Friday, 29 March 2019

देशवासियों की सेहत का ध्यान रखेगी Coca Cola, आम पना और छाछ की बिक्री करेगी

देशवासियों की सेहत का ध्यान रखेगी Coca Cola, आम पना और छाछ की बिक्री करेगीनई दिल्ली : पिछले कुछ सालों में सेहत के प्रति बढ़ी जागरूकता और कोल्ड ड्रिंक की सेल घटने से सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है. नई योजना के तहत कोका-कोला (Coca Cola) जैसी दिग्गज कंपनियां दो हजार साल से प्रचलित स्वादिष्ट और सेहतमंद घरेलू पेय जैसे जलजीरा और आम पना बेचने के लिए तैयार है. कंपनी की तरफ से जलजीरा को पहले ही लॉन्च किया जा चुका है. अब गर्मियों को ध्यान में रखते हुए आम पना को पेश करने की योजना है. कंपनी की तरफ से यह निर्णय बढ़ती गर्मी में आम पना की बढ़ती डिमांड को देखकर लिया जा रहा है.
कोल्ड ड्रिंक पीना सेहत के लिए नुकसानदेह
कई रिपोटर्स से यह साफ हो चुका है कि कोल्ड ड्रिंक का सेवन सेहत के लिए नुकसानदेह है. ऐसे में लोग कोल्ड ड्रिंक पीने से परहेज करने लगे हैं. आम पना और जलजीरा को घरेलू मसालों और फलों से तैयार किया जा सकता है. पिछले कुछ सालों में इनके पैकड पैकेट की मांग बढ़ी है. एक आंकड़े के अनुसार यह मांग कोल्ड ड्रिंक से तीन गुना ज्यादा है. ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार कोक के भारत में CEO टी कृष्‍णकुमार ने कहा कि देश के 29 राज्‍य कंपनी के लिए 29 देशों के बराबर हैं. यहां पर कुछ किमी की दूरी पर बोली और खानपान में बदलाव आ जाता है.
छोटे-छोटे स्टार्टअप कर रहे जलजीरा की बिक्री
छोटे-छोटे स्टार्टअप की तरफ से पेश किए गए जलजीरा और आम पना की बिक्री में इजाफा आने से कोक भी इसी ओर रुख कर रही है. राज्स्थान बेस्ड एक एक ग्रुप का स्लोगन है 'Be Indian Buy Indian'. कोक भी इसी का अनुसरण करते हुए पहले जलजीरा लॉन्च कर चुका है. अब कंपनी जल्द ही आम पन्ना लाने की तैयारी में है. कंपनी का लक्ष्य कम कीमत में भारतीय शीतल पेय लोगों तक पहुंचाने की है.
आम और लिची का उत्पादन करेगी कंपनी
कंपनी की तरफ से आम और लिची का उत्पादन भी शुरू किया जाएगा. इसके लिए कंपनी 1.7 अरब डॉलर का निवेश करेगी. कृष्‍णकुमार के अनुसार भारत का जूस मार्केट 3.6 अरब डॉलर का है. इसमें 72 प्रतिशत स्‍थानीय स्‍तर पर ठेलों पर बिकने वाला जूस है. इसके अलावा कंपनी छाछ और लस्सी की बिक्री भी करेगी. इससे यह कहा जा सकता है कि इन गर्मियों कंपनी देशवासियों को ध्यान में रखते हुए नए प्रोडक्ट ला रही है.

6 महीने के केन्याई बच्चे की हालत थी नाजुक, दिल्ली के डॉक्टरों ने नहीं मानी हार, बचाई जान

6 महीने के केन्याई बच्चे की हालत थी नाजुक, दिल्ली के डॉक्टरों ने नहीं मानी हार, बचाई जाननई दिल्ली: छह महीने की नाजुक उम्र में केन्या से आए बच्चे इमेन्युअल लीला कमांक की ओपन हार्ट सर्जरी इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में की गई. बच्चा एक दुर्लभ जन्मजात दिल की बीमारी सायनोटिक टॉसिंग-बिंग एनोमली से पीड़ित था. पैदा होने के चार दिनों के बाद इस बीमारी का पता चला. बच्चे की हालत बिगड़ती जा रही थी, जिसके चलते उसे सर्जरी के लिए दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल लाया गया.  इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स, नई दिल्ली के सीनियर कंसल्टेंट व पीडिएट्रिक कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ. मुथु जोथी ने कहा, "जब इमेन्युअल को अपोलो लाया गया, वह सायनोटिक से पीड़ित था. उसके खून में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण त्वचा का रंग नीला पड़ता जा रहा था.
जांच करने पर हमने पाया कि उसकी सांस लेने की दर प्रति मिनट सिर्फ 20 थी, जो सामान्य से बहुत कम थी." डॉ. जोथी ने कहा, "बच्चे में आयोर्टा दाएं वेंट्रिकल से जुड़ी हुई थी, जबकि सामान्य अवस्था में यह बाएं वेट्रिकल से जुड़ी होती है. साथ ही उसकी पल्मोनरी आर्टरी भी दाएं वेंट्रिकल से जुड़ी थी, जो असामान्य है. इसे डबल आउटलेट राइट वेंट्रिकल डिफेक्ट कहा जाता है.
जांच करने पर पता चला कि उसकी आयोर्टा में एक ब्लॉक भी था. इसके अलावा बच्चे में बड़ा सब-पल्मोनरी वेंट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट, आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट और पेटेंट डक्टस आर्टीरियोसस भी था. इस बीमारी में जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो खुली ब्लड वैसल जिसे बंद हो जाना चाहिए, वह बंद नहीं हो पाती."
उन्होंने कहा, "यह मामला बेहद गंभीर था, सर्जरी के बाद भी बच्चे के ठीक होने की संभावना बहुत कम थी. हालात को देखते हुए हमने इलाज की योजना बनाई. हमने परिवार को जानकारी दी कि उसकी सर्जरी में 50-60 फीसदी जोखिम है. परिवार ने जोखिम लेने के लिए सहमति दी और हमने सर्जरी करने का फैसला ले लिया." 21 जनवरी, 2019 को डॉ. मुथु जोथी ने बच्चे की सर्जरी की.
उनकी टीम में डॉ मनीषा चक्रवर्ती और डॉ. रीतेश गुप्ता शामिल थे. डॉ. मुथु जोथी ने कहा, "पूरी प्रक्रिया टोटल सकुर्लेटरी अरेस्ट में की गई, यानी शरीर के पूरी खून को हार्ट लंग मशीन में ड्रेन किया जा रहा था. इससे पहले हमें बच्चे के शरीर को 16 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा रखना था. यह मनुष्य के शरीर के लिए जमा देने वाला तापमान होता है.
हमें उसके दिमाग की सतह पर पर बर्फ रखनी पड़ी." उन्होंने कहा, "बिना सकुर्लेशन के हम मरीज को अधिकतम 45 मिनट के लिए रख सकते हैं. इसके बाद दिमाग, स्पाइनल कोर्ड, किडनी एवं अन्य अंगों को नुकसान पहुंचने का खतरा होता है. इमेन्युअल को 30 मिनट के लिए टोटल सकुर्लेटरी अरेस्ट पर रखा गया.
इस दौरान हमने आयोर्टिक आर्च की मरम्मत की, इसके लिए पीडीए ब्लड वैसल को डिसकनेक्ट किया और इसे आयोर्टिक आर्च के साथ कनेक्ट किया गया." उन्होंने कहा, "इसके बाद हमने बच्चे को फिर से हार्ट-लंग मशीन पर डाला, और खून की वाहिकों की पॉजिशन ठीक की.
इंट्राम्यूरल कोरोनरी आर्टरी बहुत ही मुश्किल स्थिति में थी, हमें इस वाहिका को नई आयोर्टा में इम्प्लांट करना था. इस प्रक्रिया में आधे मिलीमीटर की गलती भी हार्ट अटैक का कारण बन सकती है. इसके बाद वेंट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट और आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट को ठीक किया गया. सर्जरी 9 घंटे तक चली." इसके बाद बच्चा धीरे-धीरे ठीक होने लगा और 17वें दिन उसे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई.

Thursday, 28 March 2019

स्टेशन नींबू पानी बनाने का वीडियो वायरल, Railway ने बिक्री पर लगाई रोक

स्टेशन पर नींबू पानी बनाने का वीडियो वायरल, Railway ने बिक्री पर लगाई रोकनई दिल्ली : पिछले दिनों मुंबई के कुर्ला रेलवे स्टेशन पर एक कर्मचारी द्वारा तैयार किए जा रहे नींबू पानी का वीडियो वायरल होने के बाद सेंट्रल रेलवे ने सख्त कदम उठाया है. इस पूरे मामले में सेंट्रल रेलवे की लापरवाही उजागर हो गई है. सेंट्रल रेलवे (मुंबई डिवीजन) ने सभी कैटरिंग यूनिट को स्टेशन परिसर में नींबू पानी, ऑरेंज जूस और काला खट्टा की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का आदेश दिया है. सेंट्रल रेलवे की तरफ से यह कार्रवाई कुर्ला रेलवे स्टेशन का वीडियो वायरल होने के बाद ली गई है.
गंदे हाथों से बना रहा नींबू पानी
दरअसल करीब एक हफ्ते पहले मुंबई के कुर्ला स्टेशन पर एक यात्री द्वारा बनाए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि एक स्टॉल का कर्मचारी बाल्टी में गंदे हाथों से नींबू निचोड़ रहा है. इतना ही नहीं वह नींबू पानी बनाने के लिए ओवर हैड टैंक में भरे पानी का इस्तेमाल कर रहा है, बीच-बीच में वह टंकी में भरे पानी को बाल्टी में ले रहा है और नींबू पानी तैयार कर रहा है. नींबू पानी से भरे इस ड्रम को वह कर्मचारी बाद में स्टॉल पर रखकर बिक्री करता है.
सोशल मीडिया में वायरल हुआ वीडियो
एक यात्री की तरफ से स्टॉल वाले का बनाया गया यह वीडियो कई दिन से सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहा है. इसके बाद सेंट्रल रेलवे की किरकिरी हो गई और रेलवे की तरफ से यह कदम उठाया गया. जिस यात्री ने कुर्ला रेलवे स्टेशन पर इस वीडियो को बनाया था, उसने सेंट्रल रेवले को टैग कर इस मामले में संज्ञान लेने की गुजारिश की थी.
वीडियो देखने के बाद कार्रवाई करते हुए रेलवे अधिकारियों ने कुर्ला स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 7 और 8 पर स्थित स्टॉल से फूड सैंपल एकत्रित किए और इसे सील कर दिया. स्टॉल का लाइसेंस रखने वाले शख्स को भी जांच कमेटी के सामने पेश होने के लिए समन जारी किया गया है. आपको बता दें कि रेलवे की तरफ से मशीन से निकाले गए जूस पर पाबंदी नहीं लगाई गई है.

