Monday, 1 April 2019

फिर से विवादों में Johnson and Johnson, 'बेबी केयर शैम्पू' से कैंसर का खतरा!

फिर से विवादों में Johnson and Johnson, 'बेबी केयर शैम्पू' से कैंसर का खतरा!आशुतोष शर्मा, जयपुर: हर माता-पिता अपने बच्चों के लिए सबसे बेहतर और बड़ी कंपनी के प्रोडक्ट्स खरीदकर इस्तेमाल करते हैं ताकि उनका बच्चा स्वस्थ रहे और बच्चे की हेल्थ पर कोई दुष्प्रभाव ना पड़े. मगर एक ताजा मामला आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगा कि जो प्रोडक्ट बड़ी बेफिक्री से आप अपने बच्चे के लिए खरीद रहे है कही वो आपके बच्चे के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो नहीं है. मशहूर ब्रांड जॉनसन एंड जॉनसन का एक ताजा मामला सामने आया है. ये कंपनी हिमाचल प्रदेश के बद्दी में बच्चों के लिए कई उत्पादों का निर्माण करती है. इस कंपनी के बेबी शैम्पू जिसका बैच नंबर बीबी 58177 और बीबी 58204 है, इस प्रोडक्ट में पिछले दिनों हुई जांच के दौरान हानिकारक तत्व पाए गए हैं.
इस बारे में सचेत करते हुए राजस्थान राज्य के सभी ड्रग्स कंट्रोल अफसरों को ड्रग्स बुलेटिन जारी कर सचेत किया गया है. राजस्थान ड्रग्स कंट्रोलर राजाराम शर्मा द्वारा जारी पत्र में बताया गया है कि जॉनसन बेबी शैम्पू के उपरोक्त दोनों बैच मानकों के अनुसार खरे नहीं उतरे हैं, जो कि खरीदारों के लिए नुकसानदेह हैं. इसलिए इस कंपनी के उक्त उत्पाद की बिक्री पर रोक  लगाते हुए बाजार से इसके स्टॉक को वापस मंगाया जाए. साथ ही वे कंपनी के अन्य बैचों की भी समय-समय पर जांच करें.
इस शैंपू में हानिकारक फार्मेल्डिहाइड होने की रिपोर्ट है. बता दें, फार्मेल्डिहाइड से कैंसर होने का खतरा होता है. राजस्थान ड्रग रेगुलेटर ने इस शैम्पू के 2 बैच- 'BB58204' औप 'BB58177'को टेस्ट किया था. ये शैम्पू सितंबर 2021 में एक्सपायर हो जाएंगे. राजस्थान ड्रग्स वॉचडॉग ने ड्रग्स कंट्रोल अफसर से नोटिस में कहा कि 'इन स्टॉक्स को किसी के भी द्वारा इस्तेमाल ना किया जाए. साथ ही मौजूदा स्टॉक को मार्केट से हटाया जाए. इसके अलावा ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत जो भी एक्शन लिया जा सकता है वो लिया जाए.'
2018 में अमेरिका में कुछ महिलाओं में जॉनसन एंड जॉनसन बेबी पाउडर की वजह से ओवेरियन (गर्भाशय) कैंसर के लक्षण मिले थे. मामला जब कोर्ट में पहुंचा तो महिला के वकीलों ने कहा कि उनके क्लाइंट को बेबी पाउडर में मौजूद अस्बस्ट्स की वजह से ओवेरियन कैंसर हुआ है. वकीलों का कहना है कि बेबी पाउडर में अबस्टस की मौजूदगी साल 1970 से प्रमाणित है. सुनवाई के बाद कोर्ट ने 22 पीड़ित महिलाओं को 4.69 अरब डॉलर मुआवजे का आदेश दिया था.
इससे पहले 1982 में भी जॉनसन एंड जॉनसन की एक दवा से कुछ लोगों की मौत हो गई थी. विवाद बढ़ने के बाद कंपनी ने 3.1 करोड़ बोतलों को तुरंत वापस लिया था. 2008 में आरोप लगा कि कई उत्पाद में बदूब आ रहे हैं, इस शिकायत के बाद करीब तीन करोड़ यूनिट प्रोडक्स वापस लिए गए.

