Friday, 30 November 2018

अमेरिका की तरह भारत में भी जंक फूड के कारण लोग हो रहे डायबिटीज का शिकार : डॉ. सुभाष चंद्रा

जयपुर में नेत्र चिकित्सकों के इस सम्मेलन में पूरे देश से तकरीबन 650 नेत्र चिकित्सक और विदेशों से लगभग 30 सदस्य शामिल हो रहे हैं.


देश में डायबिटीज के मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. इसी के चलते ज्यादातर लोगों को आंखों से जुड़ी बीमारी अपनी जद में ले रही है. इसी विषय पर बातचीत और जागरुकता फैलाने के लिए जयपुर में नेत्र चिकित्सकों की VRSI की कॉन्फ्रेंस आयोजित की जा रही है. इसके शुभारम्भ के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर राज्यसभा सांसद डॉ सुभाष चंद्रा इस कार्यक्रम में पहुंचे. नेत्र चिकित्सकों के इस सम्मेलन में पूरे भारत से तकरीबन 650 नेत्र चिकित्सक और विदेशों से लगभग 30 सदस्य शामिल हो रहे हैं. सामान्य बोलचाल में इन चिकित्सकों को पर्दा रोग विशेषज्ञ कहा जाता है. यह वे चिकित्सक हैं जो आंखों के अति महत्वपूर्ण और भाग, दृष्टि से संबंधित बीमारियों का इलाज करते हैं.

इस मौके पर राज्यसभा सांसद डॉ. सुभाष चंद्रा ने बताया कि जब भी उन्हें कोई दिक्कत होती है और वह  दवाई लेते हैं तो उन्हें कभी भी दवाइयों का नाम याद नहीं रहता. यही मरीज और डॉक्टर के बीच एक विश्वास का रिश्ता होता है. डॉ. चंद्रा ने कहा कि ये चिंता की बात है कि देश मे नेत्र चिकित्सकों की कमी है. अमेरिका की तरह भारत में भी लोग जंक फूड खा रहे हैं और डायबिटीज का शिकार हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम बीमारियों को लेकर तो बात करते हैं,  लेकिन बेहतर लाइफस्टाइल को लेकर बात नहीं करते.

डॉ. सुभाष चंद्रा से जब चिकित्सकों ने हेल्थ चैनल को लेकर पूछा तो उन्होंने बताया कि भारत में तो नहीं, लेकिन अमेरिका में ज़ी लिविंग के नाम से इस तरह का प्रयोग किया जा रहा है. योगा दिवस पर वहां यो 1 नाम से वेलनेस सेंटर की शुरुआत की गई है, जहां योगा, आयुर्वेद को लेकर बहुत कुछ प्रयोग किये जा रहे हैं, जिसके जरिये लोग बेहतर लाइफस्टाइल जी सकें और स्वस्थ्य रहें. उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद डॉक्टर्स से अपील करते हुए कहा कि जिस मुल्क में चिकित्सकों को भगवान का दर्जा दिया जाता हो वहां के चिकित्सकों को लोगों से बेहतर लाइफ स्टाइल जीने की अपील करनी चाहिए.

थूक, लार, कपड़े से फैलती है ये बीमारी, WHO ने बताया दूसरी सबसे बड़ी महामारी

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कांगो में फैली इबोला बीमारी अब तक के इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी महामारी है. कुछ साल पहले फैली ये महामारी पश्चिमी अफ्रीका में हजारों लोगों की जान ले चुकी है.

जोहान्सबर्ग : विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कांगो में फैली इबोला बीमारी अब तक के इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी महामारी है. कुछ साल पहले फैली ये महामारी पश्चिमी अफ्रीका में हजारों लोगों की जान ले चुकी है.


426 पहुंची मामलों की संख्या
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपातकालीन मामलों के प्रमुख डॉ. पीटर सलामा ने गुरुवार को इसे मुश्किल की घड़ी बताया. कांगो के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इबोला के मामलों की संख्या 426 पहुंच गई है. इनमें 379 मामलों की पुष्टि कर दी गई है जबकि 47 लोगों के इसकी चपेट में आने का संदेह है.

रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र मिशन कर रहा काम
विद्रोही समूहों के हमले और स्थानीय लोगों के विरोध के चलते स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को इबोला से निपटने के लिए अब तक की गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इबोला की रोकथाम के लिए कई कोशिशों को संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के साथ अंजाम दिया जा रहा है, लेकिन रोजाना होती गोलीबारी से इन प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो रही है.

क्या है इबोला के लक्ष्ण
इबोला एक संक्रामक और घातक बीमारी है जो विषाणु के जरिए फैलती है. तेज बुखार और गंभीर आंतरिक रक्तस्राव इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं. यह इबोला से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है. संक्रमित व्यक्ति के कपड़े, थूक, लार आदि से यह बीमारी तेजी से फैलती है.

क्या करें, क्या ना करें...
इबालो के लक्ष्ण जैसे कि सिरदर्द, बुखार, दर्द, डायरिया, आंखों में जलन और/अथवा उल्‍टी की शिकायत हो तो तुरंत डॉक्टरों की सलाह लेनी चाहिए. विशेषज्ञों का मानना है कि इबालो का सही समय पर पता चलने पर और मरीज को उपचार मिलने पर इसे जड़ से खत्म किया जा सकता है. अगर आपके परिवार में किसी शख्स को यह बीमारी हो जाती है तो उससे थोड़ी सी दूरी बनाकर ही रखिए. जहां तक संभव हो मुंह पर मास्क, हाथों में दस्ताने पहनने के बाद ही मरीज के पास जाएं.

कैंसर के इलाज में बेहतर साबित हो सकती है नई नैनो तकनीक : अध्ययन

जर्नल्स ऑफ एडवांस्ड मैटेरियल्स’ में प्रकाशित अनुसंधान रिपोर्ट के मुताबिक इस रक्त जांच में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का पता लगाने और निगरानी करने की क्षमता है.


लंदन : देश-दुनिया में कैंसर जैसी गंभीर समस्या से जूझ रहे लोगोंं के लिए राहत की खबर है. वैज्ञानिकों ने कैंसर पीड़ित लोगों के लिए ऐसा डिवाइस विकसित किया है, जिससे मरीज के खून की जांच होगी और सूक्ष्म कणों का इस्तेमाल कर कैंसर का पता लगाया जा सकेगा. खून के विश्लेषण के लिए ब्रिटेन के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई इस तकनीक से अब तक अज्ञात रहे अणुओं को पहचानने में मदद मिलेगी.



‘जर्नल्स ऑफ एडवांस्ड मैटेरियल्स’ में प्रकाशित अनुसंधान रिपोर्ट के मुताबिक, इस खून की जांच में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का पता लगाने और निगरानी करने की क्षमता है. किसी बीमारी की प्रतिक्रिया के रूप में रक्त प्रवाह में छोड़े गए मार्करों का पता लगाना अक्सर मुश्किल होता है क्योंकि वे बहुत छोटे होते हैं और संख्या में बहुत कम होते हैं.

अध्ययन से पता चला है कि छोटे अणु - विशेष रूप से प्रोटीन - कैंसर रोगियों के रक्त परिसंचरण में सूक्ष्म कणों के साथ चिपके रहते हैं. मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से मारिलेना हडजिडेमेट्रियो ने कहा, "कई रक्त जांचों में अस्पष्टता एक समस्या है जो या तो रोग का पता लगाने में विफल रहती हैं या झूठी सकारात्मक और झूठी नकारात्मक जानकारी देती हैं." उन्होंने कहा कि यह नई तकनीक बड़ा बदलाव लाने वाली साबित हो सकती है.

आखिरकार क्या है कैंसर
कैंसर एक जानलेवा बीमारी है. कैंसर के जानलेवा होने का मुख्य कारण ये है कि मरीज को इसके लक्ष्णों का बहुत देरी में पता चलता है, जिसके कारण यह गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है. कुछ मामलों में कैंसर का सही समय पर पता चलने पर इलाज संभव है, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह इंसान की जान ले लेती है.

ये हैं कैंसर की अवस्थाएं

- डॉक्टरों के मुताबिक पहली और दूसरी अवस्था में किसी भी इंसान में कैंसर का ट्यूमर छोटा होता है. इस ट्यूमर के टिश्यूज की गहराई का सही समय पर पता चलने पर इसका इलाज संभव है.

- तीसरी अवस्था में शरीर में कैंसर का ट्यूमर विकसित हो चुका होता है और इसके शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने की संभावना 100फीसदी तक रहती है.

- चौथी अवस्था कैंसर की आखिरी अवस्था होती है. इसमें कैंसर अपने शुरुआती हिस्से से अन्य अंगों में फैल जाता है. इसे विकसित या मैटास्टेटिक कैंसर कहा जाता है. इस अवस्था में इलाज और देखभाल मिलने के बावजूद मरीज की मौत हो जाती है.

मोटापा कम करना चाहते हैं! अपनाएं ये 7 हेल्दी आदतें, 15 दिन में दिखेगा फर्क

 नई दिल्ली: मोटापा आपकी पर्सनालिटी पर खराब असर तो डालता ही है, कई रोगों को दावत भी देता है. इसमें डायबिटीज, हृदय रोग प्रमुख हैं. समय पर खाना न खाना, अनियमित जीवनशैली इसको बढ़ावा देती है. अगर आप मोटापा कम करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी जीवनशैली में बदलाव कर लें. नियमित समय पर जगना, योगा, समय पर खाना जरूरी शामिल कर लें. आइए ऐसी ही 9 हेल्दी आदत पर नजर डाल लेते हैं:

1. फाइबरयुक्त भोजन करें
फाइबर हमारे भोजन का अहम हिस्‍सा है. फाइबर से शरीर को न केवल ऊर्जा मिलती है बल्कि यह इंसुलिन के स्तर को भी कम करता है. आपको रोजाना 25-35 ग्राम फाइबर एक दिन में लेना चाहिए. इसलिए अपने आहार में उच्च फाइबरयुक्त वाली चीजें शामिल करें. इससे कोलेस्ट्रॉल भी नियंत्रित होता है. अंकुरित अनाज, चोकर, फल व सब्जियां, दाल व बींस में फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

2. प्रोटीन और सब्जियों की मात्रा बढ़ाएं
प्रोटीन और सब्जियां शरीर के वसा को कम करते हैं, खास करके उस समय भी जब आप व्यायाम नहीं करते. प्रोटीन हमारे शरीर के विकास और स्वास्थ्य के लिए जरूरी होता है. बिना प्रोटीन के त्वचा, रक्त, मांसपेशियों, और हड्डियों की कोशिकाओं का विकास नहीं हो सकता. प्रोटीन-युक्त भोजन पर्याप्त मात्रा में लेने से हमारे शरीर का मेटाबोलिज्म ठीक रहता है. शरीर में ऊर्जा बनी रहती है, और ब्लड सुगर का स्तर नियंत्रण में रहता है. मटर, दाल, राजमा, बीन्स, पनीर, दूध, अंडा में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है. इन्हें अपने आहार में जरूर शामिल कर लें.

3. कम कॉर्बोहाइड्रेट वाला भोजन लें
कार्बोहाइड्रेट शरीर को शक्ति देने का प्रमुख स्रोत होते हैं लेकिन इनकी अधिकता कई जानलेवा रोगों का कारण भी बन सकती है. डायबिटीज इसमें से प्रमुख है. कम कार्बोहाइड्रेट वाला आहार मोटापा घटाने में बहुत मददगार होता है. कम कार्बोहाइड्रेट का मतलब आहार में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होना है. हमें ऐसे खाद्य पदार्थ लेने चाहिए जिसमें प्रोटीन ज्यादा हो, कार्ब की मात्रा कम हो. पनीर, अंकुरित अनाज, दूध, सोयाबीन ऐसे ही पदार्थ है जिन्हें अपनी डाइट में जरूर लें. कम पोषण वाले आहर जैसे पास्ता, ब्रेड, चावल, आलू या तले खाद्य पदार्थ का सेवन कम से कम करें.

