खाना खाने के बाद डकार आने को अकसर खाना सही से पच जाने की निशानी माना जाता है, लेकिन बार-बार डकार किसी स्वास्थ्य समस्या का भी संकेत हो सकता है। जब बार-बार डकार आए, तो क्या करें और क्या नहीं, बता रही...http://bit.ly/2L52VrVखाना खाने के बाद डकार आने को अकसर खाना सही से पच जाने की निशानी माना जाता है, लेकिन बार-बार डकार किसी स्वास्थ्य समस्या का भी संकेत हो सकता है। जब बार-बार डकार आए, तो क्या करें और क्या नहीं, बता रही...
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Friday, 26 April 2019
Friday, 5 April 2019
किडनी, थायरायड के मरीजों के लिए होम्योपैथी चिकित्सा फायदेमंद : डॉ. कल्याण बनर्जी
नई दिल्ली: गुर्दा व गलग्रंथि (थायरायड) संबंधी रोग के उपचार के लिए होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति फायदेमंद है, यह बात एक अध्ययन की हालिया रिपोर्ट में साबित हुई है. अध्ययन पद्मश्री डॉ. कल्याण बनर्जी की अगुवाई में उनके दिल्ली स्थित क्लीनिक में किया गया. डॉ. बनर्जी ने कहा कि गुर्दे की खराबी की जानकारी शुरुआत में होने और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से मरीजों का इलाज समय से शुरू होने से 50 फीसदी मरीजों का सफल इलाज हो सकता है और गुर्दा संबंधी तकलीफ से उनको निजात मिल सकती है.
अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार, गुर्दे की खराबी के गंभीर रोग का इलाज आरंभ होने के बाद तीसरी बार क्लीनिक आने वाले गुर्दा के 50-58.3 फीसदी मरीजों में उनके सीरम यूरिया और क्रिएटिनिन के स्तर में सुधार पाया गया. वहीं, हाइपोथायरायडिज्म पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि इलाज आरंभ होने के बाद चौथी बार क्लीनिक आने वाले 35 फीसदी रोगियों में उनके सीरम थायराइड उत्तेजक हार्मोन की रीडिंग में सुधार देखा गया.
हाइपोथायरायडिज्म पर यह अध्ययन 2011-2015 के दौरान क्लीनिक में आए 2,083 मरीजों के रिकॉर्ड के आधार पर किया गया है. वहीं, गुर्दा संबंधी रोग पर अध्ययन 2018 और 2019 में एक महीने के अंतराल पर क्लीनिक आए गुर्दा खराब होने की गंभीर बीमारी से ग्रस्त 61 मरीजों के रिकॉर्ड के आधार पर किया गया है.
डॉ. कल्याण बनर्जी क्लीनिक के संस्थापक डॉ. कल्याण बनर्जी ने कहा, "इस अध्ययन के शुरुआती अवलोकन काफी दिलचस्प हैं. हाइपोथायरायडिज्म पर अध्ययन के आंकड़ों से संकेत मिला है कि रोगियों को दी जाने वाली विशिष्ट होम्योपैथिक दवाएं थायरॉयड ग्रंथि के कार्य में सुधार के लिए असरदार हैं, जिससे थायरॉयड उत्तेजक हार्मोन रीडिंग में कमी आई.
यह हाइपोथायरायडिज्म के प्राकृतिक इतिहास की समझ के विपरीत है, जो बताता है कि इस बीमारी में वृद्धि को आमतौर पर नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. हाइपोथायरायडिज्म के एक तिहाई से अधिक मरीजों को होम्योपैथिक दवाओं से लाभ हो रहा है. भारत की 11 फीसदी आबादी हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित है, जिसके लिए होम्योपैथी इलाज असरदार हो सकती है.
" डॉ. कल्याण बनर्जी ने कहा, "वर्तमान में उपलब्ध कोई भी उपचार सीरम यूरिया और क्रिएटिनिन रीडिंग में कमी करने में सक्षम नहीं है, जबकि हमारे अध्ययन की रीडिंग से यह निर्णय लेने में मदद मिलेगी कि डायलिसिस शुरू की जानी चाहिए या नहीं. " डॉ. कल्याण बनर्जी क्लीनिक के डॉ. कुशल बनर्जी ने कहा, "हमारा उद्देश्य यह पुष्टि करने का प्रयास करना था कि होम्योपैथिक उपचार से गुर्दा संबंधी गंभरी रोग और हाइपोथायरायडिज्म पीड़ित मरीजों को लाभ होता है.
इन दोनों अध्ययनों के बाद, हम आशा करते हैं कि इन पर और भी अनुसंधान किए जाएंगे. हम अपने निष्कर्षो को प्रकाशित करने और अपने उपचार प्रक्रिया को सार्वजनिक करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे ताकि दुनिया भर के रोगियों को लाभ मिल सके. " डॉ. कुशल बनर्जी ने कहा कि गुर्दे की खराबी के बारे में मरीजों को पहले पता नहीं चल पाता है क्योंकि 50 फीसदी तक गुर्दे की खराबी के बारे में रक्त की रिपोर्ट में सही जानकारी ही नहीं मिल पाती है.
Monday, 1 April 2019
वजन ज्यादा है तो हो जाइए सावधान, हो सकती है यह जानलेवा बीमारी
वॉशिंगटन: पचास साल की उम्र से पहले ही कोई व्यक्ति यदि ज्यादा वजन का शिकार हो जाता है तो अग्न्याशय कैंसर से उसकी मौत का जोखिम काफी बढ़ जाता है. एक अध्ययन में यह पाया गया है. शोधकर्ताओं ने कहा कि अग्न्याशय कैंसर के मामले तुलनात्मक रूप से कम सामने आते हैं. कैंसर के सभी नए मामलों में से करीब तीन फीसदी मामले अग्न्याश्य कैंसर के होते हैं. हालांकि, यह काफी जानलेवा किस्म का होता है. इसमें पिछले पांच साल में जीवित बचने की दर महज 8.5 फीसदी रही है.
अमेरिकन कैंसर सोसाइटी में एपिडेमियोलॉजी रिसर्च के वरिष्ठ वैज्ञानिक निदेशक एरिक जे जैकब्स ने कहा, ‘‘वर्ष 2000 के बाद से ही अग्न्याशय कैंसर के मामलों में धीरे-धीरे बढ़ोतरी होती जा रही है.’’ उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘हम इस बढ़ोतरी से पसोपेश में है, क्योंकि अग्न्याशय कैंसर का बड़ा कारण धूम्रपान अब कम होता जा रहा है.’’ शोध टीम ने अमेरिका के 963,317 ऐसे वयस्कों से जुड़े डेटा का परीक्षण किया जिनका कैंसर का कोई इतिहास नहीं रहा. इन सभी लोगों ने अध्ययन की शुरुआत के समय सिर्फ एक बार अपना वजन और अपनी लंबाई बताई. उस वक्त इनमें से कुछ लोग 30 साल के भी थे तो कुछ 70 या 80 साल के भी थे.
शोधकर्ताओं ने ज्यादा वजन के संकेतक के तौर पर बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की गणना की. बाद में शोध में हिस्सा लेने वालों में से 8,354 की मौत अग्न्याशय कैंसर से हो गई, लेकिन जोखिम में यह बढ़ोतरी उनमें देखी गई थी जिनके बीएमआई का आकलन शुरुआती आयु में किया गया था. जैकब्स ने कहा कि अध्ययन के नतीजे संकेत देते हैं कि अत्यधिक वजन से अग्न्याशय कैंसर की चपेट में आने का खतरा कई गुना बढ़ गया है.
फिर से विवादों में Johnson and Johnson, 'बेबी केयर शैम्पू' से कैंसर का खतरा!
