Saturday, 24 November 2018

कैंसर, मिर्गी और एनीमिया के इलाज के लिए CSIR भांग पर कर रही रिसर्च






थमिक तौर पर भांग से प्राप्त औषधि का परीक्षण सबसे पहले मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल अस्पताल में किया जाएगा.

नई दिल्ली: वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) कैंसर, मिर्गी और सिकल सेल एनीमिया (खून की कमी) जैसे रोगों के उपचार के लिए भांग के औषधीय उपयोग पर शोध कर रही है. सीएसआईआर और भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (आईआईआईएम) के निदेशक राम विश्वकर्मा ने शुक्रवार को यहां कहा, कि हमें जम्मू-कश्मीर सरकार से शोध कार्यक्रम का संचालन करने का लाइसेंस मिला है. हमने इसपर पहले ही काम शुरू कर दिया है. मानव पर ड्रग के रूप में भांग के उपयोग की अनुमति के लिए जल्द ही हम भारत के ड्रग महानियंत्रक (डीसीजीआई) से मिलेंगे.

बांबे हेंप कंपनी (बोहेको) के सहयोग से सीएसआईआर-आईआईएम को भांग उगाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अप्रैल 2017 में लाइसेंस जारी किया था. उन्होंने कहा कि प्राथमिक तौर पर भांग से प्राप्त औषधि का परीक्षण सबसे पहले मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल अस्पताल में किया जाएगा.


बांबे हेंप कंपनी के सह-संस्थापक जहान पेस्टोन जामास ने कहा कि मिरगी जैसे क्रोनिक रोगों के इलाज में भांग से बनने वाली दवाइयां असरदार साबित हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि कई अनुसंधान से पता चला है कि भांग का दुष्प्रभाव नगण्य होता है जबकि औषधीय गुणों के कारण मानसिक रोगों के अलावा कैंसर के इलाज में भी इससे निर्मित दवाइयों का उपयोग हो सकता है.

बांबे हेंप कंपनी (बोहेको) वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (आईआईआईएम) की ओर से यहां आयोजित एक कार्यक्रम के मौके पर आईएएनएस से बातचीत में जमास ने कहा, "भांग में टेट्रा हाइड्रो कैनाबिनोल (टीएचसी) नामक एक रसायन होता है, जिससे नशा होती है. इसके अलावा भांग में सारे औषधीय गुण होते हैं.


उन्होंने कहा, "टीएचसी का उपयोग दर्द निवारक दवाओं में किया जाता है, जो कैंसर से पीड़ित मरीजों को दर्द से राहत दिलाने में असरदार होती है." जमास ने कहा कि दवाई बनाने के लिए भांग की खेती करने की जरूरत है, लेकिन वर्तमान नारकोटिक्स कानून में भांग की पत्ती और फूल दोनों को शामिल किए जाने से इसमें रुकावट आती है. उन्होंने कहा, "सरकार से हमारी मांग है कि ऐसी नीतियां बनाई जाएं, जिससे अनुसंधान के उद्देश्य से भांग की खेती करने की अनुमति हो." उन्होंने कहा कि गांजे से 15,000 उत्पाद बनाए जा सकते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार की औषधियों के रूप में किया जा सकता है.

इस मौके सांसद गांधी ने बातचीत में कहा, "हमारे पूर्वज अनादि काल से भांग और गाजे का सेवन करते आए हैं. यहां तक कि भागवान शंकर हो भी भांग चढ़ाया जाता है. इस प्रकार पहले कभी भांग और गाजे के सेवन को लेकर कोई समस्या नहीं आई, लेकिन इस क्षेत्र में माफिया की पैठ होने पर समस्या गंभीर बन गई है. ड्रग माफिया युवाओं में नशाखोरी को बढ़ावा दे रहा है.

एनडीपीएस मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ वकील प्रसन्ना नंबूदिरी ने कहा, "एनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 10 (2) (डी) के तहत जो रोक है, उसके अनुसार भांग की पैदावार करने वालों को राज्य सरकार के अधिकारियों के यहां भांग को जमा कराना होता है और यह चिकित्सकीय एवं वैज्ञानिक उद्देश्य के लिए भांग के पौधों की पैदावार करने की दिशा में एक बड़ी बाधा है. भांग की खेती करने के संबंध में एनडीपीएस नियम बनाने के मामले में अनेक राज्य सरकारों की विफलता भी एक बड़ी रुकावट है."

बोहेको की स्थापना 2013 में की गई थी. यह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के साथ साझेदारी में भांग के चिकित्सा और औद्योगिक उपयोग का अध्ययन करने वाला भारत में पहला स्टार्टअप है.