4. अपना डाइट चार्ट जरूर बनाएं
अगर आप खुद को फिट रखना चाहते हैं और मोटापा से छुटकारा पाना चाहते हैं तो अपना डाइट चार्ट जरूर बनाएं और उसका ईमानदारी से पालन करें. डाइट चार्ट में हेल्दी आहार शामिल करें. यह भी तय करें कि आप उतनी ही कैलोरी का आहार लेंगे, जितनी आपके शरीर को जरूरत है. सुबह उठकर पानी का सेवन करें, नाश्ते में अंडे, उबली सब्जियां, चुकंदर ले सकते हैं. नाश्ते के 3 घंटे बाद कोई पेय पदार्थ लें. दोपहर के भोजन पोषणयुक्त होना चाहिए ताकि आपका वजन नियंत्रण में रहे. स्नैक्स और रात के खाना भी डाइट चार्ट के अनुसार लें.
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5. प्रचुर मात्रा में पानी पिएं
पानी आपके शरीर के माध्यम से पोषक तत्व देता है. इसलिए अगर आप फिट रहना चाहते हैं तो प्रचुर मात्रा में पानी पिएं. फिट रहने के लिए एक दिन में कम से कम डेढ़ से तीन लीटर पानी पिएं. हाई कैलोरी ड्रिंक्स मसलन सोडा, जूस का सेवन कम करें लेकिन चाय या कॉफी बिना क्रीमर के ले सकते हैं.

6. रोज तीन मिनट दौड़ें
रोजाना तीन मिनट दौड़ने से भी मोटापा कम करने में मदद मिलेगी. तेजी से पैदल चलने से आपका वजन तेजी से कम होता है. अगर आपने इसे 15 दिन तक फॉलो करें तो आपको उसका असर जरूर दिखाई देगा. पैदल चलने की आदत डाल लें. लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों से जाएं. साइक्लिंग भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है. योगा करना भी फायदेमंद साबित होगा.

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7. भरपूर नींद लें
शरीर में वसा को कम करने की कई प्रक्रियाएं उस समय होती हैं, जब आप सो रहे होते हैं. इसलिए 6-8 घंटे गहरी नींद लें. एक नए अध्ययन के मुताबिक, कम सोने से वजन बढ़ सकता है. उसकी एक वजह तो यह है कि जगे रहने से भूख भी लगती है, बल्कि पाचन क्रिया धीमा होने से कैलरी खर्च होने की रफ्तार घट जाती है, शरीर को कम ऊर्जा की जरूरत होती है.






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Thursday, 29 November 2018

पोलियो वैक्सीनेशन की दिशा में बड़ा कदम, ऐसे जड़ से खत्म हो सकती है बीमारी!

शोधकर्ताओं ने कहा कि चूहों पर परीक्षण करने पर निष्कर्ष निकला कि यह नई दवाई पोलियो के विषाणु से पूरी तरह रक्षा करती है.


नई दिल्ली : वैज्ञानिकों ने पोलियो की एक नई दवाई बनाई है जिसे फ्रिज में रखने की जरूरत नहीं है और इसे दुनियाभर में कहीं भी उपयोग किया जा सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि पोलियो के शिकार मुख्य रूप से पांच साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना (यूएससी) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई इंजेक्शन के माध्यम से दी जाने वाली दवाई पाउडर के रूप में जमी हुई और सूखी है और इसे सामान्य तापमान पर चार सप्ताह तक रखा जा सकता है जिसे बाद में रिहाइड्रेट भी किया जा सकता है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि चूहों पर परीक्षण करने पर निष्कर्ष निकला कि यह नई दवाई पोलियो के विषाणु से पूरी तरह रक्षा करती है.यूएससी के के स्कूल ऑफ मेडीसिन में मुख्य शोधकर्ता वू-जिन शिन ने कहा, "स्थिरीकरण कोई रॉकेट विज्ञान नहीं है इसलिए ज्यादातर वैज्ञानिक इस क्षेत्र में ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं."


शिन ने कहा, "हालांकि, किसी दवाई या टीका के शानदार होने से तब तक फर्क नहीं पड़ता जब तक एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में वह ठीक न हो." यह शोध एनबायो में प्रकाशित हुआ है.


वैज्ञानिकों ने सूखा कर नमी खत्म करके चेचक, टाईफाइड और मेनिंगोकोकल बीमारियों के लिए सामान्य तापमान में स्थिर रहने वाले टीके बनाए, लेकिन वैज्ञानिक पोलियो के लिए ऐसा टीका नहीं बना सके जो जमाने-सुखाने के बाद दोबारा नम मौसम में प्रभावशाली बनी रह सके.

(इनपुटः आईएएनएस)
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Wednesday, 28 November 2018

क्या आप डायबिटिक हैं? अपने दिन की शुरुआत करें 3 तरह के डायबिटिक फ्रेंडली डिशेस से

अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन (American Diabetes Association) के मुताबिक यह आदत बना सकती है आपको ज्यादा स्वस्थ, आइए जानतेे हैं क्या हैंं... 

नई दिल्ली: किसी ने सच ही कहा है कि ब्रेकफास्‍ट राजा की तरह, लंच राजकुमार की तरह और डिनर गरीब की तरह करना चाहिए. ये काफी हद तक सही भी है, क्‍योंकि नाश्ता हमारे दिन का सबसे अहम हिस्सा है. जो कि हमें पूरे दिन काम करने की ताकत और स्फूर्ति देता है. डिनर के बाद से रात भर में हमारी बॉडी को फास्टिंग मोड से बाहर लाने के लिए नाश्ता बेहद जरूरी है. अगर आप डायबिटिक हैं तो आपका नाश्ता आपको बड़ी मुसीबतों से बचा सकता है. आज हम डायबिटीज से मुकाबला करने वाली ऐसी कुछ टेस्टी डिशेज का खजाना आपको बताने जा रहे हैं.

रात भर की भूख के बाद दिन की शुरुआत करने के लिए हमें काफी ऊर्जा की जरुरत पड़ती है जो सुबह के नाश्ते से पूरी होती है. इसलिए ये भी जरूरी है कि हमारा नाश्ता टेस्टी के साथ हेल्दी भी हो. अगर आप डायबिटिक हैं तो आपके लिए ये बात और भी जरुरी हो जाती है. क्‍योंकि नाश्ते में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (glycaemic index) वाले खाने से शरीर में ब्‍लड शुगर लेवल संतुलित रखने में मदद मिलती है.

अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन (American Diabetes Association) के मुताबिक नाश्ते में पीनट बटर या आलमंड (बादाम) बटर खाने से शरीर में प्रोटीन (Protein) और कार्बोहाईड्रेट (Carbohydrate) की मात्रा संतुलित रहेगी. तो फिर देर किस बात की, आइए जानते हैं कि कैसे हम अपनी सुबह को बना सकते हैं लाजवाब.

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फोटो साभार : @FoodFlicker - Twitter

बनाना ओट ब्रेड (Banana Oat Bread)

आम तौर पर ब्रेड को नाश्ते का प्रधान माना जाता है और कई घरों में इसका हर रोज सुबह नाश्ते में इस्तेमाल भी होता है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि ज्यादातर ब्रेड मैदा से बनी होती हैं. जिसमें कार्ब्स तो बहुत होता ही है, साथ ही उसमें फाइबर और बाकी जरूरी पोषक तत्वों की भी कमी होती है. जो कि ब्लड शुगर लेवल के लिए ठीक नहीं है. इसलिए अब केले और ओट ब्रेड को अपनी डाइट में शामिल कर एक स्वस्थ दिन की शुरुआत करें. इस मील की खास बात है इसमें मौजूद फाइबर, प्रोटीन और हेलदी फैट जो शरीर को जादा से जादा उर्जा देने का काम करते हैं.

पालक पेनकेक्स(Spinach Pancakes)
ये मील उन सब्जियों से बनी है जो कि शरीर के भीतर मौजूद पानी में आसानी से घुल जाती है जिससे ब्लड शुगर लेवल पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता. इस मील की सामग्री में गेहूं का आंटा, दूध, दही, मशरुम और पालक का इस्तेमाल होता है. पालक इस मील में डायबिटिक लोगो के लिए सबसे फायदेमंद सब्जी है क्‍योंकि यह मील फाइबर और प्रोटीन से भरपूर होती है.

फोटो साभाार : @EeYuva - Twitter

जई की इडली (Oats Idli)
ये मील हाई ब्लड प्रेशर(high blood pressure) वाले लोगों के लिए सबसे अच्छे फूड्स में से है जिसे आप अपनी हाइपरटेंशन डाइट(hypertension diet) में भी शामिल कर सकते हैं. यह स्वादिष्ट, हलकी और मुलायम इडली जई(oats) से बनाई जाती है जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी है. जई फाइबर से भरपूर होती है जो कि ब्लड शुगर लेवल को बनाए रखने में एक अहम् भूमिका निभाती है.

सावधान! वायु प्रदूषण बन रहा है कैंसर का कारण, रिसर्च में हुआ खुलासा

2013 में 'इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी)' ने बाहरी वायु प्रदूषण को कैंसर का प्रमुख कारण माना था. प्रदूषण इसलिए, कैंसरकारी माना जाता है, क्योंकि यह धूम्रपान और मोटापे की तरह प्रत्यक्ष रूप से कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है. यह भी महत्वपूर्ण है कि वायु प्रदूषण सभी को प्रभावित करता है.

नई दिल्ली: वायु प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर के परस्पर संबंध के बारे में दशकों से जानकारी है. विज्ञान ने यह साबित किया है कि वायु प्रदूषण कैंसर के जोखिम को कई गुना बढ़ाता है और अत्यधिक वायु प्रदूषण फेफड़े के अलावा दूसरे अन्य तरह के कैंसर का कारण बन सकता है. 2013 में 'इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी)' ने बाहरी वायु प्रदूषण को कैंसर का प्रमुख कारण माना था. प्रदूषण इसलिए, कैंसरकारी माना जाता है, क्योंकि यह धूम्रपान और मोटापे की तरह प्रत्यक्ष रूप से कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है. यह भी महत्वपूर्ण है कि वायु प्रदूषण सभी को प्रभावित करता है.

शोध से यह सामने आया है कि हवा में मौजूद धूल के महीन कण जिन्हें 'पार्टिकुलेट मैटर' या पीएम कहा जाता है, वायु प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा बनते हैं. सबसे महीन आकार का कण, जो कि एक मीटर के 25 लाखवें हिस्से से भी छोटा होता है. प्रदूषण की वजह से होने वाले फेफड़ों के कैंसर की प्रमुख वजह है. अनेक अनुसंधानों और मैटा एनेलिसिस से यह साफ हो गया है कि वायु में पीएम की मात्रा 2.5 से अधिक होने के साथ ही फेफड़ों के कैंसर का जोखिम भी बढ़ जाता है.

मैक्स हेल्थकेयर के ओंकोलॉजी विभाग में प्रींसिपल कंस्लटेंट डॉ. गगन सैनी ने कहा कि पीएम 2.5 से होने वाले नुकसान का प्रमाण फ्री रैडिकल, मैटल और ऑर्गेनिक कोंपोनेंट के रूप में दिखाई देता है. ये फेफड़ों के जरिए आसानी से हमारे रक्त में घुलकर फेफड़ों की कोशिकाओं को क्षति पहुंचाने के अलावा उन्हें ऑक्सीडाइज भी करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शरीर को नुकसान पहुंचता है. पीएम 2.5 सतह में आयरन, कॉपर, जिंक, मैंगनीज तथा अन्य धात्विक पदार्थ और नुकसानकारी पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन एवं लिपोपॉलीसैकराइड आदि शामिल होते हैं.

डॉ. सैनी ने कहा, ये पदार्थ फेफड़ों में फ्री रैडिकल बनने की प्रक्रिया को और बढ़ा सकते हैं तथा स्वस्थ कोशिकाओं में मौजूद डीएनए के लिए भी नुकसान दायक होते हैं. पीएम 2.5 शरीर में इफ्लेमेशन का कारण भी होता है. इंफ्लेमेशन दरअसल, रोजमर्रा के संक्रमणों से निपटने की शरीर की प्रक्रिया है लेकिन पीएम 2.5 इसे अस्वस्थकर तरीके से बढ़ावा देती है और केमिकल एक्टीवेशन बढ़ जाता है. यह कोशिकाओं में असामान्य तरीके से विभाजन कर कैंसर का शुरूआती कारण बनता है.

फेफड़ों के कैंसर संबंधी आंकड़ों के अध्ययन से कैंसर के 80,000 नए मामले सामने आए हैं. इनमें धूम्रपान नहीं करने वाले भी शामिल हैं और ऐसे लोगों में कैंसर के मामले 30 से 40 फीसदी तक बढ़े हैं. इसके अलावा, मोटापा या मद्यपान भी कारण हो सकता है, लेकिन सबसे अधिक जोखिम वायु प्रदूषण से है.

डॉ. सैनी का कहना है कि दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में फेफड़ों के मामले 2013-14 में 940 से दोगुने बढ़कर 2015-16 में 2,082 तक जा पहुंचे हैं, जो कि शहर मे वायु प्रदूषण में वृद्धि का सूचक है. धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर के मरीजों में 30 से 40 वर्ष की आयुवर्ग के युवा, अधिकतर महिलाएं और साथ ही एडवांस कैंसर से ग्रस्त धुम्रपान न करने वाले लोग शामिल हैं.

