Tuesday, 15 October 2024

Sleep Problem: कई बीमारियों का कारण बन सकती है नींद न आने की समस्या, आप भी हैं परेशान तो करें ये तीन काम

 


शरीर को स्वस्थ और फिट रखने के लिए अच्छी नींद लेना बहुत आवश्यक माना जाता है। ये मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार की सेहत को ठीक रखने के लिए जरूरी है। डॉक्टर बताते हैं, जिन लोगों की नींद पूरी नहीं होती है उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा रहता है।  


नींद न आने की समस्या के कई कारण हो सकते हैं। मानसिक तनाव या चिंताएं अक्सर दिमाग को इतना सक्रिय कर देती हैं कि व्यक्ति आराम से सो नहीं पाता। इसके अलावा चाय, कॉफी, सिगरेट और अन्य कैफीनयुक्त पदार्थों का सेवन करने वालों को भी नींद विकारों की दिक्कत हो सकती है।

अध्ययनों से पता चलता है कि कुछ प्रकार की क्रोनिक बीमारियों जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारियां और मानसिक रोग के शिकार लोगों की भी नींद अक्सर बाधित रहती है। 



नींद न आने की समस्या

नींद न आने की समस्या (अनिद्रा) एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को सोने में कठिनाई होती है या रात में अक्सर उसकी नींद टूट जाती है। नींद की कमी का असर दीर्घकालिक रूप से कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं (जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मानसिक विकार और अन्य क्रोनिक बीमारियां) को बढ़ाने वाली हो सकती है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, नींद की बढ़ती समस्याओं के लिए मोबाइल या कंप्यूटर जैसे स्क्रीन्स का अधिक इस्तेमाल भी माना जा सकता है। इन उपकरणों से निकलने वाली ब्लू लाइट नींद के लिए आवश्यक मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को रोकती है।

नींद में सुधार के लिए कुछ उपाय मददगार हो सकते हैं।


स्मार्टफोन और स्क्रीन से दूरी बनाएं

सोने से 1-2 घंटे पहले स्मार्टफोन, कंप्यूटर, या टेलीविजन का इस्तेमाल न करें। इन उपकरणों की ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन के स्तर को प्रभावित करती है, जिससे नींद आने में परेशानी होती है। मेलाटोनिन एक प्राकृतिक हार्मोन है जो नींद को नियंत्रित करता है। अनिद्रा के शिकार लोग डॉक्टर से सलाह लेकर इसका सप्लीमेंट ले सकते हैं। अगर नींद की समस्या किसी मानसिक विकार जैसे अवसाद या एंग्जायटी के कारण है, तो इसके लिए मनोचिकित्सक से सलाह लें। 

सोने का समय निर्धारित करें

हर दिन एक ही समय पर सोने और जागने की आदत डालें। इससे शरीर का बायोलॉजिकल क्लॉक नियमित होता है, जिससे नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है। इसके अलावा कमरे को नींद के अनुकूल बनाएं। कमरा शांत, अंधेरा वाला और ठंडा होना चाहिए। अनुकूल माहौल में अच्छी नींद मिलती है।



शारीरिक व्यायाम करें

नियमित शारीरिक व्यायाम-योग नींद की गुणवत्ता में सुधार करने में सहायक है। व्यायाम करने से शरीर को थकावट महसूस होती है, जिससे सोने में आसानी होती है। ध्यान रहे कि सोने से पहले व्यायाम न करें, क्योंकि यह शारीरिक उत्तेजना बढ़ा सकता है। ध्यान, गहरी सांस लेने की तकनीक और मांसपेशियों को आराम देने वाली एक्सरसाइज सोने से पहले करने से तनाव कम होता है और नींद में सुधार होता है।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 




Sunday, 13 October 2024

20 से 50 की उम्र के बीच दांत हो सकते हैं सेंसिटिव, जानें इसके कारण और इलाज का तरीका

 


जिस तरह शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से भोजन करना जरूरी है. उसी तरह सही समय पर दांतों की सफाई करना भी एक स्वस्थ आदत है. दांतों का ख्याल न रखने की वजह से कुछ भी गर्म या ठंडा खाते ही सनसनी महसूस होने लगती है.

इससे दांत दर्द के साथ-साथ परेशानी भी बढ़ जाती है. आइए जानते हैं दांतों की संवेदनशीलता (ओवरसेंसिटिव टीथ) के कारण और इससे राहत पाने के उपाय भी.नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, दांतों की संवेदनशीलता के मामले 10 से 30 फीसदी आबादी में पाए जाते हैं. ज्यादातर 20 से 50 साल की उम्र के लोग इस समस्या से ग्रसित होते हैं, इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है.


