Sunday, 17 March 2019

2% की दर से घटा कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपातः सर्वे

नई दिल्ली: ताजा सर्वेक्षण रपट के अनुसार देश में कुपोषण के कारण कमजोर बच्चों का अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में करीब दो प्रतिशत कम होकर 34.70 प्रतिशत पर आ गया. इससे पहले एक दस वर्ष में इसमें सालाना एक प्रतिशत की दर से कमी दर्ज की गयी थी. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुख्यत: सरकारी मुहिम के कारण कुरोषण से बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट में यह कमी आई है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण के कारण औसत से कम लंबाई और भार वाले बच्चों का अनुपात 2004-05 के 48 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 38.40 प्रतिशत पर आ गया.

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अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर पीटीआई भाषा से कहा, ''यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश में कुपोषण से अवरुद्ध शारीरिक-विकास वाले बच्चों का अनुपात 2015-16 के 38.40 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 34.70 प्रतिशत पर आ गया है. वर्ष 2004-05 से 2015-16 की दस वर्ष की अवधि के दौरान छह साल के कुपोषण प्रभावित ऐसे बच्चों के अनुपात में सालाना एक प्रतिशत की दर से 10 प्रतिशत की कमी आयी थी.

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उसने कहा, ''यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय के नये सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 से 2017-18 के दौरान कुपोषण चार प्रतिशत कम हुआ. यह सालाना दो प्रतिशत की कमी है जो कि बड़ी उपलब्धि है.'' यह सर्वेक्षण 1.12 लाख परिवारों को लेकर किया गया. अधिकारी ने कहा, ''अब कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपात में करीब दो प्रतिशत सालाना की कमी की दर को हासिल कर लिया गया है ऐसे में सरकार का 'पोषण अभियान का लक्ष्य' छोटा लगने लगा है.''

सुबह-सुबह पीएं आजवायन पानी, एक महीने में 3-4 किलोग्राम वजन कम होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की. इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 प्रतिशत से घटाकर 2022 में 25 प्रतिशत पर लाना है. अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) जैसे अन्य मुख्य स्वास्थ्य सूचकांकों पर भी सुधार देखने को मिला है.

वायु प्रदूषण से दुनियाभर में 88 लाख लोगों की हर साल हुई मौत, स्टडी का दावा

उन्होंने कहा कि महिलाओं में खून की कमी 2015-16 के 50-60 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 40 प्रतिशत पर आ गई. वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया में कुपोषण के कारण कमजोर शरीर वाले एक तिहाई बच्चे भारत में हैं. भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 4.66 करोड़ है. इसके बाद नाइजीरिया (13.9%) और पाकिस्तान (10.7%) का नाम आता है. (इनपुटः भाषा)

Friday, 15 March 2019

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

नई दिल्लीः बदलती जीवनशैली और काम के चलते होने वाली भागदौड़ के कारण पर्याप्त नींद तो जैसे लोगों के लिए एक सपना बन कर रह गई है. कभी काम तो कभी मोबाइल और कंप्यूटर लोगों की रातों की नींदे चोरी करती जा रही हैं. जिसके चलते लोग स्लीपिंग डिसऑर्डर और इससे होने वाली बीमारियों से घिरते जा रहे हैं. आज यानि 15 मार्च को 'वर्ल्ड स्लीप डे' है. इसलिए आज हम आपसे चर्चा कर रहे हैं स्लीपिंग डिसऑर्डर और इससे होने वाले नुकसानों के बारे में. बता दें स्लीपिंग डिसऑर्डर को लेकर हाल ही में एक सर्वे हुआ है, जो आपको चौंकाने के लिए काफी है. दरअसल, हाल ही में GOQii India ने World Sleeping Day पर एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें कहा गया है कि 'मधुमेह, हार्ट डिजीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी खतरनाक बीमारियां स्लीपिंग डिसऑर्डर और अनियमित जीवनशैली की देन हो सकती हैं.'

गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर से महिलाओं को ये खतरा, जानकर हो जाएंगे हैरान

बता दें एक अध्ययन में GOQii India ने न्यूट्रीशन्स, पानी, तनाव, नींद, धूम्रपान और शराब की खपत के आधार पर लिंग और प्रमुख शहरों के अनुसार वर्गीकृत करके कुछ ग्रुप बनाए थे. जिसमें महिलाओं और पुरुषों के स्लीप पैटर्न का एनालिसिस किया गया. फिट इंडिया द्वारा किए इस अध्ययन में कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए, जिनमें कहा गया है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कम नींद लेती हैं और पुरुष महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा सुकून से सोते हैं. वहीं नींद को लेकर कुछ और भी खुलासे इस रिपोर्ट में हुए हैं, जो इस तरह से हैं-

अगर है हाई ब्लड प्रेशर की समस्या, तो खाने में शामिल करें ये फल और सब्जियां

- पिछले साल की तुलना में कुल नींद 6.54 से बढ़कर 6.85 घंटे हो गई है.
- नींद के मामले में चेन्नई इस साल कोलकाता से आगे निकल कर पहली रैंक पर आ गया है, जिसमें कुल नींद 6.31 घंटे से बढ़कर 6.93 घंटे है.
- केवल 19% लोग जागने पर आराम और ताजगी महसूस करते हैं, जबकि 24% ने कहा कि वे जागने के बाद भी नींद महसूस करते हैं.
- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को थोड़ी अधिक मात्रा में नींद आती है.
- पुरुषों को कम नींद आती है, जिससे परेशान नींद अधिक होती है
- युवा वयस्कों (20-30) को मात्रा और गुणवत्ता दोनों के मामले में सबसे अधिक नींद आती है, इसके बाद किशोर और वयस्क होते हैं.
- सीनियर्स (60+) और पुराने वयस्कों (45-60) को कम से कम मात्रा में नींद लेते देखा जाता है-
- 55% किशोरों ने कहा कि उन्हें गहरी नींद आती है, जबकि सीनियर्स में केवल 21% ने ही ऐसा कहा.
- लगभग 45% सीनियर्स नींद के बीच में उठते हैं, लेकिन तुरंत सो जाते हैं.

राप्ती-सागर एक्सप्रेस में अंडा बिरयानी खाने से फूड पॉयजनिंग, 20 यात्री बीमार

भोपालः ट्रेनों में अच्छी केटरिंग सर्विस को लेकर किए जाने वाले दावों की आए दिन पोल खुलती नजर आती रहती है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है त्रिवेंद्रम से गोरखपुर जा रही राप्ती सागर एक्सप्रेस 12512 से, जहां अंडा बिरयानी खाने से करीब 20 यात्री फूड पॉयजनिंग का शिकार हो गए. जिससे इन यात्रियों की ट्रेन में ही हालत खराब हो गई. यात्रियों के मुताबिक राप्ती सागर एक्सप्रेस में यात्रियों ने खाने के लिए अंडा बिरयानी ऑर्डर किया था, जिसे खाने के कुछ देर बाद ही उन्हें मतली, उल्टी और पेट दर्द की शिकायत होने लगी. यात्रियों की तबीयत खराब होने के बाद इटारसी रेलवे स्टेशन पर अलर्ट जारी किया गया. जिसके बाद नागपुर में डॉक्टर्स की एक टीम ने चिकित्सकीय परीक्षण और उपचार कर आगे की यात्रा के लिए रवाना कर दिया.

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वहीं घटना की जानकारी मिलने के बाद रेल प्रशासन में हड़कंप मच गया. हालांकि, मिली जानकारी के मुताबिक उपचार के बाद सभी यात्रियों की हालत सामान्य हो गई और पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही उन्हे आगे के लिए रवाना किया गया. नागपुर रेल मंडल के जनसंपर्क अधिकारी अनिल वाल्डे ने बताया कि ''यात्रियों को बल्लारशा स्टेशन से पेट में दर्द, उल्टी और मितली की शिकायत होने की सूचना के बाद नागपुर रेलवे स्टेशन पर छह डाक्टरों के दल ने सभी यात्रियों का उपचार किया. बीमार हुए यात्री ट्रेन के एस 7 कोच में सफर कर रहे थे.''

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अधिकारी अनिल वाल्डे ने आगे बताया कि इसी ट्रेन में यात्रा कर रहे एक यात्री अनिल थापा की मौत हो गई है, जिनका शव आमला रेलवे स्टेशन पर उतारा गया है. हांलकि यह मौत फूड पॉयजनिंग से न होकर बीमारी से बताई जा रही है. बता दें यह पहली बार नहीं है जब ट्रेन में इस तरह का दूषित खाना खाने से यात्रियों के बीमार होने का मामला सामने आया हो. इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां ट्रेन का खाना खाने से यात्री बुरी तरह से बीमार पड़ चुके हैं. वहीं फूड पॉयजनिंग की शिकायत मिलने के बाद अधिकारियों ने खाने के नमूने परीक्षण के लिए भेज दिए हैं.

