Sunday, 10 March 2019

आज की लापरवाही, 2050 तक आपको बना सकती है बहराः WHO

वहीं 2050 तक ये संख्या बढ़ कर 90 करोड़ हो सकती है और इसका सबसे बड़ा कारण है लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहना.


नई दिल्लीः अगर आप भी अपने आस पास के शोर शराबे को नजरअंदाज कर रहे हैं तो ये लापरवाही आपको काफी भारी पड़ सकती है और यही लापरवाही आपको 2050 तक बहरा बना सकती है और ये हम नहीं कह रहे हैं. ये वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की रिसर्च बता रही है. दरअसल, हाल ही में की गई एक रिसर्च में पाया गया है कि इस समय दुनिया भर में जहां 44.6 करोड़ लोगों को सुनने में समस्या होती है वहीं 2050 तक ये संख्या बढ़ कर 90 करोड़ हो सकती है और इसका सबसे बड़ा कारण है लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहना.

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वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें कहा गया है कि मौजूदा समय में जो 60 % लोग जो बहरेपन या सुनने से जुड़ी अन्य समस्यायें लेकर आते हैं वो ऐसी हैं जो पहले से ही रोकी जा सकती थीं. लेकिन समय पर इसका इलाज न हो पाने से उन्हें यह समस्याएं देखनी पड़ीं. इसका सबसे ज्यादा असर 12 से 35 साल के बीच की उम्र के लोगों पर पड़ता है. सर गंगाराम अस्पताल के ई एन टी स्पेशलिस्ट डॉ अजय स्वरूप के मुताबिक बड़ती उम्र के साथ सुनने में कमी आना आम है, लेकिन को लोग कम उम्र से ही ध्वनि प्रदूषण को नजरंदाज करते हैं उनको सुनने में दिक्कत बाकी लोगों के मुकाबले पहले शुरू हो जाती है.

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उन्होंने  भी बताया कि विकासशील देशों में इसका असर ज्यादा देखा जाता है, क्योंकि यह लोग प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट पर कम ध्यान देते हैं. लगातार तेज आवाज के संपर्क में रहने से कान की नसें कमजोर पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे सुनने की शक्ति ही खत्म हो जाती है. जो आगे चल कर बहरेपन का रूप ले लेती हैं. इसमें सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये थी कि निकोटिन का इस्तेमाल करने से भी कान की नसें कमजोर पड़ जाती हैं, जिसके बारे में अधिकतर लोग तो सोच भी नहीं पाते हैं और लगातार निकोटिन के इस्तेमाल से बहरे होने लगते हैं.

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परेशानी की बात ये है कि जिस तरह से सभी बड़ी बिमारियों के लक्षण जल्दी सामने नहीं आते उसी तरह सुनने की क्षमता एक दिन में कम नहीं होती. आज जगह जगह शोर शराबा, तेज हॉर्न, डीजे, लाउडस्पीकर, ये सभी हमारी जीवनशैली में इस तरह से बस चुके हैं कि हमें उस वक्त तो इसके प्रभाव का पता नहीं चलता लेकिन अंदर ही अंदर ये हमारे कान को खोखला करता चला जाता है और लोगों को तब होश आता है जब उनके सुनने की क्षमता ख्तम हो जाती है.

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