डॉक्टर सैनी ने कहा कि मैं अपने अनुभव से यह कह सकता हूं कि फेफड़ों के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और मैं लोगों से इन मामलों की अनदेखी नहीं करने का अनुरोध करता हूं. साथ ही, यह भी सलाह देता हूं कि वे इसकी वजह से सेहत के लिए पैदा होने वाले खतरों से बचाव के लिए तत्काल सावधानी बरतें.

वायु प्रदूषण न सिर्फ फेफड़ों के कैंसर से संबंधित है बल्कि यह स्तन कैंसर, जिगर के कैंसर और अग्नाशय के कैंसर से भी जुड़ा है.वायु प्रदूषण मुख और गले के कैंसर का भी कारण बनता है.ऐसे में मनुष्यों के लिए एकमात्र रास्ता यही बचा है कि वायु प्रदूषण से मिलकर मुकाबला किया जाए संभवत: इसके लिए रणनीति यह हो सकती है कि इसे एक बार में समाप्त करने की बजाए इसमें धीरे-धीरे प्रदूषकों को घटाने के प्रयास किए जाएं और इस संबंध में सख्त कानून भी बनाए जाए.

वैज्ञानिकों ने खोजा ऐसा तरीका, ब्रेन हेमरेज का इलाज संभव

वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में रक्तस्राव और आघात के खतरे को कम करने के लिए एक दवाई की पहचान की है.


लंदन: वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में रक्तस्राव और आघात के खतरे को कम करने के लिए एक दवाई की पहचान की है. इस दवाई को यूरिया से संबंधित विकारों के इलाज के लिए पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है. ‘कोलेजन 4’ (सी4) नामक जीन में खामी से मस्तिष्क में रक्तस्राव होता है, जिससे मस्तिष्काघात पड़ सकता है. सी4 जीन के क्षरण से आंख, गुर्दे और रक्तवाहिकाओं संबंधी ऐसे रोग हो सकते हैं, जिससे मस्तिष्क में रक्त वाहिकाएं प्रभावित होती हैं और मस्तिष्क में रक्तस्राव हो सकता है जो बचपन में भी हो सकता है.

ब्रिटेन के मैनचेस्टर और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि चूहों के ‘कोलेजन 4’ में भी इसी तरह की खामी होती है और उन्हें भी ऐसी ही बीमारी हो सकती है. पत्रिका ‘ह्यूमन मॉलीक्यूलर जेनेटिक्स’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार सोडियम फेनिल ब्यूटीरीक एसिड के इस्तेमाल से मस्तिष्क में रक्तस्राव में कमी आ सकती है.  हालांकि, इस उपचार से आंख या गुर्दे की अनुवांशिक बीमारियों का इलाज नहीं किया जा सकता.

Tuesday, 27 November 2018

पर्यावरण को साफ सुथरा रखने के लिए मांस और दूध का इस्तेमान करना होगा कम: रिपोर्ट

वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवों के बजाय पेड़ों के स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन के इस्तेमाल से पर्यावरण लक्ष्यों को हासिल करने और तापमान बढ़ने का जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है.

बोस्टन: वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवों के बजाय पेड़ों के स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन के इस्तेमाल से पर्यावरण लक्ष्यों को हासिल करने और तापमान बढ़ने का जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है. ‘क्लाइमेट पॉलिसी’ पत्रिका में छपे एक अध्ययन में पाया गया कि पशुधन क्षेत्र 2030 तक के डेढ डिग्री सेल्सियस ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बजट की करीब आधी राशि का इस्तेमाल कर सकता है.


अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इस पर गौर करना जलवायु परिवर्तन संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने की रणनीति का अहम हिस्सा होना चाहिए. अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल की हेलेन हारवॉट ने जलवायु परिवर्तन को रोकने की प्रतिबद्धता के तहत जीवों से प्राप्त प्रोटीन की जगह पेड़ों के स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन के इस्तेमाल के लिए तीन चरणों वाली रणनीति का प्रस्ताव दिया.

पहला कदम इस बात को स्वीकार करना है कि इस समय मवेशियों की संख्या सर्वोच्च बिन्दु पर है और इसे कम करने की जरूरत है. अगला कदम मवेशी उत्पादों पर निर्भरता कम करना है जिसकी शुरुआत गोमांस, गाय के दूध और सूअर के मांस जैसे उच्च ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वाले खाद्य पदार्थों से होनी चाहिए. हारवॉट ने कहा कि अंत में, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लक्ष्य, भूमि उपयोग और लोक स्वास्थ्य लाभ सहित कई मानकों के आधार पर उचित उत्पादों पर गौर करने से भी मदद मिलेगी.

सावधान: जान भी ले सकती है भूलने की एक दुर्लभ बीमारी

आपको जानकर हैरानी होगी कि भूलने की एक दुर्लभ बीमारी जान भी ले सकती है। शोधकर्ताओं का दावा है कि डीएनए में उत्परिवर्तन से गर्भधारण के दौरान महिला को होने वाली यह बीमारी बहुत खतरनाक है।

यह बीमारी डिमेंशिया का एक प्रकार है। डेनमार्क की एक महिला के पति की मौत क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग (दिमाग की काम करने की क्षमता को कम करने वाला रोग) से हो गई थी। गर्भधारण के दौरान उसके पति के इस रोग का जीन भ्रूण में पहुंच गया। इससे भ्रूण के डीएनए में उत्परिवर्तन हो गया। उत्परिवर्तन के बाद भ्रूण से निकला एक जहरीला प्रोटीन प्लेसेंटा के जरिये महिला के दिमाग तक पहुंच गया। शोधकर्ताओं ने कहा, यह प्रोटीन धीरे-धीरे मस्तिष्क कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। यह घातक स्थिति अपरिवर्तनीय मस्तिष्क क्षति का कारण बनती है, जो महिला की मौत का कारण बनी।
सिगरेट से भी ज्यादा घातक है वायु प्रदूषण, घटा रहा है जिंदगी के 4 साल

कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में डेनमार्क के मरीजों पर अध्ययन के दौरान इस घातक बीमारी का खुलासा हुआ है। 85 प्रतिशत मामले डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) के होते है। इसमें से 10-15 प्रतिशत लोगों में आनुवांशिक कारणों से यह बीमारी होती है। एक प्रतिशत से भी कम घटनाओं में क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग की पहचान की गई। दरअसल क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग से पीड़ित गाय से यह रोग इनसान में फैलता है। जब कोई व्यक्ति इस रोग के शिकार जानवरों का मांस खाता है, जो यह बीमारी इनसान में पहुंच जाती है। लंदन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के मुताबिक, ब्रिटेन में हर साल दस साल लोगों में से एक को यह बीमारी होती है। गंदे रह गए सर्जरी के उपकरणों से भी ऑपरेशन के दौरान यह बीमारी हो सकती है।

Monday, 26 November 2018

अगर आपका बच्चा हो रहा है मोटा तो हो जाइए सतर्क, हो सकती है ये खतरनाक बीमारी

अमेरिका के ड्यूक विश्विद्यालय ने अपने अध्ययन के लिए अमेरिका के पांच लाख से अधिक बच्चों के स्वास्थ्य आंकडों का विश्लेषण किया.


वॉशिंगटन: एक नए अध्ययन में पता चला है कि सही वजन हजारों बच्चों को अस्थमा जैसी बीमारियों से बचा सकता है. अमेरिका के ड्यूक विश्विद्यालय ने अपने अध्ययन के लिए अमेरिका के पांच लाख से अधिक बच्चों के स्वास्थ्य आंकडों का विश्लेषण किया और पाया कि करीब एक चौथाई बच्चों (23 से 27 प्रतिशत) में अस्थमा के लिए मोटापा जिम्मेदार है. पीडिएट्रिक्स पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक दो से 17 वर्ष के बीच के कम से कम 10 प्रतिशत बच्चों के वजन यदि नियंत्रित होते तो वे बीमारी की चपेट में आने से बच सकते हैं.


ड्यूक विश्वविद्यालय के असोसिएट प्रोफेसर जेसन ई लांग कहते हैं,‘‘अस्थमा बच्चों में होने वाली क्रोनिक बीमारियों में अहम है और बचपन में वायरल संक्रमण तथा जीन संबंधी कुछ ऐसे कारण हैं जिन्हें होने से रोका नहीं जा सकता.’’ वह कहते हैं कि बचपन में अस्थमा होने के पीछे मोटापा एकमात्र कारण हो सकता है जिसे रोका भी जा सकता है. इससे पता चलता है कि बच्चों को किसी प्रकार की गतिविधि में लगाए रखना और उनका उचित वजन होना जरूरी है.

पिता के सिगरेट पीने से बेटे की सेक्सुअल लाइफ हो जाएगी बर्बाद : रिसर्च

अब तक की रिसर्च के आधार पर आपने यही सुना और पढ़ा होगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान मां के स्मोकिंग करने या शराब पीने का बच्चे पर विपरीत असर पड़ता है.


नई दिल्ली : अब तक की रिसर्च के आधार पर आपने यही सुना और पढ़ा होगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान मां के स्मोकिंग करने या शराब पीने का बच्चे पर विपरीत असर पड़ता है. कई शोध से यह भी साफ हो चुका है कि गर्भावस्था के दौरान मां के धूम्रपान करने का असर होने वाले बेटे के स्पर्म काउंट पर पड़ता है. लेकिन अब एक नई रिसर्च में साफ हुआ है कि जिस बच्चे के पिता अपनी पत्नी के गर्भधारण के दौरान स्मोकिंग करते हैं उनके होने वाले बेटे के स्पर्म काउंट स्मोकिंग नहीं करने वाले पिता की संतान से 50 प्रतिशत तक कम होते हैं.

लंदन यूनिवर्सिटी की रिसर्च में हुआ खुलासा
स्वीडन की लंदन यूनिवर्सिटी की रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पत्नी के गर्भधारण के दौरान सिगरेट पीने वाले पुरुषों के बेटों के स्पर्म काउंट में आधे की गिरावट का खतरा हो सकता है. रिसर्च से सामने आए आंकड़ों से पता चला कि जिन युवाओं के पिता स्मोकिंग करते थे, उनके स्पर्म के घनत्मव में 41 प्रतिशत और सिगरेट नहीं पीने वाले पिताओं के बच्चों के मुकाबले 51 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.

104 युवाओं को शोध में शामिल किया
इस शोध को 17 से 20 साल की उम्र के 104 युवाओं पर किया गया. यूनिवर्सिटी के जोनाथन एग्जल्सन ने बताया कि इससे पहले कई अध्ययनों से यह सामने आ चुका है कि अगर मां सिगरेट पीती है तो उसका बुरा असर गर्भ में पल रहे भ्रूण पर पड़ता है, लेकिन इस अध्ययन में पिता के सिगरेट पीने का नकारात्मक असर बेटों पर देखने में आया है.

यहां यह साफ कर दें कि स्पर्म काउंट में कमी और वीर्य से जुड़े दूसरे मापदंडों में होने वाली कमी के पीछे वातावरण से संबंधित कई कारण भी जिम्मेदार हैं. इनमें इंडोक्राइन को बाधित करने वाले केमिकल, कीटनाशक, तेज धूप, लाइफस्टाइल फैक्टर्स जिसमें खान-पान, तनाव और बॉडी मास इंडेक्स जैसी चीजें भी शामिल हैं.

MRI स्कैन से लगाया जाएगा डिमेंशिया का पता

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में डिमेंशिया का अनुमान लगाने के लिए मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) का इस्तेमाल किया.

लॉस एंजिलिसः मस्तिष्क के एमआरआई स्कैन से पता लगाया जा सकेगा कि व्यक्ति को अगले तीन वर्ष में डिमेंशिया होने की आशंका तो नहीं है. इसका मतलब है कि विकार के लक्षण नजर आने से पहले ही इसके जोखिम का अनुमान लगाया जा सकता है. अमेरिका में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में डिमेंशिया का अनुमान लगाने के लिए मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) का इस्तेमाल किया. यह अनुमान 89 फीसदी सटीक रहा.

खड़े-खड़े बेहोश होना आम बात नहीं, कोई भी हो सकता है इस खतरनाक बीमारी का शिकार

डिमेंशिया के जोखिम
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर सायरस ए राजी ने कहा, ‘‘वर्तमान में यह कहना मुश्किल है कि सोचने समझने की सामान्य क्षमता या कम क्षमता वाले बुजुर्ग व्यक्ति को यह विकार हो सकता है या नहीं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ हमने बताया कि केवल एक एमआरआई स्कैन से 2.6 वर्ष पहले ही डिमेंशिया के जोखिम का पता लगाया जा सकता है. इससे चिकित्सक समयपूर्व अपने मरीजों को सलाह दे सकेंगे और उनकी देखरेख कर सकेंगे.’’