Friday, 23 November 2018

सेहत का ख्याल रखेगा एयर पॉल्यूशन मॉनिटर

वातावरण में कई तरह की जहरीली गैस फैली होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर एक ऐसी डिवाइस है, जो समय-समय पर आपको खराब वातावरण की जानकारी देती रहती है। क्या है ये डिवाइस, बता रही हैं नीतिका श्रीवास्तव


बढ़ते प्रदूषण में सांस से संबंधित बीमारियों का होना आम बात है। हवा में गंदगी होने से अस्थमा और कई तरह की एलर्जी शरीर को घेर लेती हैं और अंदर ही अंदर शरीर को गलाने लगती हैं। ऐसे में हमें एक केयर टेकर की जरूरत होती है, जो आस-पास की हवा के बारे में सही जानकारी दे सके और समय-समय पर वातावरण को लेकर सक्रिय कर सके। कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर एक ऐसी ही डिवाइस है, जो आपको सेहत के प्रति सजग रख सकती है। क्या है ये डिवाइस और कैसे करती है काम, आइये जानें

क्या है ये डिवाइस
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर हाथ में आसानी से आ जाने वाली डिवाइस है, जिसे आसानी से कहीं पर भी साथ में ले जाया जा सकता है। इस डिवाइस का साथ में रहना बेहद जरूरी भी है। कॉम्पैक्ट आकार और यूएसबी कनेक्टिविटी एटमोट्यूब के साथ आने वाली ये डिवाइस आपको आसपास के वातावरण के बारे में सटीक जानकारी देती है, साथ ही जिस हवा में आप हैं, उसके तापमान के बारे में भी बताती है। उचित परिणाम जानने के लिए आपको अपने स्मार्टफोन को ब्लूटूथ के जरिये इस डिवाइस से कनेक्ट करना होता है।

कैसे करती है काम
ये डिवाइस खासकर अस्थमा और किसी भी तरह की एलर्जी से पीड़ित लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गयी है। इस डिवाइस में लगा सेंसर हवा में हानिकारक गैसों और कार्बनिक यौगिकों की मौजूदगी के बारे में सही समय पर सजग करता है। यह डिवाइस आसपास के वातावरण में हवा का तापमान और आद्र्रता को भी मापती है। इस डिवाइस को चार्ज करने के बाद इस्तेमाल में लाया जा सकता है, साथ ही कॉम्पैक्ट वायु गुणवत्ता वाली इस डिवाइस को हमेशा अपने साथ रख सकते हैं। हवा की जानकारी अपने स्मार्टफोन के स्क्रीन में भी आसानी से देख सकते हैं। भारतीय बाजार में इसकी कीमत 15 सौ रुपए से शुरू होती है। ब्रांड के हिसाब से कीमत बढ़ भी सकती है।

ये हैं खासियतें
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर वास्तविक समय पर एयर गुणवत्ता ट्रैक करके आपको अनुमानित परिणाम तो बताता ही है, साथ ही आपको अच्छे स्वास्थ के प्रति सचेत भी करता है। ये डिवाइस पोर्टेबल और पहनने योग्य भी है। ये डिवाइस एक मजबूत टाइटेनियम लेपित एटमोट्यूब से बनी होती है। डिवाइस देखने में बेहद आकर्षक है। इस डिवाइस की खासियत ये है कि जब भी आसपास की हवा में खराबी होगी, ये अलार्म के जरिये बार-बार अलर्ट कर देगी, जो आपको स्वस्थ रहने में मदद करती है।

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कैसे करें दुरुस्त, पढ़ें कारगर Tips

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि आपकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो। इस प्रतिरोधक क्षमता को खान-पान, व्यायाम, अच्छी नींद आदि में संतुलन बनाकर ठीक कर सकते हैं, जिसके लिए यह मौसम भी अनुकूल है।


Health Tips: Simple and Natural Ways to Boost Your Immune System

इंद्रेश समीरUpdated: Fri, 23 Nov 2018 01:59 PM IST

अ+ अ-

अपने आसपास आप अकसर देखते होंगे कि सेहत और कद-काठी के मामले में एक जैसे दिखने वाले कई लोगों में से कुछ लोग बार-बार बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जबकि कुछ पर मौसम की मार या संक्रमण वगैरह का भी ज्यादा असर नहीं होता। आखिर वजह क्या है? असल में हर जीवित शरीर में प्रकृति ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई हुई है, जो उसे नुकसानदेह जीवाणुओं, विषाणुओं और माइक्रोब्स वगैरह से बचाती है। इसे ही रोगप्रतिरोधक शक्ति या इम्यूनिटी कहा जाता है।

जिसकी इम्यूनिटी मजबूत है, उसके शरीर में रोगाणु पहुंचकर भी नुकसान नहीं कर पाते, पर जिसकी इम्यूनिटी कमजोर हो गई हो, वह जरा-से मौसमी बदलाव में भी रोगाणुओं के आक्रमण को झेल नहीं पाता। जब बाहरी रोगाणुओं की तुलना में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, तो इसका असर सर्दी, जुकाम, फ्लू, खांसी, बुखार वगैरह के रूप में हम सबसे पहले देखते हैं। जो लोग बार-बार ऐसी तकलीफों से गुजरते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि उनकी इम्यूनिटी ठीक से उनका साथ नहीं दे रही है और उसे मजबूत किए जाने की जरूरत है। सर्दियों का मौसम एक तरह से रोगप्रतिरोधक शक्ति के परीक्षण का मौसम है, लेकिन अच्छी बात यह है कि रोगप्रतिरोधक शक्ति को मजबूत बनाने के लिए भी यही सबसे अच्छा मौसम है।

