यादा पढ़ना बेकार ही है. 

क्या रिस्पांसिबिलिटी भी सेंसेटिव बिहैवियर का कारण

डॉक्टर्स बताते हैं कि अगर कोई हाई पोस्ट पर है तो उस पर अच्छे रिजल्ट की साइकोलॉजिकल रिस्पांसिबिलिटी होती है, जो उसे सेंसेटिव बना सकती है. इसके अलावा, ऐसे बच्चे, जिन्हें बचपन में पैरेंट्स का ज्यादा प्यार मिला हो, वे आगे चलकर अक्सर इस बिहैवियर के हो जाते हैं. ऐसे लोगों को अपनी लाइफ में कई तरह की दिक्कतें होती हैं. ओवरथिंकिंग उन्हें परेशानी में डाल सकता है.

By : ABP News | Updated at : 30 Sep 2024 07:05 AM (IST)

Body Pain: शरीर में दिनभर बना रहता है दर्द तो नजरअंदाज करने की न करें गलती, हो सकता है सेहत के लिए खतरनाक

 Body Pain Reasons

 : शरीर में दर्द कई कारणों से हो सकता है. शरीर हेल्दी होने के बावजदू कई बार हाथ-पैर, गर्दन-पीठ का दर्द होता है, जो नॉर्मल हो सकता है लेकिन अगर दर्द लगातार बना रहता है तो नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, वरना क्रॉनिक पेन (Chronic Body Pain Reason) का कारण बन सकती है. इसमें शरीर में अक्सर ही और लंबे समय तक दर्द होता है. डॉक्टर्स पर इसे हल्के में लेने की बजाय सावधानी बरतने की सलाह देते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं क्या करना चाहिए और क्या नहीं...

क्रॉनिक बॉडी पेन कितनी खतरनाक

हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दुनियाभर में 1.5 बिलियन से ज्यादा लोग क्रॉनिक पेन की चपेट में हैं. इसकी वजह से दिव्यांगता और लाइफ क्वॉलिटी में खराबी आ सकती है. पिछले कुछ सालों में पीठ, गर्दन, पेल्विक पेन और गठिया के दर्द कॉमन बन गया है. इसकी वजह से फिजिकल ही नहीं इमोशनल हेल्थ भी बिगड़ रही है. सबसे बड़ी चिंता की बात है कि ज्यादातर लोग इसका इलाज ही नहीं करवा रहे हैं.

शरीर में दर्द बना रहने का कारण क्या है

डॉक्टर्स का कहना है कि शरीर में कई वजहों से दर्द हो सकता है. ऑटोइम्यून बीमारी, गठिया, पुराना इंफेक्शन या विटामिन-प्रोटीन की कमी से भी शरीर में दर्द अक्सर ही बना रहता है. कुछ दर्द ऐसे होते हैं, जिनका अगर समय पर इलाज न कराया जाए तो बाद के लिए खतरनाक बन सकते हैं.

शरीर में दर्द का इलाज 

डॉक्टर्स के मुताबिक, PRP थेरेपी जैसी रीजेनरेटिव मेडिसिन से दर्द से छुटकारा मिल सकता है. यह जॉइंट पेन में ज्यादा कारगर है. क्रॉनिक पेन के लिए कई तरह से डॉक्टर इलाज करते हैं. कुछ मरीज दवाईयों से ही ठीक हो जाते हैं, जबकि कुछ को एपिड्यूरल स्टेरॉयड इंजेक्शन,रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन और ट्रिगर पॉइंट इंजेक्शन देने की जरूरत पड़ सकती है. पर्सनलाइज्ड फिजिकल थेरेपी से भी इसका इलाज किया जाता है.

क्रॉनिक पेन का इलाज AI से

आजकल एआई काफी चर्चा में है. इसकी मदद से भी क्रॉनिक पेन का ट्रीटमेंट किया जा रहा है. अगर आपके शरीर के भी किसी हिस्से में दर्द बना रहता है तो इसे कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए. यह किसी गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकता है. अगर कई सालों से दर्द की समस्या है तो तुरंत जाकर डॉक्टर से मिलना चाहिए.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.