अपनों को बेगाना कर देने वाली बीमारी है अल्जाइमर, भारत में हर साल इतने लोग आते हैं चपेट में

रहन-सहन संबंधी बंदोबस्त
शोधकर्ता कहते हैं कि अल्जाइमर रोग को रोकने या टालने के लिए अभी भी कोई दवा नहीं है लेकिन डिमेंशिया के उच्च जोखिम वाले लोगों की पहचान करना फिर भी लाभकारी साबित हो सकता है. इससे लोग सेहतमंद रहने के दौरान ही आगामी खतरे को भांपते हुए अपने आर्थिक और रहन-सहन संबंधी बंदोबस्त कर सकते हैं. (इनपुटः भाषा)

रोजाना एक कप आइसक्रीम खाने से शरीर को मिलते हैं कई फायदे

अगर आपको भी आइसक्रीम खाना अच्छा लगता है और यह आपकी आदत बन चुकी है तो यह खबर आपके लिए है. अभी तक आपने यही सुना होगा कि आइसक्रीम खाना सेहत के लिए फायदेमंद नहीं रहता.

नई दिल्ली : अगर आपको भी आइसक्रीम खाना अच्छा लगता है और यह आपकी आदत बन चुकी है तो यह खबर आपके लिए है. अभी तक आपने यही सुना होगा कि आइसक्रीम खाना सेहत के लिए फायदेमंद नहीं रहता. लेकिन यह कुछ मामले में आपकी सेहत के लिए अच्छी भी रहती है. दरअसल अलग-अलग फ्लेवर में आने वाली आइसक्रीम आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद रहती है. इसका लजीज स्वाद आपको बरबस अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है. आइसक्रीम एक डेयरी प्रोडक्ट है, इसलिए इसमें कई पोषक तत्व भी मौजूद रहते हैं. इनके सेवन से आपका शरीर स्वस्थ बनता है. इसमें विटामिन और प्रोटीन भी भरपूर मात्रा मौजूद होता है. आगे पढ़िए आइसक्रीम के सेवन से होने वाले फायदों के बारे में.

हड्डियां को मजबूती दें
डेयरी प्रोडक्ट में ज्यादा मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है. कैल्शियम के सेवन से हड्डियां मजबूत होती हैं. शरीर को थकान न हो इसके लिए कैल्शियम की जरूरत रहती है. शरीर में मौजूद 99 प्रतिशत कैल्शियम हड्डियों में ही पाया जाता है. ऐसे में डेयरी प्रोडक्ट का सेवन करने से आपके शरीर में कैल्शियम की प्रचुर मात्रा बनी रहती है. रोजाना दूध से बनी आइस्क्रीम खाने से ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियां पतली और कमजोर होने की बीमारी) का खतरा कम होहोता है.

स्किन के लिए फायदेमंद
दूध से बनी आइसक्रीम में प्रोटीन का भी अच्छा सोर्स होता है. प्रोटीन शरीर के अलग-अलग हिस्सों जैसे हड्डियां, मांपेशियां, खून और त्वचा के लिए फायदेमंद रहता है. प्रोटीन खाने से ऊतक और मांसपेशियां मजबूत होती हैं. शरीर के कुछ हिस्से जैसे नाखून और बाल भी प्रोटीन से ही बने होते हैं. आइसक्रीम खाने से शरीर को प्रोटीन मिलता है.

रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़े
आइसक्रीम में विटामिन ए, बी-2 और बी-12 पाया जाता है. विटामिन ए आपकी स्किन, हड्डियों और इम्यूनिटी सिस्टम की क्षमता को बढ़ाता है. इसके अलावा इससे आंखों की रोशनी भी बेहतर होती है. विटामिन बी-2 और बी-12 मेटाबॉलिज्म को संतुलित रखता है और बी-12 वजन घटाने में सहायक होता है. अगर आपको दूध पीने में दिक्कत होती है तो आइसक्रीम खाकर विटामिन की कमी को पूरा कर सकते हैं.

आइसक्रीम के नुकसान भी
ऐसा नहीं आइसक्रीम का सेवन आपको केवल फायदा ही देता है, इसके सेवन से शरीर को कई तरह से नुकसान भी पहुंचता है. आइसक्रीम में शुगर कंटेंट ज्यादा होता है. ऐसे में यदि आप इसे अधिक मात्रा में खाते हैं तो मोटापे का खतरा रहता है. इसके अलावा बटर और चॉकलेट से बनी आइस्क्रीम में कैलोरी भी ज्यादा होती है, जो कि शरीर के लिए नुकसानदेह होती है. ज्यादा आइस्क्रीम खाने से सिरदर्द, फूड प्वाइजनिंग जैसी समस्या भी हो सकती है. ध्यान रहे आइस्क्रीम खाने से पहले उसकी गुणवत्ता की जांच अवश्य कर लें.

Sunday, 25 November 2018

तम्बाकू पैकेजिंग पर नकारात्मक संदेश धूम्रपान छोड़ने में कर सकते हैं मदद

विशेषज्ञों का मानना है कि तम्बाकू और इससे जुड़े उत्पाद के इस्तेमाल को बंद करने के प्रति जागरुकता लाने के लिए अनेक प्रयासों के साथ ही इसकी पैकेजिंग पर नकारात्मक संदेश लिखने से लोगों को इसे छोड़ने में मदद मिलती है.

टोरंटो : विशेषज्ञों का मानना है कि तम्बाकू और इससे जुड़े उत्पाद के इस्तेमाल को बंद करने के प्रति जागरुकता लाने के लिए अनेक प्रयासों के साथ ही इसकी पैकेजिंग पर नकारात्मक संदेश लिखने से लोगों को इसे छोड़ने में मदद मिलती है. तम्बाकू पैकेजिंग इस तरह की जाती है कि जिससे समाज को धूम्रपान को ठुकराने, आत्म-चेतना की भावनाओं को जगाने और धूम्रपान करने वालों को उससे पीछा छुड़ाने में मदद मिल पाए.

'जर्नल ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स' में प्रकाशित एक अध्ययन में यह दावा किया गया है. कनाडा की 'वेस्टर्न यूनिवर्सिटी' की जेनिफर जेफरी ने कहा कि तम्बाकू का इस्तेमाल बंद करने के लिए कार्यस्थल और सामाजिक परिदृश्य में प्रतिबंध जैसी रणनीतियों को धूम्रपान को हतोत्साहित करने तथा सामाजिक दबाव बनाने के साधन के रूप में उपयोग किया जाता है.

जेफरी ने कहा, 'हमारे शुरुआती शोध से पता चलता है कि तम्बाकू पैकेजिंग इसी तरह दबाव बनाने का एक और साधन हो सकता है, विशेषकर धूम्रपान करने वाले उन लोगों के लिए जो पहले ही धूम्रपान को एक कलंक समझते हैं.'

93 प्रतिशत भारतीयों को इन 3 कारणों से नहीं आती अच्छी नींद

अगर आप मानसिक तनाव, दबी हुई इच्छाएं और मन में तीव्र कड़वाहट लिए हुए बिस्तर पर लेटे हैं तो आप अनिद्रा का शिकार हो सकते हैं. हाई ब्लड प्रेशर, कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर, डायबिटीज और अन्य बीमारियों से भी अनिद्रा का सीधा संबंध है.

नई दिल्ली : अगर आप मानसिक तनाव, दबी हुई इच्छाएं और मन में तीव्र कड़वाहट लिए हुए बिस्तर पर लेटे हैं तो आप अनिद्रा का शिकार हो सकते हैं. हाई ब्लड प्रेशर, कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर, डायबिटीज और अन्य बीमारियों से भी अनिद्रा का सीधा संबंध है. हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा, 'आयुर्वेद में नींद का वर्णन वात और पित्त दोष के बढ़ने के रूप में मिलता है. इसका सबसे प्रमुख कारण है मानसिक तनाव, दबी हुई इच्छाएं और मन में तीव्र कड़वाहट.'

अनिद्रा के कारणों में कब्ज और अपच की भी समस्या
उन्होंने कहा, 'इसके अलावा अनिद्रा के अन्य कारणों में कब्ज, अपच, चाय, कॉफी और शराब का अधिक सेवन तथा पर्यावरण में परिवर्तन, यानी अधिक सर्दी, गर्मी या मौसम में बदलाव. ज्यादातर मामलों में ये सिर्फ प्रभाव होते हैं न कि अनिद्रा के कारण. अनिद्रा तीन प्रकार तीव्र, क्षणिक और निरंतर चलने वाली होती है.' अनिद्रा से तात्पर्य है सोने में कठिनाई. इसका एक रूप है, स्लीप-मेंटीनेंस इन्सोम्निया, यानी सोये रहने में कठिनाई, या बहुत जल्दी जाग जाना और दोबारा सोने में मुश्किल.

पर्याप्त नींद नहीं मिलने पर बढ़ जाती है चिंता
पर्याप्त नींद नहीं मिलने पर चिंता बढ़ जाती है, जिससे नींद में हस्तक्षेप होता है और यह दुष्चक्र चलता रहता है. हाई ब्लड प्रेशर, कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर, डायबिटीज व अन्य बीमारियों से भी अनिद्रा का सीधा संबंध है. एक हालिया शोध में पता चला है कि लगभग 93 प्रतिशत भारतीय अच्छी नींद से वंचित हैं. इसके कारक जीवनशैली से जुड़ी आदतों से लेकर स्वास्थ्य की कुछ स्थितियों तक हैं. अनिद्रा को आमतौर पर एक संकेत व एक लक्षण दोनों रूपों में देखा जाता है, जिसके साथ नींद, चिकित्सा और मनोचिकित्सा विकार सामने आ सकते हैं. इस तरह के व्यक्ति को नींद आने में लगातार कठिनाई होती है.

कैफीनयुक्त पेय पदार्थ लेने से बचें
डॉ. अग्रवाल ने अनिद्रा से निपटने हेतु सुझाव देते हुए कहा, 'अगर आप कैफीन के प्रति संवेदनशील हैं तो एक या दो बजे के बाद कैफीनयुक्त पेय पदार्थ लेने से बचें. अल्कोहल की मात्रा सीमित करें और सोने से दो घंटे पहले अल्कोहल न लें. टहलने, जॉगिंग करने या तैराकी करने जैसे नियमित एरोबिक व्यायाम में हिस्सा लें. इसके बाद आपको गहरी नींद आ सकती है और रात के दौरान नींद टूटती भी नहीं है. जितनी देर आप सो नहीं पाते हैं उन मिनटों का हिसाब रखने से दोबारा सोने में परेशानी हो सकती है. नींद उचट जाए तो घड़ी को अपनी निगाह से दूर कर दें.'

उन्होंने कहा, 'एक या दो सप्ताह के लिए अपने नींद के पैटर्न को ट्रैक करें. अगर आपको लगता है कि आप सोने के समय में बिस्तर पर 80 प्रतिशत से कम समय बिना सोये बिता रहे हैं, तो इसका अर्थ है कि आप बिस्तर पर बहुत अधिक समय बिता रहे हैं. बाद में बिस्तर पर जाने की कोशिश करें और दिन के दौरान झपकी न लें. यदि आप शाम को जल्दी सोने लगें, तो रोशनी को तीव्र कर दें.'

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि अगर आपका दिमाग सोच-विचार में लगा है या आपकी मांसपेशियां तनाव में हैं, तो आपको सोने में मुश्किल हो सकती है. दिमाग को शांत करने और मांसपेशियों को आराम देने के लिए, ध्यान करना, गहरी सांस लेना या मांसपेशियों को आराम देने से लाभ हो सकता है.

वायु प्रदूषण से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा, रिसर्च से खुलासा

भीड़-भाड़ भरी सड़कों के पास काम करने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा ज्यादा होता है. एक रिसर्च में यह बात सामने आई है. शोधकर्ताओं ने बताया है कि ट्रैफिक के कारण होने वाले वायु-प्रदूषण से महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर का खतरा पैदा हो सकता है.

लंदन : भीड़-भाड़ भरी सड़कों के पास काम करने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा ज्यादा होता है. एक रिसर्च में यह बात सामने आई है. शोधकर्ताओं ने बताया है कि ट्रैफिक के कारण होने वाले वायु-प्रदूषण से महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर का खतरा पैदा हो सकता है. स्कॉटलैंड स्थित स्टर्लिग यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों की टीम कैंसर की मरीज एक महिला के संबंध में किए गए अध्ययन-विश्लेषण के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि ट्रैफिक से दूषित वायु ब्रेस्ट कैंसर का का कारण बन सकती है.