Friday, 29 March 2019

देशवासियों की सेहत का ध्यान रखेगी Coca Cola, आम पना और छाछ की बिक्री करेगी

देशवासियों की सेहत का ध्यान रखेगी Coca Cola, आम पना और छाछ की बिक्री करेगीनई दिल्ली : पिछले कुछ सालों में सेहत के प्रति बढ़ी जागरूकता और कोल्ड ड्रिंक की सेल घटने से सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है. नई योजना के तहत कोका-कोला (Coca Cola) जैसी दिग्गज कंपनियां दो हजार साल से प्रचलित स्वादिष्ट और सेहतमंद घरेलू पेय जैसे जलजीरा और आम पना बेचने के लिए तैयार है. कंपनी की तरफ से जलजीरा को पहले ही लॉन्च किया जा चुका है. अब गर्मियों को ध्यान में रखते हुए आम पना को पेश करने की योजना है. कंपनी की तरफ से यह निर्णय बढ़ती गर्मी में आम पना की बढ़ती डिमांड को देखकर लिया जा रहा है.
कोल्ड ड्रिंक पीना सेहत के लिए नुकसानदेह
कई रिपोटर्स से यह साफ हो चुका है कि कोल्ड ड्रिंक का सेवन सेहत के लिए नुकसानदेह है. ऐसे में लोग कोल्ड ड्रिंक पीने से परहेज करने लगे हैं. आम पना और जलजीरा को घरेलू मसालों और फलों से तैयार किया जा सकता है. पिछले कुछ सालों में इनके पैकड पैकेट की मांग बढ़ी है. एक आंकड़े के अनुसार यह मांग कोल्ड ड्रिंक से तीन गुना ज्यादा है. ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार कोक के भारत में CEO टी कृष्‍णकुमार ने कहा कि देश के 29 राज्‍य कंपनी के लिए 29 देशों के बराबर हैं. यहां पर कुछ किमी की दूरी पर बोली और खानपान में बदलाव आ जाता है.
छोटे-छोटे स्टार्टअप कर रहे जलजीरा की बिक्री
छोटे-छोटे स्टार्टअप की तरफ से पेश किए गए जलजीरा और आम पना की बिक्री में इजाफा आने से कोक भी इसी ओर रुख कर रही है. राज्स्थान बेस्ड एक एक ग्रुप का स्लोगन है 'Be Indian Buy Indian'. कोक भी इसी का अनुसरण करते हुए पहले जलजीरा लॉन्च कर चुका है. अब कंपनी जल्द ही आम पन्ना लाने की तैयारी में है. कंपनी का लक्ष्य कम कीमत में भारतीय शीतल पेय लोगों तक पहुंचाने की है.
आम और लिची का उत्पादन करेगी कंपनी
कंपनी की तरफ से आम और लिची का उत्पादन भी शुरू किया जाएगा. इसके लिए कंपनी 1.7 अरब डॉलर का निवेश करेगी. कृष्‍णकुमार के अनुसार भारत का जूस मार्केट 3.6 अरब डॉलर का है. इसमें 72 प्रतिशत स्‍थानीय स्‍तर पर ठेलों पर बिकने वाला जूस है. इसके अलावा कंपनी छाछ और लस्सी की बिक्री भी करेगी. इससे यह कहा जा सकता है कि इन गर्मियों कंपनी देशवासियों को ध्यान में रखते हुए नए प्रोडक्ट ला रही है.