Wednesday, 13 March 2019

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्र

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्रनैरोबी: दुनिया भर में समय से पहले और बीमारियों से जितनी मौत होती है, उसमें एक चौथाई मृत्यु मानवनिर्मित प्रदूषण और पर्यावरण को हुए नुकसान के कारण होती है. संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को एक रिपोर्ट में यह कहा है. 
इसमें आगाह किया गया है कि दम घोंटू उत्सर्जन, केमिकल से प्रदूषित पेयजल और पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाला नुकसान दुनिया भर में अरबों लोगों की रोजी-रोटी को प्रभावित कर रहे हैं. विश्व की अर्थव्यवस्था को भी इससे चोट पहुंच रही है. 
वैश्विक पर्यावरण परिदृश्य रिपोर्ट अमीर और गरीब देशों के बीच की बढ़ती खाई को प्रदर्शित करती है क्योंकि विकसित दुनिया में बढते उपभोग, प्रदूषण और खाद्य अपशिष्ट से हर जगह भुखमरी, गरीबी और बीमारी फैल रही है. यह रिपोर्ट छह साल में आती है और 70 देशों के 250 वैज्ञानिकों ने इसे तैयार किया है. 
ग्रीन हाउस गैस के बढ़ते उत्सर्जन से सूखा, बाढ़ और तूफान के खतरे के बीच समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और इस पर सहमति बन रही है कि जलवायु परिवर्तन से अरबों लोगों के भविष्य को खतरा होगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ पेयजल नहीं मिलने से हर साल 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इसी तरह समुद्र में बह कर पहुंचे रसायन के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है. विशाल पैमाने पर खेती के चलते तथा वन काटे जाने से भूमि क्षरण के कारण 3.2 अरब लोग प्रभावित होते हैं.  रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 60-70 लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है. 

किडनी रोग : महिलाओं पर भारी, हर साल लेता है छह लाख जानें

किडनी रोग : महिलाओं पर भारी, हर साल लेता है छह लाख जानेंनई दिल्ली : महिला दिवस पर महिलाओं की तमाम उपलब्धियों और उनके सामाजिक, आर्थिक सशक्तीकरण के बारे में बात करने वालों के लिए यह तथ्य परेशान करने वाला हो सकता है कि पुरूषों के मुकाबले महिलाओं को किडनी की बीमारी ज्यादा होती है और हर वर्ष तकरीबन छह लाख महिलाएं इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा देती हैं. हमारा शरीर अपने आप में एक अनूठी मशीन है, जिसका हर पुर्जा अपने हिस्से का काम बिना रूके करता रहता है, लेकिन अगर किसी तरह की लापरवाही हो तो बीमारी अपना सिर उठाने लगती है और एक हिस्से की बीमारी दूसरे अंगों पर भी असर डालती है.
जानलेवा हो सकती है लापरवाही
किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसके प्रति लापरवाही जानलेवा हो सकती है. हाल के वर्ष खान-पान और दिनचर्या में बदलाव के चलते दुनियाभर में किडनी की बीमारी से प्रभावित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. मेडिकल साइंस में क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के नाम से पुकारे जाने वाले रोग का मतलब किडनी का काम करना बंद कर देना होता है. इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मार्च के दूसरे गुरुवार को 'वर्ल्ड किडनी डे' मनाया जाता है.
20 करोड़ महिलाएं किडनी की समस्या से ग्रस्त
साल 2019 के 'वर्ल्ड किडनी डे' का थीम 'किडनी हेल्थ फॉर एवरी वन, एवरी वेयर' है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के आसपास आने वाले इस दिन पर महिलाओं को इस रोग के बारे में विशेष रूप से जागरूक किए जाने की जरूरत है. श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में सीनियर कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट डाक्टर राजेश अग्रवाल के अनुसार देश में औसतन 14 प्रतिशत महिलाएं और 12 प्रतिशत पुरुष किडनी की समस्या से पीड़ित हैं और पूरे विश्व में 19.5 करोड़ महिलाएं किडनी की समस्या से पीड़ित है.
हर साल 2 लाख लोग इसकी चपेट में आ रहे
भारत में भी यह संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है, यहां हर साल 2 लाख लोग इस रोग की चपेट में आते हैं. शुरुआती अवस्था में बीमारी को पकड़ पाना मुश्किल होता है, क्योंकि दोनों किडनी 60 प्रतिशत खराब होने के बाद ही मरीज को इसका पता चल पाता है. उन्होंने बताया कि किडनी या गुर्दा 'राजमा' की शक्ल जैसा अंग है, जो पेट के दायें और बायें भाग में पीछे की तरफ स्थित होता है. किडनी खराब होने पर शरीर में खून साफ नहीं हो पाता और क्रिएटनिन बढ़ने लगता है. यदि दोनों किडनी अपना कार्य करने में सक्षम नहीं हों, तो उसे आम भाषा में किडनी फेल हो जाना कहते है.
नारायणा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, गुरुग्राम में कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डाक्टर सुदीप सिंह के अनुसार खून को साफ कर ब्लड सर्कुलेशन में मदद करने वाले गुर्दे कई कारणों से खराब हो सकते हैं. इनमें खानपान की खराब आदतों के अलावा नियमित रूप से दर्दनिवारक दवाओं का सेवन भी एक बड़ी वजह हो सकता है. धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजी डाक्टर सुमन लता ने कहा, 'इस वर्ल्ड किडनी डे' हम डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या लम्बे समय से किसी बीमारी से पीड़ित लोगों से अपनी किडनी को स्वस्थ रखने की अपील करते हैं.
यूरीन टेस्ट के साथ केएफटी जैसे सरल परीक्षण किडनी की जांच का सस्ता और सुविधाजनक तरीका है. इसमें लापरवाही न बरतें. 'उन्होंने बताया कि आमतौर पर मूत्र मार्ग में संक्रमण और गर्भावस्था की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण महिलाओं में किडनी रोग होने की आशंका बढ़ जाती है. रोग के शुरूआती लक्षणों में लगातार उल्टी आना, भूख नहीं लगना, थकान और कमजोरी महसूस होना, पेशाब की मात्रा कम होना, खुजली की समस्या होना, नींद नहीं आना और मांसपेशियों में खिंचाव होना प्रमुख हैं.
उन्होंने बताया कि किडनी फेल होना दुनियाभर में महिलाओं की मौत का आठवां बड़ा कारण है. नियमित जांच कराने से रोग की शुरुआत में ही इसका पता चल जाता है और दवा से इसे ठीक करना संभव हो पाता है, लेकिन यदि समय रहते इसके बारे में पता न चले तो खून को साफ करने के लिए डायलिसिस की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है या फिर किडनी बदलवानी पड़ती है, जो एक लंबी, खर्चीली और कष्टकारी प्रक्रिया है जो हर जगह उपलब्ध भी नहीं है.