इस तरह 7 अन्य मामले दर्ज किए गए
महिला उत्तरी अमेरिका में व्यस्ततम व्यावसायिक सीमा पारगमन पर बतौर सीमा गार्ड के रूप में कार्य करती थी. वह 20 साल तक वहां सीमा गार्ड रहीं. इसी दौरान वह ब्रेस्ट कैंसर से ग्रस्त हुई थीं. यह महिला उन पांच अन्य सीमा गार्डों में एक है, जिन्हें 30 महीने के भीतर ब्रेस्ट कैंसर हुआ. ये महिलाएं पारगमन के समीप कार्य करती थीं. इसके अलावा इस तरह के सात अन्य मामले दर्ज किए गए.

माइकल गिल्बर्टसन के मुताबिक, निष्कर्षों में ब्रेस्ट कैंसर और ब्रेस्ट कैंसरकारी तत्व युक्त यातायात संबंधी वायु प्रदूषण के अत्यधिक संपर्क में आने के बीच एक अनौपचारिक संबंध दर्शाया गया है. रात के समय कार्य करने और कैंसर के बीच एक संबंध की भी पहचान की गई है. गिल्बर्टसन ने कहा, 'यह नया शोध आम आबादी में स्तन कैंसर के बढ़ते मामलों में यातायात संबंधी वायु प्रदूषण के योगदान की भूमिका के बारे में संकेत देता है.'

न्यू सॉल्यूशन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि 10 हजार मौकों में से एक मामले में यह एक संयोग था क्योंकि यह सभी बहुत हद तक समान थे और आपस में एक दूसरे के करीब थे.

Saturday, 24 November 2018

जीन थेरेपी से थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों का इलाज संभव

मरीजों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने और थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के जन्म को रोकने के लिए नेशनल थैलेसीमिया वेलफेयर सोसाइटी द्वारा डिपार्टमेन्टपीडिएट्रिक्स ने एलएचएमसी के सहयोग से राष्ट्रीय राजधानी में दो दिवसीय जागरूकता सम्मेलन किया.

नई दिल्ली : देश में 5 करोड़ से ज्यादा लोग थैलेसीमिया से पीड़ित हैं. प्रत्येक वर्ष 10 से 12 हजार बच्चे थैलेसीमिया के साथ जन्म लेते हैं. हालांकि इन भयावह आंकड़ों के बावजूद इस गंभीर बीमारी को लेकर लोगों के बीच जागरूकता की कमी है, लेकिन जीन थेरेपी इस रोग के लिए कारगर साबित हो सकती है. मरीजों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने और थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के जन्म को रोकने के लिए नेशनल थैलेसीमिया वेलफेयर सोसाइटी द्वारा डिपार्टमेन्टपीडिएट्रिक्स ने एलएचएमसी के सहयोग से राष्ट्रीय राजधानी में दो दिवसीय जागरूकता सम्मेलन किया, जिसमें 200 प्रख्यात डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और 800 मरीजों/अभिभावकों ने हिस्सा लिया.

ल्युकाइल पैकर्ड चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के हीमेटो-ओंकोलोजिस्ट डॉ. संदीप सोनी ने जीन थेरेपी के बारे में बताया, "जीन थेरेपी कोशिकाओं में जेनेटिक मटेरियल को कुछ इस तरह शामिल करती है कि असामान्य जीन की प्रतिपूर्ति हो सके और कोशिका में जरूरी प्रोटीन बन सके. उस कोशिका में सीधे एक जीन डाल दिया जाता है, जो काम नहीं करती है. एक कैरियर या वेक्टर इन जीन्स की डिलीवरी के लिए आनुवंशिक रूप से इंजीनियर्ड किया जाता है. वायरस में इस तरह बदलाव किए जाते हैं कि वे बीमारी का कारण न बन सकें."

उन्होंने कहा, "लेंटीवायरस में इस्तेमाल होने वाला वायरस कोशिका में बीटा-ग्लेबिन जीन शामिल करने में सक्षम होता है. यह वायरस कोशिका में डीएनए को इन्जेक्ट कर देता है. जीन शेष डीएनए के साथ जुड़कर कोशिका के क्रोमोजोम/ गुणसूत्र का हिस्सा बन जाता है. जब ऐसा बोन मैरो स्टेम सेल में होता है तो स्वस्थ बीटा ग्लोबिन जीन आने वाली पीढ़ियों में स्थानान्तरित होने लगता है. इस स्टेम सेल के परिणामस्वरूप शरीर में सामान्य हीमोग्लोबिन बनने लगता है."

डॉ. संदीप सोनी ने कहा, "पहली सफल जीन थेरेपी जून 2007 में फ्रांस में 18 साल के मरीज में की गई और उसे 2008 के बाद से रक्ताधान/ खून चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी है. इसके बाद यूएसए और यूरोप में कई मरीजों का इलाज जीन थेरेपी से किया जा चुका है."

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ब्लड सेल की सीनियर नेशनल कन्सलटेन्ट एवं को-ऑर्डिनेटर विनीता श्रीवास्तव ने थैलेसीमिया एवं सिकल सेल रोग की रोकथाम एवं प्रबंधन के लिए किए गए प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा, "रोकथाम इलाज से बेहतर है. थैलेसीमिया के लिए भी यही वाक्य लागू होता है." सम्मेलन के दैरान थैलेसीमिया प्रबंधन, रक्ताधान, जीन थेरेपी के आधुनिक उपकरणों, राष्ट्रीय थेलेसीमिया नीति, थैलेसीमिया के मरीजों के लिए जीवन की गुणवत्ता आदि विषयों पर चर्चा की गई.

सर्दियों में रोज खाएं बस 100 ग्राम मूंगफली, असर देख हैरान हो जाएंगे आप

मूंगफली आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद है. मूंगफली में वे सारे तत्व पाए जाते हैं जो बादाम में होते हैं. हकीकत यह है कि सर्दियों में मूंगफली का सेवन बहुत ही गुणकारी रहता है.

नई दिल्ली : मूंगफली आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद है. मूंगफली में वे सारे तत्व पाए जाते हैं जो बादाम में होते हैं. हकीकत यह है कि सर्दियों में मूंगफली का सेवन बहुत ही गुणकारी रहता है. अधिकतर लोग इसे स्वाद के तौर पर खाते हैं. लेकिन आपको यह पता होना चाहिए कि यह आपके शरीर को किस तरह फायदा पहुंचाती है. यकीन मानिए इससे होने वाले फायदे जानकर आप भी चौंक जाएंगे. सेहत के खजाने से भरपूर मूंगफली में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है जो शारीरिक वृद्धि के लिए जरूरी है. मूंगफली में पर्याप्त मात्रा में आयरन, कैल्शियम और जिंक पाया जाता है. इसे खाने से ताकत मिलती है. आगे पढ़िए मूंगफली के सेवन से होने वाले फायदों के बारे में विस्तार से.

कब्ज दूर करें
यदि आपको कब्ज की समस्या रहती है तो हर रोज एक हफ्ते तक 100 ग्राम मूंगफली खाइए. ऐसा करने से मूंगफली में तत्व आपकी पेट से जुड़ी तमाम समस्याओं में राहत देंगे. इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है.

शरीर को ताकत दें
जिस तरह बादाम और अंडे का सेवन शरीर को ताकत देता है, उसी प्रकार मूंगफली खाने से आपके शरीर को ताकत मिलती है. इसके अलावा ये पाचन क्रिया को भी बेहतर रखने में मददगार है. सर्दियों में इसका सेवन करना आपके लिए अच्छा रहेगा.

गर्भवती के लिए फायदेमंद
गर्भवती महिलाओं के लिए मूंगफली खाना बहुत फायदेमंद होता है. इससे गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास बेहतर तरीके से होता है. साथ ही गर्भवती महिला को भी इससे ताकत मिलती है.

त्वचा के लिए फायदेमंद
ओमेगा 6 से भरपूर मूंगफली आपकी त्वचा को भी कोमल और नम बनाए रखता है. कई लोग मूंगफली के पेस्ट का इस्तेमाल फेसपैक के तौर पर भी करते हैं. आप भी मूंगफली पीसकर इस पेस्ट तैयार कर सर्दियों में अपनी रुखी त्वचा से निजात पा सकती हैं.

दिल की बीमारी से दूर रखें
यदि आपके परिवार में कोई दिल का रोगी है तो उनके लिए मूंगफली का सेवन बहुत फायदेमंद रहेगा. मूंगफली खाने वाले व्यक्ति को दिल से जुड़े रोग होने का खतरा बहुत कम होता है. साथ ही मूंगफली के नियमित सेवन से खून की कमी नहीं होती.

एंटी एजिंग
मूंगफली बढ़ती उम्र के लक्षणों को रोकने में भी कारगर है. इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट बढ़ती उम्र के लक्षणों जैसे बारीक रेखाएं और झुर्रियों को बनने से रोकते हैं. मूंगफली का सेवन करने वाले लोगों की उम्र वास्तविक उम्र से कम दिखाई देती है.

हड्डियां मजबूत हो
मूंगफली का प्रतिदिन सेवन करने से आपकी हड्डियां मजबूत होती हैं. इसमें कैल्शियम और विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा होती है. ऐसे में इसके सेवन से हड्डियां मजबूत बनती हैं.

कैंसर, मिर्गी और एनीमिया के इलाज के लिए CSIR भांग पर कर रही रिसर्च






थमिक तौर पर भांग से प्राप्त औषधि का परीक्षण सबसे पहले मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल अस्पताल में किया जाएगा.

नई दिल्ली: वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) कैंसर, मिर्गी और सिकल सेल एनीमिया (खून की कमी) जैसे रोगों के उपचार के लिए भांग के औषधीय उपयोग पर शोध कर रही है. सीएसआईआर और भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (आईआईआईएम) के निदेशक राम विश्वकर्मा ने शुक्रवार को यहां कहा, कि हमें जम्मू-कश्मीर सरकार से शोध कार्यक्रम का संचालन करने का लाइसेंस मिला है. हमने इसपर पहले ही काम शुरू कर दिया है. मानव पर ड्रग के रूप में भांग के उपयोग की अनुमति के लिए जल्द ही हम भारत के ड्रग महानियंत्रक (डीसीजीआई) से मिलेंगे.

बांबे हेंप कंपनी (बोहेको) के सहयोग से सीएसआईआर-आईआईएम को भांग उगाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अप्रैल 2017 में लाइसेंस जारी किया था. उन्होंने कहा कि प्राथमिक तौर पर भांग से प्राप्त औषधि का परीक्षण सबसे पहले मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल अस्पताल में किया जाएगा.


बांबे हेंप कंपनी के सह-संस्थापक जहान पेस्टोन जामास ने कहा कि मिरगी जैसे क्रोनिक रोगों के इलाज में भांग से बनने वाली दवाइयां असरदार साबित हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि कई अनुसंधान से पता चला है कि भांग का दुष्प्रभाव नगण्य होता है जबकि औषधीय गुणों के कारण मानसिक रोगों के अलावा कैंसर के इलाज में भी इससे निर्मित दवाइयों का उपयोग हो सकता है.

बांबे हेंप कंपनी (बोहेको) वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (आईआईआईएम) की ओर से यहां आयोजित एक कार्यक्रम के मौके पर आईएएनएस से बातचीत में जमास ने कहा, "भांग में टेट्रा हाइड्रो कैनाबिनोल (टीएचसी) नामक एक रसायन होता है, जिससे नशा होती है. इसके अलावा भांग में सारे औषधीय गुण होते हैं.


उन्होंने कहा, "टीएचसी का उपयोग दर्द निवारक दवाओं में किया जाता है, जो कैंसर से पीड़ित मरीजों को दर्द से राहत दिलाने में असरदार होती है." जमास ने कहा कि दवाई बनाने के लिए भांग की खेती करने की जरूरत है, लेकिन वर्तमान नारकोटिक्स कानून में भांग की पत्ती और फूल दोनों को शामिल किए जाने से इसमें रुकावट आती है. उन्होंने कहा, "सरकार से हमारी मांग है कि ऐसी नीतियां बनाई जाएं, जिससे अनुसंधान के उद्देश्य से भांग की खेती करने की अनुमति हो." उन्होंने कहा कि गांजे से 15,000 उत्पाद बनाए जा सकते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार की औषधियों के रूप में किया जा सकता है.