टाइप-2 डायबिटीज से बढ़ा दिल पर खतरा, बन रहा है 58 फीसदी मरीजों की मौत कारण

टाइप-2 डायबिटीज से बढ़ा दिल पर खतरा, बन रहा है 58 फीसदी मरीजों की मौत कारणनई दिल्ली: मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित लोगों को दिल की बीमारियों से मौत का खतरा बढ़ जाता है. टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में लगभग 58 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी परेशानियों के कारण होती हैं. मधुमेह के साथ जुड़े ग्लूकोज के उच्च स्तर से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जिससे रक्तचाप और नजर, जोड़ों में दर्द तथा अन्य परेशानियां हो जाती हैं.
चिकित्सक के अनुसार, टाइप-2 मधुमेह सामान्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन युवा भारतीयों में भी यह अब तेजी से देखा जा रहा है. वे गुर्दे की क्षति और हृदय रोग के साथ-साथ जीवन को संकट में डालने वाली जटिलताओं के जोखिम को झेल रहे हैं.
पद्मश्री से सम्मानित डॉ केके अग्रवाल ने कहा, "देश में युवाओं के मधुमेह से ग्रस्त होने के पीछे जो कारक जिम्मेदार हैं, उनमें प्रमुख है प्रोसेस्ड और जंक फूड से भरपूर अधिक कैलारी वाला भोजन, मोटापा तथा निष्क्रियता. समय पर ढंग से जांच न कर पाना और डॉक्टर की सलाह का पालन न करना उनके लिए और भी जोखिम भरा हो जाता है, जिससे उन्हें अपेक्षाकृत कम उम्र में ही जानलेवा स्थितियों से गुजरना पड़ जाता है."
उन्होंने कहा कि लोगों में एक आम धारणा है कि टाइप-2 मधुमेह वाले युवाओं को इंसुलिन की जरूरत नहीं होती है, इसलिए ऐसा लगता है कि यह भयावह स्थिति नहीं है. हालांकि, ऐसा सोचना गलत है. इस स्थिति में तत्काल उपचार और प्रबंधन की जरूरत होती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले युवाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यदि कुछ दिखते भी हैं, तो वे आमतौर पर हल्के हो सकते हैं, और ज्यादातर मामलों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं, जिनमें अधिक प्यास और बार-बार मूत्र त्याग करना शामिल है.
डॉ अग्रवाल ने कहा, "यदि घर के बड़े लोग अच्छी जीवनशैली का उदाहरण पेश करते हैं तो यह युवाओं के लिए भी प्रेरणादायी होगा. इस तरह के बदलाव एक युवा को अपना वजन कम करने में मदद कर सकते हैं (अगर ऐसी समस्या है तो) या उन्हें खाने-पीने के बेहतर विकल्प खोजने में मदद कर सकते हैं, जिससे टाइप-2 मधुमेह विकसित होने की संभावना कम हो जाती है. जिनके परिवार में पहले से ही डायबिटीज की समस्या रही है, उनके लिए तो यह और भी सच है.
कुछ सुझाव जिनसे मिलेगी मदद:
- खाने में स्वस्थ खाद्य पदार्थ ही चुनें.
- प्रतिदिन तेज रफ्तार में टहलें. 
- अपने परिवार के साथ अपने स्वास्थ्य और मधुमेह व हृदय रोग के जोखिम के बारे में बात करें.
- यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ने की पहल करें. 
- अपने लिए, अपने परिवार के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए मधुमेह और इसकी जटिलताओं संबंधी जोखिम को कम करने खातिर जीवनशैली में बदलाव करें.

Tuesday, 26 March 2019

डायबिटीज पीड़ितों को ज्यादा रहता है हार्ट अटैक का खतरा, इन चीजों से आज ही कर लें तौबा

डायबिटीज पीड़ितों को ज्यादा रहता है हार्ट अटैक का खतरा, इन चीजों से आज ही कर लें तौबानई दिल्ली : मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित लोगों को दिल की बीमारियों से मौत का खतरा बढ़ जाता है. टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में लगभग 58 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी परेशानियों के कारण होती हैं. मधुमेह के साथ जुड़े ग्लूकोज के उच्च स्तर से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जिससे रक्तचाप और नजर, जोड़ों में दर्द तथा अन्य परेशानियां हो जाती हैं.
चिकित्सक के अनुसार, टाइप-2 मधुमेह सामान्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन युवा भारतीयों में भी यह अब तेजी से देखा जा रहा है. वे गुर्दे की क्षति और हृदय रोग के साथ-साथ जीवन को संकट में डालने वाली जटिलताओं के जोखिम को झेल रहे हैं.
पद्मश्री से सम्मानित डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "देश में युवाओं के मधुमेह से ग्रस्त होने के पीछे जो कारक जिम्मेदार हैं, उनमें प्रमुख है प्रोसेस्ड और जंक फूड से भरपूर अधिक कैलारी वाला भोजन, मोटापा तथा निष्क्रियता. समय पर ढंग से जांच न कर पाना और डॉक्टर की सलाह का पालन न करना उनके लिए और भी जोखिम भरा हो जाता है, जिससे उन्हें अपेक्षाकृत कम उम्र में ही जानलेवा स्थितियांे से गुजरना पड़ जाता है."
उन्होंने कहा कि लोगों में एक आम धारणा है कि टाइप-2 मधुमेह वाले युवाओं को इंसुलिन की जरूरत नहीं होती है, इसलिए ऐसा लगता है कि यह भयावह स्थिति नहीं है. हालांकि, ऐसा सोचना गलत है. इस स्थिति में तत्काल उपचार और प्रबंधन की जरूरत होती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले युवाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यदि कुछ दिखते भी हैं, तो वे आमतौर पर हल्के हो सकते हैं, और ज्यादातर मामलों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं, जिनमें अधिक प्यास और बार-बार मूत्र त्याग करना शामिल है.
डॉ. अग्रवाल ने कहा, "यदि घर के बड़े लोग अच्छी जीवनशैली का उदाहरण पेश करते हैं तो यह युवाओं के लिए भी प्रेरणादायी होगा. इस तरह के बदलाव एक युवा को अपना वजन कम करने में मदद कर सकते हैं (अगर ऐसी समस्या है तो) या उन्हें खाने-पीने के बेहतर विकल्प खोजने में मदद कर सकते हैं, जिससे टाइप-2 मधुमेह विकसित होने की संभावना कम हो जाती है. जिनके परिवार में पहले से ही डायबिटीज की समस्या रही है, उनके लिए तो यह और भी सच है. 
उन्होंने कुछ सुझाव दिए :
- खाने में स्वस्थ खाद्य पदार्थ ही चुनें.
- प्रतिदिन तेज रफ्तार में टहलें. 
- अपने परिवार के साथ अपने स्वास्थ्य और मधुमेह व हृदय रोग के जोखिम के बारे में बात करें.
- यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ने की पहल करें. 
- अपने लिए, अपने परिवार के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए मधुमेह और इसकी जटिलताओं संबंधी जोखिम को कम करने खातिर जीवनशैली में बदलाव करें.

Sunday, 24 March 2019

1000 से अधिक डॉक्टरों ने PM को लिखा पत्र, कहा- ई-सिगरेट पर लगाया जाए प्रतिबंध

1000 से अधिक डॉक्टरों ने PM को लिखा पत्र, कहा- ई-सिगरेट पर लगाया जाए प्रतिबंध नई दिल्ली: भारत के 24 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 1000 से अधिक चिकित्सकों ने इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. इसमें ईएनडीएस ई-सिगरेट, ई-हुक्का भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में इन चिकित्सकों ने चिंता व्यक्त की है कि युवाओं के बीच ईएनडीएस महामारी बन कर फैल जाए, इससे पहले इस पर रोक लगाना बेहद जरूरी है. पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले ये 1,061 डॉक्टर इस बात से बेहद चिंतित हैं कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे पर, व्यापार और उद्योग संगठन ई-सिगरेट के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दे रहे हैं.
ई-सिगरेट को ई-सिग, वेप्स, ई-हुक्का, वेप पेन भी कहा जाता है, जो इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) है. कुछ ई-सिगरेट नियमित सिगरेट, सिगार या पाइप जैसे दिखते हैं. कुछ यूएसबी फ्लैश ड्राइव, पेन और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं की तरह दिखते हैं, जो युवाओं को बेहद आकर्षित करते हैं. डॉक्टरों के समूह ने 30 संगठनों द्वारा आईटी मंत्रालय को लिखे एक पत्र पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य का मामला है और इसलिए व्यावसायिक हितों की रक्षा नहीं की जानी चाहिए.
मीडिया रपट के अनुसार, 30 संगठनों ने इंटरनेट पर ईएनडीएस के प्रचार पर प्रतिबंध न लगाने के लिए आईटी मंत्रालय को लिखा था. उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त, 2018 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को ईएनडीएस पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक परामर्श जारी किया था. इस साल मार्च में एमओएचएफडब्ल्यू द्वारा नियुक्त स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक पैनल ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसमें ईएनडीएस पर 251 शोध अध्ययनों का विश्लेषण किया गया है. पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि ईएनडीएस किसी भी अन्य तंबाकू उत्पाद जितना ही खराब है और निश्चित रूप से असुरक्षित है.
टाटा मेमोरियल अस्पताल के उप निदेशक एवं हेड नेक कैंसर सर्जन डॉ. पंकज चतुर्वेदी का कहना है, "यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि निकोटीन को जहर माना जाए. यह दुख:द है कि ईएनडीएस लॉबी ने डॉक्टरों के एक समूह को लामबंद किया है, जो ईएनडीएस उद्योग के अनुरूप भ्रामक, विकृत जानकारी साझा कर रहे हैं.
मैं भारत सरकार की सराहना करता हूं कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के अपने लक्ष्य के अनुरूप, इसने निकोटीन वितरण उपकरणों (ईएनडीएस) के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है." डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि ई सिगरेट को किसी भी रूप में सुरक्षित प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए. एकमात्र तरीका पूरी तरह से धूम्रपान छोड़ना है और किसी भी तंबाकू उत्पाद का उपयोग शुरू नहीं करना है.
वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिम के इस अभियान से जुड़े डॉक्टर इस बात से चिंतित हैं कुछ डॉक्टरों का वर्ग ईएनडीएस लाबी से बेहद प्रभावित हो रहा है. कुछ निहित स्वार्थ वाले डॉक्टर अत्यधिक सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संघों की रिपोर्ट को गलत संदर्भ में ले रहे हैं. एम्स दिल्ली के कार्डियो-थोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) के प्रमुख डॉ. शिव चौधरी कहते हैं, "शोध से साबित हुआ है कि ईएनडीएस सुरक्षित नहीं है या धूम्रपान छोड़ने का विकल्प नहीं है.
निकोटीन पर निर्भरता स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा है. एक डॉक्टर के रूप में, मैं कभी भी चिकित्सकीय पर्यवेक्षण के बिना किसी भी निकोटीन उत्पाद के उपयोग की सिफारिश नहीं करूंगा." द अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (एसीएस) और द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज इंजीनियरिंग मेडिसिन (एनएएसईएम) दोनों का मानना है कि ई-सिगरेट से शुरू करने वाले युवाओं का सिगरेट के इस्तेमाल करने के आदी होने और इन्हें नियमित धूम्रपान करने वालों में भी बदल जाने की संभावना अधिक होती है.
वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) की निदेशक आशिमा सरीन ने अमेरिकन कैंसर सोसायटी, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन जैसे प्रतिष्ठित संगठनों का हवाला देते हुए कहा, "ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (2017) के अनुसार, भारत में 10 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं, जो ईएनडीएस के निर्माताओं के लिए एक बड़ा बाजार है." 

Wednesday, 20 March 2019

होली का मजा न करें किरकिरा, इस तरह रखें अपनी सेहत का ध्यान

नई दिल्ली: होली का त्योहार दस्तक दे चुका है. सभी लोगों के लिए रंगों का यह उत्साह से भरने वाला है. होली की तैयारियां भी लोगों ने शुरू कर दी है. कहीं मिठाइयां बनाई जा रही हैं, तो कहीं रंगों की खरीददारी भी शुरू हो गई है. लोग अपनी होली को खास बनाने की तैयारियों में लगे हुए हैं लेकिन इसी बीच वह अपनी सेहत का ख्याल भूल जाते हैं.

त्योहार के वक्त बीमार होने से केवल खुद का ही नहीं बल्कि सबका ही मजा किरकिरा हो जाता है. इसलिए आज के अपने इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे आसान टिप्स बताने वाले हैं जिन्हें फॉलो करके आप आसानी से बीमारियों से बच सकते हैं और त्योहार का पूरा मजा ले सकते हैं.

1. अधिक पानी पिएं- होली के वक्त मौसम में बदलाव और लगातार भागदौड़ के चलते काफी ज्यादा थकावट हो जाती है. वहीं धूप में होली खेलने से भी बॉडी डीहाइट्रेट हो सकती है. इसलिए होली के दिन पानी पीना ना भूलें, ताकि आपके शरीर में पानी की कमी न हो.

2. मावे वाली मिठाई की क्वालिटी चैक करें- कोई भी त्योहार बिना मिठाई के पूरा नहीं होता. त्योहारों के वक्त में लोग जमकर मिठाई खाते हैं और खरीदते हैं. इसलिए मिठाई खरीदने से पहले मिठाई की अच्छी तरह से जांच करें. खोए की क्वालिटी जरूर जांच ले. अगर खोया मूंह में चिपकता है तो समझ जाएं कि वो नकली है और अगर नहीं चिपकता तो मतलब खोया असली है.

3. हर्बल रंगों से खेलें- होली का त्योहार रंगों के बिना कैसे पूरा हो सकता है लेकिन जिस तरह से आज के वक्त में मिलावटी मिठाई बाजार में बिकती है उसी तरह रंगों में भी मिलावट होती है. इसलिए हर्बल रंगों से ही होली खेलें. होली के लिए आप अपने ही घर में विभिन्न फूल या सब्जियों से रंग बना सकते हैं.

4. भांग पीने से बचें- होली पर भांग का सेवन बहुत आम है लेकिन भांग से सेहत पर गलत प्रभाव पड़ सकता है. होली के दिन भांग की जगह आप आम पन्ना, जलजीरा, लस्सी या नारियल के पानी का भी सेवन कर सकते हैं. बता दें, इससे आपकी सेहत पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.

Tuesday, 19 March 2019

बेहद फायदेमंद है रोजाना एक कप कॉफी की आदत, कैंसर के खतरे को करती है कम

टोक्यो : सुबह का बेहतरीन पेय होने के साथ ही कॉफी प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिससे दवा-प्रतिरोधी कैंसर के इलाज का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. जापान के कनाजावा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल तत्वों की पहचान की है, जो प्रोस्टेट कैंसर की वृद्धि को रोक सकते हैं.

ये दोनों तत्व हाइड्रोकॉर्बन यौगिक हैं, जो प्राकृतिक रूप से अरेबिका कॉफी में पाए जाते हैं. इसके पायलट अध्ययन से पता चलता है कि कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल कोशिकाओं की वृद्धि को रोक सकते हैं, जो आम कैंसर रोधी दवाओं जैसे कबाजिटेक्सेल का प्रतिरोधी है. शोध के प्रमुख लेखक हिरोकी इवामोटो ने कहा, "हमने पाया कि कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल ने चूहों में कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रोक दी, लेकिन इसका संयोजन एक साथ ज्यादा प्रभावी होगा."

इस शोध के लिए दल ने कॉफी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले छह तत्वों का परीक्षण किया. इस शोध को यूरोपियन एसोसिएशन ऑफ यूरोलॉजी कांग्रेस में बार्सिलोना में प्रस्तुत किया गया. शोध के तहत मानव की प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं पर प्रयोगशाला में अध्ययन किया गया.

Sunday, 17 March 2019

कुपोषण पर तेजी से हो रहा नियंत्रण, लेकिन अभी भी देश में 4.66 करोड़ कुपोषित बच्चे

नई दिल्ली: ताजा सर्वेक्षण रपट के अनुसार देश में कुपोषण के कारण कमजोर बच्चों का अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में करीब दो प्रतिशत कम होकर 34.70 प्रतिशत पर आ गया. इससे पहले एक दस वर्ष में इसमें सालाना एक प्रतिशत की दर से कमी दर्ज की गयी थी. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुख्य रूप से सरकारी मुहिम के कारण कुपोषण से बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट में यह कमी आयी है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण के कारण औसत से कम लंबाई और भार वाले बच्चों का अनुपात 2004-05 के 48 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 38.40 प्रतिशत पर आ गया. अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘‘ यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश में कुपोषण से अवरुद्ध शारीरिक-विकास वाले बच्चों का अनुपात 2015-16 के 38.40 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 34.70 प्रतिशत पर आ गया है.

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

वर्ष 2004-05 से 2015-16 की दस वर्ष की अवधि के दौरान छह साल के कुपोषण प्रभावित ऐसे बच्चों के अनुपात में सालाना एक प्रतिशत की दर से 10 प्रतिशत की कमी आयी थी. उसने कहा, ‘‘यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय के नये सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 से 2017-18 के दौरान कुपोषण चार प्रतिशत कम हुआ. यह सालाना दो प्रतिशत की कमी है जो कि बड़ी उपलब्धि है.’’ यह सर्वेक्षण 1.12 लाख परिवारों को लेकर किया गया.

अधिकारी ने कहा, ‘‘अब कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपात में करीब दो प्रतिशत सालाना की कमी की दर को हासिल कर लिया गया है ऐसे में सरकार का ‘पोषण अभियान का लक्ष्य’ छोटा लगने लगा है.’’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की. इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 प्रतिशत से घटाकर 2022 में 25 प्रतिशत पर लाना है.

अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) जैसे अन्य मुख्य स्वास्थ्य सूचकांकों पर भी सुधार देखने को मिला है. उन्होंने कहा कि महिलाओं में खून की कमी 2015-16 के 50-60 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 40 प्रतिशत पर आ गयी है. वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया में कुपोषण के कारण कमजोर शरीर वाले एक तिहाई बच्चे भारत में हैं. भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 4.66 करोड़ है. इसके बाद नाइजीरिया (13.9%) और पाकिस्तान (10.7%) का नाम आता है.

2% की दर से घटा कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपातः सर्वे

नई दिल्ली: ताजा सर्वेक्षण रपट के अनुसार देश में कुपोषण के कारण कमजोर बच्चों का अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में करीब दो प्रतिशत कम होकर 34.70 प्रतिशत पर आ गया. इससे पहले एक दस वर्ष में इसमें सालाना एक प्रतिशत की दर से कमी दर्ज की गयी थी. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुख्यत: सरकारी मुहिम के कारण कुरोषण से बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट में यह कमी आई है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण के कारण औसत से कम लंबाई और भार वाले बच्चों का अनुपात 2004-05 के 48 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 38.40 प्रतिशत पर आ गया.

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर पीटीआई भाषा से कहा, ''यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश में कुपोषण से अवरुद्ध शारीरिक-विकास वाले बच्चों का अनुपात 2015-16 के 38.40 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 34.70 प्रतिशत पर आ गया है. वर्ष 2004-05 से 2015-16 की दस वर्ष की अवधि के दौरान छह साल के कुपोषण प्रभावित ऐसे बच्चों के अनुपात में सालाना एक प्रतिशत की दर से 10 प्रतिशत की कमी आयी थी.

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्र

उसने कहा, ''यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय के नये सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 से 2017-18 के दौरान कुपोषण चार प्रतिशत कम हुआ. यह सालाना दो प्रतिशत की कमी है जो कि बड़ी उपलब्धि है.'' यह सर्वेक्षण 1.12 लाख परिवारों को लेकर किया गया. अधिकारी ने कहा, ''अब कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपात में करीब दो प्रतिशत सालाना की कमी की दर को हासिल कर लिया गया है ऐसे में सरकार का 'पोषण अभियान का लक्ष्य' छोटा लगने लगा है.''

सुबह-सुबह पीएं आजवायन पानी, एक महीने में 3-4 किलोग्राम वजन कम होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की. इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 प्रतिशत से घटाकर 2022 में 25 प्रतिशत पर लाना है. अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) जैसे अन्य मुख्य स्वास्थ्य सूचकांकों पर भी सुधार देखने को मिला है.