आशुतोष शर्मा, जयपुर: हर माता-पिता अपने बच्चों के लिए सबसे बेहतर और बड़ी कंपनी के प्रोडक्ट्स खरीदकर इस्तेमाल करते हैं ताकि उनका बच्चा स्वस्थ रहे और बच्चे की हेल्थ पर कोई दुष्प्रभाव ना पड़े. मगर एक ताजा मामला आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगा कि जो प्रोडक्ट बड़ी बेफिक्री से आप अपने बच्चे के लिए खरीद रहे है कही वो आपके बच्चे के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो नहीं है. मशहूर ब्रांड जॉनसन एंड जॉनसन का एक ताजा मामला सामने आया है. ये कंपनी हिमाचल प्रदेश के बद्दी में बच्चों के लिए कई उत्पादों का निर्माण करती है. इस कंपनी के बेबी शैम्पू जिसका बैच नंबर बीबी 58177 और बीबी 58204 है, इस प्रोडक्ट में पिछले दिनों हुई जांच के दौरान हानिकारक तत्व पाए गए हैं.
इस बारे में सचेत करते हुए राजस्थान राज्य के सभी ड्रग्स कंट्रोल अफसरों को ड्रग्स बुलेटिन जारी कर सचेत किया गया है. राजस्थान ड्रग्स कंट्रोलर राजाराम शर्मा द्वारा जारी पत्र में बताया गया है कि जॉनसन बेबी शैम्पू के उपरोक्त दोनों बैच मानकों के अनुसार खरे नहीं उतरे हैं, जो कि खरीदारों के लिए नुकसानदेह हैं. इसलिए इस कंपनी के उक्त उत्पाद की बिक्री पर रोक लगाते हुए बाजार से इसके स्टॉक को वापस मंगाया जाए. साथ ही वे कंपनी के अन्य बैचों की भी समय-समय पर जांच करें.
इस शैंपू में हानिकारक फार्मेल्डिहाइड होने की रिपोर्ट है. बता दें, फार्मेल्डिहाइड से कैंसर होने का खतरा होता है. राजस्थान ड्रग रेगुलेटर ने इस शैम्पू के 2 बैच- 'BB58204' औप 'BB58177'को टेस्ट किया था. ये शैम्पू सितंबर 2021 में एक्सपायर हो जाएंगे. राजस्थान ड्रग्स वॉचडॉग ने ड्रग्स कंट्रोल अफसर से नोटिस में कहा कि 'इन स्टॉक्स को किसी के भी द्वारा इस्तेमाल ना किया जाए. साथ ही मौजूदा स्टॉक को मार्केट से हटाया जाए. इसके अलावा ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत जो भी एक्शन लिया जा सकता है वो लिया जाए.'
2018 में अमेरिका में कुछ महिलाओं में जॉनसन एंड जॉनसन बेबी पाउडर की वजह से ओवेरियन (गर्भाशय) कैंसर के लक्षण मिले थे. मामला जब कोर्ट में पहुंचा तो महिला के वकीलों ने कहा कि उनके क्लाइंट को बेबी पाउडर में मौजूद अस्बस्ट्स की वजह से ओवेरियन कैंसर हुआ है. वकीलों का कहना है कि बेबी पाउडर में अबस्टस की मौजूदगी साल 1970 से प्रमाणित है. सुनवाई के बाद कोर्ट ने 22 पीड़ित महिलाओं को 4.69 अरब डॉलर मुआवजे का आदेश दिया था.
इससे पहले 1982 में भी जॉनसन एंड जॉनसन की एक दवा से कुछ लोगों की मौत हो गई थी. विवाद बढ़ने के बाद कंपनी ने 3.1 करोड़ बोतलों को तुरंत वापस लिया था. 2008 में आरोप लगा कि कई उत्पाद में बदूब आ रहे हैं, इस शिकायत के बाद करीब तीन करोड़ यूनिट प्रोडक्स वापस लिए गए.
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