इस मौके सांसद गांधी ने बातचीत में कहा, "हमारे पूर्वज अनादि काल से भांग और गाजे का सेवन करते आए हैं. यहां तक कि भागवान शंकर हो भी भांग चढ़ाया जाता है. इस प्रकार पहले कभी भांग और गाजे के सेवन को लेकर कोई समस्या नहीं आई, लेकिन इस क्षेत्र में माफिया की पैठ होने पर समस्या गंभीर बन गई है. ड्रग माफिया युवाओं में नशाखोरी को बढ़ावा दे रहा है.

एनडीपीएस मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ वकील प्रसन्ना नंबूदिरी ने कहा, "एनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 10 (2) (डी) के तहत जो रोक है, उसके अनुसार भांग की पैदावार करने वालों को राज्य सरकार के अधिकारियों के यहां भांग को जमा कराना होता है और यह चिकित्सकीय एवं वैज्ञानिक उद्देश्य के लिए भांग के पौधों की पैदावार करने की दिशा में एक बड़ी बाधा है. भांग की खेती करने के संबंध में एनडीपीएस नियम बनाने के मामले में अनेक राज्य सरकारों की विफलता भी एक बड़ी रुकावट है."

बोहेको की स्थापना 2013 में की गई थी. यह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के साथ साझेदारी में भांग के चिकित्सा और औद्योगिक उपयोग का अध्ययन करने वाला भारत में पहला स्टार्टअप है.

Friday, 23 November 2018

सेहत का ख्याल रखेगा एयर पॉल्यूशन मॉनिटर

वातावरण में कई तरह की जहरीली गैस फैली होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर एक ऐसी डिवाइस है, जो समय-समय पर आपको खराब वातावरण की जानकारी देती रहती है। क्या है ये डिवाइस, बता रही हैं नीतिका श्रीवास्तव


बढ़ते प्रदूषण में सांस से संबंधित बीमारियों का होना आम बात है। हवा में गंदगी होने से अस्थमा और कई तरह की एलर्जी शरीर को घेर लेती हैं और अंदर ही अंदर शरीर को गलाने लगती हैं। ऐसे में हमें एक केयर टेकर की जरूरत होती है, जो आस-पास की हवा के बारे में सही जानकारी दे सके और समय-समय पर वातावरण को लेकर सक्रिय कर सके। कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर एक ऐसी ही डिवाइस है, जो आपको सेहत के प्रति सजग रख सकती है। क्या है ये डिवाइस और कैसे करती है काम, आइये जानें

क्या है ये डिवाइस
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर हाथ में आसानी से आ जाने वाली डिवाइस है, जिसे आसानी से कहीं पर भी साथ में ले जाया जा सकता है। इस डिवाइस का साथ में रहना बेहद जरूरी भी है। कॉम्पैक्ट आकार और यूएसबी कनेक्टिविटी एटमोट्यूब के साथ आने वाली ये डिवाइस आपको आसपास के वातावरण के बारे में सटीक जानकारी देती है, साथ ही जिस हवा में आप हैं, उसके तापमान के बारे में भी बताती है। उचित परिणाम जानने के लिए आपको अपने स्मार्टफोन को ब्लूटूथ के जरिये इस डिवाइस से कनेक्ट करना होता है।

कैसे करती है काम
ये डिवाइस खासकर अस्थमा और किसी भी तरह की एलर्जी से पीड़ित लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गयी है। इस डिवाइस में लगा सेंसर हवा में हानिकारक गैसों और कार्बनिक यौगिकों की मौजूदगी के बारे में सही समय पर सजग करता है। यह डिवाइस आसपास के वातावरण में हवा का तापमान और आद्र्रता को भी मापती है। इस डिवाइस को चार्ज करने के बाद इस्तेमाल में लाया जा सकता है, साथ ही कॉम्पैक्ट वायु गुणवत्ता वाली इस डिवाइस को हमेशा अपने साथ रख सकते हैं। हवा की जानकारी अपने स्मार्टफोन के स्क्रीन में भी आसानी से देख सकते हैं। भारतीय बाजार में इसकी कीमत 15 सौ रुपए से शुरू होती है। ब्रांड के हिसाब से कीमत बढ़ भी सकती है।

ये हैं खासियतें
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर वास्तविक समय पर एयर गुणवत्ता ट्रैक करके आपको अनुमानित परिणाम तो बताता ही है, साथ ही आपको अच्छे स्वास्थ के प्रति सचेत भी करता है। ये डिवाइस पोर्टेबल और पहनने योग्य भी है। ये डिवाइस एक मजबूत टाइटेनियम लेपित एटमोट्यूब से बनी होती है। डिवाइस देखने में बेहद आकर्षक है। इस डिवाइस की खासियत ये है कि जब भी आसपास की हवा में खराबी होगी, ये अलार्म के जरिये बार-बार अलर्ट कर देगी, जो आपको स्वस्थ रहने में मदद करती है।

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कैसे करें दुरुस्त, पढ़ें कारगर Tips

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि आपकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो। इस प्रतिरोधक क्षमता को खान-पान, व्यायाम, अच्छी नींद आदि में संतुलन बनाकर ठीक कर सकते हैं, जिसके लिए यह मौसम भी अनुकूल है।


Health Tips: Simple and Natural Ways to Boost Your Immune System

इंद्रेश समीरUpdated: Fri, 23 Nov 2018 01:59 PM IST

अ+ अ-

अपने आसपास आप अकसर देखते होंगे कि सेहत और कद-काठी के मामले में एक जैसे दिखने वाले कई लोगों में से कुछ लोग बार-बार बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जबकि कुछ पर मौसम की मार या संक्रमण वगैरह का भी ज्यादा असर नहीं होता। आखिर वजह क्या है? असल में हर जीवित शरीर में प्रकृति ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई हुई है, जो उसे नुकसानदेह जीवाणुओं, विषाणुओं और माइक्रोब्स वगैरह से बचाती है। इसे ही रोगप्रतिरोधक शक्ति या इम्यूनिटी कहा जाता है।

जिसकी इम्यूनिटी मजबूत है, उसके शरीर में रोगाणु पहुंचकर भी नुकसान नहीं कर पाते, पर जिसकी इम्यूनिटी कमजोर हो गई हो, वह जरा-से मौसमी बदलाव में भी रोगाणुओं के आक्रमण को झेल नहीं पाता। जब बाहरी रोगाणुओं की तुलना में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, तो इसका असर सर्दी, जुकाम, फ्लू, खांसी, बुखार वगैरह के रूप में हम सबसे पहले देखते हैं। जो लोग बार-बार ऐसी तकलीफों से गुजरते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि उनकी इम्यूनिटी ठीक से उनका साथ नहीं दे रही है और उसे मजबूत किए जाने की जरूरत है। सर्दियों का मौसम एक तरह से रोगप्रतिरोधक शक्ति के परीक्षण का मौसम है, लेकिन अच्छी बात यह है कि रोगप्रतिरोधक शक्ति को मजबूत बनाने के लिए भी यही सबसे अच्छा मौसम है।

सेहत के लिए फायदेमंद है इंडोर गेम्स, जानें क्यों

क्यों होती है इम्यूनिटी कमजोर
- शरीर में चर्बी का अनावश्यक रूप से जमा होना।
- वजन बहुत कम होना।
- फास्टफूड, जंकफूड आदि का ज्यादा सेवन।
- शरीर को ठीक से पोषण न मिलना।
- धूम्रपान, शराब, ड्रग आदि का सेवन।
- पेनकिलर, एंटीबॉयोटिक आदि दवाओं का लंबे समय तक सेवन।
- लंबे समय तक तनाव में रहना।
- लंबे समय तक कम नींद लेना अथवा अनावश्यक रूप से देर तक सोना।
- शारीरिक श्रम का अभाव।
- प्रदूषित वातावरण में लंबे समय तक रहना।
- बचपन और बुढ़ापे में रोगप्रतिरोधक शक्ति सामान्य तौर पर कुछ कमजोर होती है, पर खराब जीवनशैली के चलते युवावस्था में भी यह कमजोर हो सकती है।
- गर्भवती स्त्री का खान-पान ठीक न हो या वह कुपोषण का शिकार हो तो होने वाले बच्चे की भी रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की संभावना बनी रहती है।
- अगर आप चीनी ज्यादा खाते हैं तो यह इम्यूनिटी के लिए नुकसानदेह है। अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन में छपे एक शोध के अनुसार सौ ग्राम या इससे अधिक शुगर खा लेने की स्थिति में श्वेत रुधिर कणिकाओं की रोगाणुओं को मारने की क्षमता पांच घंटे तक के लिए कमजोर पड़ जाती है।
- कम पानी पीने से इम्यूनिटी कमजोर पड़ती है, क्योंकि पर्याप्त पानी के अभाव में शरीर से विजातीय द्रव्यों को बाहर निकाल पाना कठिन हो जाता है।+

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ऐसे बढ़ाएं इम्यूनिटी
- आहार में एंटीऑक्सिडेंट की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। एंटीऑक्सिडेंट बीमार कोशिकाओं को दुरुस्त करते हैं और सेहत बरकरार रखते हुए उम्र के असर को कम करते हैं। बीटा केरोटिन, सेलेनियम, विटामिन-ए, विटामिन-बी2 व बी6, विटामिन-सी, विटामिन-ई, विटामिन-डी तर्था ंजक रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं। इन तत्त्वों की भरपाई के लिए गाजर, पालक, चुकंदर, टमाटर, फूलगोभी, खुबानी, जौ, भूरे चावल, शकरकंद, संतरा, पपीता, बादाम, दूध, दही, मशरूम, लौकी के बीज, तिल आदि उपयोगी हैं। हरी सब्जियों-फलों को विशेष रूप से भोजन में शामिल करें।
- सर्दी के मौसम में प्यास कम लगती है, पर याद करके दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं।
- भरपूर नींद लें।
- तनावमुक्त रहने का अभ्यास करें।
- अगर आप प्राय: बीमारियों की चपेट में रहते हैं तो इसका अर्थ यह भी है कि आपके शरीर में एंटीबॉडीज कम बन रहे हैं। इसके लिए प्रोटीन को समुचित मात्रा में सेवन किया जाना चाहिए।
- सर्दियों में सूर्य की रोशनी में सवेरे तेल मालिश करने से भी
रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। विटामिन-डी रोगप्रतिरोधकता के लिए महत्त्वपूर्ण कारक है।
- लहसुन एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल है। जाड़े के दिनों में दिन में एक-दो लहसुन सेवन करना चाहिए।
- दिन में तीन-चार बार ग्रीन-टी पीने से रोगप्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है।
- सर्दी के मौसम के सभी खट्टे फल इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करते हैं।
- सर्दियों में सब्जियों का सूप पीना इम्यूनिटी तो बढ़ाता ही है, सर्दी-जुकाम में भी फायदा करता है।
- सर्दी-जुकाम-खांसी वगैरह ज्यादा दिनों तक बने रहें तो इसे सामान्य न समझें और इलाज कराएं।

बेहतर है होम्योपैथी
सर्दी के मौसम में होने वाले सामान्य सर्दी-जुकाम के लिए अंग्रेजी दवाएं खाने से बचना चाहिए, पर होम्योपैथी दवाएं सही लक्षणों के आधार पर दी जाएं तो सर्दी-जुकाम से छुटकारा तो मिलता ही है, साथ ही शरीर का इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है।

योगासन-प्राणायाम
व्यायाम की तमाम पद्धतियों में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने की दृष्टि से योगासन और प्राणायाम सबसे अच्छे उपाय हैं। सवेरे के समय नियमित रूप से आधे से एक घंटे तक योगासन-प्राणायाम करने से शरीर के भीतर हार्मोन संतुलन कायम करने में मदद मिलती है। योगासन, खासतौर से प्राणायाम तनाव दूर करने में काफी मददगार हैं। किसी योग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर अपने अनुकूल योगासनों का चयन करना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार जिन्हें समय कम मिल पाता हो, वे 15 मिनट तक रोज सूक्ष्म यौगिक क्रियाएं करें। 

हमारे विशेषज्ञ
- योगाचार्य अखिलेश तिवारी, तेलियरगंज, इलाहाबाद
- डॉ. ए. के. अरुण, होम्योपैथ, पश्चिम विहार, नई दिल्ली
- डॉ. संजय शर्मा, हृदय रोग विशेषज्ञ, जनकपुरी, दिल्ली

इनका ध्यान रखें
आंवला, नीबू, अदरक, कच्ची हल्दी और तुलसी को अपनी थाली में जरूर शामिल करें और इन्हें कम-से-कम 21 दिनों तक इस्तेमाल करें। यों पूरे मौसम भर इनका सेवन कर सकते हैं। 21 दिन के पीछे एक रहस्य है। वैद्य सदियों से ऐसा बताते रहे हैं, पर विज्ञान के नए शोधों ने भी प्रमाणित किया है कि कोई भी चीज तीन हफ्ते तक नियमित रूप से करने पर शरीर उसके प्रति अनुकूलता बैठाने लगता है। ये पांचों उपाय एक साथ भी कर सकते हैं, परंतु ऐसा करें तो कच्ची हल्दी को सवेरे के बजाय भोजन के साथ या दिन में अन्य किसी समय लें।

Research: संतरे का जूस और पत्तेदार हरी सब्जियां खाने से कम होगा बुढ़ापे में याददाश्त जाने का खतरा

शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि जो पुरुष बुढ़ापे से 20 साल पहले ज्यादा मात्रा में फल और सब्जियां खाते हैं, उनमें सोच और याददाश्त से जुड़ी परेशानियां कम होती हैं.