सेहत के लिए फायदेमंद है इंडोर गेम्स, जानें क्यों

क्यों होती है इम्यूनिटी कमजोर
- शरीर में चर्बी का अनावश्यक रूप से जमा होना।
- वजन बहुत कम होना।
- फास्टफूड, जंकफूड आदि का ज्यादा सेवन।
- शरीर को ठीक से पोषण न मिलना।
- धूम्रपान, शराब, ड्रग आदि का सेवन।
- पेनकिलर, एंटीबॉयोटिक आदि दवाओं का लंबे समय तक सेवन।
- लंबे समय तक तनाव में रहना।
- लंबे समय तक कम नींद लेना अथवा अनावश्यक रूप से देर तक सोना।
- शारीरिक श्रम का अभाव।
- प्रदूषित वातावरण में लंबे समय तक रहना।
- बचपन और बुढ़ापे में रोगप्रतिरोधक शक्ति सामान्य तौर पर कुछ कमजोर होती है, पर खराब जीवनशैली के चलते युवावस्था में भी यह कमजोर हो सकती है।
- गर्भवती स्त्री का खान-पान ठीक न हो या वह कुपोषण का शिकार हो तो होने वाले बच्चे की भी रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की संभावना बनी रहती है।
- अगर आप चीनी ज्यादा खाते हैं तो यह इम्यूनिटी के लिए नुकसानदेह है। अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन में छपे एक शोध के अनुसार सौ ग्राम या इससे अधिक शुगर खा लेने की स्थिति में श्वेत रुधिर कणिकाओं की रोगाणुओं को मारने की क्षमता पांच घंटे तक के लिए कमजोर पड़ जाती है।
- कम पानी पीने से इम्यूनिटी कमजोर पड़ती है, क्योंकि पर्याप्त पानी के अभाव में शरीर से विजातीय द्रव्यों को बाहर निकाल पाना कठिन हो जाता है।+

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ऐसे बढ़ाएं इम्यूनिटी
- आहार में एंटीऑक्सिडेंट की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। एंटीऑक्सिडेंट बीमार कोशिकाओं को दुरुस्त करते हैं और सेहत बरकरार रखते हुए उम्र के असर को कम करते हैं। बीटा केरोटिन, सेलेनियम, विटामिन-ए, विटामिन-बी2 व बी6, विटामिन-सी, विटामिन-ई, विटामिन-डी तर्था ंजक रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं। इन तत्त्वों की भरपाई के लिए गाजर, पालक, चुकंदर, टमाटर, फूलगोभी, खुबानी, जौ, भूरे चावल, शकरकंद, संतरा, पपीता, बादाम, दूध, दही, मशरूम, लौकी के बीज, तिल आदि उपयोगी हैं। हरी सब्जियों-फलों को विशेष रूप से भोजन में शामिल करें।
- सर्दी के मौसम में प्यास कम लगती है, पर याद करके दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं।
- भरपूर नींद लें।
- तनावमुक्त रहने का अभ्यास करें।
- अगर आप प्राय: बीमारियों की चपेट में रहते हैं तो इसका अर्थ यह भी है कि आपके शरीर में एंटीबॉडीज कम बन रहे हैं। इसके लिए प्रोटीन को समुचित मात्रा में सेवन किया जाना चाहिए।
- सर्दियों में सूर्य की रोशनी में सवेरे तेल मालिश करने से भी
रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। विटामिन-डी रोगप्रतिरोधकता के लिए महत्त्वपूर्ण कारक है।
- लहसुन एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल है। जाड़े के दिनों में दिन में एक-दो लहसुन सेवन करना चाहिए।
- दिन में तीन-चार बार ग्रीन-टी पीने से रोगप्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है।
- सर्दी के मौसम के सभी खट्टे फल इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करते हैं।
- सर्दियों में सब्जियों का सूप पीना इम्यूनिटी तो बढ़ाता ही है, सर्दी-जुकाम में भी फायदा करता है।
- सर्दी-जुकाम-खांसी वगैरह ज्यादा दिनों तक बने रहें तो इसे सामान्य न समझें और इलाज कराएं।

बेहतर है होम्योपैथी
सर्दी के मौसम में होने वाले सामान्य सर्दी-जुकाम के लिए अंग्रेजी दवाएं खाने से बचना चाहिए, पर होम्योपैथी दवाएं सही लक्षणों के आधार पर दी जाएं तो सर्दी-जुकाम से छुटकारा तो मिलता ही है, साथ ही शरीर का इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है।

योगासन-प्राणायाम
व्यायाम की तमाम पद्धतियों में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने की दृष्टि से योगासन और प्राणायाम सबसे अच्छे उपाय हैं। सवेरे के समय नियमित रूप से आधे से एक घंटे तक योगासन-प्राणायाम करने से शरीर के भीतर हार्मोन संतुलन कायम करने में मदद मिलती है। योगासन, खासतौर से प्राणायाम तनाव दूर करने में काफी मददगार हैं। किसी योग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर अपने अनुकूल योगासनों का चयन करना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार जिन्हें समय कम मिल पाता हो, वे 15 मिनट तक रोज सूक्ष्म यौगिक क्रियाएं करें। 

हमारे विशेषज्ञ
- योगाचार्य अखिलेश तिवारी, तेलियरगंज, इलाहाबाद
- डॉ. ए. के. अरुण, होम्योपैथ, पश्चिम विहार, नई दिल्ली
- डॉ. संजय शर्मा, हृदय रोग विशेषज्ञ, जनकपुरी, दिल्ली