6 महीने के केन्याई बच्चे की हालत थी नाजुक, दिल्ली के डॉक्टरों ने नहीं मानी हार, बचाई जान

6 महीने के केन्याई बच्चे की हालत थी नाजुक, दिल्ली के डॉक्टरों ने नहीं मानी हार, बचाई जाननई दिल्ली: छह महीने की नाजुक उम्र में केन्या से आए बच्चे इमेन्युअल लीला कमांक की ओपन हार्ट सर्जरी इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में की गई. बच्चा एक दुर्लभ जन्मजात दिल की बीमारी सायनोटिक टॉसिंग-बिंग एनोमली से पीड़ित था. पैदा होने के चार दिनों के बाद इस बीमारी का पता चला. बच्चे की हालत बिगड़ती जा रही थी, जिसके चलते उसे सर्जरी के लिए दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल लाया गया.  इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स, नई दिल्ली के सीनियर कंसल्टेंट व पीडिएट्रिक कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ. मुथु जोथी ने कहा, "जब इमेन्युअल को अपोलो लाया गया, वह सायनोटिक से पीड़ित था. उसके खून में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण त्वचा का रंग नीला पड़ता जा रहा था.
जांच करने पर हमने पाया कि उसकी सांस लेने की दर प्रति मिनट सिर्फ 20 थी, जो सामान्य से बहुत कम थी." डॉ. जोथी ने कहा, "बच्चे में आयोर्टा दाएं वेंट्रिकल से जुड़ी हुई थी, जबकि सामान्य अवस्था में यह बाएं वेट्रिकल से जुड़ी होती है. साथ ही उसकी पल्मोनरी आर्टरी भी दाएं वेंट्रिकल से जुड़ी थी, जो असामान्य है. इसे डबल आउटलेट राइट वेंट्रिकल डिफेक्ट कहा जाता है.
जांच करने पर पता चला कि उसकी आयोर्टा में एक ब्लॉक भी था. इसके अलावा बच्चे में बड़ा सब-पल्मोनरी वेंट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट, आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट और पेटेंट डक्टस आर्टीरियोसस भी था. इस बीमारी में जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो खुली ब्लड वैसल जिसे बंद हो जाना चाहिए, वह बंद नहीं हो पाती."
उन्होंने कहा, "यह मामला बेहद गंभीर था, सर्जरी के बाद भी बच्चे के ठीक होने की संभावना बहुत कम थी. हालात को देखते हुए हमने इलाज की योजना बनाई. हमने परिवार को जानकारी दी कि उसकी सर्जरी में 50-60 फीसदी जोखिम है. परिवार ने जोखिम लेने के लिए सहमति दी और हमने सर्जरी करने का फैसला ले लिया." 21 जनवरी, 2019 को डॉ. मुथु जोथी ने बच्चे की सर्जरी की.
उनकी टीम में डॉ मनीषा चक्रवर्ती और डॉ. रीतेश गुप्ता शामिल थे. डॉ. मुथु जोथी ने कहा, "पूरी प्रक्रिया टोटल सकुर्लेटरी अरेस्ट में की गई, यानी शरीर के पूरी खून को हार्ट लंग मशीन में ड्रेन किया जा रहा था. इससे पहले हमें बच्चे के शरीर को 16 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा रखना था. यह मनुष्य के शरीर के लिए जमा देने वाला तापमान होता है.
हमें उसके दिमाग की सतह पर पर बर्फ रखनी पड़ी." उन्होंने कहा, "बिना सकुर्लेशन के हम मरीज को अधिकतम 45 मिनट के लिए रख सकते हैं. इसके बाद दिमाग, स्पाइनल कोर्ड, किडनी एवं अन्य अंगों को नुकसान पहुंचने का खतरा होता है. इमेन्युअल को 30 मिनट के लिए टोटल सकुर्लेटरी अरेस्ट पर रखा गया.
इस दौरान हमने आयोर्टिक आर्च की मरम्मत की, इसके लिए पीडीए ब्लड वैसल को डिसकनेक्ट किया और इसे आयोर्टिक आर्च के साथ कनेक्ट किया गया." उन्होंने कहा, "इसके बाद हमने बच्चे को फिर से हार्ट-लंग मशीन पर डाला, और खून की वाहिकों की पॉजिशन ठीक की.
इंट्राम्यूरल कोरोनरी आर्टरी बहुत ही मुश्किल स्थिति में थी, हमें इस वाहिका को नई आयोर्टा में इम्प्लांट करना था. इस प्रक्रिया में आधे मिलीमीटर की गलती भी हार्ट अटैक का कारण बन सकती है. इसके बाद वेंट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट और आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट को ठीक किया गया. सर्जरी 9 घंटे तक चली." इसके बाद बच्चा धीरे-धीरे ठीक होने लगा और 17वें दिन उसे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई.