दांतों की अतिसंवेदनशीलता एक आम दंत समस्या है. इसके कारण दांतों में दर्द और झुनझुनी का सामना करना पड़ता है. दांतों की परत मुलायम होती है, जो इनेमल को सुरक्षित रखने में मदद करती है. लेकिन अम्लीय पेय पदार्थों और खाद्य पदार्थों का सेवन करने और माउथवॉश (माउथवॉश के साइड इफेक्ट) का अधिक इस्तेमाल करने से इनेमल को नुकसान पहुंचता है और यह खराब होने लगता है.इसका असर नसों पर दिखता है.


इनेमल दांतों को चमकदार और मजबूत बनाए रखता है. लेकिन इसके खराब होने से दांतों की समस्याएं बढ़ने लगती हैं. दांतों की संवेदनशीलता के कारण: अम्लीय खाद्य पदार्थों और बेरीज का सेवन: जो लोग बहुत अधिक अम्लीय खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों का सेवन करते हैं, उनके दांतों का रंग, चमक और परतें खराब होने लगती हैं. इससे इनेमल को नुकसान पहुंचता है और दांत संवेदनशील हो जाते हैं. इसके अलावा, अत्यधिक प्रोसेस्ड फूड का सेवन करने से भी दांतों को नुकसान पहुंचने लगता है.


एसिडिटी की समस्या: जिन लोगों को एसिडिटी की समस्या होती है, उन्हें अक्सर दांतों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. गैस्ट्राइटिस से पीड़ित लोगों की लार अम्लीय हो जाती है और पीएच लेवल प्रभावित होने लगता है. इसका असर दांतों पर दिखने लगता है, जो संवेदनशीलता को नुकसान पहुंचाता है. डीप बाइट की समस्या: डीप बाइट से दांतों की परत को नुकसान पहुंचता है. जिन मरीजों को डीप बाइट की समस्या है यानी अगर ऊपरी दांत मसूड़ों को छू रहे हैं, तो यह डीप बाइट की श्रेणी में आता है.




Saturday, 12 October 2024

चिंताजनक: एशियाई देशों में इस घातक कैंसर के मामले में भारत शीर्ष पर, ये आदत आपको भी बना सकती है शिकार


 कैंसर, वैश्विक स्तर पर बढ़ती गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, लगभग हर उम्र के लोगों में इसका खतरा देखा जा रहा है। पुरुषों में मुख्यरूप से मुंह और फेफड़े के कैंसर के मामले सबसे ज्यादा रिपोर्ट किए जाते हैं। मुंह का कैंसर तेजी से बढ़ती समस्या है, भारतीय आबादी में इसका जोखिम और भी अधिक देखा जा रहा है। भारत में इस कैंसर को लेकर सामने आ रहे आंकड़े काफी डराने वाले हैं। 

द लैंसेट ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित हालिया अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में भारत, मुंह के कैंसर के मामले में (तंबाकू और सुपारी के कारण, धुंआरहित तंबाकू उत्पाद) सबसे ऊपर है। साल 2022 में वैश्विक स्तर पर मुंह के कैंसर के 1.20 लाख से अधिक मामले सामने आए थे जिसमें से 83,400 मामले भारत से ही थे।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि मुंह के कैंसर के ज्यादातर मामले तंबाकू चबाने से होते हैं। हर साल सामने आने वाले ओरल कैंसर के 30 प्रतिशत से अधिक मामले धुआं रहित तम्बाकू के सेवन के कारण रिपोर्ट किए जाते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि ओरल कैंसर बड़े खतरे के रूप में बढ़ता देखा जा रहा है, इसके कारण साल दर साल स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ भी बढ़ गया है। 



क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

इस अध्ययन के सह-लेखकों में से एक डॉ पंकज चतुर्वेदी कहते हैं, तंबाकू-गुटखा और सुपारी मुंह के कैंसर के अलावा सबम्यूकस फाइब्रोसिस नामक बीमारी का भी खतरा बढ़ा देते हैं। दुर्भाग्य से यह हमारी युवा आबादी को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली बीमारी है जो परिवारों को भावनात्मक और आर्थिक रूप से बर्बाद कर रही है।

हमें धुंआ रहित तंबाकू और सुपारी पर नियंत्रण के लिए मौजूदा कानूनों और नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है। तंबाकू किसी भी प्रकार में हो, इससे सेहत को गंभीर क्षति होने का खतरा होता है।

 


धूम्ररहित तम्बाकू बड़ा खतरा

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ये और भी चिंताजनक है कि तंबाकू उद्योग से जुड़ी कंपनियां सेलिब्रिटीज को विज्ञापनों के लिए नियुक्त करती हैं। इन विज्ञापनों को आम जनता पर सीधा असर होता है। 