वायु प्रदूषण से दुनियाभर में 88 लाख लोगों की हर साल हुई मौत, स्टडी का दावा

उन्होंने कहा कि महिलाओं में खून की कमी 2015-16 के 50-60 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 40 प्रतिशत पर आ गई. वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया में कुपोषण के कारण कमजोर शरीर वाले एक तिहाई बच्चे भारत में हैं. भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 4.66 करोड़ है. इसके बाद नाइजीरिया (13.9%) और पाकिस्तान (10.7%) का नाम आता है. (इनपुटः भाषा)

Friday, 15 March 2019

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

नई दिल्लीः बदलती जीवनशैली और काम के चलते होने वाली भागदौड़ के कारण पर्याप्त नींद तो जैसे लोगों के लिए एक सपना बन कर रह गई है. कभी काम तो कभी मोबाइल और कंप्यूटर लोगों की रातों की नींदे चोरी करती जा रही हैं. जिसके चलते लोग स्लीपिंग डिसऑर्डर और इससे होने वाली बीमारियों से घिरते जा रहे हैं. आज यानि 15 मार्च को 'वर्ल्ड स्लीप डे' है. इसलिए आज हम आपसे चर्चा कर रहे हैं स्लीपिंग डिसऑर्डर और इससे होने वाले नुकसानों के बारे में. बता दें स्लीपिंग डिसऑर्डर को लेकर हाल ही में एक सर्वे हुआ है, जो आपको चौंकाने के लिए काफी है. दरअसल, हाल ही में GOQii India ने World Sleeping Day पर एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें कहा गया है कि 'मधुमेह, हार्ट डिजीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी खतरनाक बीमारियां स्लीपिंग डिसऑर्डर और अनियमित जीवनशैली की देन हो सकती हैं.'

गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर से महिलाओं को ये खतरा, जानकर हो जाएंगे हैरान

बता दें एक अध्ययन में GOQii India ने न्यूट्रीशन्स, पानी, तनाव, नींद, धूम्रपान और शराब की खपत के आधार पर लिंग और प्रमुख शहरों के अनुसार वर्गीकृत करके कुछ ग्रुप बनाए थे. जिसमें महिलाओं और पुरुषों के स्लीप पैटर्न का एनालिसिस किया गया. फिट इंडिया द्वारा किए इस अध्ययन में कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए, जिनमें कहा गया है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कम नींद लेती हैं और पुरुष महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा सुकून से सोते हैं. वहीं नींद को लेकर कुछ और भी खुलासे इस रिपोर्ट में हुए हैं, जो इस तरह से हैं-

अगर है हाई ब्लड प्रेशर की समस्या, तो खाने में शामिल करें ये फल और सब्जियां

- पिछले साल की तुलना में कुल नींद 6.54 से बढ़कर 6.85 घंटे हो गई है.
- नींद के मामले में चेन्नई इस साल कोलकाता से आगे निकल कर पहली रैंक पर आ गया है, जिसमें कुल नींद 6.31 घंटे से बढ़कर 6.93 घंटे है.
- केवल 19% लोग जागने पर आराम और ताजगी महसूस करते हैं, जबकि 24% ने कहा कि वे जागने के बाद भी नींद महसूस करते हैं.
- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को थोड़ी अधिक मात्रा में नींद आती है.
- पुरुषों को कम नींद आती है, जिससे परेशान नींद अधिक होती है
- युवा वयस्कों (20-30) को मात्रा और गुणवत्ता दोनों के मामले में सबसे अधिक नींद आती है, इसके बाद किशोर और वयस्क होते हैं.
- सीनियर्स (60+) और पुराने वयस्कों (45-60) को कम से कम मात्रा में नींद लेते देखा जाता है-
- 55% किशोरों ने कहा कि उन्हें गहरी नींद आती है, जबकि सीनियर्स में केवल 21% ने ही ऐसा कहा.
- लगभग 45% सीनियर्स नींद के बीच में उठते हैं, लेकिन तुरंत सो जाते हैं.

राप्ती-सागर एक्सप्रेस में अंडा बिरयानी खाने से फूड पॉयजनिंग, 20 यात्री बीमार

भोपालः ट्रेनों में अच्छी केटरिंग सर्विस को लेकर किए जाने वाले दावों की आए दिन पोल खुलती नजर आती रहती है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है त्रिवेंद्रम से गोरखपुर जा रही राप्ती सागर एक्सप्रेस 12512 से, जहां अंडा बिरयानी खाने से करीब 20 यात्री फूड पॉयजनिंग का शिकार हो गए. जिससे इन यात्रियों की ट्रेन में ही हालत खराब हो गई. यात्रियों के मुताबिक राप्ती सागर एक्सप्रेस में यात्रियों ने खाने के लिए अंडा बिरयानी ऑर्डर किया था, जिसे खाने के कुछ देर बाद ही उन्हें मतली, उल्टी और पेट दर्द की शिकायत होने लगी. यात्रियों की तबीयत खराब होने के बाद इटारसी रेलवे स्टेशन पर अलर्ट जारी किया गया. जिसके बाद नागपुर में डॉक्टर्स की एक टीम ने चिकित्सकीय परीक्षण और उपचार कर आगे की यात्रा के लिए रवाना कर दिया.

मथुरा: जहरीली मिठाई खाने से एक ही परिवार के 12 लोग बीमार, 2 की हालत गंभीर

वहीं घटना की जानकारी मिलने के बाद रेल प्रशासन में हड़कंप मच गया. हालांकि, मिली जानकारी के मुताबिक उपचार के बाद सभी यात्रियों की हालत सामान्य हो गई और पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही उन्हे आगे के लिए रवाना किया गया. नागपुर रेल मंडल के जनसंपर्क अधिकारी अनिल वाल्डे ने बताया कि ''यात्रियों को बल्लारशा स्टेशन से पेट में दर्द, उल्टी और मितली की शिकायत होने की सूचना के बाद नागपुर रेलवे स्टेशन पर छह डाक्टरों के दल ने सभी यात्रियों का उपचार किया. बीमार हुए यात्री ट्रेन के एस 7 कोच में सफर कर रहे थे.''

झारखंड : लोहरदगा में प्रसाद खाने से 40 बच्चे बीमार, 2 की हालत नाजुक

अधिकारी अनिल वाल्डे ने आगे बताया कि इसी ट्रेन में यात्रा कर रहे एक यात्री अनिल थापा की मौत हो गई है, जिनका शव आमला रेलवे स्टेशन पर उतारा गया है. हांलकि यह मौत फूड पॉयजनिंग से न होकर बीमारी से बताई जा रही है. बता दें यह पहली बार नहीं है जब ट्रेन में इस तरह का दूषित खाना खाने से यात्रियों के बीमार होने का मामला सामने आया हो. इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां ट्रेन का खाना खाने से यात्री बुरी तरह से बीमार पड़ चुके हैं. वहीं फूड पॉयजनिंग की शिकायत मिलने के बाद अधिकारियों ने खाने के नमूने परीक्षण के लिए भेज दिए हैं.

Wednesday, 13 March 2019

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्र

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्रनैरोबी: दुनिया भर में समय से पहले और बीमारियों से जितनी मौत होती है, उसमें एक चौथाई मृत्यु मानवनिर्मित प्रदूषण और पर्यावरण को हुए नुकसान के कारण होती है. संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को एक रिपोर्ट में यह कहा है. 
इसमें आगाह किया गया है कि दम घोंटू उत्सर्जन, केमिकल से प्रदूषित पेयजल और पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाला नुकसान दुनिया भर में अरबों लोगों की रोजी-रोटी को प्रभावित कर रहे हैं. विश्व की अर्थव्यवस्था को भी इससे चोट पहुंच रही है. 
वैश्विक पर्यावरण परिदृश्य रिपोर्ट अमीर और गरीब देशों के बीच की बढ़ती खाई को प्रदर्शित करती है क्योंकि विकसित दुनिया में बढते उपभोग, प्रदूषण और खाद्य अपशिष्ट से हर जगह भुखमरी, गरीबी और बीमारी फैल रही है. यह रिपोर्ट छह साल में आती है और 70 देशों के 250 वैज्ञानिकों ने इसे तैयार किया है. 
ग्रीन हाउस गैस के बढ़ते उत्सर्जन से सूखा, बाढ़ और तूफान के खतरे के बीच समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और इस पर सहमति बन रही है कि जलवायु परिवर्तन से अरबों लोगों के भविष्य को खतरा होगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ पेयजल नहीं मिलने से हर साल 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इसी तरह समुद्र में बह कर पहुंचे रसायन के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है. विशाल पैमाने पर खेती के चलते तथा वन काटे जाने से भूमि क्षरण के कारण 3.2 अरब लोग प्रभावित होते हैं.  रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 60-70 लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है. 

किडनी रोग : महिलाओं पर भारी, हर साल लेता है छह लाख जानें

किडनी रोग : महिलाओं पर भारी, हर साल लेता है छह लाख जानेंनई दिल्ली : महिला दिवस पर महिलाओं की तमाम उपलब्धियों और उनके सामाजिक, आर्थिक सशक्तीकरण के बारे में बात करने वालों के लिए यह तथ्य परेशान करने वाला हो सकता है कि पुरूषों के मुकाबले महिलाओं को किडनी की बीमारी ज्यादा होती है और हर वर्ष तकरीबन छह लाख महिलाएं इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा देती हैं. हमारा शरीर अपने आप में एक अनूठी मशीन है, जिसका हर पुर्जा अपने हिस्से का काम बिना रूके करता रहता है, लेकिन अगर किसी तरह की लापरवाही हो तो बीमारी अपना सिर उठाने लगती है और एक हिस्से की बीमारी दूसरे अंगों पर भी असर डालती है.
जानलेवा हो सकती है लापरवाही
किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसके प्रति लापरवाही जानलेवा हो सकती है. हाल के वर्ष खान-पान और दिनचर्या में बदलाव के चलते दुनियाभर में किडनी की बीमारी से प्रभावित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. मेडिकल साइंस में क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के नाम से पुकारे जाने वाले रोग का मतलब किडनी का काम करना बंद कर देना होता है. इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मार्च के दूसरे गुरुवार को 'वर्ल्ड किडनी डे' मनाया जाता है.
20 करोड़ महिलाएं किडनी की समस्या से ग्रस्त
साल 2019 के 'वर्ल्ड किडनी डे' का थीम 'किडनी हेल्थ फॉर एवरी वन, एवरी वेयर' है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के आसपास आने वाले इस दिन पर महिलाओं को इस रोग के बारे में विशेष रूप से जागरूक किए जाने की जरूरत है. श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में सीनियर कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट डाक्टर राजेश अग्रवाल के अनुसार देश में औसतन 14 प्रतिशत महिलाएं और 12 प्रतिशत पुरुष किडनी की समस्या से पीड़ित हैं और पूरे विश्व में 19.5 करोड़ महिलाएं किडनी की समस्या से पीड़ित है.
हर साल 2 लाख लोग इसकी चपेट में आ रहे
भारत में भी यह संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है, यहां हर साल 2 लाख लोग इस रोग की चपेट में आते हैं. शुरुआती अवस्था में बीमारी को पकड़ पाना मुश्किल होता है, क्योंकि दोनों किडनी 60 प्रतिशत खराब होने के बाद ही मरीज को इसका पता चल पाता है. उन्होंने बताया कि किडनी या गुर्दा 'राजमा' की शक्ल जैसा अंग है, जो पेट के दायें और बायें भाग में पीछे की तरफ स्थित होता है. किडनी खराब होने पर शरीर में खून साफ नहीं हो पाता और क्रिएटनिन बढ़ने लगता है. यदि दोनों किडनी अपना कार्य करने में सक्षम नहीं हों, तो उसे आम भाषा में किडनी फेल हो जाना कहते है.
नारायणा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, गुरुग्राम में कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डाक्टर सुदीप सिंह के अनुसार खून को साफ कर ब्लड सर्कुलेशन में मदद करने वाले गुर्दे कई कारणों से खराब हो सकते हैं. इनमें खानपान की खराब आदतों के अलावा नियमित रूप से दर्दनिवारक दवाओं का सेवन भी एक बड़ी वजह हो सकता है. धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजी डाक्टर सुमन लता ने कहा, 'इस वर्ल्ड किडनी डे' हम डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या लम्बे समय से किसी बीमारी से पीड़ित लोगों से अपनी किडनी को स्वस्थ रखने की अपील करते हैं.
यूरीन टेस्ट के साथ केएफटी जैसे सरल परीक्षण किडनी की जांच का सस्ता और सुविधाजनक तरीका है. इसमें लापरवाही न बरतें. 'उन्होंने बताया कि आमतौर पर मूत्र मार्ग में संक्रमण और गर्भावस्था की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण महिलाओं में किडनी रोग होने की आशंका बढ़ जाती है. रोग के शुरूआती लक्षणों में लगातार उल्टी आना, भूख नहीं लगना, थकान और कमजोरी महसूस होना, पेशाब की मात्रा कम होना, खुजली की समस्या होना, नींद नहीं आना और मांसपेशियों में खिंचाव होना प्रमुख हैं.
उन्होंने बताया कि किडनी फेल होना दुनियाभर में महिलाओं की मौत का आठवां बड़ा कारण है. नियमित जांच कराने से रोग की शुरुआत में ही इसका पता चल जाता है और दवा से इसे ठीक करना संभव हो पाता है, लेकिन यदि समय रहते इसके बारे में पता न चले तो खून को साफ करने के लिए डायलिसिस की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है या फिर किडनी बदलवानी पड़ती है, जो एक लंबी, खर्चीली और कष्टकारी प्रक्रिया है जो हर जगह उपलब्ध भी नहीं है.

वर्ल्ड किडनी डे : पुनर्नवा पौधा बीमार गुर्दे को कर सकता है स्वस्थ

वर्ल्ड किडनी डे : पुनर्नवा पौधा बीमार गुर्दे को कर सकता है स्वस्थनई दिल्ली : आयुर्वेद में पुनर्नवा पौधे के गुणों का अध्ययन कर भारतीय वैज्ञानिकों ने इससे 'नीरी केएफटी' दवा की है, जिसके जरिए गुर्दा (किडनी) की बीमारी ठीक की जा सकती है. गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाएं फिर से स्वस्थ्य हो सकती हैं. साथ ही संक्रमण की आशंका भी इस दवा से कई गुना कम हो जाती है. हाल ही में पुस्तिका 'इंडो-अमेरिकन जर्नल ऑफ फॉर्मास्युटिकल रिसर्च' में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के अनुसार, पुनर्नवा में गोखुरू, वरुण, पत्थरपूरा, पाषाणभेद, कमल ककड़ी जैसी बूटियों को मिलाकर बनाई गई दवा 'नीरी केएफटी' गुर्दे में क्रिएटिनिन, यूरिया व प्रोटीन को नियंत्रित करती है.
हीमोग्लोबिन भी बढ़ाता है यह पौधा
क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को स्वस्थ्य करने के अलावा यह हीमोग्लोबिन भी बढ़ाती है. नीरी केएफटी के सफल परिणाम भी देखे जा रहे हैं. बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. केएन  द्विवेदी का कहना है कि रोग की पहचान समय पर हो जाने पर गुर्दे को बचाया जा सकता है. कुछ समय पहले बीएचयू में हुए शोध से पता चला है कि गुर्दा संबंधी रोगों में केएफटी कारगार साबित हुई है.
एलोपैथी से निकलकर आयुर्वेद को अपनाना चाहिए
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के किडनी विशेषज्ञ डॉ. मनीष मलिक का कहना है कि देश में लंबे समय से गुर्दा विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है. ऐसे में डॉक्टरों को एलोपैथी के ढांचे से निकलकर आयुर्वेद जैसी वैकल्पिक चिकित्सा को अपनाना चाहिए. आयुर्वेदिक दवा से अगर किसी को फायदा हो रहा है तो डॉक्टरों को उसे भी अपनाना चाहिए.
आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बीते माह केंद्र सरकार ने आयुष मंत्रालय को देशभर में 12,500 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की स्थापना करने की जिम्मेदारी सौंपी है. इन केंद्रों पर आयुष पद्धति के जरिए उपचार किया जाएगा. यहां वर्ष 2021 तक किडनी की न सिर्फ जांच, बल्कि नीरी केएफटी जैसी दवाओं से उपचार भी दिया जाएगा. उन्होंने यह भी बताया कि गुर्दा की बीमारी की पहचान के लिए होने वाली जांच को सभी व्यक्तियों को नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि मरीजों को शुरुआती चरण में ही उपचार दिलवाया जा सके.
एम्स के नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. एसके अग्रवाल का कहना है कि हर दिन 200 गुर्दा रोगी ओपीडी में पहुंच रहे हैं. इनमें 70 फीसदी मरीजों के गुर्दा फेल पाए जाते हैं. उनका डायलिसिस किया जाता है. प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) ही इसका स्थायी समाधान है. प्रत्यारोपण वाले मरीजों की संख्या भी काफी है. इस समय एम्स में गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए आठ माह की वेटिंग चल रही है. यहां सिर्फ 13 डायलिसिस की मशीनें हैं, जो वार्डो में भर्ती मरीजों के लिए हैं. इनमें से चार मशीनें हेपेटाइटिस 'सी' और 'बी' के मरीजों के लिए हैं. एम्स में सप्ताह में तीन दिन गुर्दा प्रत्यारोपण किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि गुर्दा खराब होने पर मरीज को सप्ताह में कम से कम दो या तीन बार डायलिसिस देना जरूरी है. मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. देश में सालाना 6,000 किडनी प्रत्यारोपण हो रहे हैं. इसलिए लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बेहद जरूरी है.
एक नजर में
- 1,200 गुर्दा विशेषज्ञ हैं देश में
- 1,500 हीमोडायलिसिस केंद्र हैं देश में
- 10,000 डायलिसिस केंद्र भी हैं
- 80 फीसदी गुर्दा प्रत्यारोपण हो रहे निजी अस्पतालों में
- 2,800 गुर्दा प्रत्यारोपण हो चुके हैं एम्स में

सुबह-सुबह पीएं अजवायन पानी, एक महीने में 3-4 किलोग्राम वजन कम होगा

नई दिल्ली: लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि ज्यादातर लोग ओवर वेट (ज्यादा वजन) की समस्या से परेशान है. एक्सरसाइज करने का समय नहीं मिलता है. नौकरी करने की टाइमिंग ऐसी हो गई है कि आप चाहकर भी सेहत पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. कुल मिलाकर जिंदगी में अनुशासन की कमी हो गई है जिसका सीधा असर आपकी सेहत पर दिखता है. मोटा हो जाने से कई तरह की बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन, आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. इस आर्टिकल में आपको एक ऐसे नुस्खे के बारे में बताने जा रहे हैं कि जिसे अपनाने से आपका कुछ ही दिनों में असर दिखने लगेगा.

यह एक घरेलू नुस्खा है. आपको ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है. सभी घरों में अजवायन उपलब्ध होता है. पानी में अजवायन डालकर रातभर भींगने के लिए छोड़ दें. सुबह उठने के बाद इस पानी का सेवन करें. इससे पेट की चर्बी कम होगी. इसमें थाइमोल पाया जाता है जो पेट की चर्बी को कम करता है.

वायु प्रदूषण से दुनियाभर में 88 लाख लोगों की हर साल हुई मौत, स्टडी का दावा

कहा जाता है कि थाइमोल मेटाबॉलिज्म को मजबूत करता है, पाचन क्रिया को दुरुस्त करता है और एसिडिटी की समस्या को दूर करता है. इसके अलावा इसमें आयोडिन, फास्फोरस, कैल्शियम और पोटैशियम भी पाया जाता है. ये सभी शरीर के लिए बहुत जरूरी तत्व होते हैं.

लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से बढ़ता है डायबिटीज का खतरा, स्टडी का दावा

अजवायन युक्त पानी पीने से से चीनी और  पेट संबंधी दूसरी बीमारियां दूर होती हैं. इसके अलावा कब्ज की समस्या से निजात मिलती है. कई लोग गैस और अस्थमा की समस्या से परेशान रहते हैं. कुछ भी खाने पर उन्हें गैस हो जाता है. वे लोग अजवायन पानी का इस्तेमाल करेंगे तो कुछ ही दिनों में असर दिखने लगेगा. कहा जाता है कि अजवायन पानी का इस्तेमाल एक महीने तक लगातार करने से 3-4 किलोग्राम वजन जरूर कम हो जाता है.

वायु प्रदूषण से दुनियाभर में 88 लाख लोगों की हर साल हुई मौत, स्टडी का दावा

पेरिस: यूरोप में वायु प्रदूषण से हर साल 790,000 लोगों की समय से पूर्व मौत हो गई और दुनियाभर में 88 लाख लोगों की मौत हुई.  यह संख्या हाल के आकलन से दोगुनी है. सोमवार को जारी एक अध्ययन के अनुसार, 40 से 80 प्रतिशत ये मौतें दिल का दौरा, आघात पड़ने और अन्य तरह की दिल की बीमारियों से हुई जो अभी तक धुंध से संबंधित हादसों के मुकाबले कम समझी जाती थी. शोधकर्ताओं के अनुसार, वाहनों, उद्योगों और खेतीबाड़ी के प्रदूषकों के जहरीले मिश्रण ने लोगों की जिंदगी 2.2 साल तक कम कर दी है.

जर्मनी में यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर मैन्ज के प्रोफेसर थॉमस मुंजेल ने बताया, ‘‘इसका मतलब है कि वायु प्रदूषण से एक साल में तंबाकू धूम्रपान के मुकाबले ज्यादा मौतें हुई.  विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक इसे साल 2015 में 72 लाख मौतें अधिक हुई. ’’ धूम्रपान से बचा जा सकता है लेकिन वायु प्रदूषण से नहीं.

