Friday 23 November 2018

सेहत का ख्याल रखेगा एयर पॉल्यूशन मॉनिटर

वातावरण में कई तरह की जहरीली गैस फैली होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर एक ऐसी डिवाइस है, जो समय-समय पर आपको खराब वातावरण की जानकारी देती रहती है। क्या है ये डिवाइस, बता रही हैं नीतिका श्रीवास्तव


बढ़ते प्रदूषण में सांस से संबंधित बीमारियों का होना आम बात है। हवा में गंदगी होने से अस्थमा और कई तरह की एलर्जी शरीर को घेर लेती हैं और अंदर ही अंदर शरीर को गलाने लगती हैं। ऐसे में हमें एक केयर टेकर की जरूरत होती है, जो आस-पास की हवा के बारे में सही जानकारी दे सके और समय-समय पर वातावरण को लेकर सक्रिय कर सके। कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर एक ऐसी ही डिवाइस है, जो आपको सेहत के प्रति सजग रख सकती है। क्या है ये डिवाइस और कैसे करती है काम, आइये जानें

क्या है ये डिवाइस
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर हाथ में आसानी से आ जाने वाली डिवाइस है, जिसे आसानी से कहीं पर भी साथ में ले जाया जा सकता है। इस डिवाइस का साथ में रहना बेहद जरूरी भी है। कॉम्पैक्ट आकार और यूएसबी कनेक्टिविटी एटमोट्यूब के साथ आने वाली ये डिवाइस आपको आसपास के वातावरण के बारे में सटीक जानकारी देती है, साथ ही जिस हवा में आप हैं, उसके तापमान के बारे में भी बताती है। उचित परिणाम जानने के लिए आपको अपने स्मार्टफोन को ब्लूटूथ के जरिये इस डिवाइस से कनेक्ट करना होता है।

कैसे करती है काम
ये डिवाइस खासकर अस्थमा और किसी भी तरह की एलर्जी से पीड़ित लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गयी है। इस डिवाइस में लगा सेंसर हवा में हानिकारक गैसों और कार्बनिक यौगिकों की मौजूदगी के बारे में सही समय पर सजग करता है। यह डिवाइस आसपास के वातावरण में हवा का तापमान और आद्र्रता को भी मापती है। इस डिवाइस को चार्ज करने के बाद इस्तेमाल में लाया जा सकता है, साथ ही कॉम्पैक्ट वायु गुणवत्ता वाली इस डिवाइस को हमेशा अपने साथ रख सकते हैं। हवा की जानकारी अपने स्मार्टफोन के स्क्रीन में भी आसानी से देख सकते हैं। भारतीय बाजार में इसकी कीमत 15 सौ रुपए से शुरू होती है। ब्रांड के हिसाब से कीमत बढ़ भी सकती है।

ये हैं खासियतें
कॉम्पैक्ट एयर पॉल्यूशन मॉनिटर वास्तविक समय पर एयर गुणवत्ता ट्रैक करके आपको अनुमानित परिणाम तो बताता ही है, साथ ही आपको अच्छे स्वास्थ के प्रति सचेत भी करता है। ये डिवाइस पोर्टेबल और पहनने योग्य भी है। ये डिवाइस एक मजबूत टाइटेनियम लेपित एटमोट्यूब से बनी होती है। डिवाइस देखने में बेहद आकर्षक है। इस डिवाइस की खासियत ये है कि जब भी आसपास की हवा में खराबी होगी, ये अलार्म के जरिये बार-बार अलर्ट कर देगी, जो आपको स्वस्थ रहने में मदद करती है।

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कैसे करें दुरुस्त, पढ़ें कारगर Tips

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि आपकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो। इस प्रतिरोधक क्षमता को खान-पान, व्यायाम, अच्छी नींद आदि में संतुलन बनाकर ठीक कर सकते हैं, जिसके लिए यह मौसम भी अनुकूल है।


Health Tips: Simple and Natural Ways to Boost Your Immune System

इंद्रेश समीरUpdated: Fri, 23 Nov 2018 01:59 PM IST

अ+ अ-

अपने आसपास आप अकसर देखते होंगे कि सेहत और कद-काठी के मामले में एक जैसे दिखने वाले कई लोगों में से कुछ लोग बार-बार बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जबकि कुछ पर मौसम की मार या संक्रमण वगैरह का भी ज्यादा असर नहीं होता। आखिर वजह क्या है? असल में हर जीवित शरीर में प्रकृति ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई हुई है, जो उसे नुकसानदेह जीवाणुओं, विषाणुओं और माइक्रोब्स वगैरह से बचाती है। इसे ही रोगप्रतिरोधक शक्ति या इम्यूनिटी कहा जाता है।

जिसकी इम्यूनिटी मजबूत है, उसके शरीर में रोगाणु पहुंचकर भी नुकसान नहीं कर पाते, पर जिसकी इम्यूनिटी कमजोर हो गई हो, वह जरा-से मौसमी बदलाव में भी रोगाणुओं के आक्रमण को झेल नहीं पाता। जब बाहरी रोगाणुओं की तुलना में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, तो इसका असर सर्दी, जुकाम, फ्लू, खांसी, बुखार वगैरह के रूप में हम सबसे पहले देखते हैं। जो लोग बार-बार ऐसी तकलीफों से गुजरते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि उनकी इम्यूनिटी ठीक से उनका साथ नहीं दे रही है और उसे मजबूत किए जाने की जरूरत है। सर्दियों का मौसम एक तरह से रोगप्रतिरोधक शक्ति के परीक्षण का मौसम है, लेकिन अच्छी बात यह है कि रोगप्रतिरोधक शक्ति को मजबूत बनाने के लिए भी यही सबसे अच्छा मौसम है।

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क्यों होती है इम्यूनिटी कमजोर
- शरीर में चर्बी का अनावश्यक रूप से जमा होना।
- वजन बहुत कम होना।
- फास्टफूड, जंकफूड आदि का ज्यादा सेवन।
- शरीर को ठीक से पोषण न मिलना।
- धूम्रपान, शराब, ड्रग आदि का सेवन।
- पेनकिलर, एंटीबॉयोटिक आदि दवाओं का लंबे समय तक सेवन।
- लंबे समय तक तनाव में रहना।
- लंबे समय तक कम नींद लेना अथवा अनावश्यक रूप से देर तक सोना।
- शारीरिक श्रम का अभाव।
- प्रदूषित वातावरण में लंबे समय तक रहना।
- बचपन और बुढ़ापे में रोगप्रतिरोधक शक्ति सामान्य तौर पर कुछ कमजोर होती है, पर खराब जीवनशैली के चलते युवावस्था में भी यह कमजोर हो सकती है।
- गर्भवती स्त्री का खान-पान ठीक न हो या वह कुपोषण का शिकार हो तो होने वाले बच्चे की भी रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की संभावना बनी रहती है।
- अगर आप चीनी ज्यादा खाते हैं तो यह इम्यूनिटी के लिए नुकसानदेह है। अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन में छपे एक शोध के अनुसार सौ ग्राम या इससे अधिक शुगर खा लेने की स्थिति में श्वेत रुधिर कणिकाओं की रोगाणुओं को मारने की क्षमता पांच घंटे तक के लिए कमजोर पड़ जाती है।
- कम पानी पीने से इम्यूनिटी कमजोर पड़ती है, क्योंकि पर्याप्त पानी के अभाव में शरीर से विजातीय द्रव्यों को बाहर निकाल पाना कठिन हो जाता है।+