Thursday 26 September 2024

Hair Loss: कम उम्र में ही झड़ने लगे हैं बाल, बढ़ रहा है गंजापन? कहीं आपमें इन पोषक तत्वों की कमी तो नहीं

बालों का झड़ना एक सामान्य समस्या है, कम उम्र के लोग भी इसका शिकार देखे जा रहे हैं। 30 से कम आयु वालों में भी बालों की कमजोरी और इसके असमजय झड़ने की दिक्कतें सामने आ रही हैं। जिन लोगों के परिवार में पहले से किसी को ये समस्या रही है उनमें आनुवांशिक रूप से इसका खतरा अधिक हो सकता है। इसके अलावा लाइफस्टाइल और आहार से संबंधित दिक्कतें भी बालों के लिए समस्याकारक हो सकती है। 

क्या आप भी बालों की दिक्कतों से परेशान हैं? स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, बाल झड़ने के लिए कई स्थितियों को जिम्मेदार माना जा सकता है। इनमें से एक प्रमुख कारण शरीर में आवश्यक विटामिन्स और पोषक तत्वों की कमी है।

बालों की सेहत को ठीक बनाए रखने के लिए शरीर को पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। जिन लोगों में विटामिन्स-मिनरल्स की कमी होती है उन्हें बालों की दिक्कतों का सामना कम उम्र में भी करना पड़ सकता है।

बालों को स्वस्थ रखने के लिए जरूर हैं पोषक तत्व

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, बालों का झड़ना पहले की तुलना में अब अधिक आम होता जा रहा है। संतुलित आहार जैसे जिसमें विटामिन डी, बी7 (बायोटिन), विटामिन ई और ए वाली चीजें बालों की जड़ों को मजबूती देती हैं। इनकी कमी से कम आयु में गंजेपन का खतरा बढ़ जाता है।

यदि आपके बाल तेजी से झड़ रहे हों, तो आहार और पोषण की जांच करवाना और सही उपचार प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं कि किन पोषक तत्वों की कमी से बालों की समस्या बढ़ जाती है?

बायोटिन (विटामिन B7) की कमी

बायोटिन बालों, त्वचा और नाखूनों के लिए महत्वपूर्ण विटामिन है। यह केराटिन उत्पादन में मदद करता है, जो बालों की मजबूती और स्वस्थ वृद्धि के लिए आवश्यक है। बायोटिन की कमी से बालों के पतला होने और टूटने की दिक्कत हो सकती है। यह स्थिति अक्सर गर्भावस्था, कुछ दवाओं या असंतुलित आहार के कारण हो सकती है।

आहार में इस पोषक तत्व को शामिल करके या डॉक्टरी सलाह पर बायोटिन के सप्लीमेट्स लेकर आप दिक्कतों को कम कर सकते हैं।
विटामिन-ए की कमी

विटामिन-ए बालों की ग्रंथियों में सीबम उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है, जो बालों और स्कैल्प को मॉइस्चराइज रखने के लिए जरूरी है। जिन लोगों में विटामिन-ए की कमी होती है उनका स्कैल्प सूखा रह सकता है, जिससे बाल कमजोर होकर झड़ने लगते हैं। हालांकि विटामिन-ए की अधिकता भी बाल झड़ने का कारण बन सकती है, इसलिए इसे सही मात्रा में इसका सेवन आवश्यक है।

विटामिन-ई भी जरूरी

बालों की अच्छी सेहत के लिए विटामिन-ई भी आवश्यक है। विटामिन-ई एक एंटीऑक्सीडेंट है, जो बालों के रोम और स्कैल्प को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाती है। विटामिन ई की कमी से स्कैल्प की कोशिकाओं को नुकसान हो सकता है, जिससे बालों के गिरने की समस्या बढ़ सकती है। यह बालों की वृद्धि को भी प्रभावित करती है, इसलिए आहार में विटामिन-ई वाली चीजों को जरूर शामिल करें। 
प्रोटीन की कमी

बाल मुख्यरूप से प्रोटीन से बने होते हैं, विशेषकर केराटिन नामक प्रोटीन से। ऐसे में प्रोटीन की कमी बालों की मजबूती और वृद्धि को प्रभावित करती है। अगर शरीर में प्रोटीन की कमी है, तो बाल कमजोर हो जाते हैं और जल्दी टूट सकते हैं। लंबे समय तक प्रोटीन की कमी बालों के झड़ने और गंजापन का कारण बन सकती है। इसी तरह जिंक, बालों के ऊतकों की मरम्मत और बालों की वृद्धि को बढ़ावा देने में मदद करता है। यह हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है। इसकी कमी भी आपके लिए दिक्कतें बढ़ा सकती है। 