छोटे और बड़े धूल के कणों,नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ओजोन के मिश्रण से संज्ञानात्मक प्रदर्शन, श्रम उत्पादकता और शैक्षिक नतीजों में कमी आई. ‘यूरोपियन हार्ट’ पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन में यूरोप पर ध्यान केंद्रित किया गया लेकिन दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए भी सांख्यिकीय प्रणालियों को भी अपडेट किया गया.

शोध के मुख्य लेखक जोस लेलीवेल्ड ने बताय कि चीन में हर साल 28 लाख लोगों की मौत हुई जो मौजूदा आकलन से ढाई गुना अधिक है. 

लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से बढ़ता है डायबिटीज का खतरा, स्टडी का दावा

बीजिंग: लंबे समय तक प्रदूषित वायु में सांस लेने से मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है. चीन में हाल ही में एक अध्ययन से यह बात सामने आई है.  मधुमेह से दुनियाभर में काफी आर्थिक और स्वास्थ्य बोझ बढ़ता है. विश्व भर में चीन में मधुमेह के सबसे अधिक मामले हैं. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि विकासशील देशों में वायु प्रदूषण और मधुमेह के बीच के संबंध के बारे में विरले ही जानकारी दी गई खासतौर से चीन में जहां पीएम 2.5 का स्तर अधिक है.

पीएम 2.5 या सूक्ष्म कण वायु प्रदूषक होते हैं जिनके बढ़ने पर लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है.  पीएम 2.5 कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि इससे दृश्यता कम हो जाती है. चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज फुवई होस्पिटल के शोधकर्ताओं ने अमेरिका स्थित एमरॉय विश्वविद्यालय के साथ मिलकर लंबे समय तक पीएम2.5 के संपर्क में रहने और 88,000 से अधिक चीनी वयस्कों से एकत्रित आंकड़ों के आधार पर मधुमेह के बीच संबंध का विश्लेषण किया.

शोध के नतीजों से पता चला कि लंबे समय तक पीएम2.5 के 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक बढ़ने से मधुमेह का खतरा 15.7 प्रतिशत तक बढ़ गया. यह शोध पत्रिका एनवॉयरमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुआ है.

Tuesday, 12 March 2019

रोजाना नाश्ते में खाएं 50 ग्राम दलिया, कुछ दिन में ही दिखाई देगा चमत्कार

नई दिल्ली : दलिया यानी सेहत का खजाना. दलिये का सेवन आपके स्वास्थ्य को कई तरह से फायदा पहुंचाता है. अमूमन लोग दलिये का सेवन नाश्ते में करते हैं. यदि आप रोज सुबह 50 ग्राम दलिये खाते हैं तो यह आपके शरीर के लिए कई तरह से फायदेमंद साबित होगा. दलिया विटामिन और प्रोटीन से भरपूर होता है. इसके अलावा इसमें लो कैलोरी और फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. दलिया एक ऐसा आहार है जो आपके शरीर में सभी पोषक तत्वों की मात्रा को पूरा करता है. सुबह में दलिया खाने से दिनभर के लिए जरूरी सभी तत्व पूरे हो जाते हैं. आगे पढ़िए प्रतिदिन दलिये के सेवन से होने वाले फायदे के बारे में विस्तार से.

कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित करें
आजकल कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की समस्या आम है. दलिया में घुलनशील और अघुलनशील दोनों ही फाइबर पाए जाते हैं. शरीर में उच्च मात्रा में फाइबर होने से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नियंत्रित रहती है. जिससे व्यक्ति को हृदय रोग होने की संभावना न के बराबर रहती है. एक शोध से भी साफ हो चुका है जो लोग प्रतिदिन दलिये का सेवन करते हैं, उन्हें हृदय रोग होने की आशंका न के बराबर होती है.

वजन घटाएं
भागदौड़ भरी जिंदगी और आधुनिक जीवनशैली के बीच युवाओं में वजन बढ़ने की आम समस्या है. कार्बोहाइड्रेट की उचित मात्रा वाले दलिये को सुबह के समय नाश्ते में खाने से शरीर में पूर्ण आहार पहुंचता है. जिससे आपका वजन नियंत्रित रहता है. थोड़ी सी मात्रा में ही दलिये का सेवन करने से आप पेट को भरा हुआ महसूस करते हैं.

हड्डियों को दें मजबूती
आजकल हड्डियों में कमजोरी आम समस्या है. मैग्नीशियम और कैल्शियम का खजाना होने के कारण दलिये का नियमित सेवन हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है. दलिया का नियमित सेवन करने वालों को उम्र दराज होने पर जोड़ों के दर्द की शिकायत नहीं होती. इसके अलावा दलिया खाने से पित्त की थैली में पथरी की समस्या भी दूर होती है.

डायबिटीज में असरकारक
दलिया और साबुत अनाज में मैग्नीशियम की भरपूर मात्रा होती है. मैग्नीशियम लगभग 300 प्रकार के एंजाइम बनाता है, खासतौर पर ऐसे एंजाइम जो इंसुलिन के बनने में मददगार होते हैं. साथ ही ये ग्लूकोज की जरूरी मात्रा को भी ब्लड तक पहुंचाते हैं. रोजाना दलिया का सेवन करने से टाइप-2 डायबिटीज होने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है.

ब्रेस्ट कैंसर से बचाव
दलिये का सेवन महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर से बचाता है. आजकल यह महिलाओं में होने वाली सबसे बड़ी समस्या बन गई है. साबुत अनाज चाहे वह दलिया हो या कुछ और उसमें फाइबर पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जिससे ब्रेस्ट कैंसर होने की आशंका कम होती है. शोध से यह साफ हो चुका है कि फाइबरयुक्त अनाज से लंग, ब्रेस्ट, ओवेरियन कैंसर जैसे खतरनाक रोगों से निजात पाया जा सकता है.

हीमोग्लोबिन बढ़ाए
आयरन की कमी से शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है. हीमोग्लोबिन कम होने से शरीर में कमजोरी और थकान की शिकायत आम हो जाती है. दलिया आयरन का अच्छा स्रोत है, जो शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा को बैलेंस करता है. इसके अलावा दलिया शरीर के तापमान और मेटाबॉलिज्म को भी सही मात्रा में बनाए रखता है.

ऊर्जा का स्रोत
दलिये का सेवन करने वाले व्यक्ति दिनभर ऊर्जावान महसूस करता है. ऐसा दलिया में पाए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट के कारण होता है. प्रतिदिन एक कप दलिया खाकर शरीर में विटामिन बी1, बी2, मिनरल्स, मैग्नीशियम, मैग्नीज आदि की पूर्ति की जा सकती है. इसमें मौजूद न्यूट्रिीएंट्स शरीर से एंटी-ऑक्सीडेंट को बाहर निकालकर कई बीमारियों से बचाते हैं.

क्या है दलिया
दलिया एक प्रकार का साबुत अनाज होता है जो शरीर को स्वास्थ्यवर्धक बनाता है. दलिया को बनाना और खाना बेहद आसान होता है. इसे दूध या फलों के साथ बनाया जा सकता है. आप मीठा या नमकीन दलिया भी बना सकते हैं. नाश्ते में दलिये का सेवन सबसे ज्यादा फायदेमंद बताया गया है. इसे पकाने से इसके पोषक तत्वों में किसी प्रकार की कमी नहीं आती.

सेक्सुअल परफारमेंस बढ़ाने में वियाग्रा से ज्यादा असरदार है यह तेल

सेक्सुअल परफारमेंस बढ़ाने में वियाग्रा से ज्यादा असरदार है यह तेलनई दिल्ली : सेक्सुअल प्रॉब्लम (Sexual Problem) से परेशान पुरुषों को आमतौर पर वियाग्रा खाने की सलाह दी जाती है. लेकिन कई शोध से यह भी साफ हुआ है कि वियाग्रा का लगातार सेवन आपकी सेक्सुअल पॉवर को तो बढ़ाता है लेकिन लंबे समय में यह शरीर को नुकसान भी पहुंचाती है. रिसर्च से पता चला है कि इसका सेवन करने वालों को सिर दर्द, दिल से संबंधित बीमारियां और लिवर संबंधी समस्या होने की ज्यादा संभावना होती है. लेकिन पिछले दिनों ग्रीस में हुई रिसर्च से चौकाने वाले परिणाम सामने आए हैं.
रिसर्च से पता चला है कि जैतून का तेल यानी ऑलिव ऑयल आपकी सेहत के साथ ही सेक्सुअल परफारमेंस को भी बढ़ाता है. रिसर्च में दावा किया गया है कि जो लोग नियमित रूप से जैतून के तेल का सेवन करते हैं उनकी सेक्सुअल परफारमेंस अन्य लोगों से कही अच्छी होती है. ग्रीस में हुई रिसर्च में यह भी दावा किया गया है कि जैतून के तेल का सेवन वियाग्रा की डोज लेने से ज्यादा कारगर होता है.
ग्रीस की यूनिवर्सिटी ऑफ एथेंस के वैज्ञानिकों ने रिसर्च के आधार पर यह दावा किया कि यदि कोई पुरुष हफ्ते में 9 चम्मच ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल करता है तो उसकी नपुंसकता में 40 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है. इसके अलावा भी जैतून के तेल के फायदों के बारे में आप जानते ही होंगे. इसका सेवन आपके शरीर और हड्डियों के लिए अच्छा रहता है. इतना ही नहीं इसके सेवन से खून की नलियां स्‍वस्‍थ रहती हैं और शरीर में ब्‍लड सर्कुलेशन को बेहतर बना रहता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ एथेंस में हुई इस रिसर्च में 67 साल की औसतन आयु वाले 660 लोगों को शामिल किया गया था. रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों ने अपनी डाइट में नियमित रूप से ऑलिव ऑयल को लिया, उनको दूसरों की तुलना में कम समस्‍याएं हईं. इतना ही नहीं इस उम्र में भी उनकी सेक्सुअल परफारमेंस में भी सुधार हुआ. इन लोगों ने अपनी डायट में फल, सब्जियां, मछली और सूखे मेवे के अलावा ऑलिव ऑयल को प्रमुख तौर पर शामिल किया.
शोधकर्ताओं ने पाया कि वियाग्रा जैसी दवाओं का असर कुछ ही देर के लिए होता है. ये दवाएं लंबे समय के लिए फायदेमंद नहीं हैं. इनके कई साइड इफेक्‍ट भी होते हैं. वहीं ऑलिव ऑयल का इस्‍तेमाल करना एक दूरगामी समाधान है. इतना ही ऑलिव ऑइल के इस्‍तेमाल से डायबीटीज, हाई बीपी और मोटापे जैसी बीमारियों के होने की आशंका भी कम हो जाती है.

Monday, 11 March 2019

अगर आपके बच्चे को भी है 'डिजिटल लत' तो हो जाएं सावधान, हो सकते हैं ये बड़े नुकसान...