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ऐसे बढ़ाएं इम्यूनिटी
- आहार में एंटीऑक्सिडेंट की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। एंटीऑक्सिडेंट बीमार कोशिकाओं को दुरुस्त करते हैं और सेहत बरकरार रखते हुए उम्र के असर को कम करते हैं। बीटा केरोटिन, सेलेनियम, विटामिन-ए, विटामिन-बी2 व बी6, विटामिन-सी, विटामिन-ई, विटामिन-डी तर्था ंजक रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं। इन तत्त्वों की भरपाई के लिए गाजर, पालक, चुकंदर, टमाटर, फूलगोभी, खुबानी, जौ, भूरे चावल, शकरकंद, संतरा, पपीता, बादाम, दूध, दही, मशरूम, लौकी के बीज, तिल आदि उपयोगी हैं। हरी सब्जियों-फलों को विशेष रूप से भोजन में शामिल करें।
- सर्दी के मौसम में प्यास कम लगती है, पर याद करके दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं।
- भरपूर नींद लें।
- तनावमुक्त रहने का अभ्यास करें।
- अगर आप प्राय: बीमारियों की चपेट में रहते हैं तो इसका अर्थ यह भी है कि आपके शरीर में एंटीबॉडीज कम बन रहे हैं। इसके लिए प्रोटीन को समुचित मात्रा में सेवन किया जाना चाहिए।
- सर्दियों में सूर्य की रोशनी में सवेरे तेल मालिश करने से भी
रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। विटामिन-डी रोगप्रतिरोधकता के लिए महत्त्वपूर्ण कारक है।
- लहसुन एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल है। जाड़े के दिनों में दिन में एक-दो लहसुन सेवन करना चाहिए।
- दिन में तीन-चार बार ग्रीन-टी पीने से रोगप्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है।
- सर्दी के मौसम के सभी खट्टे फल इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करते हैं।
- सर्दियों में सब्जियों का सूप पीना इम्यूनिटी तो बढ़ाता ही है, सर्दी-जुकाम में भी फायदा करता है।
- सर्दी-जुकाम-खांसी वगैरह ज्यादा दिनों तक बने रहें तो इसे सामान्य न समझें और इलाज कराएं।

बेहतर है होम्योपैथी
सर्दी के मौसम में होने वाले सामान्य सर्दी-जुकाम के लिए अंग्रेजी दवाएं खाने से बचना चाहिए, पर होम्योपैथी दवाएं सही लक्षणों के आधार पर दी जाएं तो सर्दी-जुकाम से छुटकारा तो मिलता ही है, साथ ही शरीर का इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है।

योगासन-प्राणायाम
व्यायाम की तमाम पद्धतियों में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने की दृष्टि से योगासन और प्राणायाम सबसे अच्छे उपाय हैं। सवेरे के समय नियमित रूप से आधे से एक घंटे तक योगासन-प्राणायाम करने से शरीर के भीतर हार्मोन संतुलन कायम करने में मदद मिलती है। योगासन, खासतौर से प्राणायाम तनाव दूर करने में काफी मददगार हैं। किसी योग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर अपने अनुकूल योगासनों का चयन करना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार जिन्हें समय कम मिल पाता हो, वे 15 मिनट तक रोज सूक्ष्म यौगिक क्रियाएं करें। 

हमारे विशेषज्ञ
- योगाचार्य अखिलेश तिवारी, तेलियरगंज, इलाहाबाद
- डॉ. ए. के. अरुण, होम्योपैथ, पश्चिम विहार, नई दिल्ली
- डॉ. संजय शर्मा, हृदय रोग विशेषज्ञ, जनकपुरी, दिल्ली

इनका ध्यान रखें
आंवला, नीबू, अदरक, कच्ची हल्दी और तुलसी को अपनी थाली में जरूर शामिल करें और इन्हें कम-से-कम 21 दिनों तक इस्तेमाल करें। यों पूरे मौसम भर इनका सेवन कर सकते हैं। 21 दिन के पीछे एक रहस्य है। वैद्य सदियों से ऐसा बताते रहे हैं, पर विज्ञान के नए शोधों ने भी प्रमाणित किया है कि कोई भी चीज तीन हफ्ते तक नियमित रूप से करने पर शरीर उसके प्रति अनुकूलता बैठाने लगता है। ये पांचों उपाय एक साथ भी कर सकते हैं, परंतु ऐसा करें तो कच्ची हल्दी को सवेरे के बजाय भोजन के साथ या दिन में अन्य किसी समय लें।

Research: संतरे का जूस और पत्तेदार हरी सब्जियां खाने से कम होगा बुढ़ापे में याददाश्त जाने का खतरा

शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि जो पुरुष बुढ़ापे से 20 साल पहले ज्यादा मात्रा में फल और सब्जियां खाते हैं, उनमें सोच और याददाश्त से जुड़ी परेशानियां कम होती हैं.


न्यूयार्कः जो पुरुष हरी पत्तेदार सब्जियां, गहरे नारंगी और लाल रंग वाली सब्जियां, बेरीज (स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी) खाते हैं तथा संतरे का जूस पीते हैं, उनके बुढ़ापे में याददाश्त खोने का खतरा कम हो जाता है. एक शोध से यह जानकारी मिली है. शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि जो पुरुष बुढ़ापे से 20 साल पहले ज्यादा मात्रा में फल और सब्जियां खाते हैं, उनमें सोच और याददाश्त से जुड़ी परेशानियां कम होती हैं, चाहे वे बाद में अधिक मात्रा में फल और सब्जियां खाएं या नहीं.

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संतरे के जूस के फायदे-
जो पुरुष अधिक सब्जियों का सेवन करते हैं उनमें कमजोर सोच कौशल विकसित होने की संभावना उन पुरुषों की तुलना में 34 फीसदी कम होती है, जो कम मात्रा में सब्जियों का सेवन करते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि जो पुरुष रोजाना संतरे का जूस पीते हैं उनमें कमजोर सोच कौशल विकसित होने की संभावना उन पुरुषों की तुलना में 47 फीसदी कम होती है, जो महीने में कम से कम एक बार भी संतरे के जूस का सेवन नहीं करते हैं.

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न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया है शोध
हावर्ड यूनिवर्सिटी के बोस्टन स्थित टी. एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के चांगझेंग यूआन ने कहा, "इस शोध की सबसे खास बात यह थी कि हमने प्रतिभागियों का 20 साल की अवधि तक अध्ययन किया. हमारे शोध से इस संबंध में और पुख्ता सबूत सामने आएं हैं कि दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए सही खानपान महत्वपूर्ण है." यह शोध न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया है.

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यह शोध कुल 27,842 पुरुषों पर किया गया, जिनकी औसत उम्र 51 साल थी. इनमें 55 फीसदी प्रतिभागियों की अच्छी याददाश्य देखी गई, जबकि 38 फीसदी की ठीक-ठाक याददाश्त थी और केवल 7 फीसदी प्रतिभागियों की याददाश्त कमजोर थी. (इनपुटः भाषा)

Friday 9 November 2018

जानें डायबिटीज में कौन-कौन से व्यायाम करने चाहिए

देश में युवाओं की एक बड़ी संख्या है, जो डायबिटीज की शिकार है या उसके निशाने पर है। यूं राहत के लिए दवाएं मौजूद हैं, लेकिन डायबिटीज से बचना है या उसे काबू में रखना है तो रोज व्यायाम करना ही बेहतर उपाय ह

मो. आमिर खानUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:57 PM IST

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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, व्यायाम का शुगर के स्तर पर 12 घंटे तक प्रभाव रहता है। जिन लोगों को डायबिटीज है, उनका नियमित रूप से व्यायाम करना उनके रक्त में शर्करा के स्तर को काबू रखने में मदद करता है, शरीर की इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है और यह इंसुलिन रोधी प्रवृत्ति को कम करता है। .

आंकड़ों की मानें तो डायबिटीज के मरीजों में से 80 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हृदय रोगों के कारण होती है। कई अनुसंधानों में ये बात सामने आई है कि जिन्हें डायबिटीज है, अगर वो सप्ताह में दो घंटे पैदल चलते हैं तो उनके हृदय रोगों की चपेट में आने की आशंका कम हो जाती है। लेकिन, चूंकि डायबिटीज में खून में ग्लूकोज के स्तर में उतार-चढ़ाव अधिक होता है, इसलिए व्यायाम के संबंध में विशेषज्ञों से सलाह लेना और कुछसावधानियां बरतना जरूरी है। .