इनका ध्यान रखें
आंवला, नीबू, अदरक, कच्ची हल्दी और तुलसी को अपनी थाली में जरूर शामिल करें और इन्हें कम-से-कम 21 दिनों तक इस्तेमाल करें। यों पूरे मौसम भर इनका सेवन कर सकते हैं। 21 दिन के पीछे एक रहस्य है। वैद्य सदियों से ऐसा बताते रहे हैं, पर विज्ञान के नए शोधों ने भी प्रमाणित किया है कि कोई भी चीज तीन हफ्ते तक नियमित रूप से करने पर शरीर उसके प्रति अनुकूलता बैठाने लगता है। ये पांचों उपाय एक साथ भी कर सकते हैं, परंतु ऐसा करें तो कच्ची हल्दी को सवेरे के बजाय भोजन के साथ या दिन में अन्य किसी समय लें।

Research: संतरे का जूस और पत्तेदार हरी सब्जियां खाने से कम होगा बुढ़ापे में याददाश्त जाने का खतरा

शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि जो पुरुष बुढ़ापे से 20 साल पहले ज्यादा मात्रा में फल और सब्जियां खाते हैं, उनमें सोच और याददाश्त से जुड़ी परेशानियां कम होती हैं.


न्यूयार्कः जो पुरुष हरी पत्तेदार सब्जियां, गहरे नारंगी और लाल रंग वाली सब्जियां, बेरीज (स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी) खाते हैं तथा संतरे का जूस पीते हैं, उनके बुढ़ापे में याददाश्त खोने का खतरा कम हो जाता है. एक शोध से यह जानकारी मिली है. शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि जो पुरुष बुढ़ापे से 20 साल पहले ज्यादा मात्रा में फल और सब्जियां खाते हैं, उनमें सोच और याददाश्त से जुड़ी परेशानियां कम होती हैं, चाहे वे बाद में अधिक मात्रा में फल और सब्जियां खाएं या नहीं.

दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण 89 प्रतिशत लोग बीमार या बेचैन: रिपोर्ट

संतरे के जूस के फायदे-
जो पुरुष अधिक सब्जियों का सेवन करते हैं उनमें कमजोर सोच कौशल विकसित होने की संभावना उन पुरुषों की तुलना में 34 फीसदी कम होती है, जो कम मात्रा में सब्जियों का सेवन करते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि जो पुरुष रोजाना संतरे का जूस पीते हैं उनमें कमजोर सोच कौशल विकसित होने की संभावना उन पुरुषों की तुलना में 47 फीसदी कम होती है, जो महीने में कम से कम एक बार भी संतरे के जूस का सेवन नहीं करते हैं.

Research : रोजाना 3-4 कप कॉफी टाइप-2 डायबिटीज रोकने में मददगार

न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया है शोध
हावर्ड यूनिवर्सिटी के बोस्टन स्थित टी. एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के चांगझेंग यूआन ने कहा, "इस शोध की सबसे खास बात यह थी कि हमने प्रतिभागियों का 20 साल की अवधि तक अध्ययन किया. हमारे शोध से इस संबंध में और पुख्ता सबूत सामने आएं हैं कि दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए सही खानपान महत्वपूर्ण है." यह शोध न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया है.

खड़े-खड़े बेहोश होना आम बात नहीं, कोई भी हो सकता है इस खतरनाक बीमारी का शिकार

यह शोध कुल 27,842 पुरुषों पर किया गया, जिनकी औसत उम्र 51 साल थी. इनमें 55 फीसदी प्रतिभागियों की अच्छी याददाश्य देखी गई, जबकि 38 फीसदी की ठीक-ठाक याददाश्त थी और केवल 7 फीसदी प्रतिभागियों की याददाश्त कमजोर थी. (इनपुटः भाषा)

Friday, 9 November 2018

जानें डायबिटीज में कौन-कौन से व्यायाम करने चाहिए

देश में युवाओं की एक बड़ी संख्या है, जो डायबिटीज की शिकार है या उसके निशाने पर है। यूं राहत के लिए दवाएं मौजूद हैं, लेकिन डायबिटीज से बचना है या उसे काबू में रखना है तो रोज व्यायाम करना ही बेहतर उपाय ह

मो. आमिर खानUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:57 PM IST

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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, व्यायाम का शुगर के स्तर पर 12 घंटे तक प्रभाव रहता है। जिन लोगों को डायबिटीज है, उनका नियमित रूप से व्यायाम करना उनके रक्त में शर्करा के स्तर को काबू रखने में मदद करता है, शरीर की इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है और यह इंसुलिन रोधी प्रवृत्ति को कम करता है। .

आंकड़ों की मानें तो डायबिटीज के मरीजों में से 80 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हृदय रोगों के कारण होती है। कई अनुसंधानों में ये बात सामने आई है कि जिन्हें डायबिटीज है, अगर वो सप्ताह में दो घंटे पैदल चलते हैं तो उनके हृदय रोगों की चपेट में आने की आशंका कम हो जाती है। लेकिन, चूंकि डायबिटीज में खून में ग्लूकोज के स्तर में उतार-चढ़ाव अधिक होता है, इसलिए व्यायाम के संबंध में विशेषज्ञों से सलाह लेना और कुछसावधानियां बरतना जरूरी है। .