अनुमान है कि विश्वभर में 300 मिलियन (30 करोड़) लोग तम्बाकू और 600 मिलियन (60 करोड़) लोग सुपारी का सेवन करते हैं। एशियाई देशों में इसका जोखिम और भी अधिक है। मुंह के कैंसर के बढ़ते मामलों की रोकथाम के लिए इस दिशा में बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।

लक्षणों की पहचान और जांच जरूरी

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, मुंह के कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाले कारकों में तंबाकू सेवन (सिगरेट, सिगार,चबाने वाला तंबाकू और सूंघने वाली वस्तुएं) प्रमुख हैं। अत्यधिक शराब का सेवन, ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) नामक यौन संचारित वायरस के कारण भी ये कैंसर हो सकता है।

डॉक्टर कहते हैं, यदि आपके होंठ या मुंह में कोई घाव हो जो ठीक न हो रहा हो, मुंह के अंदर सफेद या लाल धब्बा हो, दांत कमजोर होते जा रहे हों, मुंह और कान में अक्सर दर्द बना रहता हो या निगलने में कठिनाई होती हो तो इस बारे में तुरंत चिकित्सक की सलाह ले लें। समय पर कैंसर का निदान हो जाने से इसका इलाज और जान बचने की संभावना काफी बढ़ जाती है। 

स्रोत और संदर्भ

Global burden of oral cancer in 2022 attributable to smokeless tobacco and areca nut consumption: a population attributable fraction analysis

Mental Health: भारतीय युवाओं में बढ़ रही हैं मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं, ज्यादातर लोगों को ये दिक्कत

 


मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं वैश्विक स्तर पर बढ़ती हुई रिपोर्ट की जा रही हैं। भारतीय लोगों के लिए भी ये बड़ी चिंता का कारण है। डेटा से पता चलता है कि भारत में युवा आबादी में मनोरोगों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, अक्तूबर 2022 में लॉन्च होने के बाद से भारत की टोल-फ्री मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन, टेली-मानस को 3.5 लाख से अधिक कॉल प्राप्त हुए हैं। इनमें से मानसिक स्वास्थ्य की अधिकांश शिकायतें नींद की गड़बड़ी से संबंधित थीं। 

गौरतलब है कि टेली मानस हेल्पलाइन, देशभर में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर परेशान लोगों को मुफ्त सहायता प्रदान करने का माध्यम है। इसपर सहायता के लिए जितने कॉल्स आ रहे हैं उनमें से ज्यादातर समस्याओं के लिए नींद में कमी को जिम्मेदार पाया जा रहा है।

टेलीमानस पर आने वाली सभी कॉल में से 14 फीसदी से अधिक में नींद से संबंधित दिक्कतों को प्रमुख कारण पाया गया है।



तनाव-चिंता विकार के भी केस

टेली मानस पर मानसिक स्वास्थ्य की सहायता के लिए आ रही कॉल्स में से मूड की गड़बड़ी की 14% शिकायतें, तनाव की 11% और चिंता विकार के करीब 9% केस सामने आए हैं। करीब 3 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें मानसिक स्वास्थ्य विकारों के कारण आत्मघाती विचार आ रहे हैं। 

हेल्पलाइन पर कॉल करने वाले पुरुषों की संख्या काफी अधिक है, जो कुल कॉल का 56% है। इनमें से ज़्यादातर कॉल करने वाले (72%) 18 से 45 आयु वर्ग के हैं, जो दर्शाता है कि युवा आबादी में मानसिक स्वास्थ्य विकारों के मामले काफी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। 


वीडियो कॉल पर डॉक्टर देंगे सहायता

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर केंद्र सरकार ने तीन राज्यों से वीडियो कॉल पर डॉक्टर की सलाह लेने की सुविधा शुरू की। बृहस्पतिवार को दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने टेली मानस मोबाइल एप का अपडेट वर्जन लॉन्च किया। अभी तक इसमें ऑडियो की सेवा शामिल थी लेकिन अब वीडियो को भी इसमें शामिल किया है।


केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव आराधना पटनायक ने बताया कि अभी कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर और तमिलनाडु में मोबाइल एप सेवा शुरू की जा रही है। 

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली


Saturday, 5 October 2024

6 benefits of consuming olive oil and the correct ways to use it

 


There’s a lot of noise around the right kind of oil one must use to ensure they get the nutritional benefits of the food that is cooked in it without the ill effects of using too much oil. When it comes to oils, olive oil emerges to be the most stable and reliable oil option for cooking. Olive oil is celebrated as one of the healthiest oils globally, due to its remarkable fat profile and plays a crucial role in the Mediterranean diet.