जीवनशैली से जुड़ी है डायबिटीज
डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है। डायबिटीज तब होती है, जब अग्न्याशय यानी पैंक्रिअस पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या जब शरीर अग्न्याशय द्वारा स्रावित इंसुलिन का प्रभावकारी तरीके से उपयोग नहीं कर पाता है।
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इंसुलिन एक हार्मोन है, जो रक्त में शुगर को नियंत्रित रखता है। अनियंत्रित डायबिटीज के कारण रक्त में शुगर का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लाइसेमिया कहते हैं। वहीं जब रक्त में शुगर का स्तर बहुत कम हो जाता है तो इसे हाइपोग्लाइसेमिया कहते हैं। दोनों ही स्थितियां शरीर के लिए घातक हैं। चूंकि डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है, इसलिए जीवनशैली में परिवर्तन और नियमित रूप से व्यायाम करना, इसके प्रबंधन का एक प्रमुख हिस्सा है। अगर आप सक्रिय रहते हैं तो डायबिटीज को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं और खून में शुगर के स्तर को काबू कर पाएंगे। साथ ही दूसरे रोगों से बचे रह सकते हैं।

करें नियमित व्यायाम
व्यायाम के कईफायदे हैं। लेकिन उनमें से सबसे बड़ा फायदा है कि इससे खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। जिन लोगों को टाइप 2 डायबिटीज होती है, उनके रक्त में ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक होता है। उनका शरीर या तो पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं करता है, या इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण शरीर ठीक प्रकार से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाता है। डायबिटीज के मरीजों में कुछ स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है-जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, किडनी के रोग, और तंत्रिका तंत्र संबंधी रोग। अगर खून में शुगर का स्तर काबू में रहेगा तो इन जटिलताओं के विकसित होने का खतरा कम हो जाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए व्यायाम कईतरह से असरदार साबित होता है-.

- रक्त में शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है.
- रक्त दाब कम होता है.
- कोलेस्ट्रॉल का स्तर नहीं बढ़ता .
- इंसुलिन का इस्तेमाल करने की क्षमता बढ़ना.
- स्ट्रोक और हृदय रोगों का खतरा कम होना 'मोटापे से बचाव व तनाव से राहत .
Health Tips: सेहतमंद बने रहने के लिए अपनाएं ये बेसिक टिप्स

ये सावधानियां हैं जरूरी .
- व्यायाम करते समय ग्लूकोज, खून से निकलकर मांसपेशियों तक अधिक तेजी से पहुंचता है, जिसके कारण हाइपोग्लाइसेमिया हो सकता है। जो लोग इंसुलिन या दूसरी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें विशेष सावधानी रखने की जरूरत है। .

अपने डॉक्टर से बात करें : किसी भी तरह के एक्सरसाइज प्रोग्राम को शुरू करने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें, ताकि वो आपको बता सके कि कब और कितनी देर व्यायाम करना आपके लिए ठीक रहेगा।

ब्लड ग्लूकोज के स्तर को जांचें : व्यायाम से पहले, उसके दौरान और बाद में ख्ूान में शर्करा के स्तर की जांच करें। इससे आपको अपना व्यायाम शेड्यूल बनाने में मदद मिलेगी।

स्ट्रेस टेस्ट : अगर आपको हृदय रोगों का खतरा है तो आप स्ट्रेस टेस्ट (आपका शरीर कितना शारीरिक श्रम सह सकता है) भी कराएं। .

अपने शरीर की सुनें : जहां भी, जब भी एक्सरसाइज करें, सतर्क रहें। अपने शरीर के संकेतों को पहचानें। ढेर सारा पानी पिएं। अपने साथ हमेशा कोई कैंडी या ग्लूकोज की टैबलेट रखें। रक्त में शुगर का स्तर कम होने पर तुरंत इसे ले लें। हमेशा मेडिकल अलर्ट करने वाला ब्रेसलेट पहनें। साथ ग्लूकोज मीटर भी रख सकते हैं। शरीर सहन कर सके, उतना ही व्यायाम करें। .

कौन से व्यायाम हैं बेहतर
एरोबिक और रेजिस्टेंस ट्रेनिंग, दोनों करें तो अधिक प्रभावी होगा। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार भी डायबिटीज के प्रबंधन के लिए एरोबिक व स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग दोनों तरह के व्यायाम करना अच्छा रहता है।.

एरोबिक एक्सरसाइज : इस तरह के एक्सरसाइज में हृदय गति बढ़ाने के लिए एक लय में हाथों और पैरों का लगातार इस्तेमाल किया जाता है। .

इसमें सम्मिलित हैं दौड़ना, भागना, नाचना, साइकिल चलाना, तेज चलना और जॉगिंग। एरोबिक्स से अग्न्याशय, हृदय और फेफड़े बेहतर तरीके से काम करते हैं। शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है। शरीर के सभी हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचती है। .

स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग : इसे रेजिस्टेंस ट्रेनिंग भी कहते हैं। यह व्यायाम शरीर को इंसुलिन के प्रति संवेदनशील बनाता है। खून में शुगर का स्तर कम करने में मदद करता है। इसे सप्ताह में दो बार करें, पर लगातार दो दिन न करें। वेट लिफ्टिंग, पुश-अप्स, लिफ्ट-अप्स, स्क्वैट, प्लांक, रेजिस्टेंस बैंड का इस्तेमाल आदि इसमें *आते हैं।.

(विशेषज्ञ: डॉ. रमन कुमार, अध्यक्ष, एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया, दिल्ली)
(डॉ. सबिता, न्युट्रिशनिस्ट एंड डायबिटीज एजुकेटर, फ्लोरेंस हॉस्पिटल, गाजियाबाद)

कितना कारगर है योग
योग तन-मन को ठीक रखने और सेहत से जुड़ी विभिन्न समस्याओं को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेडिकल साइंस ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कई योगासन हैं, जिनसे अग्न्याशय की बी-सेल्स अधिक बेहतर तरीके से काम करती हैं और शरीर में इंसुलिन का स्राव बेहतर होता है। .

कपालभाति :नियमित रूप से कपालभाति करने से डायबिटीज का प्रबंधन बेहतर तरीके से होता है। जमीन पर सीधे बैठ जाएं और नाक से सांस को तेजी से बाहर की ओर छोड़ें, ऐसा करते समय पेट को अंदर की तरफ खीचें। फिर तुरंत ही नाक से सांस को अंदर की ओर खीचें और पेट को बाहर निकालें। इसे रोजाना 70-100 बार करें। .

मंडूक आसन : इससे अग्न्याशय की कार्यप्रणाली दुरुस्त होती है। यह पेट और हृदय के लिए भी अच्छा आसन है। पैरों को सटाते हुए, घुटनों के बल बैठ जाएं, अपने नितंबों को एड़ियों पर टिका लें। आप दोनों हाथों की मुट्ठियां बंद कर लें। अब दोनों मुट्ठियों को नाभि के दोनों ओर लगाकर श्वास बाहर निकालते हुए सामने झुकते हुए ठोड़ी को भूमि पर टिका दें। थोड़ी देर इस स्थिति में रहने के बाद सीधे हो जाएं। .

धनुरासन : धनुरासन से अग्न्याशय सक्रिय होता है और इंसुलिन के स्राव में मदद मिलती है, जो रक्त में शर्करा का स्तर नियंत्रित करने के लिए जरूरी है। टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज, दोनों के रोगियों के लिए ये अच्छा है।.

वृक्षासन : वृक्षासन का नाम वृक्ष शब्द से पड़ा है, क्योंकि इस आसन में पेड़ की मुद्रा में खड़े होना होता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए ये बहुत लाभदायक है।.