न्यूयार्कः जो पुरुष हरी पत्तेदार सब्जियां, गहरे नारंगी और लाल रंग वाली सब्जियां, बेरीज (स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी) खाते हैं तथा संतरे का जूस पीते हैं, उनके बुढ़ापे में याददाश्त खोने का खतरा कम हो जाता है. एक शोध से यह जानकारी मिली है. शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि जो पुरुष बुढ़ापे से 20 साल पहले ज्यादा मात्रा में फल और सब्जियां खाते हैं, उनमें सोच और याददाश्त से जुड़ी परेशानियां कम होती हैं, चाहे वे बाद में अधिक मात्रा में फल और सब्जियां खाएं या नहीं.

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संतरे के जूस के फायदे-
जो पुरुष अधिक सब्जियों का सेवन करते हैं उनमें कमजोर सोच कौशल विकसित होने की संभावना उन पुरुषों की तुलना में 34 फीसदी कम होती है, जो कम मात्रा में सब्जियों का सेवन करते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि जो पुरुष रोजाना संतरे का जूस पीते हैं उनमें कमजोर सोच कौशल विकसित होने की संभावना उन पुरुषों की तुलना में 47 फीसदी कम होती है, जो महीने में कम से कम एक बार भी संतरे के जूस का सेवन नहीं करते हैं.

Research : रोजाना 3-4 कप कॉफी टाइप-2 डायबिटीज रोकने में मददगार

न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया है शोध
हावर्ड यूनिवर्सिटी के बोस्टन स्थित टी. एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के चांगझेंग यूआन ने कहा, "इस शोध की सबसे खास बात यह थी कि हमने प्रतिभागियों का 20 साल की अवधि तक अध्ययन किया. हमारे शोध से इस संबंध में और पुख्ता सबूत सामने आएं हैं कि दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए सही खानपान महत्वपूर्ण है." यह शोध न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया है.

खड़े-खड़े बेहोश होना आम बात नहीं, कोई भी हो सकता है इस खतरनाक बीमारी का शिकार

यह शोध कुल 27,842 पुरुषों पर किया गया, जिनकी औसत उम्र 51 साल थी. इनमें 55 फीसदी प्रतिभागियों की अच्छी याददाश्य देखी गई, जबकि 38 फीसदी की ठीक-ठाक याददाश्त थी और केवल 7 फीसदी प्रतिभागियों की याददाश्त कमजोर थी. (इनपुटः भाषा)

Friday, 9 November 2018

जानें डायबिटीज में कौन-कौन से व्यायाम करने चाहिए

देश में युवाओं की एक बड़ी संख्या है, जो डायबिटीज की शिकार है या उसके निशाने पर है। यूं राहत के लिए दवाएं मौजूद हैं, लेकिन डायबिटीज से बचना है या उसे काबू में रखना है तो रोज व्यायाम करना ही बेहतर उपाय ह

मो. आमिर खानUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:57 PM IST

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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, व्यायाम का शुगर के स्तर पर 12 घंटे तक प्रभाव रहता है। जिन लोगों को डायबिटीज है, उनका नियमित रूप से व्यायाम करना उनके रक्त में शर्करा के स्तर को काबू रखने में मदद करता है, शरीर की इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है और यह इंसुलिन रोधी प्रवृत्ति को कम करता है। .

आंकड़ों की मानें तो डायबिटीज के मरीजों में से 80 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हृदय रोगों के कारण होती है। कई अनुसंधानों में ये बात सामने आई है कि जिन्हें डायबिटीज है, अगर वो सप्ताह में दो घंटे पैदल चलते हैं तो उनके हृदय रोगों की चपेट में आने की आशंका कम हो जाती है। लेकिन, चूंकि डायबिटीज में खून में ग्लूकोज के स्तर में उतार-चढ़ाव अधिक होता है, इसलिए व्यायाम के संबंध में विशेषज्ञों से सलाह लेना और कुछसावधानियां बरतना जरूरी है। .

जीवनशैली से जुड़ी है डायबिटीज
डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है। डायबिटीज तब होती है, जब अग्न्याशय यानी पैंक्रिअस पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या जब शरीर अग्न्याशय द्वारा स्रावित इंसुलिन का प्रभावकारी तरीके से उपयोग नहीं कर पाता है।
खानपान में गड़बड़ी, व्यायाम नहीं करने से हो सकती है यह बीमारी

इंसुलिन एक हार्मोन है, जो रक्त में शुगर को नियंत्रित रखता है। अनियंत्रित डायबिटीज के कारण रक्त में शुगर का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लाइसेमिया कहते हैं। वहीं जब रक्त में शुगर का स्तर बहुत कम हो जाता है तो इसे हाइपोग्लाइसेमिया कहते हैं। दोनों ही स्थितियां शरीर के लिए घातक हैं। चूंकि डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है, इसलिए जीवनशैली में परिवर्तन और नियमित रूप से व्यायाम करना, इसके प्रबंधन का एक प्रमुख हिस्सा है। अगर आप सक्रिय रहते हैं तो डायबिटीज को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं और खून में शुगर के स्तर को काबू कर पाएंगे। साथ ही दूसरे रोगों से बचे रह सकते हैं।

करें नियमित व्यायाम
व्यायाम के कईफायदे हैं। लेकिन उनमें से सबसे बड़ा फायदा है कि इससे खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। जिन लोगों को टाइप 2 डायबिटीज होती है, उनके रक्त में ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक होता है। उनका शरीर या तो पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं करता है, या इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण शरीर ठीक प्रकार से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाता है। डायबिटीज के मरीजों में कुछ स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है-जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, किडनी के रोग, और तंत्रिका तंत्र संबंधी रोग। अगर खून में शुगर का स्तर काबू में रहेगा तो इन जटिलताओं के विकसित होने का खतरा कम हो जाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए व्यायाम कईतरह से असरदार साबित होता है-.

- रक्त में शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है.
- रक्त दाब कम होता है.
- कोलेस्ट्रॉल का स्तर नहीं बढ़ता .
- इंसुलिन का इस्तेमाल करने की क्षमता बढ़ना.
- स्ट्रोक और हृदय रोगों का खतरा कम होना 'मोटापे से बचाव व तनाव से राहत .
Health Tips: सेहतमंद बने रहने के लिए अपनाएं ये बेसिक टिप्स

ये सावधानियां हैं जरूरी .
- व्यायाम करते समय ग्लूकोज, खून से निकलकर मांसपेशियों तक अधिक तेजी से पहुंचता है, जिसके कारण हाइपोग्लाइसेमिया हो सकता है। जो लोग इंसुलिन या दूसरी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें विशेष सावधानी रखने की जरूरत है। .

अपने डॉक्टर से बात करें : किसी भी तरह के एक्सरसाइज प्रोग्राम को शुरू करने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें, ताकि वो आपको बता सके कि कब और कितनी देर व्यायाम करना आपके लिए ठीक रहेगा।

ब्लड ग्लूकोज के स्तर को जांचें : व्यायाम से पहले, उसके दौरान और बाद में ख्ूान में शर्करा के स्तर की जांच करें। इससे आपको अपना व्यायाम शेड्यूल बनाने में मदद मिलेगी।

स्ट्रेस टेस्ट : अगर आपको हृदय रोगों का खतरा है तो आप स्ट्रेस टेस्ट (आपका शरीर कितना शारीरिक श्रम सह सकता है) भी कराएं। .

अपने शरीर की सुनें : जहां भी, जब भी एक्सरसाइज करें, सतर्क रहें। अपने शरीर के संकेतों को पहचानें। ढेर सारा पानी पिएं। अपने साथ हमेशा कोई कैंडी या ग्लूकोज की टैबलेट रखें। रक्त में शुगर का स्तर कम होने पर तुरंत इसे ले लें। हमेशा मेडिकल अलर्ट करने वाला ब्रेसलेट पहनें। साथ ग्लूकोज मीटर भी रख सकते हैं। शरीर सहन कर सके, उतना ही व्यायाम करें। .

कौन से व्यायाम हैं बेहतर
एरोबिक और रेजिस्टेंस ट्रेनिंग, दोनों करें तो अधिक प्रभावी होगा। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार भी डायबिटीज के प्रबंधन के लिए एरोबिक व स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग दोनों तरह के व्यायाम करना अच्छा रहता है।.

एरोबिक एक्सरसाइज : इस तरह के एक्सरसाइज में हृदय गति बढ़ाने के लिए एक लय में हाथों और पैरों का लगातार इस्तेमाल किया जाता है। .

इसमें सम्मिलित हैं दौड़ना, भागना, नाचना, साइकिल चलाना, तेज चलना और जॉगिंग। एरोबिक्स से अग्न्याशय, हृदय और फेफड़े बेहतर तरीके से काम करते हैं। शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है। शरीर के सभी हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचती है। .

स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग : इसे रेजिस्टेंस ट्रेनिंग भी कहते हैं। यह व्यायाम शरीर को इंसुलिन के प्रति संवेदनशील बनाता है। खून में शुगर का स्तर कम करने में मदद करता है। इसे सप्ताह में दो बार करें, पर लगातार दो दिन न करें। वेट लिफ्टिंग, पुश-अप्स, लिफ्ट-अप्स, स्क्वैट, प्लांक, रेजिस्टेंस बैंड का इस्तेमाल आदि इसमें *आते हैं।.

(विशेषज्ञ: डॉ. रमन कुमार, अध्यक्ष, एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया, दिल्ली)
(डॉ. सबिता, न्युट्रिशनिस्ट एंड डायबिटीज एजुकेटर, फ्लोरेंस हॉस्पिटल, गाजियाबाद)

कितना कारगर है योग
योग तन-मन को ठीक रखने और सेहत से जुड़ी विभिन्न समस्याओं को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेडिकल साइंस ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कई योगासन हैं, जिनसे अग्न्याशय की बी-सेल्स अधिक बेहतर तरीके से काम करती हैं और शरीर में इंसुलिन का स्राव बेहतर होता है। .

कपालभाति :नियमित रूप से कपालभाति करने से डायबिटीज का प्रबंधन बेहतर तरीके से होता है। जमीन पर सीधे बैठ जाएं और नाक से सांस को तेजी से बाहर की ओर छोड़ें, ऐसा करते समय पेट को अंदर की तरफ खीचें। फिर तुरंत ही नाक से सांस को अंदर की ओर खीचें और पेट को बाहर निकालें। इसे रोजाना 70-100 बार करें। .

मंडूक आसन : इससे अग्न्याशय की कार्यप्रणाली दुरुस्त होती है। यह पेट और हृदय के लिए भी अच्छा आसन है। पैरों को सटाते हुए, घुटनों के बल बैठ जाएं, अपने नितंबों को एड़ियों पर टिका लें। आप दोनों हाथों की मुट्ठियां बंद कर लें। अब दोनों मुट्ठियों को नाभि के दोनों ओर लगाकर श्वास बाहर निकालते हुए सामने झुकते हुए ठोड़ी को भूमि पर टिका दें। थोड़ी देर इस स्थिति में रहने के बाद सीधे हो जाएं। .

धनुरासन : धनुरासन से अग्न्याशय सक्रिय होता है और इंसुलिन के स्राव में मदद मिलती है, जो रक्त में शर्करा का स्तर नियंत्रित करने के लिए जरूरी है। टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज, दोनों के रोगियों के लिए ये अच्छा है।.

वृक्षासन : वृक्षासन का नाम वृक्ष शब्द से पड़ा है, क्योंकि इस आसन में पेड़ की मुद्रा में खड़े होना होता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए ये बहुत लाभदायक है।.