वर्ल्ड किडनी डे : पुनर्नवा पौधा बीमार गुर्दे को कर सकता है स्वस्थ

वर्ल्ड किडनी डे : पुनर्नवा पौधा बीमार गुर्दे को कर सकता है स्वस्थनई दिल्ली : आयुर्वेद में पुनर्नवा पौधे के गुणों का अध्ययन कर भारतीय वैज्ञानिकों ने इससे 'नीरी केएफटी' दवा की है, जिसके जरिए गुर्दा (किडनी) की बीमारी ठीक की जा सकती है. गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाएं फिर से स्वस्थ्य हो सकती हैं. साथ ही संक्रमण की आशंका भी इस दवा से कई गुना कम हो जाती है. हाल ही में पुस्तिका 'इंडो-अमेरिकन जर्नल ऑफ फॉर्मास्युटिकल रिसर्च' में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के अनुसार, पुनर्नवा में गोखुरू, वरुण, पत्थरपूरा, पाषाणभेद, कमल ककड़ी जैसी बूटियों को मिलाकर बनाई गई दवा 'नीरी केएफटी' गुर्दे में क्रिएटिनिन, यूरिया व प्रोटीन को नियंत्रित करती है.
हीमोग्लोबिन भी बढ़ाता है यह पौधा
क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को स्वस्थ्य करने के अलावा यह हीमोग्लोबिन भी बढ़ाती है. नीरी केएफटी के सफल परिणाम भी देखे जा रहे हैं. बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. केएन  द्विवेदी का कहना है कि रोग की पहचान समय पर हो जाने पर गुर्दे को बचाया जा सकता है. कुछ समय पहले बीएचयू में हुए शोध से पता चला है कि गुर्दा संबंधी रोगों में केएफटी कारगार साबित हुई है.
एलोपैथी से निकलकर आयुर्वेद को अपनाना चाहिए
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के किडनी विशेषज्ञ डॉ. मनीष मलिक का कहना है कि देश में लंबे समय से गुर्दा विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है. ऐसे में डॉक्टरों को एलोपैथी के ढांचे से निकलकर आयुर्वेद जैसी वैकल्पिक चिकित्सा को अपनाना चाहिए. आयुर्वेदिक दवा से अगर किसी को फायदा हो रहा है तो डॉक्टरों को उसे भी अपनाना चाहिए.
आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बीते माह केंद्र सरकार ने आयुष मंत्रालय को देशभर में 12,500 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की स्थापना करने की जिम्मेदारी सौंपी है. इन केंद्रों पर आयुष पद्धति के जरिए उपचार किया जाएगा. यहां वर्ष 2021 तक किडनी की न सिर्फ जांच, बल्कि नीरी केएफटी जैसी दवाओं से उपचार भी दिया जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि गुर्दा की बीमारी की पहचान के लिए होने वाली जांच को सभी व्यक्तियों को नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि मरीजों को शुरुआती चरण में ही उपचार दिलवाया जा सके.
एम्स के नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. एसके अग्रवाल का कहना है कि हर दिन 200 गुर्दा रोगी ओपीडी में पहुंच रहे हैं. इनमें 70 फीसदी मरीजों के गुर्दा फेल पाए जाते हैं. उनका डायलिसिस किया जाता है. प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) ही इसका स्थायी समाधान है. प्रत्यारोपण वाले मरीजों की संख्या भी काफी है. इस समय एम्स में गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए आठ माह की वेटिंग चल रही है. यहां सिर्फ 13 डायलिसिस की मशीनें हैं, जो वार्डो में भर्ती मरीजों के लिए हैं. इनमें से चार मशीनें हेपेटाइटिस 'सी' और 'बी' के मरीजों के लिए हैं. एम्स में सप्ताह में तीन दिन गुर्दा प्रत्यारोपण किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि गुर्दा खराब होने पर मरीज को सप्ताह में कम से कम दो या तीन बार डायलिसिस देना जरूरी है. मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. देश में सालाना 6,000 किडनी प्रत्यारोपण हो रहे हैं. इसलिए लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बेहद जरूरी है.
एक नजर में
- 1,200 गुर्दा विशेषज्ञ हैं देश में
- 1,500 हीमोडायलिसिस केंद्र हैं देश में
- 10,000 डायलिसिस केंद्र भी हैं
- 80 फीसदी गुर्दा प्रत्यारोपण हो रहे निजी अस्पतालों में
- 2,800 गुर्दा प्रत्यारोपण हो चुके हैं एम्स में