Comprising about 75% mono-unsaturated fatty acids (MUFA), it may support heart health by raising HDL (the good cholesterol) and lowering LDL (the bad cholesterol). Additionally, it is rich in antioxidant like polyphenols, which may help reduce inflammation, may help regulate blood sugar level and may help promote gut health. While presence of Vitamin E may help keep skin and hair healthy.
Drishya Ale, Dietitian, Paras Health Gurugram said, “Olive oil is a powerhouse of health benefits and must be present in every kitchen. Firstly, olive oil is highly beneficial for heart health because of its anti-inflammatory properties and the fact that it improves blood vessel functions, thereby reducing the risk of heart disease. Apart from that, olive oil helps support bone health as it increases bone density and prevents their breakdown. Its high content of monounsaturated fats, along with vitamins E and K enhances brain health, improving memory and cognitive functions. Antioxidants and anti-inflammatory compounds present in olive oil ensure that there is prevention of cancer through reduction of oxidative stress. It may also help in controlling the blood sugar level as it may lower the glucose level when taken. Olive oil also promotes good skin and hair health and helps combat dryness.

Olive oil is a versatile, nutritious, and flavourful ingredient that deserves a place in every kitchen. To make the most out of these benefits, use olive oil as a base in making salad dressings with a mix of vinegar or lemon juice, or regularly add it to your cooking for a healthy pick-me-up. To ensure, you’re getting all the nutritional goodness of olive oil, it’s important to understand the different types of olive oils available. Many people don’t know that there are 3 types of olive oils: Extra virgin olive oil, olive oil for Indian cooking, and classic olive oil.

According to Vishal Gupta, managing director, Borges India, “There are also many myths surrounding olive oil. For instance, extra virgin olive oil isn’t limited to salad dressings; it can be used for low-heat cooking, such as sautéing, grilling, and roasting, and makes a great butter substitute on toast. Olive oil for Indian cooking is ideal for everyday cooking, as its neutral flavour and high smoke point ensures that the flavour of your food remains intact & you can make all types of dishes, for example it is perfect for tadkas, preparing curries and sabzis or deep frying puris & Koftas. Classic olive oil is perfect for specialty dishes like pizza and pasta, offering a rich flavour and high smoke point.”

Simrat Kathuria the CEO and Head Dietitian at The Diet Xperts said, “The health and wellness sector lauds olive oil, sometimes known as "liquid gold," for its many health advantages and robust flavor. Because of its adaptability, it is a common ingredient in kitchens all over the world, where chefs and nutritionists are always coming up with new ways to include it in everyday meals. Olive oil is more than just a cooking oil; it's a nutritional powerhouse that can do everything from strengthen heart health to improve brain function. Health-conscious people love it for its anti-inflammatory qualities, antioxidants, and potential to help with digestion and skin. Olive oil's extensive use is revolutionizing healthy cooking.

Heart health

Improving cardiovascular health is one of olive oil's most well-known advantages. Olive oil, which is rich in monounsaturated fats, lowers bad cholesterol (LDL) while raising good cholesterol (HDL), which lowers the risk of heart disease.

Packed with antioxidants

Antioxidants abound in extra virgin olive oil, especially polyphenols. These potent substances aid in the fight against inflammation and oxidative stress, both of which are connected to long-term illnesses including diabetes and cancer.

Properties that reduce inflammation

Oleocanthal, a substance found in olive oil, is a molecule that resembles ibuprofen's anti-inflammatory properties. This organic characteristic aids in the reduction of inflammation, which is crucial in averting a number of illnesses, including Alzheimer's and arthritis.


Supports brain health



Frequent use of olive oil has been linked to enhanced cognitive performance and a lower risk of neurodegenerative illnesses like Alzheimer's.

Promotes Skin Health

Because olive oil has a high vitamin E level, it protects the skin, provides moisture, and lessens the look of fine lines and wrinkles.

Aids in digestion



By promoting bile production, relieving constipation, and enhancing nutritional absorption, olive oil aids with digestion.



The use of olive oil must be done appropriately to get these benefits to the fullest. Steer clear of overheating it when cooking because high heat might destroy some of the nutrients. To retain the full nutritious content of extra virgin olive oil, drizzle it over cooked vegetables, salads, or as a finishing touch.