कुछ खास बातें
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा प्रकाशित विशेष हेल्थ रिपोर्ट, ‘लिविंग विद डायबिटीज' के अनुसार, डायबिटीज में हर रोज व्यायाम करना फायदेमंद है, पर कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।
- 'सप्ताह में 5 बार, 30 मिनट व्यायाम करें। डायबिटीज साइंस एंड टेक्नोलॉजी जनरल में 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जो लोग इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, अगर वो खाना खाने के पहले व्यायाम करते हैं तो रक्त में शर्करा का स्तर अधिक नहीं बढ़ता है। जो लोग इंसुलिन लेते हैं, उन्हें हाइपोग्लाइसेमिया की आशंका अधिक होती है, ऐसे लोगों का खाना खाने के 1-3 घंटे के भीतर व्यायाम करना अच्छा रहता है। आधे घंटे से अधिक एक्सरसाइज न करें, क्योंकि इससे रक्त में शुगर के स्तर में तेजी से कमी आ सकती है। आपने कभी एक्सरसाइज नहीं किया है तो शुरुआत 5-10 मिनट से करें।.

- अगर आप एक्सरसाइज न कर पाएं तो चढ़ने-उतरने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल करें, घर की सफाई करें, बाजार में पैदल घूमकर शॉपिंग करें, बागवानी करें, बच्चों और पालतू पशुओं के साथ खेलें।

शुगर लेवल कम होने पर ये करें
यह बहुत जरूरी है कि एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर के स्तर की जांच करें। अगर एक्सरसाइज करने से पहले रक्त में शुगर का स्तर 100 एमजी/डीएल है, तो कोई फल या स्नैक्स ले लें, इससे रक्त में शुगर का स्तर बढ़ जाएगा और आप हाइपोग्लाइसेमिया से बच जाएंगे। 30 मिनट बाद फिर जांचें कि आपके रक्त में शुगर स्तर स्थिर है या नहीं। वर्कआउट के बाद भी शुगर की जांच करें। अगर आप इंसुलिन ले रहे हैं तो एक्सरसाइज के बाद हाइपोग्लाइसेमिया का रिस्क बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आपका शुगर लेवल बहुत अधिक (250 के ऊपर) हो तो भी एक्सरसाइज न करें, क्योंकि कई बार एक्सरसाइज करने से रक्त में शुगर का स्तर और बढ़ जाता है।.

तो व्यायाम बंद कर दें.
'सिर हल्का होना या चक्कर आना
- 'हृदय की धड़कनें तेज हो जाना
- छाती में जकड़न 'जी मिचलाना
- 'अचानक कमजोरी महसूस होना 'सांस लेने में परेशानी होना
- 'गंभीर थकान या उनींदापन महसूस होना।

अब लौट आइए सेहत की ओर, दूर करें त्योहारों की थकान, अपनाएं ये Tips

त्योहार के मौसम में सबसे पहले सेहत की ही अनदेखी होती है। खान-पान बिगड़ जाता है, भाग-दौड़ थका देती है और हवा में प्रदूषण तो है ही। चूंकि ठंड दस्तक दे चुकी है, तो जरूरत है अपनी दिनचर्या ठीक करने की।

health Tips

शमीम खान,नई दिल्लीUpdated: Fri, 09 Nov 2018 05:43 PM IST

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त्योहारों के दौरान अनियमित जीवनशैली, व्यस्तता, बढ़ा हुआ धूल और धुएं का स्तर, सेहत पर बुरा असर डालने लगते हैं। इस वजह से शरीर में टॉक्सिन्स यानी विषैले तत्वों की मात्रा बढ़ने लगती है। एसिडिटी और कब्ज भी परेशान करने लगते हैं। सेहत को पटरी पर वापस लाने के लिए सबसे पहले शरीर के आंतरिक तंत्र को विषैले और हानिकारक रसायनों से मुक्त करना जरूरी हो जाता है। कुछ दिन के लिए कुछबातों का ध्यान रखना शरीर को टॉक्सिन फ्री करने में मदद कर सकता है।

खान-पान में बदलाव करें
एल्कोहल, कॉफी, धूम्रपान, रिफाइंड शुगर और सैचुरेटेड फैट, ये सब शरीर में विषैले तत्व बढ़ाते हैं, जिससे शरीर की कार्यप्रणाली गड़बड़ाने लगती है।

खूब पानी पिएं
एक अच्छी डिटॉक्स डाइट में 60 प्रतिशत तरल और 40 प्रतिशत ठोस खाद्य पदार्थ होना चाहिए। शरीर से टॉक्सिन बाहर निकालने का पहला नियम है कि खूब पानी पिएं। शरीर में पानी की कमी न होने दें।

फल खाएं व जूस पिएं
मौसमी फलों का जूस पिएं। पपीता और खीरे का जूस भी आंतों की सफाई करता है। अंगूर का रस न पिएं। यह सफाई की प्रक्रिया में ब्लॉकिंग एजेंट के रूप में काम करता है।

खूब सब्जियां खाएं
पपीता और अनन्नास, दोनों ही पेट को फायदा पहुंचाते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां, फूलगोभी, पत्तागोभी और ब्रोकली का सेवन करें। प्याज भी अच्छा क्लींजिंग एजेंट है। शलजम लिवर को डिटॉक्स करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कम मसालेदार उबली हुई सब्जियां खाएं।

बीजों की ताकत
अलसी, तिल, सूरजमुखी और कद्दू के बीजों का सेवन करें। ताकत भी मिलेगी और जरूरी पोषक तत्वों का पोषण भी।

कैसे करें शुरुआत
सप्ताह में एक बार डिटॉक्स डाइट पर रहें। चार सप्ताह तक ऐसा करें। वजन ज्यादा है तो सप्ताह में दो बार भी डिटॉक्स डाइट अपना सकते हैं। इस दौरान कैफीन युक्त चीजें न लें। अधिक चीनी व नमक न खाएं। जंक फूड का सेवन न करें। सप्ताह में एक से दो दिन ही पर्याप्त है, वरना कमजोरी महसूस होने लगेगी।

किस तरह होता है असर
हल्का व सुपाच्य भोजन पाचन तंत्र को राहत देता है। अंगों पर कम दबाव पड़ता है। लिवर की कार्य क्षमता बढ़ने से विषैले तत्व तेजी से बाहर निकलने लगते हैं। किडनी, आंत और त्वचा की अंदरूनी सफाईहोती है। रक्त संचार बेहतर होने के साथ दर्द व सूजन जैसे लक्षणों में भी कमी आती है। कमर या पैरों में दर्द की समस्या है तो पहले मसाज, गर्म व ठंडे पानी की सेंक या फिजियो-थेरेपी की मदद से दर्द व सूजन को कम करने पर ध्यान दें। डॉक्टर के बताएं व्यायाम को नियमित करें।

पेट को दें आराम
- दिन की शुरुआत एक गिलास गुनगुने पानी से करें। इसमें आधा चम्मच शहद और एक चम्मच नीबू का रस भी मिला लें।
- खाने के साथ सलाद, दही, छाछ और सूप जरूर लें।.
- अधिक मसालेदार भोजन न करें।
- हल्के-फुल्के नाश्ते के तौर पर केला, मखाना या पोहा आदि लें।

थकान दूर करें
त्योहारों के दौरान पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है। उस पर अगर नींद पूरी नहीं हुई है तो थकान का असर पूरे शरीर पर पड़ने लगता है। अधिक तला-भुना खाने से परहेज करें। साथ ही नींद पूरी करने पर ध्यान दें। नियमित व्यायाम करने से रक्त संचरण सुधरता है और शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ता है।

दमा रोगी रखें ध्यान
दिवाली के तुरंत बाद वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड का प्रतिशत 10 गुना और विषैले तत्वों की मात्रा 2-3 गुना तक बढ़ जाती है। कई जगह प्रदूषण का स्तर 200 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। धुंध के कारण प्रदूषक तत्व हवा में नीचे ही रहने लगते हैं। बेहतर है कुछ दिन तड़के सुबह घर से बाहर न निकलें। मास्क पहन कर रखें। दवाएं लेने में लापरवाही न बरतें। ये उपाय श्वास नली को आराम देंगे। सुबह घर में ही सांस से जुड़े व्यायाम करें। - शमीम खान