Thursday, 28 March 2019

स्टेशन नींबू पानी बनाने का वीडियो वायरल, Railway ने बिक्री पर लगाई रोक

स्टेशन पर नींबू पानी बनाने का वीडियो वायरल, Railway ने बिक्री पर लगाई रोकनई दिल्ली : पिछले दिनों मुंबई के कुर्ला रेलवे स्टेशन पर एक कर्मचारी द्वारा तैयार किए जा रहे नींबू पानी का वीडियो वायरल होने के बाद सेंट्रल रेलवे ने सख्त कदम उठाया है. इस पूरे मामले में सेंट्रल रेलवे की लापरवाही उजागर हो गई है. सेंट्रल रेलवे (मुंबई डिवीजन) ने सभी कैटरिंग यूनिट को स्टेशन परिसर में नींबू पानी, ऑरेंज जूस और काला खट्टा की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का आदेश दिया है. सेंट्रल रेलवे की तरफ से यह कार्रवाई कुर्ला रेलवे स्टेशन का वीडियो वायरल होने के बाद ली गई है.
गंदे हाथों से बना रहा नींबू पानी
दरअसल करीब एक हफ्ते पहले मुंबई के कुर्ला स्टेशन पर एक यात्री द्वारा बनाए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि एक स्टॉल का कर्मचारी बाल्टी में गंदे हाथों से नींबू निचोड़ रहा है. इतना ही नहीं वह नींबू पानी बनाने के लिए ओवर हैड टैंक में भरे पानी का इस्तेमाल कर रहा है, बीच-बीच में वह टंकी में भरे पानी को बाल्टी में ले रहा है और नींबू पानी तैयार कर रहा है. नींबू पानी से भरे इस ड्रम को वह कर्मचारी बाद में स्टॉल पर रखकर बिक्री करता है.
सोशल मीडिया में वायरल हुआ वीडियो
एक यात्री की तरफ से स्टॉल वाले का बनाया गया यह वीडियो कई दिन से सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहा है. इसके बाद सेंट्रल रेलवे की किरकिरी हो गई और रेलवे की तरफ से यह कदम उठाया गया. जिस यात्री ने कुर्ला रेलवे स्टेशन पर इस वीडियो को बनाया था, उसने सेंट्रल रेवले को टैग कर इस मामले में संज्ञान लेने की गुजारिश की थी.
वीडियो देखने के बाद कार्रवाई करते हुए रेलवे अधिकारियों ने कुर्ला स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 7 और 8 पर स्थित स्टॉल से फूड सैंपल एकत्रित किए और इसे सील कर दिया. स्टॉल का लाइसेंस रखने वाले शख्स को भी जांच कमेटी के सामने पेश होने के लिए समन जारी किया गया है. आपको बता दें कि रेलवे की तरफ से मशीन से निकाले गए जूस पर पाबंदी नहीं लगाई गई है.

टाइप-2 डायबिटीज से बढ़ा दिल पर खतरा, बन रहा है 58 फीसदी मरीजों की मौत कारण

टाइप-2 डायबिटीज से बढ़ा दिल पर खतरा, बन रहा है 58 फीसदी मरीजों की मौत कारणनई दिल्ली: मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित लोगों को दिल की बीमारियों से मौत का खतरा बढ़ जाता है. टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में लगभग 58 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी परेशानियों के कारण होती हैं. मधुमेह के साथ जुड़े ग्लूकोज के उच्च स्तर से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जिससे रक्तचाप और नजर, जोड़ों में दर्द तथा अन्य परेशानियां हो जाती हैं.
चिकित्सक के अनुसार, टाइप-2 मधुमेह सामान्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन युवा भारतीयों में भी यह अब तेजी से देखा जा रहा है. वे गुर्दे की क्षति और हृदय रोग के साथ-साथ जीवन को संकट में डालने वाली जटिलताओं के जोखिम को झेल रहे हैं.
पद्मश्री से सम्मानित डॉ केके अग्रवाल ने कहा, "देश में युवाओं के मधुमेह से ग्रस्त होने के पीछे जो कारक जिम्मेदार हैं, उनमें प्रमुख है प्रोसेस्ड और जंक फूड से भरपूर अधिक कैलारी वाला भोजन, मोटापा तथा निष्क्रियता. समय पर ढंग से जांच न कर पाना और डॉक्टर की सलाह का पालन न करना उनके लिए और भी जोखिम भरा हो जाता है, जिससे उन्हें अपेक्षाकृत कम उम्र में ही जानलेवा स्थितियों से गुजरना पड़ जाता है."
उन्होंने कहा कि लोगों में एक आम धारणा है कि टाइप-2 मधुमेह वाले युवाओं को इंसुलिन की जरूरत नहीं होती है, इसलिए ऐसा लगता है कि यह भयावह स्थिति नहीं है. हालांकि, ऐसा सोचना गलत है. इस स्थिति में तत्काल उपचार और प्रबंधन की जरूरत होती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले युवाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यदि कुछ दिखते भी हैं, तो वे आमतौर पर हल्के हो सकते हैं, और ज्यादातर मामलों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं, जिनमें अधिक प्यास और बार-बार मूत्र त्याग करना शामिल है.
डॉ अग्रवाल ने कहा, "यदि घर के बड़े लोग अच्छी जीवनशैली का उदाहरण पेश करते हैं तो यह युवाओं के लिए भी प्रेरणादायी होगा. इस तरह के बदलाव एक युवा को अपना वजन कम करने में मदद कर सकते हैं (अगर ऐसी समस्या है तो) या उन्हें खाने-पीने के बेहतर विकल्प खोजने में मदद कर सकते हैं, जिससे टाइप-2 मधुमेह विकसित होने की संभावना कम हो जाती है. जिनके परिवार में पहले से ही डायबिटीज की समस्या रही है, उनके लिए तो यह और भी सच है.
कुछ सुझाव जिनसे मिलेगी मदद:
- खाने में स्वस्थ खाद्य पदार्थ ही चुनें.
- प्रतिदिन तेज रफ्तार में टहलें. 
- अपने परिवार के साथ अपने स्वास्थ्य और मधुमेह व हृदय रोग के जोखिम के बारे में बात करें.
- यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ने की पहल करें. 
- अपने लिए, अपने परिवार के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए मधुमेह और इसकी जटिलताओं संबंधी जोखिम को कम करने खातिर जीवनशैली में बदलाव करें.

Tuesday, 26 March 2019

डायबिटीज पीड़ितों को ज्यादा रहता है हार्ट अटैक का खतरा, इन चीजों से आज ही कर लें तौबा

डायबिटीज पीड़ितों को ज्यादा रहता है हार्ट अटैक का खतरा, इन चीजों से आज ही कर लें तौबानई दिल्ली : मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित लोगों को दिल की बीमारियों से मौत का खतरा बढ़ जाता है. टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में लगभग 58 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी परेशानियों के कारण होती हैं. मधुमेह के साथ जुड़े ग्लूकोज के उच्च स्तर से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जिससे रक्तचाप और नजर, जोड़ों में दर्द तथा अन्य परेशानियां हो जाती हैं.
चिकित्सक के अनुसार, टाइप-2 मधुमेह सामान्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन युवा भारतीयों में भी यह अब तेजी से देखा जा रहा है. वे गुर्दे की क्षति और हृदय रोग के साथ-साथ जीवन को संकट में डालने वाली जटिलताओं के जोखिम को झेल रहे हैं.
पद्मश्री से सम्मानित डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "देश में युवाओं के मधुमेह से ग्रस्त होने के पीछे जो कारक जिम्मेदार हैं, उनमें प्रमुख है प्रोसेस्ड और जंक फूड से भरपूर अधिक कैलारी वाला भोजन, मोटापा तथा निष्क्रियता. समय पर ढंग से जांच न कर पाना और डॉक्टर की सलाह का पालन न करना उनके लिए और भी जोखिम भरा हो जाता है, जिससे उन्हें अपेक्षाकृत कम उम्र में ही जानलेवा स्थितियांे से गुजरना पड़ जाता है."
उन्होंने कहा कि लोगों में एक आम धारणा है कि टाइप-2 मधुमेह वाले युवाओं को इंसुलिन की जरूरत नहीं होती है, इसलिए ऐसा लगता है कि यह भयावह स्थिति नहीं है. हालांकि, ऐसा सोचना गलत है. इस स्थिति में तत्काल उपचार और प्रबंधन की जरूरत होती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले युवाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यदि कुछ दिखते भी हैं, तो वे आमतौर पर हल्के हो सकते हैं, और ज्यादातर मामलों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं, जिनमें अधिक प्यास और बार-बार मूत्र त्याग करना शामिल है.
डॉ. अग्रवाल ने कहा, "यदि घर के बड़े लोग अच्छी जीवनशैली का उदाहरण पेश करते हैं तो यह युवाओं के लिए भी प्रेरणादायी होगा. इस तरह के बदलाव एक युवा को अपना वजन कम करने में मदद कर सकते हैं (अगर ऐसी समस्या है तो) या उन्हें खाने-पीने के बेहतर विकल्प खोजने में मदद कर सकते हैं, जिससे टाइप-2 मधुमेह विकसित होने की संभावना कम हो जाती है. जिनके परिवार में पहले से ही डायबिटीज की समस्या रही है, उनके लिए तो यह और भी सच है. 
उन्होंने कुछ सुझाव दिए :
- खाने में स्वस्थ खाद्य पदार्थ ही चुनें.
- प्रतिदिन तेज रफ्तार में टहलें. 
- अपने परिवार के साथ अपने स्वास्थ्य और मधुमेह व हृदय रोग के जोखिम के बारे में बात करें.
- यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ने की पहल करें. 
- अपने लिए, अपने परिवार के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए मधुमेह और इसकी जटिलताओं संबंधी जोखिम को कम करने खातिर जीवनशैली में बदलाव करें.