सुबह-सुबह पीएं अजवायन पानी, एक महीने में 3-4 किलोग्राम वजन कम होगा

नई दिल्ली: लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि ज्यादातर लोग ओवर वेट (ज्यादा वजन) की समस्या से परेशान है. एक्सरसाइज करने का समय नहीं मिलता है. नौकरी करने की टाइमिंग ऐसी हो गई है कि आप चाहकर भी सेहत पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. कुल मिलाकर जिंदगी में अनुशासन की कमी हो गई है जिसका सीधा असर आपकी सेहत पर दिखता है. मोटा हो जाने से कई तरह की बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन, आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. इस आर्टिकल में आपको एक ऐसे नुस्खे के बारे में बताने जा रहे हैं कि जिसे अपनाने से आपका कुछ ही दिनों में असर दिखने लगेगा.

यह एक घरेलू नुस्खा है. आपको ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है. सभी घरों में अजवायन उपलब्ध होता है. पानी में अजवायन डालकर रातभर भींगने के लिए छोड़ दें. सुबह उठने के बाद इस पानी का सेवन करें. इससे पेट की चर्बी कम होगी. इसमें थाइमोल पाया जाता है जो पेट की चर्बी को कम करता है.

वायु प्रदूषण से दुनियाभर में 88 लाख लोगों की हर साल हुई मौत, स्टडी का दावा

कहा जाता है कि थाइमोल मेटाबॉलिज्म को मजबूत करता है, पाचन क्रिया को दुरुस्त करता है और एसिडिटी की समस्या को दूर करता है. इसके अलावा इसमें आयोडिन, फास्फोरस, कैल्शियम और पोटैशियम भी पाया जाता है. ये सभी शरीर के लिए बहुत जरूरी तत्व होते हैं.

लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से बढ़ता है डायबिटीज का खतरा, स्टडी का दावा

अजवायन युक्त पानी पीने से से चीनी और  पेट संबंधी दूसरी बीमारियां दूर होती हैं. इसके अलावा कब्ज की समस्या से निजात मिलती है. कई लोग गैस और अस्थमा की समस्या से परेशान रहते हैं. कुछ भी खाने पर उन्हें गैस हो जाता है. वे लोग अजवायन पानी का इस्तेमाल करेंगे तो कुछ ही दिनों में असर दिखने लगेगा. कहा जाता है कि अजवायन पानी का इस्तेमाल एक महीने तक लगातार करने से 3-4 किलोग्राम वजन जरूर कम हो जाता है.