Friday, 4 October 2024

This is what happens to the body when we get extremely angry


 

There must be no retelling that anger is not good for the body. If experts are to go by, being angry not only makes the blood boil, but it may also impact physical and mental health. Addressing the same, Dr Robert G DeBease, shared on X, “It takes 7 hours for your cortisol levels to return to normal after an extreme bout of anger, leaving you with suppressed digestion, reduced brain function, detoxification, and thyroid dysfunction, as well as blood sugar dysregulation.”

Is it true? Let’s find out.

It is quite normal to experience anger after a stressful or frustrating event. “But being extremely angry not only harms your overall mood but also your physical health,” said Dr Sonal Anand, psychiatrist, Wockhardt Hospitals Mira Road.

When you get extremely angry, your body triggers a “fight or flight” response, an ancient survival mechanism, said Dr Rahul Rai Kakkar, consultant, psychiatry and clinical psychology Narayana Hospital, Gurugram, adding that this response is controlled by the autonomic nervous system, specifically the sympathetic branch.


Here’s what happens

First, the brain detects a threat, and the amygdala signals the hypothalamus to release stress hormones like adrenaline and cortisol. Dr Kakkar said these hormones increase the heart rate and blood pressure, pumping more blood to your muscles to prepare you for action. “Breathing becomes faster, delivering more oxygen to your body. Blood sugar levels also rise to provide a quick source of energy,” said Dr Kakkar.

Anger can cause your muscles to tense, especially in the neck, shoulders, and jaw, which is why people often feel stiff or clenched when furious. “Your digestion slows down, and you may even feel nauseous or get an upset stomach due to reduced blood flow to the digestive system,” said Dr Kakkar.

Prolonged, intense anger can be harmful. According to Dr Kakkar, over time, “frequent bouts of rage can increase the risk of heart disease, weaken the immune system, and contribute to anxiety or depression”. Dr Anand seconded Dr Kakkar and shared that anger can create feelings of frustration, irritation, guilt, agitation, sadness, anger, and overthinking.

“This can take a heavy toll on one’s mental health resulting in depression, stress, and anxiety. You may find it difficult to concentrate on a particular thing or think clearly. This is why it is crucial to manage your anger levels and stay calm amidst stressful situations,” said Dr Anand.

Learning to manage anger through techniques like deep breathing or mindfulness can help mitigate these physical effects,  said Dr Kakkar.

DISCLAIMER: This article is based on information from the public domain and/or the experts we spoke to. Always consult your health practitioner before starting any routine.

Indian Express: New Delhi | October 2, 2024 12:30 IST


A magic pill to control blood sugar spikes? 40-minute yoga can reduce diabetes risk, says study

 


A 40-minute yoga practice every day can reduce your risk of getting diabetes by nearly 40 per cent, showing better results than lifestyle intervention or drugs alone could achieve, according to a recently published study from five centres in India.

The study looked at whether yoga could prevent progression to Type 2 diabetes among individuals who were already diagnosed with pre-diabetes, a person with higher than normal blood glucose levels but not enough to be considered to have diabetes. There are an estimated 101 million people living with diabetes in the country, with another 136 million living with pre-diabetes, most of whom are likely to progress to diabetes without substantial lifestyle changes.

Dr SV Madhu, the first author of the study and professor in the department of endocrinology at Delhi’s GTB hospital, said: “We were able to demonstrate that yoga was much more effective at reducing the risk of Type 2 diabetes as compared to lifestyle changes alone. In fact, the gains are much more even when compared to lifestyle intervention and drugs shown in other studies. While determining the mechanism of action was not the purpose of the study, it is hypothesised that yoga has additional benefit as it can lower chronic psychological stress. It is also thought to be an immune modulator that can reduce the inflammation and oxidative stress, resulting in lower risk for diabetes.”

What is the advice for healthy adults?

Dr Madhu says those who have a higher risk of developing diabetes — such as people with family history or those who are obese — are likely to reap the benefits of yoga. “It is suggested that they practice yoga for 40 minutes every day to keep diabetes at bay,” he adds.

Will yoga help people with diabetes?

While the current study does not demonstrate the effect of yoga on those who already have diabetes, Dr Madhu says that it is likely to help them as well. “Other short-term studies on impact of yoga on diabetes have already shown reduction in blood glucose levels, so it is likely that yoga can help people with diabetes keep their sugar levels in check,” he says.

Why is the study important?

Dr Madhu explains that the study is key evidence in favour of yoga. “Our study is a proper randomised control trial with nearly 500 participants in both groups — yoga along with lifestyle intervention and lifestyle intervention alone. The study participants have also been followed up for a period of three years,” he says, clarifying that other evidence so far has been from smaller studies with no control groups. He also explains that the evidence from previous studies have shown a much lower risk reduction — between 28 per cent and 32 per cent — with lifestyle interventions and even medication to keep blood sugar levels in check.