कुछ खास बातें
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा प्रकाशित विशेष हेल्थ रिपोर्ट, ‘लिविंग विद डायबिटीज' के अनुसार, डायबिटीज में हर रोज व्यायाम करना फायदेमंद है, पर कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।
- 'सप्ताह में 5 बार, 30 मिनट व्यायाम करें। डायबिटीज साइंस एंड टेक्नोलॉजी जनरल में 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जो लोग इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, अगर वो खाना खाने के पहले व्यायाम करते हैं तो रक्त में शर्करा का स्तर अधिक नहीं बढ़ता है। जो लोग इंसुलिन लेते हैं, उन्हें हाइपोग्लाइसेमिया की आशंका अधिक होती है, ऐसे लोगों का खाना खाने के 1-3 घंटे के भीतर व्यायाम करना अच्छा रहता है। आधे घंटे से अधिक एक्सरसाइज न करें, क्योंकि इससे रक्त में शुगर के स्तर में तेजी से कमी आ सकती है। आपने कभी एक्सरसाइज नहीं किया है तो शुरुआत 5-10 मिनट से करें।.

- अगर आप एक्सरसाइज न कर पाएं तो चढ़ने-उतरने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल करें, घर की सफाई करें, बाजार में पैदल घूमकर शॉपिंग करें, बागवानी करें, बच्चों और पालतू पशुओं के साथ खेलें।

शुगर लेवल कम होने पर ये करें
यह बहुत जरूरी है कि एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर के स्तर की जांच करें। अगर एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर का स्तर 100 एमजी/डीएल है, तो कोई फल या स्नैक्स ले लें, इससे रक्त में शुगर का स्तर बढ़ जाएगा और आप हाइपोग्लाइसेमिया से बच जाएंगे। 30 मिनट बाद फिर जांचें कि आपके रक्त में शुगर स्तर स्थिर है या नहीं। वर्कआउट के बाद भी शुगर की जांच करें। अगर आप इंसुलिन ले रहे हैं तो एक्सरसाइज के बाद हाइपोग्लाइसेमिया का रिस्क बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आपका शुगर लेवल बहुत अधिक (250 के ऊपर) हो तो भी एक्सरसाइज न करें, क्योंकि कई बार एक्सरसाइज करने से रक्त में शुगर का स्तर और बढ़ जाता है।.

तो व्यायाम बंद कर दें.
'सिर हल्का होना या चक्कर आना
- 'हृदय की धड़कनें तेज हो जाना
- छाती में जकड़न 'जी मिचलाना
- 'अचानक कमजोरी महसूस होना 'सांस लेने में परेशानी होना
- 'गंभीर थकान या उनींदापन महसूस होना।

अब लौट आइए सेहत की ओर, दूर करें त्योहारों की थकान, अपनाएं ये Tips

त्योहार के मौसम में सबसे पहले सेहत की ही अनदेखी होती है। खान-पान बिगड़ जाता है, भाग-दौड़ थका देती है और हवा में प्रदूषण तो है ही। चूंकि ठंड दस्तक दे चुकी है, तो जरूरत है अपनी दिनचर्या ठीक करने की।

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शमीम खान,नई दिल्लीUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:43 PM IST

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त्योहारों के दौरान अनियमित जीवनशैली, व्यस्तता, बढ़ा हुआ धूल और धुएं का स्तर, सेहत पर बुरा असर डालने लगते हैं। इस वजह से शरीर में टॉक्सिन्स यानी विषैले तत्वों की मात्रा बढ़ने लगती है। एसिडिटी और कब्ज भी परेशान करने लगते हैं। सेहत को पटरी पर वापस लाने के लिए सबसे पहले शरीर के आंतरिक तंत्र को विषैले और हानिकारक रसायनों से मुक्त करना जरूरी हो जाता है। कुछ दिन के लिए कुछबातों का ध्यान रखना शरीर को टॉक्सिन फ्री करने में मदद कर सकता है।

खान-पान में बदलाव करें
एल्कोहल, कॉफी, धूम्रपान, रिफाइंड शुगर और सैचुरेटेड फैट, ये सब शरीर में विषैले तत्व बढ़ाते हैं, जिससे शरीर की कार्यप्रणाली गड़बड़ाने लगती है।

खूब पानी पिएं
एक अच्छी डिटॉक्स डाइट में 60 प्रतिशत तरल और 40 प्रतिशत ठोस खाद्य पदार्थ होना चाहिए। शरीर से टॉक्सिन बाहर निकालने का पहला नियम है कि खूब पानी पिएं। शरीर में पानी की कमी न होने दें।

फल खाएं व जूस पिएं
मौसमी फलों का जूस पिएं। पपीता और खीरे का जूस भी आंतों की सफाई करता है। अंगूर का रस न पिएं। यह सफाई की प्रक्रिया में ब्लॉकिंग एजेंट के रूप में काम करता है।

खूब सब्जियां खाएं
पपीता और अनन्नास, दोनों ही पेट को फायदा पहुंचाते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां, फूलगोभी, पत्तागोभी और ब्रोकली का सेवन करें। प्याज भी अच्छा क्लींजिंग एजेंट है। शलजम लिवर को डिटॉक्स करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कम मसालेदार उबली हुई सब्जियां खाएं।

बीजों की ताकत
अलसी, तिल, सूरजमुखी और कद्दू के बीजों का सेवन करें। ताकत भी मिलेगी और जरूरी पोषक तत्वों का पोषण भी।

कैसे करें शुरुआत
सप्ताह में एक बार डिटॉक्स डाइट पर रहें। चार सप्ताह तक ऐसा करें। वजन ज्यादा है तो सप्ताह में दो बार भी डिटॉक्स डाइट अपना सकते हैं। इस दौरान कैफीन युक्त चीजें न लें। अधिक चीनी व नमक न खाएं। जंक फूड का सेवन न करें। सप्ताह में एक से दो दिन ही पर्याप्त है, वरना कमजोरी महसूस होने लगेगी।

किस तरह होता है असर
हल्का व सुपाच्य भोजन पाचन तंत्र को राहत देता है। अंगों पर कम दबाव पड़ता है। लिवर की कार्य क्षमता बढ़ने से विषैले तत्व तेजी से बाहर निकलने लगते हैं। किडनी, आंत और त्वचा की अंदरूनी सफाईहोती है। रक्त संचार बेहतर होने के साथ दर्द व सूजन जैसे लक्षणों में भी कमी आती है। कमर या पैरों में दर्द की समस्या है तो पहले मसाज, गर्म व ठंडे पानी की सेंक या फिजियो-थेरेपी की मदद से दर्द व सूजन को कम करने पर ध्यान दें। डॉक्टर के बताएं व्यायाम को नियमित करें।

पेट को दें आराम
- दिन की शुरुआत एक गिलास गुनगुने पानी से करें। इसमें आधा चम्मच शहद और एक चम्मच नीबू का रस भी मिला लें।
- खाने के साथ सलाद, दही, छाछ और सूप जरूर लें।.
- अधिक मसालेदार भोजन न करें।
- हल्के-फुल्के नाश्ते के तौर पर केला, मखाना या पोहा आदि लें।

थकान दूर करें
त्योहारों के दौरान पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है। उस पर अगर नींद पूरी नहीं हुई है तो थकान का असर पूरे शरीर पर पड़ने लगता है। अधिक तला-भुना खाने से परहेज करें। साथ ही नींद पूरी करने पर ध्यान दें। नियमित व्यायाम करने से रक्त संचरण सुधरता है और शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ता है।

दमा रोगी रखें ध्यान
दिवाली के तुरंत बाद वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड का प्रतिशत 10 गुना और विषैले तत्वों की मात्रा 2-3 गुना तक बढ़ जाती है। कई जगह प्रदूषण का स्तर 200 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। धुंध के कारण प्रदूषक तत्व हवा में नीचे ही रहने लगते हैं। बेहतर है कुछ दिन तड़के सुबह घर से बाहर न निकलें। मास्क पहन कर रखें। दवाएं लेने में लापरवाही न बरतें। ये उपाय श्वास नली को आराम देंगे। सुबह घर में ही सांस से जुड़े व्यायाम करें। - शमीम खान

Wednesday, 7 November 2018

खूब मस्ती से मनाएं दिवाली, लेकिन सेहत के लिए रखें इन बातों का विशेष ध्यान

रोशनी का त्योहार कब प्रदूषण के त्योहार में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला! दिवाली की खुशियों के बीच सेहत का ध्यान कैसे रखें, बता रही हैं स्वाति गौड़

तो दिवाली का त्योहार रोशनी का प्रतीक है, इसलिए लोग इस अवसर पर खूब दीये जलाते हैं और जमकर लाइटिंग वगैरह भी करते हैं, लेकिन खूब सारी रोशनी के साथ-साथ दिवाली पर कानफोड़ू पटाखे भी भारी मात्रा में छोड़े जाते हैं, जिससे फैलने वाले प्रदूषण से हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ आस-पास के पर्यावरण पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है।

हालांकि दिवाली पर प्रदूषण की मार से बचने के लिए इस साल भी सुप्रीम कोर्ट से दिशा-निर्देश जारी हुए हैं, जिसमें पटाखे छोड़ने के समय आदि के संबंध में कई बातें कही गयी हैं। लेकिन इन दिनों मौसम के बदलने और दिवाली के कारण पटाखों के साथ-साथ अन्य कई चीजों से पैदा होने वाले दमघोंटू प्रदूषण से बचने के लिए आपको अपने स्तर पर भी पुख्ता तैयारी करने की जरूरत है। विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों व सांस की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को बहुत अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता है।

बच्चों का ऐसे रखें ध्यान
दिवाली पर छोड़े जाने वाले कुछ पटाखे बहुत ज्यादा तेज आवाज के होते हैं, जो छोटे बच्चों की सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए कोशिश करें कि बच्चे को घर के अंदर ऐसे किसी स्थान पर रखें, जहां तेज पटाखों की आवाज कम से कम आये। कानों में रुई लगा देने से भी तेज आवाज से बचा जा सकता है। इसके अलावा पटाखों से निकलने वाला हानिकारक धुआं बच्चों के फेफड़ों को बहुत ज्यादा
नुकसान पहुंचा सकता है, जिसकी वजह से उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इसलिए घर के खिड़की-दरवाजे अच्छी तरह से बंद रखें, ताकि हानिकारक और जहरीला धुआं घर में प्रवेश न कर पाये।

घर में यदि बुजुर्ग हों तो

घर में बुजुर्ग व्यक्ति के होने पर कोशिश करें कि बहुत ज्यादा तेज आवाज वाले पटाखे न छोड़ें। न ही बुजुर्ग व्यक्ति खुद से ऐसे पटाखे छोड़ें, जिन्हें छोड़ने के तुरंत बाद तेजी से दूर जाना पड़ता है। उदाहरण के लिए रॉकेट, क्योंकि यह तेजी से हवा में जाता है और इससे बहुत हानिकारक धुआं भी निकलता है। अगर बच्चों के साथ पटाखे छोड़ रहे हैं, तो हानिकारक धुएं से बचने के लिए खुद मास्क जरूर पहनें।

सांस के मरीज बरतें विशेष सावधानी

जिन लोगों को सांस लेने में वैसे भी दिक्कत रहती है, उन्हें सलाह है कि वह दिवाली से पहले एक बार अपने डॉक्टर से जरूर मिल लें। डॉक्टर से दिवाली से पहले और बाद में होने वाले प्रदूषण के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जरूरी दवाइयां लेना न भूलें। दिवाली वाले दिन घर से बाहर निकलने से परहेज करें। यदि धुएं की वजह से छाती में जकड़न व सांस लेने में तकलीफ हो तो तुरंत डॉक्टर द्वारा बताया गया इनहेलर लें या जरूरत पड़ने पर नेबुलाइजर जरूर लें। ऐसे में भाप लेने से भी थोड़ी-बहुत राहत मिल सकती है। लेकिन इसके बावजूद आराम न मिले और सांस लेने में दिक्कत हो रही हो, तो तुरंत किसी नजदीकी अस्पताल में चले जाएं।
दिवाली के बाद भी रहता है प्रदूषण पटाखों से निकलने वाला जहरीला धुआं और गैस वातारण में लंबे समय तक बने रहते हैं और अपना दुष्प्रभाव छोड़ते रहते हैं। इसलिए दिवाली बाद भी आप प्रदूषण के खतरों के प्रति सचेत रहें। कोशिश करें कि दिवाली की अगली सुबह या कुछ दिनों बाद तक तड़के घर से न निकलें। यदि निकलना भी पड़े तो कोशिश करें कि दोपहर के बाद ही घर से निकलें।

दरअसल, दिवाली के बाद वातावरण में जो धुएं की मोटी परत जम जाती है उसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए बाद में भी मास्क पहनें और ज्यादा दिक्कत होने पर गीला रूमाल नाक पर बांधें।
(डॉ. विजय दत्ता, सीनियर कंसल्टेंट, रेस्पाइरेटरी मेडिसिन, इंडियन स्पायनल इंजरी सेंटर, वसंत कुंज, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित)