Tuesday, 22 October 2024

Dementia: फ्लू और हर्पीस जैसे इंफेक्शन से बढ़ सकता है डिमेंशिया का रिस्क, जानिए क्या कहती है स्टडी






Dimentia And Infection: फ्लू (flu)ऐसा सीजनल इंफेक्शन है जो ज्यादातर लोगों को हो जाता है. लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि फ्लू, हर्पीस (herpes) संक्रमण या रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट जैसे संक्रमण डिमेंशिया (dementia)के रिस्क को बढ़ा सकते हैं.

जी हां, हाल ही में पब्लिश एक स्टडी में कहा गया है कि फ्लू और हर्पीस जैसे संक्रमण ब्रेन अट्रॉफी और डिमेंशिया से जुड़े हैं और अगर संक्रमण लगातार बने रहें तो डिमेंशिया के रिस्क बढ़ जाते हैं. इस स्टडी में उन जैविक कारकों का भी संकेत दिए गया जो न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज में योगदान करते हैं. नेचर एजिंग में छपी इस स्टडी में अल्जाइमर बीमारी और डिमेंशिया के बारे में एक उपयोगी डेटा प्रदान किया गया है.

फ्लू और हर्पीस इन्फेक्शन से बढ़ सकता है डिमेंशिया
अन्य स्टडी में पता चला है कि फ्लू के शॉट्स और शिंगल्स वैक्सीन के जरिए डिमेंशिया के रिस्क को कम किया जा सकता है. फ्लू और हर्पीस जैसे संक्रमण आगे जाकर स्ट्रोक और दिल के दौरे के भी कारण बन सकते हैं. स्टडी में कहा गया है कि कुछ गंभीर संक्रमण जैसे फ्लू, हर्पीस और सांस की नली का इन्फेक्शन मेंटल हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है.

यहां तक कि छोटे मोटे इंफेक्शन भी दिमाग की सोचने और समझने की प्रोसेस को इफेक्ट कर सकते हैं. इससे दिमाग के व्यवहार करने का तरीका भी बदल सकता है. जबकि गंभीर संक्रमण दिमाग की क्षमता और इम्यून रिस्पांस के लिए कतई अच्छा नहीं है. स्टडी में कहा गया है कि ये सोचा जाना कि कोई संक्रमण न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज में बड़ी भूमिका निभा सकता है, फिलहाल संभव नहीं है लेकिन कोरोना महामारी के बाद इस बारे में सोचा जाने लगा है.

वैस्कुलर डिमेंशिया का रिस्क बढ़ता है
इस स्टडी में जिन संक्रमणों की जांच की गई, इनमें फ्लू, हर्पीस, रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन और स्किन इंफेक्शन शामिल हैं. ये सभी ब्रेन लॉस यानी ब्रेन अट्रॉफी से जुड़े पाए गए हैं. स्टडी में कहा गया है कि ये संक्रमण तुरंत डिमेंशिया के खतरे को नहीं बढ़ाते हैं. इनके होने के सालों बाद डिमेंशिया और अल्जाइमर के जोखिम बढ़ जाते हैं. ये बढ़ा हुआ रिस्क वैस्कुलर डिमेंशिया से जुड़ा है. वैस्कुलर डिमेंशिया अल्जाइमर के बाद दूसरे सबसे बड़े मनोभ्रंश के रूप में पहचाना जाता है क्योंकि ये दिमाग में खून के रुकने से होता है.  

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

Monday, 21 October 2024

क्या होता है Orthosomnia, जिसमें उड़ जाती है नींद? दिनभर सोने का करता है मन


 Orthosomnia : अच्छी नींद के चक्कर में अपनी नींद बिगाड़ लेना भी एक तरह की बीमारी है. जिसे ऑर्थोसोमनिया कहते हैं. इसमें लोग नींद को लेकर ओवर कॉन्शियस हो जाते हैं. नींद पूरी करने का उनमें जुनून सा हो जाता है. ऑर्थोसोमनिया (Orthosomnia) दो शब्दों से लेकर मिलकर बना है.

ऑर्थो का मतलब सीधा और सोमनिया का मतलब नींद होता है. इस बीमारी की चपेट में ऐसे लोग ज्यादा आते हैं, जो फिटनेस ट्रैकर की मदद से अपनी नींद को घड़ी-घड़ी ट्रैक करने की कोशिश करते रहते हैं. आइए जानते हैं ऑर्थोसोमनिया कितनी बड़ी समस्या है और इससे कैसे बच सकते हैं...

ऑर्थोसोमनिया बीमारी क्यों होती है?

2020 में एक रिसर्च में पाया गया कि एक तरफ दुनिया में नींद की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं, लोग स्मार्टफोन और वर्क प्रेशर जैसे फैक्टर्स के चलते नींद पूरी नहीं कर पा रहे हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी नींद को कंट्रोल करके उसे परफेक्ट बनाने में जुटी हैं.

इसके लिए वे हद से ज्यादा कॉन्शियस हो जाते हैं. अच्छी नींद के लिए डाइट से लेकर हर चीज करते हैं. परफेक्ट नींद के लिए नींद पैर्टन चेक करते हैं. इसके लिए स्लीप ट्रैकिंग डिवाइस, फिटनेस ट्रैकर, स्मार्टवॉच, माइक्रोफोन और एक्सेलेरोमीटर जैसे डिवाइस और स्लीप ऐप का सहारा लेते हैं.

ऑर्थोसोमनिया के क्या खतरे हैं?

नींद को ट्रैक करने के चक्कर में ज्यादातर लोग अच्छी नींद ही नहीं ले पा रहे हैं. ऐसे लोग सोने से लेकर जागने तक का पैटर्न चेक करते हैं. नींद को सही करने के लिए अच्छी नींद भी खराब कर बैठते हैं. जिसकी वजह से उन्हें कई गंभीर बीमारियां होने का खतरा बढ़ रहा है.

इसके लिए वे हद से ज्यादा कॉन्शियस हो जाते हैं. अच्छी नींद के लिए डाइट से लेकर हर चीज करते हैं. परफेक्ट नींद के लिए नींद पैर्टन चेक करते हैं. इसके लिए स्लीप ट्रैकिंग डिवाइस, फिटनेस ट्रैकर, स्मार्टवॉच, माइक्रोफोन और एक्सेलेरोमीटर जैसे डिवाइस और स्लीप ऐप का सहारा लेते हैं.

ऑर्थोसोमनिया के क्या खतरे हैं?

नींद को ट्रैक करने के चक्कर में ज्यादातर लोग अच्छी नींद ही नहीं ले पा रहे हैं. ऐसे लोग सोने से लेकर जागने तक का पैटर्न चेक करते हैं. नींद को सही करने के लिए अच्छी नींद भी खराब कर बैठते हैं. जिसकी वजह से उन्हें कई गंभीर बीमारियां होने का खतरा बढ़ रहा है.

Wednesday, 16 October 2024

अब आपके आसपास भी नहीं फटकेगा मोटापा, इस बीमारी को जड़ से ही खत्म कर देगी यह खास तकनीक

 


हालांकि, यह थेरेपी अभी शुरुआती चरण में है. लेकिन अगर यह मनुष्यों में प्रभावी साबित होती है. तो आहार संबंधी मोटापे के इलाज के रूप में इसकी बहुत संभावना है. 2022 में, दुनिया भर में 43% वयस्क अधिक वजन वाले थे. इनमें से 16% मोटापे से ग्रस्त थे। जैसा कि बहुत से लोग पहले से ही जानते होंगे. अधिक वजन और मोटापे से टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग और कुछ कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.



रिसर्च के बावजूद यह समझ में आया कि शरीर में वसा का चयापचय कैसे होता है. आंत में इसके अवशोषण को रोकने का एक प्रभावी तरीका पहचानना पहुंच से बाहर है. हालांकि, एक नए अध्ययन में इसका उत्तर हो सकता है. मौखिक नैनोकण जो वसा अवशोषण के लिए जिम्मेदार एंजाइम के उत्पादन को कम करने के लिए सीधे छोटी आंत पर काम करते हैं.


शंघाई के टोंगजी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉ. वेंटाओ शाओ और अध्ययन के लेखकों में से एक ने कहा, सालों से, शोधकर्ता वसा चयापचय का अध्ययन कर रहे हैं. लेकिन वसा अवशोषण को रोकने का एक प्रभावी तरीका खोजना मुश्किल रहा है.जबकि अधिकांश रणनीतियां आहार वसा के सेवन को कम करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं. हमारा दृष्टिकोण शरीर की वसा अवशोषण प्रक्रिया को सीधे लक्षित करता है.


एंजाइम स्टेरोल ओ-एसाइलट्रांसफेरेज़ 2 (SOAT2) है, जो SOAT2 जीन द्वारा एन्कोड किया गया है. यकृत कोशिकाओं (हेपेटोसाइट्स) और आंत की परत में अवशोषक कोशिकाओं (एंटरोसाइट्स) में विशिष्ट रूप से उपस्थित SOAT2 का, धमनियों में एथेरोस्क्लेरोसिस या प्लाक निर्माण के विकास में इसकी भूमिका के संबंध में व्यापक रूप से अध्ययन किया गया है.


यह तकनीक वसा कोशिकाओं को मारने के लिए प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों को उत्पन्न करने के लिए प्रकाश-संवेदनशील अणुओं का उपयोग करती है.




यह तकनीक सफेद वसा ऊतक को भूरे वसा ऊतक की विशेषताओं को प्राप्त करने का कारण बनती है

Tuesday, 15 October 2024

Health Benefits: खाली पेट महिलाओं को रोजाना खानी चाहिए 2 खजूर, फायदे जानकर आज से ही कर देंगे शुरू

 


खजूर प्रजनन क्षमता, ओव्यूलेशन, हार्मोन संतुलन और प्रसव प्रक्रिया में मदद कर सकता है. खजूर से मिलने वाले पराग प्रजनन क्षमता और हार्मोनल समस्याओं में भी मदद कर सकते हैं.


खजूर ब्लड सर्कुलेशन में सुधार कर सकते हैं, जो एनीमिया और कम मासिक धर्म की समस्या में मदद कर सकता है.खजूर पोषक तत्वों, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट का एक अच्छा स्रोत है, जो भ्रूण के विकास में सहायता कर सकता है और मातृ स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है.


खजूर में पोटैशियम भी अधिक होता है, जो गर्भावस्था के दौरान इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखने में मदद करता है. खजूर बवासीर के विकास के जोखिम को कम करने में भी मदद कर सकता है, जो गर्भावस्था के दौरान एक आम समस्या है.

खजूर में मैग्नीशियम की उच्च मात्रा होने के कारण पीएमएस के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है.खजूर को परिष्कृत चीनी और कृत्रिम स्वीटनर के विकल्प के रूप में प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

खजूर में आयरन, कैल्शियम और जिंक भी अधिक होता है, जो अन्य स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकता है.



वे मधुमेह और प्रीडायबिटीज वाले लोगों को भी लाभ पहुंचाते हैं क्योंकि खजूर में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो शरीर में सूजन को कम कर सकते हैं क्योंकि वे पॉलीफेनोल के साथ-साथ कई अन्य पोषक तत्वों और यौगिकों में उच्च होते हैं जो इंसुलिन प्रतिरोध में सहायता करते हैं. हालांकि, यदि आप मधुमेह रोगी हैं तो उन्हें खाने से पहले अपने डॉक्टर से पुष्टि करना उचित है.

Sleep Problem: कई बीमारियों का कारण बन सकती है नींद न आने की समस्या, आप भी हैं परेशान तो करें ये तीन काम

 


शरीर को स्वस्थ और फिट रखने के लिए अच्छी नींद लेना बहुत आवश्यक माना जाता है। ये मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार की सेहत को ठीक रखने के लिए जरूरी है। डॉक्टर बताते हैं, जिन लोगों की नींद पूरी नहीं होती है उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा रहता है।  


नींद न आने की समस्या के कई कारण हो सकते हैं। मानसिक तनाव या चिंताएं अक्सर दिमाग को इतना सक्रिय कर देती हैं कि व्यक्ति आराम से सो नहीं पाता। इसके अलावा चाय, कॉफी, सिगरेट और अन्य कैफीनयुक्त पदार्थों का सेवन करने वालों को भी नींद विकारों की दिक्कत हो सकती है।

अध्ययनों से पता चलता है कि कुछ प्रकार की क्रोनिक बीमारियों जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारियां और मानसिक रोग के शिकार लोगों की भी नींद अक्सर बाधित रहती है। 



नींद न आने की समस्या

नींद न आने की समस्या (अनिद्रा) एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को सोने में कठिनाई होती है या रात में अक्सर उसकी नींद टूट जाती है। नींद की कमी का असर दीर्घकालिक रूप से कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं (जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मानसिक विकार और अन्य क्रोनिक बीमारियां) को बढ़ाने वाली हो सकती है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, नींद की बढ़ती समस्याओं के लिए मोबाइल या कंप्यूटर जैसे स्क्रीन्स का अधिक इस्तेमाल भी माना जा सकता है। इन उपकरणों से निकलने वाली ब्लू लाइट नींद के लिए आवश्यक मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को रोकती है।

नींद में सुधार के लिए कुछ उपाय मददगार हो सकते हैं।


स्मार्टफोन और स्क्रीन से दूरी बनाएं

सोने से 1-2 घंटे पहले स्मार्टफोन, कंप्यूटर, या टेलीविजन का इस्तेमाल न करें। इन उपकरणों की ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन के स्तर को प्रभावित करती है, जिससे नींद आने में परेशानी होती है। मेलाटोनिन एक प्राकृतिक हार्मोन है जो नींद को नियंत्रित करता है। अनिद्रा के शिकार लोग डॉक्टर से सलाह लेकर इसका सप्लीमेंट ले सकते हैं। अगर नींद की समस्या किसी मानसिक विकार जैसे अवसाद या एंग्जायटी के कारण है, तो इसके लिए मनोचिकित्सक से सलाह लें। 

सोने का समय निर्धारित करें

हर दिन एक ही समय पर सोने और जागने की आदत डालें। इससे शरीर का बायोलॉजिकल क्लॉक नियमित होता है, जिससे नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है। इसके अलावा कमरे को नींद के अनुकूल बनाएं। कमरा शांत, अंधेरा वाला और ठंडा होना चाहिए। अनुकूल माहौल में अच्छी नींद मिलती है।



शारीरिक व्यायाम करें

नियमित शारीरिक व्यायाम-योग नींद की गुणवत्ता में सुधार करने में सहायक है। व्यायाम करने से शरीर को थकावट महसूस होती है, जिससे सोने में आसानी होती है। ध्यान रहे कि सोने से पहले व्यायाम न करें, क्योंकि यह शारीरिक उत्तेजना बढ़ा सकता है। ध्यान, गहरी सांस लेने की तकनीक और मांसपेशियों को आराम देने वाली एक्सरसाइज सोने से पहले करने से तनाव कम होता है और नींद में सुधार होता है।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 




Sunday, 13 October 2024

20 से 50 की उम्र के बीच दांत हो सकते हैं सेंसिटिव, जानें इसके कारण और इलाज का तरीका

 


जिस तरह शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से भोजन करना जरूरी है. उसी तरह सही समय पर दांतों की सफाई करना भी एक स्वस्थ आदत है. दांतों का ख्याल न रखने की वजह से कुछ भी गर्म या ठंडा खाते ही सनसनी महसूस होने लगती है.

इससे दांत दर्द के साथ-साथ परेशानी भी बढ़ जाती है. आइए जानते हैं दांतों की संवेदनशीलता (ओवरसेंसिटिव टीथ) के कारण और इससे राहत पाने के उपाय भी.नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, दांतों की संवेदनशीलता के मामले 10 से 30 फीसदी आबादी में पाए जाते हैं. ज्यादातर 20 से 50 साल की उम्र के लोग इस समस्या से ग्रसित होते हैं, इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है.


दांतों की अतिसंवेदनशीलता एक आम दंत समस्या है. इसके कारण दांतों में दर्द और झुनझुनी का सामना करना पड़ता है. दांतों की परत मुलायम होती है, जो इनेमल को सुरक्षित रखने में मदद करती है. लेकिन अम्लीय पेय पदार्थों और खाद्य पदार्थों का सेवन करने और माउथवॉश (माउथवॉश के साइड इफेक्ट) का अधिक इस्तेमाल करने से इनेमल को नुकसान पहुंचता है और यह खराब होने लगता है.इसका असर नसों पर दिखता है.


इनेमल दांतों को चमकदार और मजबूत बनाए रखता है. लेकिन इसके खराब होने से दांतों की समस्याएं बढ़ने लगती हैं. दांतों की संवेदनशीलता के कारण: अम्लीय खाद्य पदार्थों और बेरीज का सेवन: जो लोग बहुत अधिक अम्लीय खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों का सेवन करते हैं, उनके दांतों का रंग, चमक और परतें खराब होने लगती हैं. इससे इनेमल को नुकसान पहुंचता है और दांत संवेदनशील हो जाते हैं. इसके अलावा, अत्यधिक प्रोसेस्ड फूड का सेवन करने से भी दांतों को नुकसान पहुंचने लगता है.


एसिडिटी की समस्या: जिन लोगों को एसिडिटी की समस्या होती है, उन्हें अक्सर दांतों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. गैस्ट्राइटिस से पीड़ित लोगों की लार अम्लीय हो जाती है और पीएच लेवल प्रभावित होने लगता है. इसका असर दांतों पर दिखने लगता है, जो संवेदनशीलता को नुकसान पहुंचाता है. डीप बाइट की समस्या: डीप बाइट से दांतों की परत को नुकसान पहुंचता है. जिन मरीजों को डीप बाइट की समस्या है यानी अगर ऊपरी दांत मसूड़ों को छू रहे हैं, तो यह डीप बाइट की श्रेणी में आता है.




Saturday, 12 October 2024

चिंताजनक: एशियाई देशों में इस घातक कैंसर के मामले में भारत शीर्ष पर, ये आदत आपको भी बना सकती है शिकार


 कैंसर, वैश्विक स्तर पर बढ़ती गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, लगभग हर उम्र के लोगों में इसका खतरा देखा जा रहा है। पुरुषों में मुख्यरूप से मुंह और फेफड़े के कैंसर के मामले सबसे ज्यादा रिपोर्ट किए जाते हैं। मुंह का कैंसर तेजी से बढ़ती समस्या है, भारतीय आबादी में इसका जोखिम और भी अधिक देखा जा रहा है। भारत में इस कैंसर को लेकर सामने आ रहे आंकड़े काफी डराने वाले हैं। 

द लैंसेट ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित हालिया अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में भारत, मुंह के कैंसर के मामले में (तंबाकू और सुपारी के कारण, धुंआरहित तंबाकू उत्पाद) सबसे ऊपर है। साल 2022 में वैश्विक स्तर पर मुंह के कैंसर के 1.20 लाख से अधिक मामले सामने आए थे जिसमें से 83,400 मामले भारत से ही थे।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि मुंह के कैंसर के ज्यादातर मामले तंबाकू चबाने से होते हैं। हर साल सामने आने वाले ओरल कैंसर के 30 प्रतिशत से अधिक मामले धुआं रहित तम्बाकू के सेवन के कारण रिपोर्ट किए जाते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि ओरल कैंसर बड़े खतरे के रूप में बढ़ता देखा जा रहा है, इसके कारण साल दर साल स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ भी बढ़ गया है। 



क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

इस अध्ययन के सह-लेखकों में से एक डॉ पंकज चतुर्वेदी कहते हैं, तंबाकू-गुटखा और सुपारी मुंह के कैंसर के अलावा सबम्यूकस फाइब्रोसिस नामक बीमारी का भी खतरा बढ़ा देते हैं। दुर्भाग्य से यह हमारी युवा आबादी को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली बीमारी है जो परिवारों को भावनात्मक और आर्थिक रूप से बर्बाद कर रही है।

हमें धुंआ रहित तंबाकू और सुपारी पर नियंत्रण के लिए मौजूदा कानूनों और नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है। तंबाकू किसी भी प्रकार में हो, इससे सेहत को गंभीर क्षति होने का खतरा होता है।

 


धूम्ररहित तम्बाकू बड़ा खतरा

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ये और भी चिंताजनक है कि तंबाकू उद्योग से जुड़ी कंपनियां सेलिब्रिटीज को विज्ञापनों के लिए नियुक्त करती हैं। इन विज्ञापनों को आम जनता पर सीधा असर होता है। 

अनुमान है कि विश्वभर में 300 मिलियन (30 करोड़) लोग तम्बाकू और 600 मिलियन (60 करोड़) लोग सुपारी का सेवन करते हैं। एशियाई देशों में इसका जोखिम और भी अधिक है। मुंह के कैंसर के बढ़ते मामलों की रोकथाम के लिए इस दिशा में बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।

लक्षणों की पहचान और जांच जरूरी

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, मुंह के कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाले कारकों में तंबाकू सेवन (सिगरेट, सिगार,चबाने वाला तंबाकू और सूंघने वाली वस्तुएं) प्रमुख हैं। अत्यधिक शराब का सेवन, ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) नामक यौन संचारित वायरस के कारण भी ये कैंसर हो सकता है।

डॉक्टर कहते हैं, यदि आपके होंठ या मुंह में कोई घाव हो जो ठीक न हो रहा हो, मुंह के अंदर सफेद या लाल धब्बा हो, दांत कमजोर होते जा रहे हों, मुंह और कान में अक्सर दर्द बना रहता हो या निगलने में कठिनाई होती हो तो इस बारे में तुरंत चिकित्सक की सलाह ले लें। समय पर कैंसर का निदान हो जाने से इसका इलाज और जान बचने की संभावना काफी बढ़ जाती है। 

स्रोत और संदर्भ

Global burden of oral cancer in 2022 attributable to smokeless tobacco and areca nut consumption: a population attributable fraction analysis