जीवनशैली से जुड़ी है डायबिटीज
डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है। डायबिटीज तब होती है, जब अग्न्याशय यानी पैंक्रिअस पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या जब शरीर अग्न्याशय द्वारा स्रावित इंसुलिन का प्रभावकारी तरीके से उपयोग नहीं कर पाता है।
खानपान में गड़बड़ी, व्यायाम नहीं करने से हो सकती है यह बीमारी

इंसुलिन एक हार्मोन है, जो रक्त में शुगर को नियंत्रित रखता है। अनियंत्रित डायबिटीज के कारण रक्त में शुगर का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लाइसेमिया कहते हैं। वहीं जब रक्त में शुगर का स्तर बहुत कम हो जाता है तो इसे हाइपोग्लाइसेमिया कहते हैं। दोनों ही स्थितियां शरीर के लिए घातक हैं। चूंकि डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है, इसलिए जीवनशैली में परिवर्तन और नियमित रूप से व्यायाम करना, इसके प्रबंधन का एक प्रमुख हिस्सा है। अगर आप सक्रिय रहते हैं तो डायबिटीज को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं और खून में शुगर के स्तर को काबू कर पाएंगे। साथ ही दूसरे रोगों से बचे रह सकते हैं।

करें नियमित व्यायाम
व्यायाम के कईफायदे हैं। लेकिन उनमें से सबसे बड़ा फायदा है कि इससे खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। जिन लोगों को टाइप 2 डायबिटीज होती है, उनके रक्त में ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक होता है। उनका शरीर या तो पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं करता है, या इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण शरीर ठीक प्रकार से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाता है। डायबिटीज के मरीजों में कुछ स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है-जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, किडनी के रोग, और तंत्रिका तंत्र संबंधी रोग। अगर खून में शुगर का स्तर काबू में रहेगा तो इन जटिलताओं के विकसित होने का खतरा कम हो जाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए व्यायाम कईतरह से असरदार साबित होता है-.

- रक्त में शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है.
- रक्त दाब कम होता है.
- कोलेस्ट्रॉल का स्तर नहीं बढ़ता .
- इंसुलिन का इस्तेमाल करने की क्षमता बढ़ना.
- स्ट्रोक और हृदय रोगों का खतरा कम होना 'मोटापे से बचाव व तनाव से राहत .
Health Tips: सेहतमंद बने रहने के लिए अपनाएं ये बेसिक टिप्स

ये सावधानियां हैं जरूरी .
- व्यायाम करते समय ग्लूकोज, खून से निकलकर मांसपेशियों तक अधिक तेजी से पहुंचता है, जिसके कारण हाइपोग्लाइसेमिया हो सकता है। जो लोग इंसुलिन या दूसरी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें विशेष सावधानी रखने की जरूरत है। .

अपने डॉक्टर से बात करें : किसी भी तरह के एक्सरसाइज प्रोग्राम को शुरू करने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें, ताकि वो आपको बता सके कि कब और कितनी देर व्यायाम करना आपके लिए ठीक रहेगा।

ब्लड ग्लूकोज के स्तर को जांचें : व्यायाम से पहले, उसके दौरान और बाद में ख्ूान में शर्करा के स्तर की जांच करें। इससे आपको अपना व्यायाम शेड्यूल बनाने में मदद मिलेगी।

स्ट्रेस टेस्ट : अगर आपको हृदय रोगों का खतरा है तो आप स्ट्रेस टेस्ट (आपका शरीर कितना शारीरिक श्रम सह सकता है) भी कराएं। .

अपने शरीर की सुनें : जहां भी, जब भी एक्सरसाइज करें, सतर्क रहें। अपने शरीर के संकेतों को पहचानें। ढेर सारा पानी पिएं। अपने साथ हमेशा कोई कैंडी या ग्लूकोज की टैबलेट रखें। रक्त में शुगर का स्तर कम होने पर तुरंत इसे ले लें। हमेशा मेडिकल अलर्ट करने वाला ब्रेसलेट पहनें। साथ ग्लूकोज मीटर भी रख सकते हैं। शरीर सहन कर सके, उतना ही व्यायाम करें। .

कौन से व्यायाम हैं बेहतर
एरोबिक और रेजिस्टेंस ट्रेनिंग, दोनों करें तो अधिक प्रभावी होगा। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार भी डायबिटीज के प्रबंधन के लिए एरोबिक व स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग दोनों तरह के व्यायाम करना अच्छा रहता है।.

एरोबिक एक्सरसाइज : इस तरह के एक्सरसाइज में हृदय गति बढ़ाने के लिए एक लय में हाथों और पैरों का लगातार इस्तेमाल किया जाता है। .

इसमें सम्मिलित हैं दौड़ना, भागना, नाचना, साइकिल चलाना, तेज चलना और जॉगिंग। एरोबिक्स से अग्न्याशय, हृदय और फेफड़े बेहतर तरीके से काम करते हैं। शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है। शरीर के सभी हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचती है। .

स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग : इसे रेजिस्टेंस ट्रेनिंग भी कहते हैं। यह व्यायाम शरीर को इंसुलिन के प्रति संवेदनशील बनाता है। खून में शुगर का स्तर कम करने में मदद करता है। इसे सप्ताह में दो बार करें, पर लगातार दो दिन न करें। वेट लिफ्टिंग, पुश-अप्स, लिफ्ट-अप्स, स्क्वैट, प्लांक, रेजिस्टेंस बैंड का इस्तेमाल आदि इसमें *आते हैं।.