Wednesday 7 November 2018

खूब मस्ती से मनाएं दिवाली, लेकिन सेहत के लिए रखें इन बातों का विशेष ध्यान

रोशनी का त्योहार कब प्रदूषण के त्योहार में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला! दिवाली की खुशियों के बीच सेहत का ध्यान कैसे रखें, बता रही हैं स्वाति गौड़

तो दिवाली का त्योहार रोशनी का प्रतीक है, इसलिए लोग इस अवसर पर खूब दीये जलाते हैं और जमकर लाइटिंग वगैरह भी करते हैं, लेकिन खूब सारी रोशनी के साथ-साथ दिवाली पर कानफोड़ू पटाखे भी भारी मात्रा में छोड़े जाते हैं, जिससे फैलने वाले प्रदूषण से हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ आस-पास के पर्यावरण पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है।

हालांकि दिवाली पर प्रदूषण की मार से बचने के लिए इस साल भी सुप्रीम कोर्ट से दिशा-निर्देश जारी हुए हैं, जिसमें पटाखे छोड़ने के समय आदि के संबंध में कई बातें कही गयी हैं। लेकिन इन दिनों मौसम के बदलने और दिवाली के कारण पटाखों के साथ-साथ अन्य कई चीजों से पैदा होने वाले दमघोंटू प्रदूषण से बचने के लिए आपको अपने स्तर पर भी पुख्ता तैयारी करने की जरूरत है। विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों व सांस की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को बहुत अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता है।

बच्चों का ऐसे रखें ध्यान
दिवाली पर छोड़े जाने वाले कुछ पटाखे बहुत ज्यादा तेज आवाज के होते हैं, जो छोटे बच्चों की सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए कोशिश करें कि बच्चे को घर के अंदर ऐसे किसी स्थान पर रखें, जहां तेज पटाखों की आवाज कम से कम आये। कानों में रुई लगा देने से भी तेज आवाज से बचा जा सकता है। इसके अलावा पटाखों से निकलने वाला हानिकारक धुआं बच्चों के फेफड़ों को बहुत ज्यादा
नुकसान पहुंचा सकता है, जिसकी वजह से उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इसलिए घर के खिड़की-दरवाजे अच्छी तरह से बंद रखें, ताकि हानिकारक और जहरीला धुआं घर में प्रवेश न कर पाये।

घर में यदि बुजुर्ग हों तो

घर में बुजुर्ग व्यक्ति के होने पर कोशिश करें कि बहुत ज्यादा तेज आवाज वाले पटाखे न छोड़ें। न ही बुजुर्ग व्यक्ति खुद से ऐसे पटाखे छोड़ें, जिन्हें छोड़ने के तुरंत बाद तेजी से दूर जाना पड़ता है। उदाहरण के लिए रॉकेट, क्योंकि यह तेजी से हवा में जाता है और इससे बहुत हानिकारक धुआं भी निकलता है। अगर बच्चों के साथ पटाखे छोड़ रहे हैं, तो हानिकारक धुएं से बचने के लिए खुद मास्क जरूर पहनें।

सांस के मरीज बरतें विशेष सावधानी

जिन लोगों को सांस लेने में वैसे भी दिक्कत रहती है, उन्हें सलाह है कि वह दिवाली से पहले एक बार अपने डॉक्टर से जरूर मिल लें। डॉक्टर से दिवाली से पहले और बाद में होने वाले प्रदूषण के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जरूरी दवाइयां लेना न भूलें। दिवाली वाले दिन घर से बाहर निकलने से परहेज करें। यदि धुएं की वजह से छाती में जकड़न व सांस लेने में तकलीफ हो तो तुरंत डॉक्टर द्वारा बताया गया इनहेलर लें या जरूरत पड़ने पर नेबुलाइजर जरूर लें। ऐसे में भाप लेने से भी थोड़ी-बहुत राहत मिल सकती है। लेकिन इसके बावजूद आराम न मिले और सांस लेने में दिक्कत हो रही हो, तो तुरंत किसी नजदीकी अस्पताल में चले जाएं।
दिवाली के बाद भी रहता है प्रदूषण पटाखों से निकलने वाला जहरीला धुआं और गैस वातारण में लंबे समय तक बने रहते हैं और अपना दुष्प्रभाव छोड़ते रहते हैं। इसलिए दिवाली बाद भी आप प्रदूषण के खतरों के प्रति सचेत रहें। कोशिश करें कि दिवाली की अगली सुबह या कुछ दिनों बाद तक तड़के घर से न निकलें। यदि निकलना भी पड़े तो कोशिश करें कि दोपहर के बाद ही घर से निकलें।

दरअसल, दिवाली के बाद वातावरण में जो धुएं की मोटी परत जम जाती है उसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए बाद में भी मास्क पहनें और ज्यादा दिक्कत होने पर गीला रूमाल नाक पर बांधें।
(डॉ. विजय दत्ता, सीनियर कंसल्टेंट, रेस्पाइरेटरी मेडिसिन, इंडियन स्पायनल इंजरी सेंटर, वसंत कुंज, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित)

Tuesday 6 November 2018

प्रदूषण बढ़ने से अस्थमा और कैंसर का खतरा, जहरीली हवा से बचने के उपाय

दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. ऐसे में आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. यदि आप इस समय जहरीली हवा से बचें तो अस्थमा और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों को अपने शरीर में प्रवेश करने से रोक सकते हैं.नई दिल्ली : दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. ऐसे में आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. यदि आप इस समय जहरीली हवा से बचें तो अस्थमा और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों को अपने शरीर में प्रवेश करने से रोक सकते हैं. दिल्ली-एनसीआर की हवा में मौजूद नाइट्रोजन ऑक्साइड से अस्थमा और चेस्ट इंफेक्शन के मरीजों को अपनी चपेट लेने के साथ ही स्वस्थ लोगों को भी अपना शिकार बना रहा है. चिकित्सकों के पास ऐसे लोगों की संख्या बढ रही है जिन्हें प्रदूषण से पहले कोई शिकायत नहीं थी. इन लोगों को पिछले कुछ समय से बलगम की शिकायत के साथ ही बुखार अपनी चपेट में ले रहा है.

डॉक्टरों का कहना है कि हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने से एनओ-टू पार्लिटकल्स खाने की नली के रास्ते शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. ऐसा होने से गले में आमतौर पर खराश और बलगम की शिकायत बनी रहती है. प्रदूषण का बढ़ता स्तर आंख, नाक, गले से होता हुआ फेंफडों, दिल और लिवर तक पहुंचता हुआ हमारी किडनी पर असर डालता है. इसकी जानकारी लंबे समय बाद लगता है. ऐसे में गले में खराश और बलगम की समस्या होने पर डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए. हवा में मौजूद पीएम कण सांस और दिल से संबंधित बीमारियों के साथ कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में ला सकता है.

प्रदूषण का स्वास्थ्य पर असर
हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं उसमें मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड के कारण जल्दी सुस्ती आने लगती है. हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है. इसके अलावा आपको भूलने की बीमारी के अलावा गले-फेंफडें के इंफेक्शन व अस्थमा जैसी समस्या होने का भी खतरा रहता है. हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर इस तरह अपना बचाव करें.

हल्दी, अदरक और तुलसी का रस पिएं
वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. पीके चतुर्वेदी बताते हैं कि वायु प्रदूषण बढ़ने पर एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर हल्दी, अदरक और तुलसी का रस सुबह में लेना चाहिए. एंटीऑक्सीडेंट से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. इसके अलावा इससे शरीर की दूसरी तरह की परेशानियों में भी आराम मिलता है. डॉ. चतुर्वेदी बताते हैं कि एंटीऑक्सीडेंट प्रदूषण की वजह से हमारे शरीर में पहुंचे हानिकारक तत्‍वों को बाहर निकालते हैं. इस मौसम में तुलसी कर सेवन बेहद फायदेमंद रहता है.

शहद और गुड़ का सेवन फायदेमंद
वायु प्रदूषण बढ़ने पर शहद और गुड़ का सेवन भी आपके इम्‍यून सिस्‍टम को मजबूत करता है. हवा में फैल रहे प्रदूषण से बचाने के साथ ही इसका सेवन शरीर को कई प्रकार की  बीमारियों के प्रभाव से बचाता है. लहसुन भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में असरदार रहता है. यह कफ से निजात दिलाने में मददगार होता है.

आहार में विटामिन सी को शामिल करें
अपने आहार में विटामिन सी को ज्यादा से ज्यादा शामिल करना चाहिए. इसके लिए आप संतरा, आंवला, नींबू और अमरूद जैसी विटामिन सी से भरपूर फलों का सेवन करें. आंवला और एलोवेरा जूस भी प्रदूषण के मौसम में आपकी स्किन को फायदा पहुंचाता है.

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सब्जियां और फल धोकर खाएं
सब्जियों और फलों को अच्छी तरह से धोकर भी इस्‍तेमाल करें, क्योंकि वे खुले में प्रदूषित होते हैं. इसके अलावा हमें अपने आसपास पौधे लगाने चाहिए, क्‍योंकि इससे हमें ताजा ऑक्सीजन मिलती है.

चिकित्सकों के अनुसार हवा में प्रदूषण बढ़ने पर सुबह और शाम की लंबी वॉक नहीं करनी चाहिए. आउटडोर पार्टियां करने से बचना चाहिए. अगर आप इंडोर एक्‍सरसाइज करते हैं तो ट्रेडमिल पर व्‍यायाम करने से फिलहाल बचे. अपने घर के आसपास जहां पर भी धूल है, वहां पानी का छिड़काव करें. ज्यादा से ज्यादा कार पूलिंग का सहारा लें. टू-व्हीलर चालकों को मुंह पर मास्‍क लगाकर घर से बाहर निकलना चाहिए. दिल और अस्थमा के मरीजों के अलावा बुजुर्ग और बच्चों को घर से कम से कम बाहर निकलना चाहिए. प्रदूषण का स्‍तर बढ़ने से अस्‍थमा और दिल के रोगियों को हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है.




ZEE जानकारीः किस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश के प्राचीन ज्ञान पर अधिकार जमा लिया है

अमेरिका में आयुर्वेद की मदद से कैंसर के इलाज पर 8 हज़ार 484 शोध किए गए हैं. इतना ही नहीं अमेरिका में करीब 3 लाख लोग आयुर्वेद का इस्तेमाल कर रहे हैं, और आयुर्वेदिक तरीके से ही जीवन जी रहे हैं.

सोने की महिमा तो आपने देख ली, लेकिन आयुर्वेद के बिना धनतेरस का पर्व अधूरा है. क्योंकि भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है. आज आपको ये भी समझना चाहिए कि आयुर्वेद का ज्ञान हमारे भारत की धऱती से पूरी दुनिया में किस तरह फैला . आज हमने एक मशहूर पुस्तक पढ़ी, जिसका नाम है - Ayurveda: The Indian Art of Natural Medicine and Life Extension. इस किताब के Page Number 26 पर कुछ ज़रूरी बातें लिखी हैं .

आज से करीब ढाई हजार वर्ष पहले आयुर्वेद का ज्ञान बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से दुनिया भर में फैला . दुनिया में जहां-जहां भी बौद्ध धर्म फैला वहां लोगों को आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी मिली . और सबसे पहले Central Asia, तिब्बत, श्रीलंका, चीन, जापान और इंडोनेशिया में बौद्ध धर्म के जरिए आयुर्वेद का ज्ञान पहुंचा .आज के दौर में पूरी दुनिया आयुर्वेद को अपनाना चाहती है . अमेरिका में भी आयुर्वेद की लोकप्रियता बहुत बढ़ चुकी है .

2016 में अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग ने एक महत्वपूर्ण फैसला किया था . US department of Health ने भारत के आयुर्वेदिक संस्थानों से हाथ मिलाया था ताकि आयुर्वेदिक तरीके से कैंसर के इलाज की संभावनाएं तलाशी जा सकें . अमेरिका के National Institutes of Health ने अदरक की एक विशेष प्रजाति द्वारा कैंसर के इलाज पर 3 हज़ार 574 रिसर्च पेपर तैयार किए हैं. NIH ने हल्दी से कैंसर के इलाज पर भी 1 हज़ार 161 Research Papers तैयार किए गए हैं. अमेरिका ने अदरक के फायदों पर भी 2 हज़ार 500 Studies की हैं. अमेरिका ने सौंफ के फायदों पर 668 पेपर्स तैयार किए हैं और जीरे के फायदे पर 582 तरह के शोध किए हैं.

अमेरिका में आयुर्वेद की मदद से कैंसर के इलाज पर 8 हज़ार 484 शोध किए गए हैं. इतना ही नहीं अमेरिका में करीब 3 लाख लोग आयुर्वेद का इस्तेमाल कर रहे हैं, और आयुर्वेदिक तरीके से ही जीवन जी रहे हैं.
पूरी दुनिया में आयुर्वेदिक Products और दवाओं से जुड़ा बाज़ार 6 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का है. 2050 तक आयुर्वेद का बाज़ार 5 ट्रिलियन डॉलर्स यानी 365 लाख करोड़ रुपये का हो जाएगा. और आपको य़े जानकर बहुत हैरानी होगी और दुख होगा कि इस वक्त आयुर्वेद का सबसे बड़ा बाज़ार.. भारत नहीं.. बल्कि अमेरिका है. अमेरिका पूरी दुनिया के 41 प्रतिशत आयुर्वेदिक उत्पादों का इस्तेमाल करता है.

इसके बाद यूरोप का नंबर आता है. जो पूरी दुनिया के 20 प्रतिशत आयुर्वेदिक उत्पादों का इस्तेमाल करता है. जड़ी बूटियों पर आधारित दवाओं और Products के निर्यात के मामले में भारत, चीन से भी पीछे है. चीन पूरी दुनिया में 13 प्रतिशत Herbal Products का निर्यात करता है. जबकि आयुर्वेद की जन्म भूमि भारत से सिर्फ 2.5 प्रतिशत Herbal Products ही दुनिया के बाज़ारों में पहुंचते हैं.

आज हमने आयुर्वेद पर दुनिया की कई अहम किताबों का अध्ययन किया है . इस दौरान हमें पता चला कि किस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश के प्राचीन ज्ञान पर अधिकार जमा लिया. भारत के पुराने शोध को आगे बढ़ाकर अंग्रेज़ों ने दुनिया भर में नाम कमाया और हमारे देश के कई ऋषियों और आचार्यों का Credit लूट लिया.

19वीं शताब्दी में Joseph कैरपुए, England के एक Surgeon थे . Medical Science की History में कैरपुए को इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि उन्होंने वर्ष 1815 में England में पहली बार राइनो-plasty की थी .राइनो-plasty, एक तरह की Plastic surgery है जिसकी मदद से नाक को जोड़ा जाता है या फिर उसके आकार में बदलाव किया जाता है. बहुत से लोगों को ये जानकार हैरानी होगी कि कैरपुए ने Plastic Surgery का ये तरीका भारत से सीखा था . हमारे देश की विरासत को नकारने वाले और दुनिया के सारे ज्ञान का श्रेय पश्चिमी देशों को देने वाले बुद्धिजीवी इस पर सवाल उठाएंगे. लेकिन ऐसे लोगों को Sir John Walton, और Stephen Lock की किताब The Oxford Medical Companion को जरूर पढ़ना चाहिए .

इस किताब के Page Number 771 पर लिखा है कि ब्रिटेन के Surgeon Doctor Joseph कैरपुए ने भारत की एक रिपोर्ट पढ़ने के बाद Plastic Surgery पर 20 वर्ष तक Research किया . Research के दौरान हमने एक और किताब पढ़ी.. जिसका नाम है - Plastic Surgery of Head and Neck... इस किताब के Page Number 214 पर लिखा है कि वर्ष 1815 में कैरपुए ने भारत के तरीके से ही नाक की Surgery की थी.