नई दिल्ली: अगर आप भी उन माता-पिता में से हैं, जो अपने छोटे बच्चों को खाना खिलाते समय या उन्हें व्यस्त रखने के लिए उनके हाथ में स्मार्टफोन या टेबलेट थमा देते हैं, तो समय रहते सावधान हो जाइए, क्योंकि यह आदत उन्हें न केवल आलसी बना सकती है, बल्कि उनकी उम्र के शुरुआती दौर में ही उन्हें डिजिटल एडिक्शन की ओर धकेल सकती है. अमेरिकन अकेडमी ऑफ पीडियेट्रिक्स (आप) के अनुसार, 18 महीने से कम उम्र के बच्चों के लिए केवल 15-20 मिनट ही स्क्रीन पर बिताना स्वास्थ्य के लिहाज से सही है.
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विशेषज्ञों का मानना है कि व्यस्त शेड्यूल और छोटे बच्चों की सुरक्षा के प्रति जरूरत से अधिक सुरक्षात्मक रुख रखने वाले माता-पिता अपने छोटे बच्चों को स्मार्ट स्क्रीन में संलग्न कर रहे हैं. खिलौनों के साथ खेलने या बाहर खेलने की जगह, इतनी छोटी उम्र में उन्हें डिजिटल स्क्रीन की लत लगा देना उनके सर्वागीण विकास में बाधा डाल सकता है, उनकी आंखों की रोशनी को खराब कर सकता है और बचपन में ही उन्हें मोटापे का शिकार बना सकता है, जो फलस्वरूप आगे चलकर डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हाई कॉलेस्ट्रॉल का कारण बन सकता है.
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मैक्स हेल्थकेयर, गुरुग्राम की मनोविशेषज्ञ सौम्या मुद्गल ने बताया, "खिलौने छोटे बच्चों के दिमाग में विजुअल ज्ञान और स्पर्श का ज्ञान बढ़ाते हैं." ज्यादा स्क्रीन टाइम छोटे बच्चों को आलस्य और समस्या सुलझाने, अन्य लोगों पर ध्यान देने और समय पर सोने जैसी उनकी ज्ञानात्मक क्षमताओं को स्थायी रूप से नष्ट कर सकता है.
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स्वास्थ्य विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बच्चों के लिए स्क्रीन पर सामान्य समय बिताने की सही उम्र 11 साल है. लेकिन, ब्रिटेन की ऑनलाइन ट्रेड-इन आउटलेट म्यूजिक मैगपाई ने पाया कि छह साल या उससे छोटी उम्र के 25 प्रतिशत बच्चों के पास अपना खुद का मोबाइल फोन है और उनमें से करीब आधे अपने फोन पर हर सप्ताह 21 घंटे तक का समय बिताते हैं. इस दौरान वे स्क्रीन पर गेम्स खेलते हैं और वीडियोज देखते हैं.
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विशेषज्ञ माता-पिता को अपने बच्चों को स्क्रीन पर 'ओपन-एंडिड' कंटेंट में संलग्न करने की सलाह देते हैं, ताकि यह एप पर समय बिताने के दौरान उनकी रचनात्मकता को बढ़ाने में मदद करे और यह उनके लिए केवल इनाम या उनका ध्यान बंटाने के लिए इस्तेमाल किए जाने के स्थान पर उनके ज्ञानात्मक विकास में योगदान दे. हालांकि, थोड़ी देर और किसी की निगरानी में स्क्रीन पर समय बिताना नुकसानदायक नहीं है.
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मुद्गल ने कहा, "प्रौद्योगिकी बच्चे के सामान्य सामाजिक परस्पर क्रिया और आसपास के परिवेश से सीखने में बाधा नहीं बननी चाहिए." एक बार स्मार्ट फोन या टेबलेट की लत लगने पर बाद में उन्हें स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से रोकने पर बच्चों में चिड़चिड़ा व्यवहार, जिद करना, बार-बार मांगना और सोने, खाने या फिर जागने में नखरे करने जैसे विदड्रॉल सिम्पटम की समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
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विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को डिजिटल लत से दूर रखने के लिए माता-पिता को न केवल बच्चों के लिए, बल्कि खुद के लिए भी घर में डिजिटल उपकरणों से मुक्त जोन बनाने चाहिए, खासतौर पर खाने की मेज पर और बेडरूम में. मुद्गल ने कहा, "बच्चे वही सीखते हैं, जो वे देखते हैं. बच्चों को इस लत से दूर रखने के लिए माता-पिता को उनके सामने खुद भी सही उदाहरण रखना चाहिए."

Sunday, 10 March 2019

आज की लापरवाही, 2050 तक आपको बना सकती है बहराः WHO

वहीं 2050 तक ये संख्या बढ़ कर 90 करोड़ हो सकती है और इसका सबसे बड़ा कारण है लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहना.


नई दिल्लीः अगर आप भी अपने आस पास के शोर शराबे को नजरअंदाज कर रहे हैं तो ये लापरवाही आपको काफी भारी पड़ सकती है और यही लापरवाही आपको 2050 तक बहरा बना सकती है और ये हम नहीं कह रहे हैं. ये वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की रिसर्च बता रही है. दरअसल, हाल ही में की गई एक रिसर्च में पाया गया है कि इस समय दुनिया भर में जहां 44.6 करोड़ लोगों को सुनने में समस्या होती है वहीं 2050 तक ये संख्या बढ़ कर 90 करोड़ हो सकती है और इसका सबसे बड़ा कारण है लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहना.

अब मूक-बधिर बच्चों का होगा सफल इलाज

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें कहा गया है कि मौजूदा समय में जो 60 % लोग जो बहरेपन या सुनने से जुड़ी अन्य समस्यायें लेकर आते हैं वो ऐसी हैं जो पहले से ही रोकी जा सकती थीं. लेकिन समय पर इसका इलाज न हो पाने से उन्हें यह समस्याएं देखनी पड़ीं. इसका सबसे ज्यादा असर 12 से 35 साल के बीच की उम्र के लोगों पर पड़ता है. सर गंगाराम अस्पताल के ई एन टी स्पेशलिस्ट डॉ अजय स्वरूप के मुताबिक बड़ती उम्र के साथ सुनने में कमी आना आम है, लेकिन को लोग कम उम्र से ही ध्वनि प्रदूषण को नजरंदाज करते हैं उनको सुनने में दिक्कत बाकी लोगों के मुकाबले पहले शुरू हो जाती है.

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उन्होंने  भी बताया कि विकासशील देशों में इसका असर ज्यादा देखा जाता है, क्योंकि यह लोग प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट पर कम ध्यान देते हैं. लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहने से कान की नसें कमजोर पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे सुनने की शक्ति ही खत्म हो जाती है. जो आगे चल कर बहरेपन का रूप ले लेती हैं. इसमें सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये थी कि निकोटिन का इस्तेमाल करने से भी कान की नसें कमजोर पड़ जाती हैं, जिसके बारे में अधिकतर लोग तो सोच भी नहीं पाते हैं और लगातार निकोटिन के इस्तेमाल से बहरे होने लगते हैं.

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परेशानी की बात ये है कि जिस तरह से सभी बड़ी बिमारियों के लक्षण जल्दी सामने नहीं आते उसी तरह सुनने की क्षमता एक दिन में कम नहीं होती. आज जगह जगह शोर शराबा, तेज हॉर्न, डीजे, लाउडस्पीकर, ये सभी हमारी जीवनशैली में इस तरह से बस चुके हैं कि हमें उस वक्त तो इसके प्रभाव का पता नहीं चलता लेकिन अंदर ही अंदर ये हमारे कान को खोखला करता चला जाता है और लोगों को तब होश आता है जब उनके सुनने की क्षमता ख्तम हो जाती है.

Health Tips: हाई प्रोटीन से भरपूर हैं ये चीजें, वजन घटाने में ऐसे करेंगी मदद

डॉक्टर्स का कहना है कि "शारीरिक श्रम की कमी व अस्वस्थ जंक फूड का सेवन करने की वजह से अक्सर वजन बढ़ने की शिकायत देखने को मिलती है.

नई दिल्लीः आज के समय में हर कोई वजन बढ़ने की शिकायत से परेशान दिखाई देता है. ऐसे में हर कोई किसी न किसी तरह से मोटापे को कम करके फिट दिखने की कोशिश में जुटा रहता है और इसके लिए कई तरह के उपाय भी अपनाता है, लेकिन असफलता ही हाथ लगती है. चिकित्सकों का कहना है कि कुछ आसान चीजों को अपनाकर अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित किया जा सकता है.  डॉक्टर्स का कहना है कि "शारीरिक श्रम की कमी व अस्वस्थ जंक फूड का सेवन करने की वजह से अक्सर वजन बढ़ने की शिकायत देखने को मिलती है. ऐसे में जरूरी होता है कि लोग अपने खाने का खास ख्याल रखें. इससे वजन घटाने में काफी आसानी होती है. तो चलिए बताते हैं आपको कुछ ऐसी ही चीजों के बारे में जो हर मौसम में आपके वजन को कंट्रोल करने में मददगार होती हैं.


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मेथी-
मेथी में न सिर्फ भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है, बल्कि यह वजन घटाने में भी बेहद मददगार होता है. इसके बेहतर रिजल्ट्स के लिए एक से दो चम्मच मेथी को रात भर के लिए पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर इसे छानकर इसका पानी पी लें. मेथी में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त करते हैं और वजन घटाने में मदद करते हैं.

कीवी-
कीवी भी वजन घटाने का सबसे असरदार फल है. इसका इस्तेमाल डायबिटीज के मरीजों के लिए भी बेहद अच्छा माना जाता है. कीवी ब्लड शुगर को कंट्रोल करती है और साथ ही साथ वजन बढ़ने से भी रोकती है. तो अगर आप बढ़ते वजन से परेशान हैं तो यकीन मानिए इसका इस्तेमाल आपको इस समस्या से जरूर राहत दिलाएगा.

संतरा-
नींबू की ही तरह संतरे में भी फाइबर, विटामिन सी, फोलेट और पोटेशियम होता है जो वजन कम करने में मदद करता है. साथ ही साथ इसमें भारी मात्रा में प्रोटीन भी पाया जाता है. रोजाना संतरे के जूस पीने से बेहद जल्दी और कम समय में बढ़ते वजन से छुटकारा मिलता है.

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अमरूद-
अमरूद किसे पसंद नहीं होता. बड़े से लेकर बच्चे तक इसे बड़े ही चांव से खाते हैं. ऐसे में अगर आपसे कोई कहे कि अमरूद खाने से वजन पर भी काफी असर पड़ता है तो आप क्या करेंगे. जी हां, अमरूद न सिर्फ वजन बल्कि स्किन के लिए भी बेहद अच्छा माना जाता है. तो अगर आप वजन कम करने के इच्छुक हैं तो अपने डायट में अमरूद जरूर शामिल करें.