(विशेषज्ञ: डॉ. रमन कुमार, अध्यक्ष, एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया, दिल्ली)
(डॉ. सबिता, न्युट्रिशनिस्ट एंड डायबिटीज एजुकेटर, फ्लोरेंस हॉस्पिटल, गाजियाबाद)

कितना कारगर है योग
योग तन-मन को ठीक रखने और सेहत से जुड़ी विभिन्न समस्याओं को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेडिकल साइंस ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कई योगासन हैं, जिनसे अग्न्याशय की बी-सेल्स अधिक बेहतर तरीके से काम करती हैं और शरीर में इंसुलिन का स्राव बेहतर होता है। .

कपालभाति :नियमित रूप से कपालभाति करने से डायबिटीज का प्रबंधन बेहतर तरीके से होता है। जमीन पर सीधे बैठ जाएं और नाक से सांस को तेजी से बाहर की ओर छोड़ें, ऐसा करते समय पेट को अंदर की तरफ खीचें। फिर तुरंत ही नाक से सांस को अंदर की ओर खीचें और पेट को बाहर निकालें। इसे रोजाना 70-100 बार करें। .

मंडूक आसन : इससे अग्न्याशय की कार्यप्रणाली दुरुस्त होती है। यह पेट और हृदय के लिए भी अच्छा आसन है। पैरों को सटाते हुए, घुटनों के बल बैठ जाएं, अपने नितंबों को एड़ियों पर टिका लें। आप दोनों हाथों की मुट्ठियां बंद कर लें। अब दोनों मुट्ठियों को नाभि के दोनों ओर लगाकर श्वास बाहर निकालते हुए सामने झुकते हुए ठोड़ी को भूमि पर टिका दें। थोड़ी देर इस स्थिति में रहने के बाद सीधे हो जाएं। .

धनुरासन : धनुरासन से अग्न्याशय सक्रिय होता है और इंसुलिन के स्राव में मदद मिलती है, जो रक्त में शर्करा का स्तर नियंत्रित करने के लिए जरूरी है। टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज, दोनों के रोगियों के लिए ये अच्छा है।.

वृक्षासन : वृक्षासन का नाम वृक्ष शब्द से पड़ा है, क्योंकि इस आसन में पेड़ की मुद्रा में खड़े होना होता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए ये बहुत लाभदायक है।.

कुछ खास बातें
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा प्रकाशित विशेष हेल्थ रिपोर्ट, ‘लिविंग विद डायबिटीज' के अनुसार, डायबिटीज में हर रोज व्यायाम करना फायदेमंद है, पर कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।
- 'सप्ताह में 5 बार, 30 मिनट व्यायाम करें। डायबिटीज साइंस एंड टेक्नोलॉजी जनरल में 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जो लोग इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, अगर वो खाना खाने के पहले व्यायाम करते हैं तो रक्त में शर्करा का स्तर अधिक नहीं बढ़ता है। जो लोग इंसुलिन लेते हैं, उन्हें हाइपोग्लाइसेमिया की आशंका अधिक होती है, ऐसे लोगों का खाना खाने के 1-3 घंटे के भीतर व्यायाम करना अच्छा रहता है। आधे घंटे से अधिक एक्सरसाइज न करें, क्योंकि इससे रक्त में शुगर के स्तर में तेजी से कमी आ सकती है। आपने कभी एक्सरसाइज नहीं किया है तो शुरुआत 5-10 मिनट से करें।.

- अगर आप एक्सरसाइज न कर पाएं तो चढ़ने-उतरने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल करें, घर की सफाई करें, बाजार में पैदल घूमकर शॉपिंग करें, बागवानी करें, बच्चों और पालतू पशुओं के साथ खेलें।

शुगर लेवल कम होने पर ये करें
यह बहुत जरूरी है कि एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर के स्तर की जांच करें। अगर एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर का स्तर 100 एमजी/डीएल है, तो कोई फल या स्नैक्स ले लें, इससे रक्त में शुगर का स्तर बढ़ जाएगा और आप हाइपोग्लाइसेमिया से बच जाएंगे। 30 मिनट बाद फिर जांचें कि आपके रक्त में शुगर स्तर स्थिर है या नहीं। वर्कआउट के बाद भी शुगर की जांच करें। अगर आप इंसुलिन ले रहे हैं तो एक्सरसाइज के बाद हाइपोग्लाइसेमिया का रिस्क बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आपका शुगर लेवल बहुत अधिक (250 के ऊपर) हो तो भी एक्सरसाइज न करें, क्योंकि कई बार एक्सरसाइज करने से रक्त में शुगर का स्तर और बढ़ जाता है।.