अपने Research के दौरान हमें कई और दिलचस्प जानकारियां मिलीं . Doctor B R Suhas ने अपनी एक किताब में लिखा है कि वर्ष 1782 में टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच... Anglo-मैसूर युद्ध हुआ . इस किताब के मुताबिक टीपू सुल्तान ने कुछ अंग्रेज सिपाहियों को युद्ध बंदी बना लिया. टीपू सुल्तान ने इन सिपाहियों की नाक और एक हाथ कटवा दिए. इसके बाद इन अंग्रेज सिपाहियों ने एक भारतीय सर्जन से मदद ली. इस भारतीय सर्जन ने Surgery करके इन अंग्रेज़ सिपाहियों की नाक को जोड़ दिया.

Surgery के दौरान दो British Surgeons, Thomas Crusoe और James Findley ने इस पूरी प्रक्रिया को बहुत से ध्यान से देखा . इन्होंने पूरी Surgery के चित्र बनाए और पूरी प्रक्रिया को नोट किया .Madras Gazette में भी इस Special Surgery पर एक Article छापा गया था. इसके बाद एक British Surgeon Joseph कैरपुए भारत आए . वो 20 वर्ष तक भारत में ही रहे और उन्होंने Plastic Surgery के बहुत सारे तरीके सीखे वर्ष 1815 में उन्होंने England में पहली बार सफल Plastic Surgery की वैसे भारत के महान आचार्य सु-श्रुत को दुनिया का पहला Surgeon कहा जाता है अपने ग्रंथ सु-श्रुत संहिता में उन्होंने Plastic Surgery का ज़िक्र किया है. Plastic Surgery को उस वक्त शल्य चिकित्सा कहा जाता था . आचार्य सु-श्रुत का जन्म कब हुआ ? इस पर मतभेद है लेकिन ये कह सकते हैं कि करीब 2,500 वर्ष पहले उन्होंने Plastic Surgery की शुरुआत की थी .

पश्चिमी देशों ने हमेशा हमारे देश को सपेरों और जादूगरों का देश कहकर बदनाम करने की कोशिश की . उस दौर में उन्होंने भारत के योगदान को स्वीकार नहीं किया . लेकिन अब पूरी दुनिया हमारे देश की बौद्धिक क्षमता का लोहा मानती है. अब आने वाले वक़्त में विश्व गुरू बनने के लिए हमे अपनी इन प्राचीन शक्तियों को पहचानना होगा और इन्हें पूरा सम्मान देना होगा.

Monday 5 November 2018

जिंक युक्त चॉकलेट, चाय से जल्दी नहीं आएगा बुढ़ापा

इस अध्ययन में पाया गया कि जिंक एक जैविक अणु को सक्रिय करता है जो ऑक्सिडेटिव तनाव से बचाने में कारगर है.

बर्लिन: जिंक को वाइन, कॉफी, चाय और चॉकलेट जैसी खाने-पीने की चीजों में पाए जाने वाले पदार्थों के साथ लिया जाए तो वह ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस से बचाने में मददगार साबित हो सकता है. एक अध्ययन में ऐसा दावा किया गया है. जर्मनी की एरलान्जन-न्यूरमबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि बुढ़ापे और जीवन प्रत्याशा घटने के पीछे कुछ हद तक ऑक्सिडेटिव तनाव जिम्मेदार होता है.

इस अध्ययन में पाया गया कि जिंक एक जैविक अणु को सक्रिय करता है जो ऑक्सिडेटिव तनाव से बचाने में कारगर है. एरलान्जन-न्यूरमबर्ग यूनिवर्सिटी के इवानोवी बर्माजोव ने कहा, “यह निश्चित तौर पर संभव है कि वाइन, कॉफी, चाय या चॉकलेट भविष्य में जिंक के साथ उपलब्ध हों.”

जिंक एक ऐसा खनिज है जिसकी थोड़ी सी मात्रा की, मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए जरूरत पड़ती है. यह अध्ययन नेचर केमिस्ट्री पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

Diwali 2018:दिवाली के दौरान प्रदूषण से बचने के लिए बरतें ये सावधानियां, डॉक्टर से जानें टिप्स

दिवाली में पटाखों की धूम नहीं हो तो शायद कुछ कमी सी लगती है, लेकिन अगर पटाखें हमारे स्वास्थ्य को नुकसान व पयार्वरण को हानि पहुंचा रहे हैं तो हमें इनके इस्तेमाल के बारे में सही से सोचने की जरूरत है। दिवाली की धूम-धड़ाम के बीच स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से अपने को किस तरह से बचें व पटाखों से किस तरह बुजुर्ग व बीमार लोग अपनी स्वास्थ्य की देखभाल करें।

दिवाली अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आता है, लेकिन दमा, सीओपीडी या एलर्जिक रहाइनिटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों बढ़ जाती है। पटाखों में मौजूद छोटे कण सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिसका असर फेफड़ों पर पड़ता है। इस तरह से पटाखों के धुंए से फेफड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और हालात यहां तक भी पहुंच सकते हैं कि ऑगेर्न फेलियर और मौत तक हो सकती है। ऐसे में धुएं से बचने की कोशिश करें।

पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा या दमा का अटैक आ सकता है। हानिकारक विषाक्त कणों के फेफड़ों में पहुंचने से ऐसा हो सकता है, जिससे व्यक्ति को जान का खतरा भी हो सकता है। ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हों, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए।

पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है। पटाखों में मौजूद लैड सेहत के लिए खतरनाक है, इसके कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है। जब पटाखों से निकलने वाला धुंआ सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रुकावट आने लगती है। दिमाग को पयार्प्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है।

बच्चे और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के शोर व धुएं से बचकर रहना चाहिए। पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा करता है। पटाखों में हानिकर रसायन होते हैं, जिनके कारण बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है और उनके विकास में रुकावट पैदा करता है। पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए।

पटाखे को रंग-बिरंगा बनाने के लिए इनमें रेडियोएक्टिव और जहरीले पदाथोर्ं का इस्तेमाल किया जात है। ये पदार्थ जहां एक ओर हवा को प्रदूषित करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे कैंसर की आशंका भी रहती है।

धुएं से दिवाली के दौरान हवा में पीएम बढ़ जाता है। जब लोग इन प्रदूषकों के संपर्क में आते हैं तो उन्हें आंख, नाक और गले की समस्याएं हो सकती हैं। पटाखों का धुआं, सदीर् जुकाम और एलजीर् का काररण बन सकता है और इस कारण छाती व गले में कन्जेशन भी हो सकता है।

इसके धुएं में मौजूद कॉपर से सांस की समस्याएं, कैडमियम-खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम करता है, जिससे व्यक्ति एनिमिया का शिकार हो सकता है। जिंक की वजह से उल्टी व बुखार व लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है। मैग्निशियम व सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है।

विशेषज्ञों का कहना है कि 1०० डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शहरों के लिए 45 डेसिबल की आवाज अनुकूल है। लेकिन भारत के बड़े शहरों में शोर का स्तर 9० डेसिबल से भी अधिक है। मनुष्य के लिए उचित स्तर 85 डेसिबल तक ही माना गया है। अनचाही आवाज मनुष्य पर मनोवैज्ञानिक असर पैदा करती है।

शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, टिन्नीटस, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है। तनाव और उच्च रक्तचाप सेहत के लिए घातक है, वहीं टिन्नीटस के कारण व्यक्ति की याददाश्त जा सकती है, वडिप्रेशन का शिकार हो सकता है। ज्यादा शोर दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं। शोर में रहने से रक्तचाप पांच से दस गुना बढ़ जाता है और तनाव बढ़ता है। ये सभी कारक उच्च रक्तचाप और कोरोनरी आर्टरी रोगों का कारण बन सकते हैं।

पटाखों व प्रदूषण से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतें?