Sunday, 24 March 2019

1000 से अधिक डॉक्टरों ने PM को लिखा पत्र, कहा- ई-सिगरेट पर लगाया जाए प्रतिबंध

1000 से अधिक डॉक्टरों ने PM को लिखा पत्र, कहा- ई-सिगरेट पर लगाया जाए प्रतिबंध नई दिल्ली: भारत के 24 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 1000 से अधिक चिकित्सकों ने इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. इसमें ईएनडीएस ई-सिगरेट, ई-हुक्का भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में इन चिकित्सकों ने चिंता व्यक्त की है कि युवाओं के बीच ईएनडीएस महामारी बन कर फैल जाए, इससे पहले इस पर रोक लगाना बेहद जरूरी है. पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले ये 1,061 डॉक्टर इस बात से बेहद चिंतित हैं कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे पर, व्यापार और उद्योग संगठन ई-सिगरेट के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दे रहे हैं.
ई-सिगरेट को ई-सिग, वेप्स, ई-हुक्का, वेप पेन भी कहा जाता है, जो इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) है. कुछ ई-सिगरेट नियमित सिगरेट, सिगार या पाइप जैसे दिखते हैं. कुछ यूएसबी फ्लैश ड्राइव, पेन और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं की तरह दिखते हैं, जो युवाओं को बेहद आकर्षित करते हैं. डॉक्टरों के समूह ने 30 संगठनों द्वारा आईटी मंत्रालय को लिखे एक पत्र पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य का मामला है और इसलिए व्यावसायिक हितों की रक्षा नहीं की जानी चाहिए.
मीडिया रपट के अनुसार, 30 संगठनों ने इंटरनेट पर ईएनडीएस के प्रचार पर प्रतिबंध न लगाने के लिए आईटी मंत्रालय को लिखा था. उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त, 2018 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को ईएनडीएस पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक परामर्श जारी किया था. इस साल मार्च में एमओएचएफडब्ल्यू द्वारा नियुक्त स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक पैनल ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसमें ईएनडीएस पर 251 शोध अध्ययनों का विश्लेषण किया गया है. पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि ईएनडीएस किसी भी अन्य तंबाकू उत्पाद जितना ही खराब है और निश्चित रूप से असुरक्षित है.
टाटा मेमोरियल अस्पताल के उप निदेशक एवं हेड नेक कैंसर सर्जन डॉ. पंकज चतुर्वेदी का कहना है, "यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि निकोटीन को जहर माना जाए. यह दुख:द है कि ईएनडीएस लॉबी ने डॉक्टरों के एक समूह को लामबंद किया है, जो ईएनडीएस उद्योग के अनुरूप भ्रामक, विकृत जानकारी साझा कर रहे हैं.
मैं भारत सरकार की सराहना करता हूं कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के अपने लक्ष्य के अनुरूप, इसने निकोटीन वितरण उपकरणों (ईएनडीएस) के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है." डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि ई सिगरेट को किसी भी रूप में सुरक्षित प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए. एकमात्र तरीका पूरी तरह से धूम्रपान छोड़ना है और किसी भी तंबाकू उत्पाद का उपयोग शुरू नहीं करना है.
वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिम के इस अभियान से जुड़े डॉक्टर इस बात से चिंतित हैं कुछ डॉक्टरों का वर्ग ईएनडीएस लाबी से बेहद प्रभावित हो रहा है. कुछ निहित स्वार्थ वाले डॉक्टर अत्यधिक सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संघों की रिपोर्ट को गलत संदर्भ में ले रहे हैं. एम्स दिल्ली के कार्डियो-थोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) के प्रमुख डॉ. शिव चौधरी कहते हैं, "शोध से साबित हुआ है कि ईएनडीएस सुरक्षित नहीं है या धूम्रपान छोड़ने का विकल्प नहीं है.
निकोटीन पर निर्भरता स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा है. एक डॉक्टर के रूप में, मैं कभी भी चिकित्सकीय पर्यवेक्षण के बिना किसी भी निकोटीन उत्पाद के उपयोग की सिफारिश नहीं करूंगा." द अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (एसीएस) और द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज इंजीनियरिंग मेडिसिन (एनएएसईएम) दोनों का मानना है कि ई-सिगरेट से शुरू करने वाले युवाओं का सिगरेट के इस्तेमाल करने के आदी होने और इन्हें नियमित धूम्रपान करने वालों में भी बदल जाने की संभावना अधिक होती है.
वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) की निदेशक आशिमा सरीन ने अमेरिकन कैंसर सोसायटी, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन जैसे प्रतिष्ठित संगठनों का हवाला देते हुए कहा, "ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (2017) के अनुसार, भारत में 10 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं, जो ईएनडीएस के निर्माताओं के लिए एक बड़ा बाजार है."