नोट: यह लेख डॉक्टर्स का सलाह और मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 











Wednesday 25 September 2024

Breathlessness: अक्सर होती रहती है सांस लेने में दिक्कत? हो जाइए सावधान, कहीं आपको ये गंभीर बीमारियां तो नहीं


 

शरीर स्वस्थ रहे और सभी अंगों को बेहतर तरीके से ऑक्सीजन मिलती रहे इसके लिए जरूरी है कि सांस लेने में सहायक सभी अंग ठीक तरीके से काम करते रहें। हालांकि अक्सर कई लोगों को सांस फूलने और सांस लेने में दिक्कत बनी रहती है। अगर आप भी इस तरह की समस्याओं के शिकार हैं तो समय रहते किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें। कुछ स्थितियों में ये गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों का भी संकेत हो सकता है।


हमारा दिल और फेफड़े शरीर के सभी ऊतकों तक रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन पहुंचाते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालते हैं। इसमें आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा के कई तरह के दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

सांस फूलने की समस्या को डिस्पेनिया के नाम से जाना जाता है जिसमें फेफड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इसमें ऐसा महसूस हो सकता है जैसे आपकी छाती में जकड़न है, सांस लेने के लिए हांफ रहे हैं या आपको सांस लेने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ रही है। दिल और फेफड़ों की बीमारियों में ये दिक्कत सामान्य है पर अगर अक्सर आप इस तरह की समस्या से परेशान रहते हैं तो खास तौर पर सावधान हो जाने की जरूरत है।


गंभीर समस्याओं का हो सकता है संकेत

डॉक्टर बताते हैं, सांस की तकलीफ कई मामलों में अस्थमा, एलर्जी या चिंता जैसी अन्य स्थितियों का भी संकेत हो सकती है। तीव्र व्यायाम या सर्दी-जुकाम होने से भी आपको सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। हालांकि क्रोनिक यानी लंबे समय से बनी रहने वाली सांस की समस्या कई बार गंभीर स्थितियों का भी संकेत मानी जाती है, जिसपर गंभीरता से ध्यान देते रहने की जरूरत होती है।

आइए जानते हैं कि इसके क्या कारण हो सकते हैं?
गंभीर श्वसन रोगों की समस्या

लंबे समय से सांस की तकलीफ बनी हुई है तो ये गंभीर श्वसन रोगों का संकेत हो सकता है। अस्थमा की बीमारी जो फेफड़ों में वायुमार्ग को प्रभावित करती है, इसमें भी आपको सांस की दिक्कत हो सकती है। इसी तरह सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) की स्थिति जो फेफड़ों में वायु प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली बीमारियों का एक समूह है, ऐसे रोगियों को भी सांस फूलने की समस्या महसूस होती है।

इन बीमारियों में त्वरित और लंबे समय तक चलने वाले उपचार की आवश्यकता होती है। इसलिए समय रहते इसका निदान और इलाज बहुत आवश्यक माना जाता है। 


हृदय रोगों का भी जोखिम

कमजोर या क्षतिग्रस्त हृदय के कारण भी ठीक से रक्त पंप कर पाना कठिन हो जाता है, जिससे फेफड़ों में तरल पदार्थ भरने लगता है और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। हार्ट फेलियर इसका एक प्रमुख कारण है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, अक्सर सांस लेने में बनी रहने वाली समस्या कई गंभीर हृदय रोगों जैसे कार्डियोमायोपैथी (हृदय की मांसपेशियों में समस्या), हार्ट फेलियर या पेरीकार्डिटिस (हृदय के आस-पास के ऊतकों की सूजन) का संकेत हो सकती है। इसपर समय पर ध्यान न देना जानलेवा हो सकती है।
पैनिक अटैक या स्ट्रेस की समस्या

मानसिक तनाव या घबराहट के कारण भी अचानक सांस फूलने की समस्या हो सकती है। पैनिक अटैक में सामान्य से तेज और सांस में उतार-चढ़ाव की दिक्कत बढ़ जाती है। स्ट्रेस और एंग्जाइटी या फिर डिप्रेशन जैसी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण भी सांस लेने में तकलीफ देखी जाती है। इन स्थितियों का समय पर निदान और उपचार करना बहुत जरूरी हो जाता है।
नोट: यह लेख डॉक्टर्स का सलाह और मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Mon, 09 Sep 2024 04:52 PM IST


अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।




World Lung Day 2024: क्यों होता है फेफड़ों में संक्रमण, बच्चे भी हो सकते हैं शिकार? विशेषज्ञ से जानिए सबकुछ

 


Lung Diseases and Infections:  फेफड़ों से संबंधित बीमारियां पिछले दो दशकों में काफी बढ़ गई हैं। कई प्रकार के वायरस, बैक्टीरिया और फंगस के कारण फेफड़ों में संक्रमण का खतरा भी अधिक देखा जा रहा है, गंभीर स्थितियों में इसके जानलेवा दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। सामान्य सर्दी और अन्य ऊपरी श्वसन संबंधी बीमारियों के कारण फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, किसी भी प्रकार के संक्रमण पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए, फेफड़ों के मामले में और अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।


डॉक्टर्स बताते हैं, फेफड़ों के अधिकांश संक्रमण एंटीबायोटिक या एंटीवायरल से ठीक हो सकते हैं, हालांकि कुछ मामलों में अस्पताल में भर्ती होने और गंभीर जटिलताओं का भी जोखिम रहता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक किसी भी उम्र के लोग फेफड़ों में संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। 

फेफड़ों के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इससे संबंधित बीमारियों की रोकथाम को लेकर हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग्स डे यानी विश्व फेफड़ा दिवस मनाया जाता है। आइए फेफड़ों में संक्रमण के कारण और इससे बचाव के बारे में समझते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

अमर उजाला से बातचीत में पुणे में श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ अमित प्रकाश बताते हैं, फेफड़ों का संक्रमण, चाहे वह किसी भी प्रकार या कारण से हो, आपके लिए जटिलताएं बढ़ा सकता है। इसलिए समय रहते इसके लक्षणों की पहचान और उचित इलाज जरूरी है। 
  • फेफड़ों के संक्रमण में बहुत ज्यादा या लंबे समय तक खांसी होना सबसे आम संकेत माना जाता है। 
  • इसमें बलगम भी आ सकता है। संक्रमण से ऊतकों की रक्षा करने और संक्रमण को रोकने में मदद के लिए हमारा शरीर बलगम का लेयर बनाता है। बलगम बनने का मतलब ये है कि आप संक्रमण या एलर्जी के शिकार हो गए हैं।
  • सांस छोड़ते समय घरघराहट होना, सांस लेते समय आवाज आना भी फेफड़ों की समस्या का संकेत माना जाता है।

फ्लू के कारण फेफड़ों में संक्रमण

मौसमी इन्फ्लूएंजा या फ्लू फेफड़ों के सबसे आम संक्रमणों में से एक है। इन्फ्लूएंजा वायरस छींकने-खांसने से निकलने वाली बूंदों के माध्यम से फैलता है। मौसम बदलने के साथ ये संक्रमण काफी अधिक हो जाता है। इन्फ्लूएंजा वायरस को निमोनिया संक्रमण का सबसे प्रमुख कारण माना जाता है, जो फेफड़ों को प्रभावित करने वाली समस्या है।

फ्लू से गले में खराश, नाक बहने, बुखार, ठंड लगने, शरीर में दर्द, खांसी और थकान जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। ये संक्रमण अगर ठीक नहीं हो रहा है तो सावधान हो जाना चाहिए। 
बच्चों और बुजुर्गों निमोनिया का खतरा

निमोनिया, बच्चों और बुजुर्गों में फेफड़ों का सबसे आम संक्रमण है। ये एक या दोनों फेफड़ों में मौजूद वायु की थैलियों में सूजन पैदा करता है। वायु थैलियों में तरल पदार्थ या मवाद भर जाता है, जिससे कफ या मवाद के साथ खांसी, बुखार, ठंड लगने और सांस लेने में कठिनाई जैसी दिक्क्तें होती हैं। बैक्टीरिया, वायरस सहित कई तरह के रोगजनक निमोनिया का कारण बन सकते हैं।

निमोनिया एक गंभीर बीमारी मानी जाती है। वैसे तो कुछ दवाओं के साथ घर पर आसानी से ही इसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन कुछ लोगों में यह जानलेवा भी हो सकती है। इसलिए समय पर सही डॉक्टरी सलाह जरूरी है।
ट्यूबरक्लोसिस संक्रमण

ट्यूबरक्लोसिस या टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नाम के बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह फेफड़ों के लिए गंभीर संक्रमण में से एक हैं।  टीबी रोग वाले लोगों की खांसी या छींक से निकलने वाले बूंदों के माध्यम से आसपास के अन्य लोगों में संक्रमण का खतरा हो सकता है। लंबे समय से खांसी और खांसी में बलगम के साथ खून आना टीबी का संकेत होता है। ये संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है।

भारत साल 2025 तक तपेदिक (टीबी) को खत्म करने के लक्ष्य के साथ काम कर रहा है। 

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Wed, 25 Sep 2024 11:13 AM
नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।



Friday 20 September 2024

Curd And Pomegranate: मीठे दही में अनार के दाने मिलाने पर फायदा होगा या नुकसान? यहां है जवाब



 Curd With Pomegranate : दही और अनार के दाने पोषक तत्वों से भरपूर हैं. दोनों ही शरीर के लिए जबरदस्त तरीके से फायदेमंद हैं. दही में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जो शरीर के एनर्जी लेवल को बनाए रखता है. इसके अलावा इसमें कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, विटामिन B6 और विटामिन B12 जैसे पोषक तत्व भी खूब मिलते हैं.

वहीं, अनारदाना खून बढ़ाने का काम करता है. इससे भूख बढ़ती है, आंतों का सूजन खत्म होता है, त्वचा का रुखापन और गठिया का दर्द भी दूर हो जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि मीठी दही में अनार के दाने मिलाकर खाने फायदा होगा या नुकसान. यहां जानिए...

दही और अनार के दानों के फायदे या नुकसान

फ्रेश अनार के दानों को खाने के लिए उसे फ्रूट सलाद, दही, ओट्स चाट, जूस के साथ खा सकते हैं. इसके कई फायदे होते हैं. दही और अनार के दानों को मिलाकर खाने से शरीर को फायदा होता है. सुबह ब्रेकफास्ट में इन दोनों को साथ खाने से शरीर दिनभर एनर्जेटिक बना रहता है. इससे कई अन्य फायदे भी हैं.

दही और अनार के दाने खाने से फायदे

1. दही और अनार के दाने विटामिन सी से भरपूर होते हैं, जो सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद हैं. दोनों इम्यूनिटी बूस्ट करते हैं और हर मौसम में इंफेक्शन बचाते हैं. दोनों में पोटेशियम, मैग्निशियम, कैल्शियम और फोलेट भरपूर पाए जाते हैं, जो हार्ट की हेल्थ के लिए बेहद जरूरी हैं.

2. मीठी दही और अनार दोनों में प्रोटीन खूब पाया जाता है, जो हड्डियों को सेहतमंद रखता है. दोनों को मिलाकर खाने से मांसपेशियों में ताकत आ जाती है. ये ब्रेन बूस्टर का भी काम करते हैं. दिनभर शरीर को हेल्दी बनाने में मदद करते हैं. ब्रेकफास्ट में दोनों को साथ खाने से प्रोडक्टिविटी बढ़ती है.

3. दही और अनार के दाने शरीर का खून बढ़ाते हैं. दोनों रेड ब्लड सेल्स को बढ़ावा देने में मदद करते हैं. अगर किसी को हमेशा थकान और कमजोरी रहती है तो उन्हें ब्रेकफास्ट में इन दोनों चीजों को खाना चाहिए. उनकी समस्या झटपट दूर हो जाएगी.

4. दही और अनार से त्वचा को अंदर से मॉइस्चराइज़ेशन मिलता है और त्वचा ग्लोइंग होती है. 

5..दही और अनार का रायता पेट की जलन से आराम दिलाता है.

6. दही और अनार का रायता दिल के मरीज़ों के लिए भी फ़ायदेमंद होता है. 

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

Wednesday 18 September 2024

थायरॉइड की समस्या से हैं परेशान? तो रोजाना इन चार चीजों के सेवन से मिलेगा फायदा

 हम कैसा खाना खा रहे हैं? हमारा खाना हेल्दी है या नहीं? हमारे खाने में पोषक तत्व हैं या नहीं? हम समय पर खाना खा रहे हैं या नहीं? ऐसी नजाने कितनी बातें हमारे खानपान के लिए बेहद जरूरी हैं, क्योंकि अगर हमें बीमारियों से बचे रहना है तो एक हेल्दी डाइट का होना बेहद जरूरी है। हमारा पौष्टिक आहार हमें स्वस्थ और तंदुरुस्त रखने में मदद करता है। दरअसल, हमारे आसपास कई ऐसी बीमारियां मौजूद हैं जो पलक झपकते ही हमें अपना शिकार बना लेती हैं। ऐसे में फिर अस्पताल के चक्कर और कई दवाओं का सेवन करना पड़ता है। वहीं, हम चाहें तो अपने खानपान से कई चीजों पर नियंत्रण रख सकते हैं। जैसे- थायरॉइड, क्योंकि कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका सेवन किया जाए, तो हमारा थायरॉइड कंट्रोल होने में मदद मिल सकती है। तो चलिए जानते हैं इनके बारे में।

एंटीऑक्सीडेंट से भरी सब्जियां और फल
  • हमें ऐसे फलों और सब्जियों का जरूर सेवन करना चाहिए, जो एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। इनमें टमाटर, शिमला मिर्च और ब्लूबेरी जैसी चीजें शामिल हैं। इनके सेवन से थायरॉइड की ग्रंथि को काफी लाभ पहुंच सकता है।
    कम आयोडीन वाली चीजें
    • आप उन चीजों का सेवन कर सकते हैं, जिनमें आयोडीन कम होता है क्योंकि ये थायरॉइड हार्मोन को कम करने में मदद करता है। इसके लिए आप बिना आयोडीन वाला नमक, कॉफी, नट-बटर, घर का बना ब्रेड, आलू, शहद, वाइट एग जैसी चीजों का सेवन कर सकते है।
      टायरोसिन
      • टायरोसिन अमीनो एसिड का उपयोग थायरॉइड ग्रंथि द्वारा टी3 और टी4 के उत्पादन के लिए किया जाता है। इसलिए आप डेयरी उत्पाद, फलियां और मीट जैसी चीजों का सेवन कर सकते हैं। इनसे आपको थायरॉइड मे काफी लाभ मिल सकता है।गोभी
      aaj ka health tips Eat these four foods to control thyroid
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      • वैसे तो हम कई तरह की सब्जियों का सेवन करते हैं। लेकिन आप गोभी का सेवन कर सकते हैं, क्योंकि ये थायरॉइड को बढ़ने से रोकने में मदद करती है। इसके लिए आप ब्रोकली, कसावा, गोभी, पत्तागोभी, सरसों, शलजम, बांस की शाखा बोक टी जैसी चीजों का सेवन कर सकते हैं।

      नोट: प्रिया पांडेय योग्य और अनुभवी डायटिशियन (आहार विशेषज्ञ) हैं। उन्होंने कानपुर के सी.एस.जे.एम. विश्वविद्यालय से मानव पोषण में बी.एस.सी. किया है। उन्होंने कानपुर के आभा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में आहार विशेषज्ञ के रूप में काम किया है। उन्होंने जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में पोषण व्याख्यान के विषय के प्रतिनिधि के रूप में भी भाग लिया है। उनका इस क्षेत्र में 8 वर्ष का लंबा अनुभव है। 

      अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

Kidney Disease: किडनी की बीमारी का बढ़ रहा है खतरा, दिल्ली के पानी में है हद से ज्यादा नमक

 

report reveals that over 25 percent of water samples in Delhi have high salt content cause kidney disease Kidney Disease: किडनी की बीमारी का बढ़ रहा है खतरा, दिल्ली के पानी में है हद से ज्यादा नमक

दिल्ली के पानी में नमक की मात्रा काफी ज्यादा मिलती है. हर 4 में से 1 पानी के सैंपल में नमक की मात्रा काफी ज्यादा मिली है. सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के 25% से ज्यादा पानी में नमक काफी ज्यादा मात्रा में है. यह पानी इंसान के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. 

इस रिपोर्ट में दिल्ली से आगे राजस्थान है

देश की राजधानी दिल्ली की पानी का यह हाल काफी ज्यादा समस्या का विषय है. 'सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी' (CGWA) की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में 25 प्रतिशत से ज्यादा पानी के सैंपल में नमक की मात्रा मिली है. इस मामले में दिल्ली से आगे राजस्थान है. वहां के पानी में 30% पानी के सैंपल में नमक मिले हैं. रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि पानी में नमक की मात्रा काफी ज्यादा जो इंसान के पीने लायक पानी नहीं है. 

दिल्ली में 95 जगहों से लिया गया पानी का सैंपल

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने CGWA की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022-23 में दिल्ली के 95 जगहों से पानी की सैंपल लिए गए थे. इनमें से 24 सैंपल में EC 3,000 माइक्रो सीमेंस प्रति सेंटीमीटर से ज्यादा मिला है. EC का मतलब है इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी जो बताता है कि पानी में कितना नमक घुला हुआ है. नई दिल्ली, उत्तर, उत्तर पश्चिम, दक्षिण पश्चिम और पश्चिम दिल्ली से इकट्ठा किए गए थे.

सबसे ज्यादा कहां खारा पानी?

सबसे ज्यादा EC वाले इलाके हैं रोहिणी का बरवाला (9,623 यूनिट), पीतमपुरा का संदेश विहार (8,679 यूनिट) और टैगोर गार्डन (7,417 यूनिट)  शामिल है. नजफगढ़ टाउन, सुल्तानपुर दाबास, छावला, अलीपुर गढ़ी, हिरन कुदना गांव और सिंघू गांव में भी EC का लेवल काफी ज़्यादा बढ़ा हुआ पाया गया है.

पानी में घुले नमक का कैसे लगाया जाता है पता?

रिपोर्ट के मुताबिक EC पानी में घुले हुए नमक का पता लगाया जाता है. यह पता लगाने का आसान और तेज तरीका है. EC का काम है पानी में घुले ठोस पदार्थ (टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स - TDS)  से जुड़ा हुआ है. भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के मुताबिक पानी में TDS की मात्रा 500 मिलीग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. यह EC के लगभग 750 माइक्रो सीमेंस प्रति सेंटीमीटर के बराबर है.

Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों की एबीपी न्यूज़ पुष्टि नहीं करता है. इनको केवल सुझाव के रूप में लें. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट पर अमल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

Saturday 14 September 2024

Stress is good for sperm. A new study says so

 

The researchers noticed changes in small particles which aid in sperm development after the stress had passed. (Photo: Getty Images)

In Short

Sperm quality and fertility have dropped possibly due to rising environmental stress

A study suggests better sperm movement after stress has passed, not during

Researchers noted that the stress-induced adjustments help sperm movement

Stress has a great impact on our reproductive health. High levels of stress that are chronic can have adverse effects on our sexual health as well. However, the latest study reveals that there is better sperm movement after a stressful event, not during.

The new study from the University of Colorado Anschutz Medical Campus sheds light on how stress affects reproduction and could help improve foetal development outcomes.

Over the past 50 years, sperm quality and fertility have dropped, possibly due to rising environmental stress. But researchers still don’t fully understand how these changes affect sperm.

the study reveals that stress impacts sperm motility, or its ability to move through the female reproductive system to fertilise an egg.

Changes in small particles called extracellular vesicles (EVs), which aid in sperm development, were noticed after the stress had passed.

These changes occurred after the stressor had passed, not during the stress experience, the researchers noted.

"Our research shows that sperm motility significantly improves after stress, which might help boost birth rates after stressful periods, like during the Covid pandemic," explained Tracy Bale, the study's lead author.


This effect was seen in both human and animal studies, suggesting a broader connection across species.


Dr Nickole Moon, the study's first author, compared the process to a car running more efficiently with a little extra fuel.


She noted that the stress-induced adjustments help sperm improve energy production and movement.


"Imagine you have a car that's struggling to get up a steep hill. When the engine is stressed, the car becomes less efficient. However, with a little more gas, you can boost the overall performance for a smoother drive. Just as your car becomes more efficient under stress, with the right adjustments, cells improve their energy production and movement when stress-induced factors are present," said Dr Moon.

While the study focused on males, researchers are also exploring how stress impacts both partners and foetal development, particularly the brain.


Dr Neill Epperson, a co-author, emphasised that understanding how stress affects fertility and passes through generations is key to advancing reproductive health.


The research team is continuing studies to explore how stress affects sperm and fertilisation, with plans for further trials to deepen their understanding of these mechanisms.