कोशिश रहे कि पटाखें न जलाएं या कम पटाखे फोड़ें। पटाखों के जलने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं जो दमा के मरीजों के लिए खतरनाक हैं। हवा में मौजूदा धुंआ बच्चों और बुजुगोर्ं के लिए घातक हो सकता है।

प्रदूषित हवा से बचें, क्योंकि यह तनाव और एलजीर् का कारण बन सकती है। एलजीर् से बचने के लिए अपने मुंह को रूमाल या कपड़े से ढक लें। दमा आदि के  मरीज अपना इन्हेलर अपने साथ रखें। अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो तो तुरंत इसका इस्तेमाल करें और इसके बाद डॉक्टर की सलाह लें। त्योहारों के दौरान स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। अगर आपको किसी तरह असहजता महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।

Sunday 4 November 2018

अब आयुर्वेद से होगा डेंगू का इलाज, दवा चल रहा है क्लिनिकल ट्रायल

   
केंद्रीय आयुष राज्यमंत्री श्रीपद नाइक ने कहा कि डेंगू के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवा पर परीक्षण चल रहा है और हम इसे यथाशीघ्र लेकर आएंगे.

नई दिल्ली: केंद्रीय आयुष राज्यमंत्री श्रीपद नाइक ने रविवार को कहा कि डेंगू के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का ''क्लिनिकल ट्रायल'' प्रगति पर है और इसे इस्तेमाल के लिए यथाशीघ्र उपलब्ध कराया जाएगा. आयुष मंत्रालय के सचिव राजेश कोटेचा ने बताया कि यह दवा अगले कुछ वर्षों में बहुस्तरीय परीक्षणों के बाद तैयार होने की उम्मीद है. नाइक ने दिल्ली में 'आयुर्वेद में उद्यमिता एवं कारोबार विकास' पर राष्ट्रीय सम्मेलन से इतर कहा, ''डेंगू के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवा पर परीक्षण चल रहा है और हम इसे यथाशीघ्र लेकर आएंगे.''

आयुष मंत्रालय ने चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसी प्राचीन पुस्तकों को औषद्यीय ज्ञान का भंडार बताते हुए उनकी उद्यमी महत्ता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि यह अलग-अलग बीमारियों के लिए करीब 20 लाख दवाओं का आधार बन सकती हैं. उन्होंने बताया कि मंत्रालय का उद्देश्य आयुर्वेद का आकार बढ़ाने और साल 2022 तक इसका कारोबार तीन अरब डॉलर से 10 अरब डॉलर तक पहुंचाने का है. उन्होंने आयुर्वेद को डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी मोदी सरकार की पहल से जोड़ने पर जोर दिया.

सम्मेलन में मौजूद केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने बताया कि आयुर्वेद आयुष्मान भारत योजना को देश के लाखों गांवों तक ले जाने का साधन बन सकती है. उन्होंने कहा, ''आयुर्वेद के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आयुष्मान भारत योजना को देश के छह लाख गांवों तक ले जाना संभव है.''

Saturday 3 November 2018

जानिए तुलसी के 8 चमत्कारी गुण और फायदे, कैंसर के इलाज में भी कारगर

तुलसी की पत्तियां इन्फेक्शन के खिलाफ टी साइटोकिन्स, एनके (नेचर किलर) सेल और टी लिम्फोसाइट्स जैसी इम्यून सेल्स का उत्पादन बढ़ाती हैं

तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं जो कई बीमारियों से लड़ते हैं. इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है.

नई दिल्ली: तुलसी की पूजा घर-घर होती है. इसका बहुत बड़ा पौराणिक महत्व है. औषधि के रूप में भी तुलसी का बहुत इस्तेमाल किया जाता है. सर्दी-खांसी से लेकर कई ऐसी बीमारियों के लिए तुलसी एक कारगर औषधि है. आयुर्वेद में तुलसी के पौधे को स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद बताया गया है. तुलसी में तमाम गुण होते हैं और हम इसकी पूजा भी करते हैं. तुलसी के कई गुणों के बारे में हम सभी जानते हैं, लेकिन कई ऐसे भी गुण हैं जिनके बारे में जानना चाहिए. तुलसी के कुछ अनजाने फायदे ये हैं.

1.यौन संबंधी बीमारी में कारगर
पुरुषों में यौन संबंधी बीमारी सामान्य है. ऐसे में तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. तुलसी बीज का इस्तेमाल यौन-दुर्बलता और नपुंसकता में किया जा सकता है.

2.महिलाओं के पीरियड्स संबंधी समस्याएं
महिलाओं में पीरियड्स के दौरान कई तरह की समस्याएं होती हैं. इसकी वजह से वे बहुत परेशान रहती हैं. ऐसे में तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. पीरियड्स में अनियमितता को दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों का नियमित सेवन करना चाहिए

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3.सर्दी-जुकाम में इस्तेमाल
तुलसी का काढ़ा सर्दी और जुकाम में बहुत कारगर होता है. काढ़ा बनाने के लिए तुलसी पत्ते को पानी में डालकर उसमें काली मिर्च और मिश्री मिलाकर अच्छे से मिला लें और उसका सेवन करें. यह सर्दी में बहुत कारगर होता है.

4.दस्त होने पर
अगर आप दस्त से परेशान हैं तो तुलसी के पत्तों के इस्तेमाल से आपको फायदा देगा. तुलसी के पत्तों को जीरे के साथ मिलाकर पीस लें. इसके बाद उसे दिन में 3-4 बार चाटते रहें. ऐसा करने से दस्त रुक जाती है.

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5.सांस में बदबू आने पर
बहुत लोगों को सांस के साथ बदबू आती है. इस समस्या को दूर करने में भी तुलसी के पत्ते काफी फायदेमंद होता है. सबसे बड़ी खूबी यह है कि नैचुरल होने की वजह से इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है. अगर, आप भी मुंह के बदबू की समस्या से परेशान हैं तो यह नुस्खा अपना सकते हैं.

6.जख्म ठीक करने में
तुलसी के पत्ते का रस फिटकरी के साथ मिलाकर लगाने से जख्म बहुत जल्द ठीक हो जाता है. तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं जो घाव को पकने नहीं देता है. इसके अलावा तुलसी के पत्ते को तेल में मिलाकर लगाने से जलन भी कम होती है.

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7.स्किन ग्लो में तुलसी कारगर
तुलसी का सेवन करने और पीसकर चेहरे पर लगाने से स्किन ग्लो करने लगता है. एंटी-बैक्टीरियल तत्व होने के नाते यह गंदगी को दूर करता है और चेहरे के कील-मुंहासे को भी ठीक करता है.

8.कैंसर के इलाज में
कई रिसर्च में पता चला है कि तुलसी कैंसर के इलाज में बहुत कारगर होता है.

Friday 2 November 2018

Health Tips: सर्दी और फ्लू से बचाएगी लेमन टी, जानें इसके और भी फायदे

लेमन टी स्वाद में अच्छी होने के साथ ही शरीर के लिए भी काफी फायदेमंद रहती है। नींबू में कुछ ऐसे नेचुरल तत्व होते है जो हमारी त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होते है। इसके साथ ही ये आपको तरोताजा भी रखता है साथ ही ये हमारे शरीर के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

आइए जानते है लेमन टी के कुछ फयदे

1. नींबू में सिट्रिक एसिड पाया जाता है। जो आपकी पाचन क्रिया को ठीक बनाए रखता है। इसे रोज सुबह पिएं।

2. लेमन टी में फ्लेवोनोइड्स नाम का केमिकल पाया जाता है। इससे धमनियों में रक्त के थक्के नहीं बनते जिसके कारण हार्टअटैक का खतरा कम होता है।

3. लेमन टी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।

4. लेमन टी पीने से सर्दी और फ्लू जैसी समस्या भी नहीं होती।

5. लेमन टी में काफी एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। इसके साथ ही इसमें पोलीफीनोल और विटामिन c भी अधिकता में होता है। जो शरीर में कैंसर सेल्स को बनने से रोकता है।