तो व्यायाम बंद कर दें.
'सिर हल्का होना या चक्कर आना
- 'हृदय की धड़कनें तेज हो जाना
- छाती में जकड़न 'जी मिचलाना
- 'अचानक कमजोरी महसूस होना 'सांस लेने में परेशानी होना
- 'गंभीर थकान या उनींदापन महसूस होना।

अब लौट आइए सेहत की ओर, दूर करें त्योहारों की थकान, अपनाएं ये Tips

त्योहार के मौसम में सबसे पहले सेहत की ही अनदेखी होती है। खान-पान बिगड़ जाता है, भाग-दौड़ थका देती है और हवा में प्रदूषण तो है ही। चूंकि ठंड दस्तक दे चुकी है, तो जरूरत है अपनी दिनचर्या ठीक करने की।

health Tips

शमीम खान,नई दिल्लीUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:43 PM IST

अ+ अ-

त्योहारों के दौरान अनियमित जीवनशैली, व्यस्तता, बढ़ा हुआ धूल और धुएं का स्तर, सेहत पर बुरा असर डालने लगते हैं। इस वजह से शरीर में टॉक्सिन्स यानी विषैले तत्वों की मात्रा बढ़ने लगती है। एसिडिटी और कब्ज भी परेशान करने लगते हैं। सेहत को पटरी पर वापस लाने के लिए सबसे पहले शरीर के आंतरिक तंत्र को विषैले और हानिकारक रसायनों से मुक्त करना जरूरी हो जाता है। कुछ दिन के लिए कुछबातों का ध्यान रखना शरीर को टॉक्सिन फ्री करने में मदद कर सकता है।

खान-पान में बदलाव करें
एल्कोहल, कॉफी, धूम्रपान, रिफाइंड शुगर और सैचुरेटेड फैट, ये सब शरीर में विषैले तत्व बढ़ाते हैं, जिससे शरीर की कार्यप्रणाली गड़बड़ाने लगती है।

खूब पानी पिएं
एक अच्छी डिटॉक्स डाइट में 60 प्रतिशत तरल और 40 प्रतिशत ठोस खाद्य पदार्थ होना चाहिए। शरीर से टॉक्सिन बाहर निकालने का पहला नियम है कि खूब पानी पिएं। शरीर में पानी की कमी न होने दें।

फल खाएं व जूस पिएं
मौसमी फलों का जूस पिएं। पपीता और खीरे का जूस भी आंतों की सफाई करता है। अंगूर का रस न पिएं। यह सफाई की प्रक्रिया में ब्लॉकिंग एजेंट के रूप में काम करता है।

खूब सब्जियां खाएं
पपीता और अनन्नास, दोनों ही पेट को फायदा पहुंचाते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां, फूलगोभी, पत्तागोभी और ब्रोकली का सेवन करें। प्याज भी अच्छा क्लींजिंग एजेंट है। शलजम लिवर को डिटॉक्स करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कम मसालेदार उबली हुई सब्जियां खाएं।

बीजों की ताकत
अलसी, तिल, सूरजमुखी और कद्दू के बीजों का सेवन करें। ताकत भी मिलेगी और जरूरी पोषक तत्वों का पोषण भी।

कैसे करें शुरुआत
सप्ताह में एक बार डिटॉक्स डाइट पर रहें। चार सप्ताह तक ऐसा करें। वजन ज्यादा है तो सप्ताह में दो बार भी डिटॉक्स डाइट अपना सकते हैं। इस दौरान कैफीन युक्त चीजें न लें। अधिक चीनी व नमक न खाएं। जंक फूड का सेवन न करें। सप्ताह में एक से दो दिन ही पर्याप्त है, वरना कमजोरी महसूस होने लगेगी।

किस तरह होता है असर
हल्का व सुपाच्य भोजन पाचन तंत्र को राहत देता है। अंगों पर कम दबाव पड़ता है। लिवर की कार्य क्षमता बढ़ने से विषैले तत्व तेजी से बाहर निकलने लगते हैं। किडनी, आंत और त्वचा की अंदरूनी सफाईहोती है। रक्त संचार बेहतर होने के साथ दर्द व सूजन जैसे लक्षणों में भी कमी आती है। कमर या पैरों में दर्द की समस्या है तो पहले मसाज, गर्म व ठंडे पानी की सेंक या फिजियो-थेरेपी की मदद से दर्द व सूजन को कम करने पर ध्यान दें। डॉक्टर के बताएं व्यायाम को नियमित करें।

पेट को दें आराम
- दिन की शुरुआत एक गिलास गुनगुने पानी से करें। इसमें आधा चम्मच शहद और एक चम्मच नीबू का रस भी मिला लें।
- खाने के साथ सलाद, दही, छाछ और सूप जरूर लें।.
- अधिक मसालेदार भोजन न करें।
- हल्के-फुल्के नाश्ते के तौर पर केला, मखाना या पोहा आदि लें।

थकान दूर करें
त्योहारों के दौरान पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है। उस पर अगर नींद पूरी नहीं हुई है तो थकान का असर पूरे शरीर पर पड़ने लगता है। अधिक तला-भुना खाने से परहेज करें। साथ ही नींद पूरी करने पर ध्यान दें। नियमित व्यायाम करने से रक्त संचरण सुधरता है और शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ता है।

दमा रोगी रखें ध्यान
दिवाली के तुरंत बाद वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड का प्रतिशत 10 गुना और विषैले तत्वों की मात्रा 2-3 गुना तक बढ़ जाती है। कई जगह प्रदूषण का स्तर 200 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। धुंध के कारण प्रदूषक तत्व हवा में नीचे ही रहने लगते हैं। बेहतर है कुछ दिन तड़के सुबह घर से बाहर न निकलें। मास्क पहन कर रखें। दवाएं लेने में लापरवाही न बरतें। ये उपाय श्वास नली को आराम देंगे। सुबह घर में ही सांस से जुड़े व्यायाम करें। - शमीम खान

