Thursday, 28 March 2019

स्टेशन नींबू पानी बनाने का वीडियो वायरल, Railway ने बिक्री पर लगाई रोक

स्टेशन पर नींबू पानी बनाने का वीडियो वायरल, Railway ने बिक्री पर लगाई रोकनई दिल्ली : पिछले दिनों मुंबई के कुर्ला रेलवे स्टेशन पर एक कर्मचारी द्वारा तैयार किए जा रहे नींबू पानी का वीडियो वायरल होने के बाद सेंट्रल रेलवे ने सख्त कदम उठाया है. इस पूरे मामले में सेंट्रल रेलवे की लापरवाही उजागर हो गई है. सेंट्रल रेलवे (मुंबई डिवीजन) ने सभी कैटरिंग यूनिट को स्टेशन परिसर में नींबू पानी, ऑरेंज जूस और काला खट्टा की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का आदेश दिया है. सेंट्रल रेलवे की तरफ से यह कार्रवाई कुर्ला रेलवे स्टेशन का वीडियो वायरल होने के बाद ली गई है.
गंदे हाथों से बना रहा नींबू पानी
दरअसल करीब एक हफ्ते पहले मुंबई के कुर्ला स्टेशन पर एक यात्री द्वारा बनाए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि एक स्टॉल का कर्मचारी बाल्टी में गंदे हाथों से नींबू निचोड़ रहा है. इतना ही नहीं वह नींबू पानी बनाने के लिए ओवर हैड टैंक में भरे पानी का इस्तेमाल कर रहा है, बीच-बीच में वह टंकी में भरे पानी को बाल्टी में ले रहा है और नींबू पानी तैयार कर रहा है. नींबू पानी से भरे इस ड्रम को वह कर्मचारी बाद में स्टॉल पर रखकर बिक्री करता है.
सोशल मीडिया में वायरल हुआ वीडियो
एक यात्री की तरफ से स्टॉल वाले का बनाया गया यह वीडियो कई दिन से सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहा है. इसके बाद सेंट्रल रेलवे की किरकिरी हो गई और रेलवे की तरफ से यह कदम उठाया गया. जिस यात्री ने कुर्ला रेलवे स्टेशन पर इस वीडियो को बनाया था, उसने सेंट्रल रेवले को टैग कर इस मामले में संज्ञान लेने की गुजारिश की थी.
वीडियो देखने के बाद कार्रवाई करते हुए रेलवे अधिकारियों ने कुर्ला स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 7 और 8 पर स्थित स्टॉल से फूड सैंपल एकत्रित किए और इसे सील कर दिया. स्टॉल का लाइसेंस रखने वाले शख्स को भी जांच कमेटी के सामने पेश होने के लिए समन जारी किया गया है. आपको बता दें कि रेलवे की तरफ से मशीन से निकाले गए जूस पर पाबंदी नहीं लगाई गई है.

टाइप-2 डायबिटीज से बढ़ा दिल पर खतरा, बन रहा है 58 फीसदी मरीजों की मौत कारण

टाइप-2 डायबिटीज से बढ़ा दिल पर खतरा, बन रहा है 58 फीसदी मरीजों की मौत कारणनई दिल्ली: मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित लोगों को दिल की बीमारियों से मौत का खतरा बढ़ जाता है. टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में लगभग 58 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी परेशानियों के कारण होती हैं. मधुमेह के साथ जुड़े ग्लूकोज के उच्च स्तर से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जिससे रक्तचाप और नजर, जोड़ों में दर्द तथा अन्य परेशानियां हो जाती हैं.
चिकित्सक के अनुसार, टाइप-2 मधुमेह सामान्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन युवा भारतीयों में भी यह अब तेजी से देखा जा रहा है. वे गुर्दे की क्षति और हृदय रोग के साथ-साथ जीवन को संकट में डालने वाली जटिलताओं के जोखिम को झेल रहे हैं.
पद्मश्री से सम्मानित डॉ केके अग्रवाल ने कहा, "देश में युवाओं के मधुमेह से ग्रस्त होने के पीछे जो कारक जिम्मेदार हैं, उनमें प्रमुख है प्रोसेस्ड और जंक फूड से भरपूर अधिक कैलारी वाला भोजन, मोटापा तथा निष्क्रियता. समय पर ढंग से जांच न कर पाना और डॉक्टर की सलाह का पालन न करना उनके लिए और भी जोखिम भरा हो जाता है, जिससे उन्हें अपेक्षाकृत कम उम्र में ही जानलेवा स्थितियों से गुजरना पड़ जाता है."
उन्होंने कहा कि लोगों में एक आम धारणा है कि टाइप-2 मधुमेह वाले युवाओं को इंसुलिन की जरूरत नहीं होती है, इसलिए ऐसा लगता है कि यह भयावह स्थिति नहीं है. हालांकि, ऐसा सोचना गलत है. इस स्थिति में तत्काल उपचार और प्रबंधन की जरूरत होती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले युवाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यदि कुछ दिखते भी हैं, तो वे आमतौर पर हल्के हो सकते हैं, और ज्यादातर मामलों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं, जिनमें अधिक प्यास और बार-बार मूत्र त्याग करना शामिल है.
डॉ अग्रवाल ने कहा, "यदि घर के बड़े लोग अच्छी जीवनशैली का उदाहरण पेश करते हैं तो यह युवाओं के लिए भी प्रेरणादायी होगा. इस तरह के बदलाव एक युवा को अपना वजन कम करने में मदद कर सकते हैं (अगर ऐसी समस्या है तो) या उन्हें खाने-पीने के बेहतर विकल्प खोजने में मदद कर सकते हैं, जिससे टाइप-2 मधुमेह विकसित होने की संभावना कम हो जाती है. जिनके परिवार में पहले से ही डायबिटीज की समस्या रही है, उनके लिए तो यह और भी सच है.
कुछ सुझाव जिनसे मिलेगी मदद:
- खाने में स्वस्थ खाद्य पदार्थ ही चुनें.
- प्रतिदिन तेज रफ्तार में टहलें. 
- अपने परिवार के साथ अपने स्वास्थ्य और मधुमेह व हृदय रोग के जोखिम के बारे में बात करें.
- यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ने की पहल करें. 
- अपने लिए, अपने परिवार के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए मधुमेह और इसकी जटिलताओं संबंधी जोखिम को कम करने खातिर जीवनशैली में बदलाव करें.

Tuesday, 26 March 2019

डायबिटीज पीड़ितों को ज्यादा रहता है हार्ट अटैक का खतरा, इन चीजों से आज ही कर लें तौबा

डायबिटीज पीड़ितों को ज्यादा रहता है हार्ट अटैक का खतरा, इन चीजों से आज ही कर लें तौबानई दिल्ली : मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित लोगों को दिल की बीमारियों से मौत का खतरा बढ़ जाता है. टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में लगभग 58 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी परेशानियों के कारण होती हैं. मधुमेह के साथ जुड़े ग्लूकोज के उच्च स्तर से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जिससे रक्तचाप और नजर, जोड़ों में दर्द तथा अन्य परेशानियां हो जाती हैं.
चिकित्सक के अनुसार, टाइप-2 मधुमेह सामान्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन युवा भारतीयों में भी यह अब तेजी से देखा जा रहा है. वे गुर्दे की क्षति और हृदय रोग के साथ-साथ जीवन को संकट में डालने वाली जटिलताओं के जोखिम को झेल रहे हैं.
पद्मश्री से सम्मानित डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "देश में युवाओं के मधुमेह से ग्रस्त होने के पीछे जो कारक जिम्मेदार हैं, उनमें प्रमुख है प्रोसेस्ड और जंक फूड से भरपूर अधिक कैलारी वाला भोजन, मोटापा तथा निष्क्रियता. समय पर ढंग से जांच न कर पाना और डॉक्टर की सलाह का पालन न करना उनके लिए और भी जोखिम भरा हो जाता है, जिससे उन्हें अपेक्षाकृत कम उम्र में ही जानलेवा स्थितियांे से गुजरना पड़ जाता है."
उन्होंने कहा कि लोगों में एक आम धारणा है कि टाइप-2 मधुमेह वाले युवाओं को इंसुलिन की जरूरत नहीं होती है, इसलिए ऐसा लगता है कि यह भयावह स्थिति नहीं है. हालांकि, ऐसा सोचना गलत है. इस स्थिति में तत्काल उपचार और प्रबंधन की जरूरत होती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले युवाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. यदि कुछ दिखते भी हैं, तो वे आमतौर पर हल्के हो सकते हैं, और ज्यादातर मामलों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं, जिनमें अधिक प्यास और बार-बार मूत्र त्याग करना शामिल है.
डॉ. अग्रवाल ने कहा, "यदि घर के बड़े लोग अच्छी जीवनशैली का उदाहरण पेश करते हैं तो यह युवाओं के लिए भी प्रेरणादायी होगा. इस तरह के बदलाव एक युवा को अपना वजन कम करने में मदद कर सकते हैं (अगर ऐसी समस्या है तो) या उन्हें खाने-पीने के बेहतर विकल्प खोजने में मदद कर सकते हैं, जिससे टाइप-2 मधुमेह विकसित होने की संभावना कम हो जाती है. जिनके परिवार में पहले से ही डायबिटीज की समस्या रही है, उनके लिए तो यह और भी सच है. 
उन्होंने कुछ सुझाव दिए :
- खाने में स्वस्थ खाद्य पदार्थ ही चुनें.
- प्रतिदिन तेज रफ्तार में टहलें. 
- अपने परिवार के साथ अपने स्वास्थ्य और मधुमेह व हृदय रोग के जोखिम के बारे में बात करें.
- यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ने की पहल करें. 
- अपने लिए, अपने परिवार के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए मधुमेह और इसकी जटिलताओं संबंधी जोखिम को कम करने खातिर जीवनशैली में बदलाव करें.

Sunday, 24 March 2019

1000 से अधिक डॉक्टरों ने PM को लिखा पत्र, कहा- ई-सिगरेट पर लगाया जाए प्रतिबंध

1000 से अधिक डॉक्टरों ने PM को लिखा पत्र, कहा- ई-सिगरेट पर लगाया जाए प्रतिबंध नई दिल्ली: भारत के 24 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 1000 से अधिक चिकित्सकों ने इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. इसमें ईएनडीएस ई-सिगरेट, ई-हुक्का भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में इन चिकित्सकों ने चिंता व्यक्त की है कि युवाओं के बीच ईएनडीएस महामारी बन कर फैल जाए, इससे पहले इस पर रोक लगाना बेहद जरूरी है. पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले ये 1,061 डॉक्टर इस बात से बेहद चिंतित हैं कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे पर, व्यापार और उद्योग संगठन ई-सिगरेट के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दे रहे हैं.
ई-सिगरेट को ई-सिग, वेप्स, ई-हुक्का, वेप पेन भी कहा जाता है, जो इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) है. कुछ ई-सिगरेट नियमित सिगरेट, सिगार या पाइप जैसे दिखते हैं. कुछ यूएसबी फ्लैश ड्राइव, पेन और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं की तरह दिखते हैं, जो युवाओं को बेहद आकर्षित करते हैं. डॉक्टरों के समूह ने 30 संगठनों द्वारा आईटी मंत्रालय को लिखे एक पत्र पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य का मामला है और इसलिए व्यावसायिक हितों की रक्षा नहीं की जानी चाहिए.
मीडिया रपट के अनुसार, 30 संगठनों ने इंटरनेट पर ईएनडीएस के प्रचार पर प्रतिबंध न लगाने के लिए आईटी मंत्रालय को लिखा था. उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त, 2018 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को ईएनडीएस पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक परामर्श जारी किया था. इस साल मार्च में एमओएचएफडब्ल्यू द्वारा नियुक्त स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक पैनल ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसमें ईएनडीएस पर 251 शोध अध्ययनों का विश्लेषण किया गया है. पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि ईएनडीएस किसी भी अन्य तंबाकू उत्पाद जितना ही खराब है और निश्चित रूप से असुरक्षित है.
टाटा मेमोरियल अस्पताल के उप निदेशक एवं हेड नेक कैंसर सर्जन डॉ. पंकज चतुर्वेदी का कहना है, "यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि निकोटीन को जहर माना जाए. यह दुख:द है कि ईएनडीएस लॉबी ने डॉक्टरों के एक समूह को लामबंद किया है, जो ईएनडीएस उद्योग के अनुरूप भ्रामक, विकृत जानकारी साझा कर रहे हैं.
मैं भारत सरकार की सराहना करता हूं कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के अपने लक्ष्य के अनुरूप, इसने निकोटीन वितरण उपकरणों (ईएनडीएस) के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है." डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि ई सिगरेट को किसी भी रूप में सुरक्षित प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए. एकमात्र तरीका पूरी तरह से धूम्रपान छोड़ना है और किसी भी तंबाकू उत्पाद का उपयोग शुरू नहीं करना है.
वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिम के इस अभियान से जुड़े डॉक्टर इस बात से चिंतित हैं कुछ डॉक्टरों का वर्ग ईएनडीएस लाबी से बेहद प्रभावित हो रहा है. कुछ निहित स्वार्थ वाले डॉक्टर अत्यधिक सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संघों की रिपोर्ट को गलत संदर्भ में ले रहे हैं. एम्स दिल्ली के कार्डियो-थोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) के प्रमुख डॉ. शिव चौधरी कहते हैं, "शोध से साबित हुआ है कि ईएनडीएस सुरक्षित नहीं है या धूम्रपान छोड़ने का विकल्प नहीं है.
निकोटीन पर निर्भरता स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा है. एक डॉक्टर के रूप में, मैं कभी भी चिकित्सकीय पर्यवेक्षण के बिना किसी भी निकोटीन उत्पाद के उपयोग की सिफारिश नहीं करूंगा." द अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (एसीएस) और द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज इंजीनियरिंग मेडिसिन (एनएएसईएम) दोनों का मानना है कि ई-सिगरेट से शुरू करने वाले युवाओं का सिगरेट के इस्तेमाल करने के आदी होने और इन्हें नियमित धूम्रपान करने वालों में भी बदल जाने की संभावना अधिक होती है.
वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) की निदेशक आशिमा सरीन ने अमेरिकन कैंसर सोसायटी, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन जैसे प्रतिष्ठित संगठनों का हवाला देते हुए कहा, "ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (2017) के अनुसार, भारत में 10 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं, जो ईएनडीएस के निर्माताओं के लिए एक बड़ा बाजार है." 

Wednesday, 20 March 2019

होली का मजा न करें किरकिरा, इस तरह रखें अपनी सेहत का ध्यान

नई दिल्ली: होली का त्योहार दस्तक दे चुका है. सभी लोगों के लिए रंगों का यह उत्साह से भरने वाला है. होली की तैयारियां भी लोगों ने शुरू कर दी है. कहीं मिठाइयां बनाई जा रही हैं, तो कहीं रंगों की खरीददारी भी शुरू हो गई है. लोग अपनी होली को खास बनाने की तैयारियों में लगे हुए हैं लेकिन इसी बीच वह अपनी सेहत का ख्याल भूल जाते हैं.

त्योहार के वक्त बीमार होने से केवल खुद का ही नहीं बल्कि सबका ही मजा किरकिरा हो जाता है. इसलिए आज के अपने इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे आसान टिप्स बताने वाले हैं जिन्हें फॉलो करके आप आसानी से बीमारियों से बच सकते हैं और त्योहार का पूरा मजा ले सकते हैं.

1. अधिक पानी पिएं- होली के वक्त मौसम में बदलाव और लगातार भागदौड़ के चलते काफी ज्यादा थकावट हो जाती है. वहीं धूप में होली खेलने से भी बॉडी डीहाइट्रेट हो सकती है. इसलिए होली के दिन पानी पीना ना भूलें, ताकि आपके शरीर में पानी की कमी न हो.

2. मावे वाली मिठाई की क्वालिटी चैक करें- कोई भी त्योहार बिना मिठाई के पूरा नहीं होता. त्योहारों के वक्त में लोग जमकर मिठाई खाते हैं और खरीदते हैं. इसलिए मिठाई खरीदने से पहले मिठाई की अच्छी तरह से जांच करें. खोए की क्वालिटी जरूर जांच ले. अगर खोया मूंह में चिपकता है तो समझ जाएं कि वो नकली है और अगर नहीं चिपकता तो मतलब खोया असली है.

3. हर्बल रंगों से खेलें- होली का त्योहार रंगों के बिना कैसे पूरा हो सकता है लेकिन जिस तरह से आज के वक्त में मिलावटी मिठाई बाजार में बिकती है उसी तरह रंगों में भी मिलावट होती है. इसलिए हर्बल रंगों से ही होली खेलें. होली के लिए आप अपने ही घर में विभिन्न फूल या सब्जियों से रंग बना सकते हैं.

4. भांग पीने से बचें- होली पर भांग का सेवन बहुत आम है लेकिन भांग से सेहत पर गलत प्रभाव पड़ सकता है. होली के दिन भांग की जगह आप आम पन्ना, जलजीरा, लस्सी या नारियल के पानी का भी सेवन कर सकते हैं. बता दें, इससे आपकी सेहत पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.

Tuesday, 19 March 2019

बेहद फायदेमंद है रोजाना एक कप कॉफी की आदत, कैंसर के खतरे को करती है कम

टोक्यो : सुबह का बेहतरीन पेय होने के साथ ही कॉफी प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिससे दवा-प्रतिरोधी कैंसर के इलाज का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. जापान के कनाजावा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल तत्वों की पहचान की है, जो प्रोस्टेट कैंसर की वृद्धि को रोक सकते हैं.

ये दोनों तत्व हाइड्रोकॉर्बन यौगिक हैं, जो प्राकृतिक रूप से अरेबिका कॉफी में पाए जाते हैं. इसके पायलट अध्ययन से पता चलता है कि कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल कोशिकाओं की वृद्धि को रोक सकते हैं, जो आम कैंसर रोधी दवाओं जैसे कबाजिटेक्सेल का प्रतिरोधी है. शोध के प्रमुख लेखक हिरोकी इवामोटो ने कहा, "हमने पाया कि कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल ने चूहों में कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रोक दी, लेकिन इसका संयोजन एक साथ ज्यादा प्रभावी होगा."

इस शोध के लिए दल ने कॉफी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले छह तत्वों का परीक्षण किया. इस शोध को यूरोपियन एसोसिएशन ऑफ यूरोलॉजी कांग्रेस में बार्सिलोना में प्रस्तुत किया गया. शोध के तहत मानव की प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं पर प्रयोगशाला में अध्ययन किया गया.

Sunday, 17 March 2019

कुपोषण पर तेजी से हो रहा नियंत्रण, लेकिन अभी भी देश में 4.66 करोड़ कुपोषित बच्चे

नई दिल्ली: ताजा सर्वेक्षण रपट के अनुसार देश में कुपोषण के कारण कमजोर बच्चों का अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में करीब दो प्रतिशत कम होकर 34.70 प्रतिशत पर आ गया. इससे पहले एक दस वर्ष में इसमें सालाना एक प्रतिशत की दर से कमी दर्ज की गयी थी. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुख्य रूप से सरकारी मुहिम के कारण कुपोषण से बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट में यह कमी आयी है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण के कारण औसत से कम लंबाई और भार वाले बच्चों का अनुपात 2004-05 के 48 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 38.40 प्रतिशत पर आ गया. अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘‘ यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश में कुपोषण से अवरुद्ध शारीरिक-विकास वाले बच्चों का अनुपात 2015-16 के 38.40 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 34.70 प्रतिशत पर आ गया है.

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

वर्ष 2004-05 से 2015-16 की दस वर्ष की अवधि के दौरान छह साल के कुपोषण प्रभावित ऐसे बच्चों के अनुपात में सालाना एक प्रतिशत की दर से 10 प्रतिशत की कमी आयी थी. उसने कहा, ‘‘यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय के नये सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 से 2017-18 के दौरान कुपोषण चार प्रतिशत कम हुआ. यह सालाना दो प्रतिशत की कमी है जो कि बड़ी उपलब्धि है.’’ यह सर्वेक्षण 1.12 लाख परिवारों को लेकर किया गया.

अधिकारी ने कहा, ‘‘अब कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपात में करीब दो प्रतिशत सालाना की कमी की दर को हासिल कर लिया गया है ऐसे में सरकार का ‘पोषण अभियान का लक्ष्य’ छोटा लगने लगा है.’’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की. इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 प्रतिशत से घटाकर 2022 में 25 प्रतिशत पर लाना है.

अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) जैसे अन्य मुख्य स्वास्थ्य सूचकांकों पर भी सुधार देखने को मिला है. उन्होंने कहा कि महिलाओं में खून की कमी 2015-16 के 50-60 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 40 प्रतिशत पर आ गयी है. वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया में कुपोषण के कारण कमजोर शरीर वाले एक तिहाई बच्चे भारत में हैं. भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 4.66 करोड़ है. इसके बाद नाइजीरिया (13.9%) और पाकिस्तान (10.7%) का नाम आता है.