Saturday, 9 March 2019

सुबह खाली पेट नारियल के पानी में शहद मिला कर पीने के हैं कई फायदे, पढ़ें खबर

उम्र बढ़ने के साथ ही शरीर में फ्री रेडिकल बढ़ने लगता है, जिससे चेहरे पर झुर्रियां दिखाई देने लगती हैं.

नई दिल्ली: आप में से कई लोग नारियल पानी के बहुत से फायदों के बारे में जानते होंगे. नारियल के पानी में मौजूद पौष्टिक तत्व आज के इस दूषित वातावरण से बचाने में भी उपयोगी है. इन्फेक्टिव जर्म्स शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन नारियल का पानी शरीर की रक्षा करने में मदद करता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि रोज सुबह नारियल के पानी को शहद में मिलाकर पीने से शरीर को काफी लाभ होता है.

नारियल के पानी में शहद मिलाकर पीने से पेट दर्द, अम्लता जैसी पाचन संबंधी बीमारियां दूर हो जाती हैं. वहीं नियमित रूप से नारियल पानी और शहद के मिश्रण को पीने से इम्यून सिस्टम भी स्ट्रॉन्ग होता है और आपको कई बीमारियों से बचाता है. इसमें विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं.

उम्र बढ़ने के साथ ही शरीर में फ्री रेडिकल बढ़ने लगता है, जिससे चेहरे पर झुर्रियां दिखाई देने लगती हैं. हालांकि, एक उम्र के बाद ही ऐसा होता है और अगर आप उम्र बढ़ने के लक्षण जैसे सफेद बाल, झुर्रियां, थकान जैसा महसूस करने लगें तो आपोक सतर्क हो जाना चाहिए. एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर इस मिश्रण से आपको समय से पहले बुढ़ापे को रोकने में मदद मिलेगी.

नारियल के पानी और शहद के मिश्रण में पाचन तंत्र में सुधार करने की क्षमता है. इसके अलावा यह कब्ज से निजात दिलाने में भी उपयोगी है. इस पेय में मौजूद फाइबर आंतो में जाम मल को नरम करता है और आसानी से बाहर निकालने में मदद करती है.

Friday, 8 March 2019

ना दवाई, ना डॉक्टर घर बैठे ऐसे पहचानिए ब्रेस्ट कैंसर के लक्ष्ण

इस अभियान के चलते शहरी औरतों के साथ-साथ खास तौर पर ग्रामीण महिलाओं को जागरुक करने की कोशिश की जा रही है.


आज देशभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है. जिसमें महिला सशक्तिकरण, सामान्य अधिकारों, और महिलायों से जुड़ी हर एक छोटी बड़ी बातों पर चर्चा की जा रही है. ऐसे में महिलाओं के स्वास्थ को लेकर हेल्थवायर ने ‘वी केयर फॉर शी’ नाम से अभियान चलाया. जिसके तहत 14 साल की उम्र से लेकर 60 साल की उम्र की औरतों को ब्रेस्ट कैंसर के लक्षणों से लेकर उनके उपचार के बारे में जागरुक किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में हर वर्ग की महिलायों ने भाग लिया साथ ही महिलायों के लिए काम कर रहे एनजीओे के वाल्‍टीयर्स को भी अमंत्रित किया गया. कार्यक्रम में हाल ही में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री के लिए अॉस्कर जीत कर आई स्नेहा और सुमन को सम्मानित किया गया.


इस अभियान के चलते शहरी औरतों के साथ-साथ खास तौर पर ग्रामीण महिलाओं को जागरुक करने की कोशिश की जा रही है. जिसमें अनुभवी डॉकटरों की मदद से बताया जा रहा है कि कैसे महिलाएं घर में ही ब्रेस्ट कैंसर के लक्षणों का पता लगा सकती हैं. इसके लिए हफ्ते में एक बार औरतों को हफ्ते में एक बार नहाने के समय अपने स्तन को हाथ के छू कर देखना होगा और इन खास बातों पर ध्यान देना होगा.

- स्तन में कहीं गांठ या सूजन तो नहीं है.

- किसी तरह की ऐलर्जी

- छूने पर दर्द का एहसास तो नही है.

- ब्रेस्ट के आकार में कोई असामान्य बदलाव.

- ब्रेस्ट के आस पास की त्वचा का छड़ना

- निपल में से किसी तरह का डिस्चार्ज होना.

अगर इनमें से कोई लक्षण महिलाओं को महसूस होते हैं तो ब्रेस्ट कैंसर का खतरा हो सकता है. ऐसे में जल्द ले जल्द किसी प्रमाणित डॉक्टर की सलह ले. सही समय पर इलाज के जरिए ब्रेस्ट कैंसर से बचा जा सकता है. अपोलो इंद्रप्रस्थ अस्पताल की डॉ रमेश सरीन ने बताया की भारत में महिलायों में बिमारियों का सबसे बड़ा करण है समय पर जांच न होना. खास तौर पर गांव में गांव में महिलाएं अपने स्वास्थ को लेकर खुल कर बात करने में झिझकती हैं. यहां तक की डॉक्टरों के सामने भी खुल कर अपनी तकलीफ नहीं बतातीं. ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जानती होंगी या फिर इसके बारे में अपने परिवार में बात करती होंगी. इस स्थति में महिलाओं को जागरुक करना बहुत जरुरी है.

Tuesday, 5 March 2019

हवा में प्रदूषण हर घंटे ले रहा है 800 लोगों की जान, एक साल में होती हैं इतनी लाख मौतें

जिनेवा : संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण एवं मानवाधिकारों के जानकार ने कहा है कि घर के अंदर और बाहर होने वाले वायु प्रदूषण के कारण हर साल करीब 70 लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है जिनमें छह लाख बच्चे शामिल हैं .हवा में प्रदूषण हर घंटे ले रहा है 800 लोगों की जान, एक साल में होती हैं इतनी लाख मौतें
6 अरब लोग ले रहे प्रदूषित हवा में सांस
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ डेविड बोयड ने कहा कि करीब छह अरब लोग नियमित रूप से इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं कि इससे उनका जीवन और स्वास्थ्य जोखिम में घिरा रहता है. पर्यावरण एवं मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक ने सोमवार को मानवाधिकार परिषद से कहा, “इसके बावजूद इस महामारी पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है क्योंकि ये मौतें अन्य आपदाओं या महामारियों से होने वाली मौतों की तरह नाटकीय नहीं हैं.” 
हर घंटे मरते हैं 800 लोग 
बोयड ने कहा, “हर घंटे 800 लोग मर रहे हैं जिनमें से कई तकलीफ झेलने के कई साल बाद मर रहे हैं, कैंसर से, सांस संबंधी बीमारी से या दिल की बीमारी से जो प्रत्यक्ष तौर पर प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण होती है.” कनाडा की ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बोयड ने कहा कि स्वच्छ हवा सुनिश्चित नहीं कर पाना स्वस्थ पर्यावरण के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि यह वे अधिकार हैं जिन्हें 155 देशों ने कानूनी मान्यता दी है और इसे वैश्विक मान्यता प्राप्त होनी चाहिए. 

Saturday, 2 March 2019

पनीर बनाने के अलावा भी फटे हुए दूध के हैं कई फायदे, इन बीमारियों को रखेगा दूर

पनीर बनाने के अलावा भी फटे हुए दूध के हैं कई फायदे, इन बीमारियों को रखेगा दूर
नई दिल्ली: कई लोग ऐसा मानते हैं कि फटा हुआ दूध खराब होता है या फिर उसका इस्तेमाल केवल पनीर बनाने के लिए किया जा सकता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि फटा हुआ दूध कई अलग मायनों में भी आपके  शरीर के लिए फायदेमंद होता है. जितने फायदे नॉरमल दूध के होते हैं उतने ही फायदे फटे हुए दूध के भी होते हैं. 
चाहे दूध कच्चा हो, उबला हुआ या फटा हुआ, उसमें प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है लेकिन दूध के फटने पर उसमें खटास आने के कारण उसका टेस्ट अच्छा नहीं लगता और दूध फट जाना एक बहुत ही सामान्य बात है. लेकिन फटे हुए दूध का इस्तेमाल कर आप  कई फायदे पा सकते हैं. तो चलिए आपको बताते हैं कि फटे हुए दूध के क्या फायदे हैं. 
प्रतिरक्षक तंत्र करे मजबूत
फटे हुए दूध के पानी में प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक होती है. यह पानी आपके लिए काफी लाभदायक है. जैसे- इस पानी से मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है. इससे इम्यून पॉवर विकसित होता है. इस पानी में रोगों से लड़ने की भी क्षमता होती है, और इससे ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल रहते है. इसके पानी से शरीर पर किसी भी तरह का कोई बुरा प्रभाव नही पड़ता है.     
कॉलेस्ट्रोल को करे कंट्रोल
कई रिसर्च में ये सामने आया है कि नियमित तौर पर फटे हुए दूध का सेवन करने से कॉलेस्ट्रोल का स्तर नियंत्रित रहता है. आपको बता दें, अगर कॉलेस्ट्रोल नियंत्रण में रहता है तो हार्ट अटैक और स्ट्रॉक आने की सम्भावना कम हो जाती है. 
आटे को बनाए नरम
आप इस पानी का प्रयोग आटे को गूंदने के लिए भी कर सकते हैं, जिससे बनने वाली रोटियां बहुत नरम व मुलायम हो जाती हैं, तथा इसका स्वाद भी बढ़ जाता है. इसके साथ ही आपको इससे भरपूर प्रोटीन भी मिलेगा. आपको बता दें इस पानी को थेपला या आटे मे डालकर कई प्रकार के व्यंजन बनाने के लिए भी काम मे लिया जाता है. दूध रक्तसंचार को दुरुस्त रखता है, जिससे त्वचा की कोशिकाएं स्वस्थ रहती हैं. 
चेहरे के लिए भी उपयोगी
आप इस फटे हुए दूध को बेसन, हल्दी और चंदन में मिलाकर अपने चेहरे पर भी लगा सकते हैं. ये चेहरे को चमकदार बनाने में मदद करता है और त्वचा को भी कोमल बनाता है.
अंडे में मिला कर करें सेवन
फटे दूध के थक्कों को आप अंडे में मिक्स करके भी खा सकते हैं. इससे अंडा बहुत ही स्वादिष्ट लगता है. उबले अंडे को इसमें मिला कर खाने से ये ज्यादा टेस्टी लगता है. इसके सेवन से आपके शरीर को प्रोटीन और कैल्शियम की मात्रा भी ज्यादा मिलती है.