Wednesday, 7 November 2018

खूब मस्ती से मनाएं दिवाली, लेकिन सेहत के लिए रखें इन बातों का विशेष ध्यान

रोशनी का त्योहार कब प्रदूषण के त्योहार में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला! दिवाली की खुशियों के बीच सेहत का ध्यान कैसे रखें, बता रही हैं स्वाति गौड़

तो दिवाली का त्योहार रोशनी का प्रतीक है, इसलिए लोग इस अवसर पर खूब दीये जलाते हैं और जमकर लाइटिंग वगैरह भी करते हैं, लेकिन खूब सारी रोशनी के साथ-साथ दिवाली पर कानफोड़ू पटाखे भी भारी मात्रा में छोड़े जाते हैं, जिससे फैलने वाले प्रदूषण से हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ आस-पास के पर्यावरण पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है।

हालांकि दिवाली पर प्रदूषण की मार से बचने के लिए इस साल भी सुप्रीम कोर्ट से दिशा-निर्देश जारी हुए हैं, जिसमें पटाखे छोड़ने के समय आदि के संबंध में कई बातें कही गयी हैं। लेकिन इन दिनों मौसम के बदलने और दिवाली के कारण पटाखों के साथ-साथ अन्य कई चीजों से पैदा होने वाले दमघोंटू प्रदूषण से बचने के लिए आपको अपने स्तर पर भी पुख्ता तैयारी करने की जरूरत है। विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों व सांस की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को बहुत अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता है।

बच्चों का ऐसे रखें ध्यान
दिवाली पर छोड़े जाने वाले कुछ पटाखे बहुत ज्यादा तेज आवाज के होते हैं, जो छोटे बच्चों की सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए कोशिश करें कि बच्चे को घर के अंदर ऐसे किसी स्थान पर रखें, जहां तेज पटाखों की आवाज कम से कम आये। कानों में रुई लगा देने से भी तेज आवाज से बचा जा सकता है। इसके अलावा पटाखों से निकलने वाला हानिकारक धुआं बच्चों के फेफड़ों को बहुत ज्यादा
नुकसान पहुंचा सकता है, जिसकी वजह से उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इसलिए घर के खिड़की-दरवाजे अच्छी तरह से बंद रखें, ताकि हानिकारक और जहरीला धुआं घर में प्रवेश न कर पाये।

घर में यदि बुजुर्ग हों तो

घर में बुजुर्ग व्यक्ति के होने पर कोशिश करें कि बहुत ज्यादा तेज आवाज वाले पटाखे न छोड़ें। न ही बुजुर्ग व्यक्ति खुद से ऐसे पटाखे छोड़ें, जिन्हें छोड़ने के तुरंत बाद तेजी से दूर जाना पड़ता है। उदाहरण के लिए रॉकेट, क्योंकि यह तेजी से हवा में जाता है और इससे बहुत हानिकारक धुआं भी निकलता है। अगर बच्चों के साथ पटाखे छोड़ रहे हैं, तो हानिकारक धुएं से बचने के लिए खुद मास्क जरूर पहनें।

सांस के मरीज बरतें विशेष सावधानी

जिन लोगों को सांस लेने में वैसे भी दिक्कत रहती है, उन्हें सलाह है कि वह दिवाली से पहले एक बार अपने डॉक्टर से जरूर मिल लें। डॉक्टर से दिवाली से पहले और बाद में होने वाले प्रदूषण के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जरूरी दवाइयां लेना न भूलें। दिवाली वाले दिन घर से बाहर निकलने से परहेज करें। यदि धुएं की वजह से छाती में जकड़न व सांस लेने में तकलीफ हो तो तुरंत डॉक्टर द्वारा बताया गया इनहेलर लें या जरूरत पड़ने पर नेबुलाइजर जरूर लें। ऐसे में भाप लेने से भी थोड़ी-बहुत राहत मिल सकती है। लेकिन इसके बावजूद आराम न मिले और सांस लेने में दिक्कत हो रही हो, तो तुरंत किसी नजदीकी अस्पताल में चले जाएं।
दिवाली के बाद भी रहता है प्रदूषण पटाखों से निकलने वाला जहरीला धुआं और गैस वातारण में लंबे समय तक बने रहते हैं और अपना दुष्प्रभाव छोड़ते रहते हैं। इसलिए दिवाली बाद भी आप प्रदूषण के खतरों के प्रति सचेत रहें। कोशिश करें कि दिवाली की अगली सुबह या कुछ दिनों बाद तक तड़के घर से न निकलें। यदि निकलना भी पड़े तो कोशिश करें कि दोपहर के बाद ही घर से निकलें।

दरअसल, दिवाली के बाद वातावरण में जो धुएं की मोटी परत जम जाती है उसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए बाद में भी मास्क पहनें और ज्यादा दिक्कत होने पर गीला रूमाल नाक पर बांधें।
(डॉ. विजय दत्ता, सीनियर कंसल्टेंट, रेस्पाइरेटरी मेडिसिन, इंडियन स्पायनल इंजरी सेंटर, वसंत कुंज, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित)