Friday, 8 March 2019

ना दवाई, ना डॉक्टर घर बैठे ऐसे पहचानिए ब्रेस्ट कैंसर के लक्ष्ण

इस अभियान के चलते शहरी औरतों के साथ-साथ खास तौर पर ग्रामीण महिलाओं को जागरुक करने की कोशिश की जा रही है.


आज देशभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है. जिसमें महिला सशक्तिकरण, सामान्य अधिकारों, और महिलायों से जुड़ी हर एक छोटी बड़ी बातों पर चर्चा की जा रही है. ऐसे में महिलाओं के स्वास्थ को लेकर हेल्थवायर ने ‘वी केयर फॉर शी’ नाम से अभियान चलाया. जिसके तहत 14 साल की उम्र से लेकर 60 साल की उम्र की औरतों को ब्रेस्ट कैंसर के लक्षणों से लेकर उनके उपचार के बारे में जागरुक किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में हर वर्ग की महिलायों ने भाग लिया साथ ही महिलायों के लिए काम कर रहे एनजीओे के वाल्‍टीयर्स को भी अमंत्रित किया गया. कार्यक्रम में हाल ही में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री के लिए अॉस्कर जीत कर आई स्नेहा और सुमन को सम्मानित किया गया.


इस अभियान के चलते शहरी औरतों के साथ-साथ खास तौर पर ग्रामीण महिलाओं को जागरुक करने की कोशिश की जा रही है. जिसमें अनुभवी डॉकटरों की मदद से बताया जा रहा है कि कैसे महिलाएं घर में ही ब्रेस्ट कैंसर के लक्षणों का पता लगा सकती हैं. इसके लिए हफ्ते में एक बार औरतों को हफ्ते में एक बार नहाने के समय अपने स्तन को हाथ के छू कर देखना होगा और इन खास बातों पर ध्यान देना होगा.

- स्तन में कहीं गांठ या सूजन तो नहीं है.

- किसी तरह की ऐलर्जी

- छूने पर दर्द का एहसास तो नही है.

- ब्रेस्ट के आकार में कोई असामान्य बदलाव.

- ब्रेस्ट के आस पास की त्वचा का छड़ना

- निपल में से किसी तरह का डिस्चार्ज होना.

अगर इनमें से कोई लक्षण महिलाओं को महसूस होते हैं तो ब्रेस्ट कैंसर का खतरा हो सकता है. ऐसे में जल्द ले जल्द किसी प्रमाणित डॉक्टर की सलह ले. सही समय पर इलाज के जरिए ब्रेस्ट कैंसर से बचा जा सकता है. अपोलो इंद्रप्रस्थ अस्पताल की डॉ रमेश सरीन ने बताया की भारत में महिलायों में बिमारियों का सबसे बड़ा करण है समय पर जांच न होना. खास तौर पर गांव में गांव में महिलाएं अपने स्वास्थ को लेकर खुल कर बात करने में झिझकती हैं. यहां तक की डॉक्टरों के सामने भी खुल कर अपनी तकलीफ नहीं बतातीं. ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जानती होंगी या फिर इसके बारे में अपने परिवार में बात करती होंगी. इस स्थति में महिलाओं को जागरुक करना बहुत जरुरी है.

Tuesday, 5 March 2019

हवा में प्रदूषण हर घंटे ले रहा है 800 लोगों की जान, एक साल में होती हैं इतनी लाख मौतें

जिनेवा : संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण एवं मानवाधिकारों के जानकार ने कहा है कि घर के अंदर और बाहर होने वाले वायु प्रदूषण के कारण हर साल करीब 70 लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है जिनमें छह लाख बच्चे शामिल हैं .हवा में प्रदूषण हर घंटे ले रहा है 800 लोगों की जान, एक साल में होती हैं इतनी लाख मौतें
6 अरब लोग ले रहे प्रदूषित हवा में सांस
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ डेविड बोयड ने कहा कि करीब छह अरब लोग नियमित रूप से इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं कि इससे उनका जीवन और स्वास्थ्य जोखिम में घिरा रहता है. पर्यावरण एवं मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक ने सोमवार को मानवाधिकार परिषद से कहा, “इसके बावजूद इस महामारी पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है क्योंकि ये मौतें अन्य आपदाओं या महामारियों से होने वाली मौतों की तरह नाटकीय नहीं हैं.” 
हर घंटे मरते हैं 800 लोग 
बोयड ने कहा, “हर घंटे 800 लोग मर रहे हैं जिनमें से कई तकलीफ झेलने के कई साल बाद मर रहे हैं, कैंसर से, सांस संबंधी बीमारी से या दिल की बीमारी से जो प्रत्यक्ष तौर पर प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण होती है.” कनाडा की ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बोयड ने कहा कि स्वच्छ हवा सुनिश्चित नहीं कर पाना स्वस्थ पर्यावरण के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि यह वे अधिकार हैं जिन्हें 155 देशों ने कानूनी मान्यता दी है और इसे वैश्विक मान्यता प्राप्त होनी चाहिए. 

Saturday, 2 March 2019

पनीर बनाने के अलावा भी फटे हुए दूध के हैं कई फायदे, इन बीमारियों को रखेगा दूर

पनीर बनाने के अलावा भी फटे हुए दूध के हैं कई फायदे, इन बीमारियों को रखेगा दूर
नई दिल्ली: कई लोग ऐसा मानते हैं कि फटा हुआ दूध खराब होता है या फिर उसका इस्तेमाल केवल पनीर बनाने के लिए किया जा सकता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि फटा हुआ दूध कई अलग मायनों में भी आपके  शरीर के लिए फायदेमंद होता है. जितने फायदे नॉरमल दूध के होते हैं उतने ही फायदे फटे हुए दूध के भी होते हैं. 
चाहे दूध कच्चा हो, उबला हुआ या फटा हुआ, उसमें प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है लेकिन दूध के फटने पर उसमें खटास आने के कारण उसका टेस्ट अच्छा नहीं लगता और दूध फट जाना एक बहुत ही सामान्य बात है. लेकिन फटे हुए दूध का इस्तेमाल कर आप  कई फायदे पा सकते हैं. तो चलिए आपको बताते हैं कि फटे हुए दूध के क्या फायदे हैं. 
प्रतिरक्षक तंत्र करे मजबूत
फटे हुए दूध के पानी में प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक होती है. यह पानी आपके लिए काफी लाभदायक है. जैसे- इस पानी से मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है. इससे इम्यून पॉवर विकसित होता है. इस पानी में रोगों से लड़ने की भी क्षमता होती है, और इससे ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल रहते है. इसके पानी से शरीर पर किसी भी तरह का कोई बुरा प्रभाव नही पड़ता है.     
कॉलेस्ट्रोल को करे कंट्रोल
कई रिसर्च में ये सामने आया है कि नियमित तौर पर फटे हुए दूध का सेवन करने से कॉलेस्ट्रोल का स्तर नियंत्रित रहता है. आपको बता दें, अगर कॉलेस्ट्रोल नियंत्रण में रहता है तो हार्ट अटैक और स्ट्रॉक आने की सम्भावना कम हो जाती है. 
आटे को बनाए नरम
आप इस पानी का प्रयोग आटे को गूंदने के लिए भी कर सकते हैं, जिससे बनने वाली रोटियां बहुत नरम व मुलायम हो जाती हैं, तथा इसका स्वाद भी बढ़ जाता है. इसके साथ ही आपको इससे भरपूर प्रोटीन भी मिलेगा. आपको बता दें इस पानी को थेपला या आटे मे डालकर कई प्रकार के व्यंजन बनाने के लिए भी काम मे लिया जाता है. दूध रक्तसंचार को दुरुस्त रखता है, जिससे त्वचा की कोशिकाएं स्वस्थ रहती हैं. 
चेहरे के लिए भी उपयोगी
आप इस फटे हुए दूध को बेसन, हल्दी और चंदन में मिलाकर अपने चेहरे पर भी लगा सकते हैं. ये चेहरे को चमकदार बनाने में मदद करता है और त्वचा को भी कोमल बनाता है.
अंडे में मिला कर करें सेवन
फटे दूध के थक्कों को आप अंडे में मिक्स करके भी खा सकते हैं. इससे अंडा बहुत ही स्वादिष्ट लगता है. उबले अंडे को इसमें मिला कर खाने से ये ज्यादा टेस्टी लगता है. इसके सेवन से आपके शरीर को प्रोटीन और कैल्शियम की मात्रा भी ज्यादा मिलती है. 

Thursday, 21 February 2019

अगर आप हैं दिल के रोगों से परेशान तो मत होइए दुखी, वैज्ञानिकों ने खोजा ये तरीका

वैज्ञानिकों ने ऐसे पेसमेकर विकसित किये हैं जो दिल की धड़कनों की ऊर्जा से संचालित हो सकते हैं.
अगर आप हैं दिल के रोगों से परेशान तो मत होइए दुखी, वैज्ञानिकों ने खोजा ये तरीका

बीजिंग: वैज्ञानिकों ने ऐसे पेसमेकर विकसित किये हैं जो दिल की धड़कनों की ऊर्जा से संचालित हो सकते हैं. सूअरों में इस यंत्र का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है. शोधकर्ताओं ने कहा कि जर्नल एसीएस नैनो में प्रकाशित यह अध्ययन एक स्व-संचालित कार्डियक पेसमेकर बनाने की दिशा में एक कदम है. ये पेसमेकर प्रत्यारोपित भी हो सकते है और इन्होंने आधुनिक चिकित्सा को बदल दिया है, जिससे हृदय की धड़कन को नियंत्रित करके कई लोगों की जान बचाई जा सकती है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि हालांकि, इसमें एक भारी कमी यह है कि उनकी बैटरी केवल पांच से 12 साल तक चलती है. चीन में सेंकेंड मिलिट्री मेडिकल यूनिवर्सिटी और शंघाई जिओ टोंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस समस्या पर काबू पाने पर काम किया. एक पारंपरिक पेसमेकर को हंसली (कॉलरबोन) के पास की त्वचा के नीचे प्रत्यारोपित किया जाता है.
इसकी बैटरी और विद्युत-तंत्र विद्युत संकेत उत्पन्न करते हैं जो प्रत्यारोपित इलेक्ट्रोड के माध्यम से हृदय तक पहुंचाए जाते हैं. 










.(प्रतीकात्मक तस्वीर)





Wednesday, 13 February 2019

वजन बढ़ने पर भी महसूस हो रही है कमजोरी, तो समझ लीजिए आपको घेरे है ये बीमारी

चिकित्सक ने कहा कि मोटापे का मुकाबला करने के लिए वजन कम करना और आदर्श वजन को बनाए रखना नुकसान कम करने की दिशा में सही कदम हैं.

नई दिल्ली : चिकित्सकों का कहना है कि टाइप-2 डायबिटीज का खतरा शरीर के बढ़ते वजन के साथ बढ़ता जाता है. उनका कहना है कि वजन बढ़ने से अगर कमजोरी हो तो यह एक बीमारी है और अगर वजन कम होने से ताकत मिले तो यह बीमारी से उबरना है. चिकित्सक ने कहा कि मोटापे का मुकाबला करने के लिए वजन कम करना और आदर्श वजन को बनाए रखना नुकसान कम करने की दिशा में सही कदम हैं.

उन्होंने कहा कि मोटे लोगों में सामान्य वजन वाले लोगों की तुलना में इस हालत को प्राप्त करने की संभावना तीन से सात गुना अधिक होती है लेकिन छह माह के दौरान वजन में पांच से 10 प्रतिशत तक की कमी से मधुमेह व मोटापे से संबंधित अन्य बीमारियों की शुरुआत में देरी की जा सकती है.

हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष, डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "जब हमारा वजन बढ़ता है, तो हमें अधिक ताकत हासिल करनी चाहिए और जब हम अपना वजन कम करते हैं, तो हमें ताकत कम करनी चाहिए. यह एक मौलिक चिकित्सा सिद्धांत है. अगर हम वजन हासिल करते हैं और कमजोर महसूस करते हैं तो यह एक बीमारी है और जब हम अपना वजन कम करते हैं और ताकत हासिल करते हैं, तो हम बीमारी से उबर जाते हैं."

उन्होंने कहा, "20 वर्ष की आयु के बाद पांच किलोग्राम से अधिक वजन नहीं बढ़ना चाहिए. उसके बाद वजन बढ़ना केवल वसा के संचय के कारण होगा, जो इंसुलिन प्रतिरोध पैदा करता है. इंसुलिन प्रतिरोध भोजन को ऊर्जा में बदलने की अनुमति नहीं देता है. इंसुलिन प्रतिरोध की स्थिति में, आप जो भी खाते हैं, वह वसा में परिवर्तित हो जाता है. चूंकि यह ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होता है इसलिए आपको कमजोरी महसूस होती है."


डॉ. अग्रवाल ने कहा, "जब आप दवाओं या चहलकदमी द्वारा इंसुलिन प्रतिरोध को कम करते हैं तब मैटाबोलिज्म सामान्य हो जाता है और आप जो भी खाते हैं वह ऊर्जा में परिवर्तित होता जाता है और आप ताकत हासिल करना शुरू कर देते हैं."

वहीं सीनियर कंसल्टेंट डायबेटोलॉजिस्ट डॉ. अनूप मिश्रा ने कहा, "एक आदर्श वजन हासिल करना महत्वपूर्ण नहीं है. मोटापे में मधुमेह की शुरुआत को रोकने के लिए वजन कम करना चिकित्सा उद्देश्य है. कुछ भी वजन कम करना बिल्कुल वजन कम न होने से बेहतर है. यहां तक कि एक किलोग्राम वजन घटाना भी एक अच्छी बात है."

उन्होंने कहा, " मिठास वाले पेय से कैलोरी में कमी लाने पर (प्रतिदिन केवल एक सविर्ंग लेकर) 18 महीनों में लगभग दो-डेढ़ पाउंड वजन कम किया जा सकता सकता है. ठोस आहार के सेवन से शरीर सेल्फ-रेगुलेट कर सकता है. हालांकि हम जो पीते हैं, उस पर यह लागू नहीं होता है. शरीर लिक्विड कैलोरी को समायोजित नहीं करता है इसलिए समय के साथ इससे वजन बढ़ने लगता है."

चिकित्सकों ने कुछ सुझाव :

* जटिल कार्बोहाइड्रेट का सेवन कम ही करें क्योंकि वे रक्त शर्करा के स्तर और इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ाते हैं. इंसुलिन प्रतिरोध वाले लोगों में, इस वृद्धि से आगे वजन बढ़ सकता है. नियमित अंतराल पर अपने रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी करें.

* सप्ताह में पांच बार हर दिन लगभग 30 से 45 मिनट की शारीरिक गतिविधि करने का लक्ष्य रखें.

* किसी भी रूप में रिफाइंड चीनी का उपभोग न करें क्योंकि यह रक्त प्रवाह में अधिक आसानी से अवशोषित हो सकता है और आगे जटिलताओं का कारण बन सकता है.

* ध्यान और योग जैसी गतिविधियों के माध्यम से तनाव कम करें.

क्या आप जानते हैं, इंसान के पेट में कितने हजार जीवाणुओं की अनजान प्रजातियां पाई जाती हैं

अनुसंधानकर्ताओं ने दुनिया भर में व्यक्तियों से मिले नमूनों के विश्लेषण के लिए गणन विधियों का इस्तेमाल किया.

लंदन: अनुसंधानकर्ताओं ने मानव उदर में दो हजार अनजान प्रजातियों का पता चलाया.  इससे मानव स्वास्थ्य को बेहतर ढंग से समझने और उदर रोगों के निदान एवं उपचार में भी मदद मिल सकती है. यूरोपियन मोलेक्यूलर बायोलोजी लेबोरेटरी और वेलकम सैंगर इंस्टीट्यूट के अनुसंधानकर्ताओं ने जीवाणुओं की जिन प्रजातियों की खोज की है उन्हें अभी तक प्रयोगशाला में विकसित नहीं किया गया है. अनुसंधानकर्ताओं ने दुनिया भर में व्यक्तियों से मिले नमूनों के विश्लेषण के लिए गणन विधियों का इस्तेमाल किया.

विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित अध्ययन के नतीजे दिखाते हैं कि अनुसंधानकर्ता उत्तर अमेरिकी और यूरोपीय समुदायों में आम तौर पर पाए जाने वाले माइक्रोबायोम्स से मिलते जुलते माइक्रोब की एक समग्र सूची बनाने के करीब हैं, लेकिन दुनिया के दूसरे क्षेत्रों से आकंड़े उल्लेखनीय रूप से गायब हैं.

मानव उदर में ‘माइक्रोब’ की ढेर सारी प्रजातियां रहती हैं और सामूहिक रूप से उन्हें ‘माइक्रोबायोटा’ के तौर पर जाना जाता है. इस क्षेत्र में गहन अध्ययन के बावजूद अनुसंधानकर्ता अब भी माइक्रोब की एक एक प्रजाति को पहचानने और यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि मानव स्वास्थ्य में उनकी क्या भूमिका है.


मानव उदर से बाहर नहीं टिक पाने से इस दिशा में ज्यादा दिक्कत हुई है. यूरोपियन मोलेक्यूलर बायोलोजी लेबोरेटरी के रॉब फिन ने बताया, ‘‘हम देख रहे हैं कि यूरोपीय और उत्तर अमेरिकी आबादियों में ढेर सारी प्रजातियां उभर कर आ रही हैं. ’’

वेलकम सैंगर इंस्टीट्यूट के ग्रुप लीडर ट्रेवर लॉली ने बताया, ‘‘इस तरह के अनुसंधान हमें मानव उदर का तथाकथित ब्ल्यूप्रिंट तैयार करने में मदद कर रहे हें जो भविष्य में मानव स्वास्थ्य और रोग को बेहतर ढंग से समझने में और यहां तक की उदर रोगों के निदान और उपचार में मदद कर सकते हैं.’’

Tuesday, 12 February 2019

2 साल का बच्चा बना सबसे कम उम्र का अंगदाता, बचाईं 6 जिंदगियां

मुंबईः देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में दो साल के बच्चे ने 6 ज़िंदगिया बचाई हैं, इसके साथ ये बच्चा सबसे कम उम्र का अंगदाता भी बन गया है. दो साल के बच्चे के ब्रेन डेड होने के बाद उसके अंगों को दान कर घातक बीमारी से जूझ रहे 6  मरीजों को जीवनदान दिया गया है. बच्चे को इलाज के लिए मुंबई के बॉम्बे अस्पताल में भर्ती कराया गया था. रविवार को डॉक्टरों ने बच्चे को ब्रेन डेड घोषित कर दिया, जिसके बाद परिवार ने अंग दान करने का फैसला लिया. बच्चे का हार्ट, किडनी, लिवर और आंखें दान कर दी गईं है.

ADVERTISING



बताया जा रहा है की मासूम को 4 फरवरी को बॉम्बे अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती किया गया था. जहां इलाज के दौरान रविवार को उसकी स्थिति और भी खराब हो गई और डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया. अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक बच्चे को ब्रेनस्टेम ट्यूमर था. ब्रेन डेड की खबर सुनते ही अभिभावक का कलेजा दर्द से फट गया, लेकिन शोक और दु:ख की इस घड़ी में भी वे मानवता नहीं भूले और बच्चे का अंगदान करके दूसरों की जिंदगी बचाने का फैसला लिया. उस बच्ची के माता पिता से बात करने के बाद यह मालूम पड़ा की वे पुणे के रहने वाले है और बच्ची के इलाज के लिए खास मुंबई आये हुए थे.   


बॉम्बे अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार, बच्चे का हार्ट चेन्नै स्थित अपोलो अस्पताल में भेजा गया है. एक किडनी लीलावती, जबकि दूसरी ग्लोबल अस्पताल को भेजी गई है. वहीं लिवर ठाणे स्थित ज्यूपिटर अस्पताल को दिया गया है. इसके अलावा बच्चे की आंख अंधेरी के एक आई बैंक को दी गई है. बॉम्बे अस्पताल के जनरल फिजिशियन गौतम भंसाली और वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल शर्मा ने कहा कि बेहद कम उम्र में बच्चे को खोने के बाद भी अभिभावक दूसरों कि जिंदगी बचाने के बारे में सोचे यह बहुत बड़ी बात है.