Monday, 26 November 2018

MRI स्कैन से लगाया जाएगा डिमेंशिया का पता

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में डिमेंशिया का अनुमान लगाने के लिए मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) का इस्तेमाल किया.

लॉस एंजिलिसः मस्तिष्क के एमआरआई स्कैन से पता लगाया जा सकेगा कि व्यक्ति को अगले तीन वर्ष में डिमेंशिया होने की आशंका तो नहीं है. इसका मतलब है कि विकार के लक्षण नजर आने से पहले ही इसके जोखिम का अनुमान लगाया जा सकता है. अमेरिका में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में डिमेंशिया का अनुमान लगाने के लिए मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) का इस्तेमाल किया. यह अनुमान 89 फीसदी सटीक रहा.

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डिमेंशिया के जोखिम
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर सायरस ए राजी ने कहा, ‘‘वर्तमान में यह कहना मुश्किल है कि सोचने समझने की सामान्य क्षमता या कम क्षमता वाले बुजुर्ग व्यक्ति को यह विकार हो सकता है या नहीं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ हमने बताया कि केवल एक एमआरआई स्कैन से 2.6 वर्ष पहले ही डिमेंशिया के जोखिम का पता लगाया जा सकता है. इससे चिकित्सक समयपूर्व अपने मरीजों को सलाह दे सकेंगे और उनकी देखरेख कर सकेंगे.’’

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रहन-सहन संबंधी बंदोबस्त
शोधकर्ता कहते हैं कि अल्जाइमर रोग को रोकने या टालने के लिए अभी भी कोई दवा नहीं है लेकिन डिमेंशिया के उच्च जोखिम वाले लोगों की पहचान करना फिर भी लाभकारी साबित हो सकता है. इससे लोग सेहतमंद रहने के दौरान ही आगामी खतरे को भांपते हुए अपने आर्थिक और रहन-सहन संबंधी बंदोबस्त कर सकते हैं. (इनपुटः भाषा)

रोजाना एक कप आइसक्रीम खाने से शरीर को मिलते हैं कई फायदे

अगर आपको भी आइसक्रीम खाना अच्छा लगता है और यह आपकी आदत बन चुकी है तो यह खबर आपके लिए है. अभी तक आपने यही सुना होगा कि आइसक्रीम खाना सेहत के लिए फायदेमंद नहीं रहता.

नई दिल्ली : अगर आपको भी आइसक्रीम खाना अच्छा लगता है और यह आपकी आदत बन चुकी है तो यह खबर आपके लिए है. अभी तक आपने यही सुना होगा कि आइसक्रीम खाना सेहत के लिए फायदेमंद नहीं रहता. लेकिन यह कुछ मामले में आपकी सेहत के लिए अच्छी भी रहती है. दरअसल अलग-अलग फ्लेवर में आने वाली आइसक्रीम आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद रहती है. इसका लजीज स्वाद आपको बरबस अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है. आइसक्रीम एक डेयरी प्रोडक्ट है, इसलिए इसमें कई पोषक तत्व भी मौजूद रहते हैं. इनके सेवन से आपका शरीर स्वस्थ बनता है. इसमें विटामिन और प्रोटीन भी भरपूर मात्रा मौजूद होता है. आगे पढ़िए आइसक्रीम के सेवन से होने वाले फायदों के बारे में.

हड्डियां को मजबूती दें
डेयरी प्रोडक्ट में ज्यादा मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है. कैल्शियम के सेवन से हड्डियां मजबूत होती हैं. शरीर को थकान न हो इसके लिए कैल्शियम की जरूरत रहती है. शरीर में मौजूद 99 प्रतिशत कैल्शियम हड्डियों में ही पाया जाता है. ऐसे में डेयरी प्रोडक्ट का सेवन करने से आपके शरीर में कैल्शियम की प्रचुर मात्रा बनी रहती है. रोजाना दूध से बनी आइस्क्रीम खाने से ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियां पतली और कमजोर होने की बीमारी) का खतरा कम होहोता है.

स्किन के लिए फायदेमंद
दूध से बनी आइसक्रीम में प्रोटीन का भी अच्छा सोर्स होता है. प्रोटीन शरीर के अलग-अलग हिस्सों जैसे हड्डियां, मांपेशियां, खून और त्वचा के लिए फायदेमंद रहता है. प्रोटीन खाने से ऊतक और मांसपेशियां मजबूत होती हैं. शरीर के कुछ हिस्से जैसे नाखून और बाल भी प्रोटीन से ही बने होते हैं. आइसक्रीम खाने से शरीर को प्रोटीन मिलता है.

रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़े
आइसक्रीम में विटामिन ए, बी-2 और बी-12 पाया जाता है. विटामिन ए आपकी स्किन, हड्डियों और इम्यूनिटी सिस्टम की क्षमता को बढ़ाता है. इसके अलावा इससे आंखों की रोशनी भी बेहतर होती है. विटामिन बी-2 और बी-12 मेटाबॉलिज्म को संतुलित रखता है और बी-12 वजन घटाने में सहायक होता है. अगर आपको दूध पीने में दिक्कत होती है तो आइसक्रीम खाकर विटामिन की कमी को पूरा कर सकते हैं.

आइसक्रीम के नुकसान भी
ऐसा नहीं आइसक्रीम का सेवन आपको केवल फायदा ही देता है, इसके सेवन से शरीर को कई तरह से नुकसान भी पहुंचता है. आइसक्रीम में शुगर कंटेंट ज्यादा होता है. ऐसे में यदि आप इसे अधिक मात्रा में खाते हैं तो मोटापे का खतरा रहता है. इसके अलावा बटर और चॉकलेट से बनी आइस्क्रीम में कैलोरी भी ज्यादा होती है, जो कि शरीर के लिए नुकसानदेह होती है. ज्यादा आइस्क्रीम खाने से सिरदर्द, फूड प्वाइजनिंग जैसी समस्या भी हो सकती है. ध्यान रहे आइस्क्रीम खाने से पहले उसकी गुणवत्ता की जांच अवश्य कर लें.

Sunday, 25 November 2018

तम्बाकू पैकेजिंग पर नकारात्मक संदेश धूम्रपान छोड़ने में कर सकते हैं मदद

विशेषज्ञों का मानना है कि तम्बाकू और इससे जुड़े उत्पाद के इस्तेमाल को बंद करने के प्रति जागरुकता लाने के लिए अनेक प्रयासों के साथ ही इसकी पैकेजिंग पर नकारात्मक संदेश लिखने से लोगों को इसे छोड़ने में मदद मिलती है.

टोरंटो : विशेषज्ञों का मानना है कि तम्बाकू और इससे जुड़े उत्पाद के इस्तेमाल को बंद करने के प्रति जागरुकता लाने के लिए अनेक प्रयासों के साथ ही इसकी पैकेजिंग पर नकारात्मक संदेश लिखने से लोगों को इसे छोड़ने में मदद मिलती है. तम्बाकू पैकेजिंग इस तरह की जाती है कि जिससे समाज को धूम्रपान को ठुकराने, आत्म-चेतना की भावनाओं को जगाने और धूम्रपान करने वालों को उससे पीछा छुड़ाने में मदद मिल पाए.

'जर्नल ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स' में प्रकाशित एक अध्ययन में यह दावा किया गया है. कनाडा की 'वेस्टर्न यूनिवर्सिटी' की जेनिफर जेफरी ने कहा कि तम्बाकू का इस्तेमाल बंद करने के लिए कार्यस्थल और सामाजिक परिदृश्य में प्रतिबंध जैसी रणनीतियों को धूम्रपान को हतोत्साहित करने तथा सामाजिक दबाव बनाने के साधन के रूप में उपयोग किया जाता है.

जेफरी ने कहा, 'हमारे शुरुआती शोध से पता चलता है कि तम्बाकू पैकेजिंग इसी तरह दबाव बनाने का एक और साधन हो सकता है, विशेषकर धूम्रपान करने वाले उन लोगों के लिए जो पहले ही धूम्रपान को एक कलंक समझते हैं.'

93 प्रतिशत भारतीयों को इन 3 कारणों से नहीं आती अच्छी नींद

अगर आप मानसिक तनाव, दबी हुई इच्छाएं और मन में तीव्र कड़वाहट लिए हुए बिस्तर पर लेटे हैं तो आप अनिद्रा का शिकार हो सकते हैं. हाई ब्लड प्रेशर, कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर, डायबिटीज और अन्य बीमारियों से भी अनिद्रा का सीधा संबंध है.

नई दिल्ली : अगर आप मानसिक तनाव, दबी हुई इच्छाएं और मन में तीव्र कड़वाहट लिए हुए बिस्तर पर लेटे हैं तो आप अनिद्रा का शिकार हो सकते हैं. हाई ब्लड प्रेशर, कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर, डायबिटीज और अन्य बीमारियों से भी अनिद्रा का सीधा संबंध है. हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा, 'आयुर्वेद में नींद का वर्णन वात और पित्त दोष के बढ़ने के रूप में मिलता है. इसका सबसे प्रमुख कारण है मानसिक तनाव, दबी हुई इच्छाएं और मन में तीव्र कड़वाहट.'

अनिद्रा के कारणों में कब्ज और अपच की भी समस्या
उन्होंने कहा, 'इसके अलावा अनिद्रा के अन्य कारणों में कब्ज, अपच, चाय, कॉफी और शराब का अधिक सेवन तथा पर्यावरण में परिवर्तन, यानी अधिक सर्दी, गर्मी या मौसम में बदलाव. ज्यादातर मामलों में ये सिर्फ प्रभाव होते हैं न कि अनिद्रा के कारण. अनिद्रा तीन प्रकार तीव्र, क्षणिक और निरंतर चलने वाली होती है.' अनिद्रा से तात्पर्य है सोने में कठिनाई. इसका एक रूप है, स्लीप-मेंटीनेंस इन्सोम्निया, यानी सोये रहने में कठिनाई, या बहुत जल्दी जाग जाना और दोबारा सोने में मुश्किल.

पर्याप्त नींद नहीं मिलने पर बढ़ जाती है चिंता
पर्याप्त नींद नहीं मिलने पर चिंता बढ़ जाती है, जिससे नींद में हस्तक्षेप होता है और यह दुष्चक्र चलता रहता है. हाई ब्लड प्रेशर, कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर, डायबिटीज व अन्य बीमारियों से भी अनिद्रा का सीधा संबंध है. एक हालिया शोध में पता चला है कि लगभग 93 प्रतिशत भारतीय अच्छी नींद से वंचित हैं. इसके कारक जीवनशैली से जुड़ी आदतों से लेकर स्वास्थ्य की कुछ स्थितियों तक हैं. अनिद्रा को आमतौर पर एक संकेत व एक लक्षण दोनों रूपों में देखा जाता है, जिसके साथ नींद, चिकित्सा और मनोचिकित्सा विकार सामने आ सकते हैं. इस तरह के व्यक्ति को नींद आने में लगातार कठिनाई होती है.

कैफीनयुक्त पेय पदार्थ लेने से बचें
डॉ. अग्रवाल ने अनिद्रा से निपटने हेतु सुझाव देते हुए कहा, 'अगर आप कैफीन के प्रति संवेदनशील हैं तो एक या दो बजे के बाद कैफीनयुक्त पेय पदार्थ लेने से बचें. अल्कोहल की मात्रा सीमित करें और सोने से दो घंटे पहले अल्कोहल न लें. टहलने, जॉगिंग करने या तैराकी करने जैसे नियमित एरोबिक व्यायाम में हिस्सा लें. इसके बाद आपको गहरी नींद आ सकती है और रात के दौरान नींद टूटती भी नहीं है. जितनी देर आप सो नहीं पाते हैं उन मिनटों का हिसाब रखने से दोबारा सोने में परेशानी हो सकती है. नींद उचट जाए तो घड़ी को अपनी निगाह से दूर कर दें.'

उन्होंने कहा, 'एक या दो सप्ताह के लिए अपने नींद के पैटर्न को ट्रैक करें. अगर आपको लगता है कि आप सोने के समय में बिस्तर पर 80 प्रतिशत से कम समय बिना सोये बिता रहे हैं, तो इसका अर्थ है कि आप बिस्तर पर बहुत अधिक समय बिता रहे हैं. बाद में बिस्तर पर जाने की कोशिश करें और दिन के दौरान झपकी न लें. यदि आप शाम को जल्दी सोने लगें, तो रोशनी को तीव्र कर दें.'

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि अगर आपका दिमाग सोच-विचार में लगा है या आपकी मांसपेशियां तनाव में हैं, तो आपको सोने में मुश्किल हो सकती है. दिमाग को शांत करने और मांसपेशियों को आराम देने के लिए, ध्यान करना, गहरी सांस लेना या मांसपेशियों को आराम देने से लाभ हो सकता है.

वायु प्रदूषण से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा, रिसर्च से खुलासा

भीड़-भाड़ भरी सड़कों के पास काम करने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा ज्यादा होता है. एक रिसर्च में यह बात सामने आई है. शोधकर्ताओं ने बताया है कि ट्रैफिक के कारण होने वाले वायु-प्रदूषण से महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर का खतरा पैदा हो सकता है.

लंदन : भीड़-भाड़ भरी सड़कों के पास काम करने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा ज्यादा होता है. एक रिसर्च में यह बात सामने आई है. शोधकर्ताओं ने बताया है कि ट्रैफिक के कारण होने वाले वायु-प्रदूषण से महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर का खतरा पैदा हो सकता है. स्कॉटलैंड स्थित स्टर्लिग यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों की टीम कैंसर की मरीज एक महिला के संबंध में किए गए अध्ययन-विश्लेषण के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि ट्रैफिक से दूषित वायु ब्रेस्ट कैंसर का का कारण बन सकती है.

इस तरह 7 अन्य मामले दर्ज किए गए
महिला उत्तरी अमेरिका में व्यस्ततम व्यावसायिक सीमा पारगमन पर बतौर सीमा गार्ड के रूप में कार्य करती थी. वह 20 साल तक वहां सीमा गार्ड रहीं. इसी दौरान वह ब्रेस्ट कैंसर से ग्रस्त हुई थीं. यह महिला उन पांच अन्य सीमा गार्डों में एक है, जिन्हें 30 महीने के भीतर ब्रेस्ट कैंसर हुआ. ये महिलाएं पारगमन के समीप कार्य करती थीं. इसके अलावा इस तरह के सात अन्य मामले दर्ज किए गए.

माइकल गिल्बर्टसन के मुताबिक, निष्कर्षों में ब्रेस्ट कैंसर और ब्रेस्ट कैंसरकारी तत्व युक्त यातायात संबंधी वायु प्रदूषण के अत्यधिक संपर्क में आने के बीच एक अनौपचारिक संबंध दर्शाया गया है. रात के समय कार्य करने और कैंसर के बीच एक संबंध की भी पहचान की गई है. गिल्बर्टसन ने कहा, 'यह नया शोध आम आबादी में स्तन कैंसर के बढ़ते मामलों में यातायात संबंधी वायु प्रदूषण के योगदान की भूमिका के बारे में संकेत देता है.'

न्यू सॉल्यूशन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि 10 हजार मौकों में से एक मामले में यह एक संयोग था क्योंकि यह सभी बहुत हद तक समान थे और आपस में एक दूसरे के करीब थे.

Saturday, 24 November 2018

जीन थेरेपी से थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों का इलाज संभव

मरीजों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने और थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के जन्म को रोकने के लिए नेशनल थैलेसीमिया वेलफेयर सोसाइटी द्वारा डिपार्टमेन्टपीडिएट्रिक्स ने एलएचएमसी के सहयोग से राष्ट्रीय राजधानी में दो दिवसीय जागरूकता सम्मेलन किया.

नई दिल्ली : देश में 5 करोड़ से ज्यादा लोग थैलेसीमिया से पीड़ित हैं. प्रत्येक वर्ष 10 से 12 हजार बच्चे थैलेसीमिया के साथ जन्म लेते हैं. हालांकि इन भयावह आंकड़ों के बावजूद इस गंभीर बीमारी को लेकर लोगों के बीच जागरूकता की कमी है, लेकिन जीन थेरेपी इस रोग के लिए कारगर साबित हो सकती है. मरीजों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने और थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के जन्म को रोकने के लिए नेशनल थैलेसीमिया वेलफेयर सोसाइटी द्वारा डिपार्टमेन्टपीडिएट्रिक्स ने एलएचएमसी के सहयोग से राष्ट्रीय राजधानी में दो दिवसीय जागरूकता सम्मेलन किया, जिसमें 200 प्रख्यात डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और 800 मरीजों/अभिभावकों ने हिस्सा लिया.

ल्युकाइल पैकर्ड चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के हीमेटो-ओंकोलोजिस्ट डॉ. संदीप सोनी ने जीन थेरेपी के बारे में बताया, "जीन थेरेपी कोशिकाओं में जेनेटिक मटेरियल को कुछ इस तरह शामिल करती है कि असामान्य जीन की प्रतिपूर्ति हो सके और कोशिका में जरूरी प्रोटीन बन सके. उस कोशिका में सीधे एक जीन डाल दिया जाता है, जो काम नहीं करती है. एक कैरियर या वेक्टर इन जीन्स की डिलीवरी के लिए आनुवंशिक रूप से इंजीनियर्ड किया जाता है. वायरस में इस तरह बदलाव किए जाते हैं कि वे बीमारी का कारण न बन सकें."

उन्होंने कहा, "लेंटीवायरस में इस्तेमाल होने वाला वायरस कोशिका में बीटा-ग्लेबिन जीन शामिल करने में सक्षम होता है. यह वायरस कोशिका में डीएनए को इन्जेक्ट कर देता है. जीन शेष डीएनए के साथ जुड़कर कोशिका के क्रोमोजोम/ गुणसूत्र का हिस्सा बन जाता है. जब ऐसा बोन मैरो स्टेम सेल में होता है तो स्वस्थ बीटा ग्लोबिन जीन आने वाली पीढ़ियों में स्थानान्तरित होने लगता है. इस स्टेम सेल के परिणामस्वरूप शरीर में सामान्य हीमोग्लोबिन बनने लगता है."

डॉ. संदीप सोनी ने कहा, "पहली सफल जीन थेरेपी जून 2007 में फ्रांस में 18 साल के मरीज में की गई और उसे 2008 के बाद से रक्ताधान/ खून चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी है. इसके बाद यूएसए और यूरोप में कई मरीजों का इलाज जीन थेरेपी से किया जा चुका है."

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ब्लड सेल की सीनियर नेशनल कन्सलटेन्ट एवं को-ऑर्डिनेटर विनीता श्रीवास्तव ने थैलेसीमिया एवं सिकल सेल रोग की रोकथाम एवं प्रबंधन के लिए किए गए प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा, "रोकथाम इलाज से बेहतर है. थैलेसीमिया के लिए भी यही वाक्य लागू होता है." सम्मेलन के दैरान थैलेसीमिया प्रबंधन, रक्ताधान, जीन थेरेपी के आधुनिक उपकरणों, राष्ट्रीय थेलेसीमिया नीति, थैलेसीमिया के मरीजों के लिए जीवन की गुणवत्ता आदि विषयों पर चर्चा की गई.

सर्दियों में रोज खाएं बस 100 ग्राम मूंगफली, असर देख हैरान हो जाएंगे आप

मूंगफली आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद है. मूंगफली में वे सारे तत्व पाए जाते हैं जो बादाम में होते हैं. हकीकत यह है कि सर्दियों में मूंगफली का सेवन बहुत ही गुणकारी रहता है.

नई दिल्ली : मूंगफली आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद है. मूंगफली में वे सारे तत्व पाए जाते हैं जो बादाम में होते हैं. हकीकत यह है कि सर्दियों में मूंगफली का सेवन बहुत ही गुणकारी रहता है. अधिकतर लोग इसे स्वाद के तौर पर खाते हैं. लेकिन आपको यह पता होना चाहिए कि यह आपके शरीर को किस तरह फायदा पहुंचाती है. यकीन मानिए इससे होने वाले फायदे जानकर आप भी चौंक जाएंगे. सेहत के खजाने से भरपूर मूंगफली में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है जो शारीरिक वृद्धि के लिए जरूरी है. मूंगफली में पर्याप्त मात्रा में आयरन, कैल्शियम और जिंक पाया जाता है. इसे खाने से ताकत मिलती है. आगे पढ़िए मूंगफली के सेवन से होने वाले फायदों के बारे में विस्तार से.

कब्ज दूर करें
यदि आपको कब्ज की समस्या रहती है तो हर रोज एक हफ्ते तक 100 ग्राम मूंगफली खाइए. ऐसा करने से मूंगफली में तत्व आपकी पेट से जुड़ी तमाम समस्याओं में राहत देंगे. इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है.

शरीर को ताकत दें
जिस तरह बादाम और अंडे का सेवन शरीर को ताकत देता है, उसी प्रकार मूंगफली खाने से आपके शरीर को ताकत मिलती है. इसके अलावा ये पाचन क्रिया को भी बेहतर रखने में मददगार है. सर्दियों में इसका सेवन करना आपके लिए अच्छा रहेगा.

गर्भवती के लिए फायदेमंद
गर्भवती महिलाओं के लिए मूंगफली खाना बहुत फायदेमंद होता है. इससे गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास बेहतर तरीके से होता है. साथ ही गर्भवती महिला को भी इससे ताकत मिलती है.

त्वचा के लिए फायदेमंद
ओमेगा 6 से भरपूर मूंगफली आपकी त्वचा को भी कोमल और नम बनाए रखता है. कई लोग मूंगफली के पेस्ट का इस्तेमाल फेसपैक के तौर पर भी करते हैं. आप भी मूंगफली पीसकर इस पेस्ट तैयार कर सर्दियों में अपनी रुखी त्वचा से निजात पा सकती हैं.

दिल की बीमारी से दूर रखें
यदि आपके परिवार में कोई दिल का रोगी है तो उनके लिए मूंगफली का सेवन बहुत फायदेमंद रहेगा. मूंगफली खाने वाले व्यक्ति को दिल से जुड़े रोग होने का खतरा बहुत कम होता है. साथ ही मूंगफली के नियमित सेवन से खून की कमी नहीं होती.

एंटी एजिंग
मूंगफली बढ़ती उम्र के लक्षणों को रोकने में भी कारगर है. इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट बढ़ती उम्र के लक्षणों जैसे बारीक रेखाएं और झुर्रियों को बनने से रोकते हैं. मूंगफली का सेवन करने वाले लोगों की उम्र वास्तविक उम्र से कम दिखाई देती है.

हड्डियां मजबूत हो
मूंगफली का प्रतिदिन सेवन करने से आपकी हड्डियां मजबूत होती हैं. इसमें कैल्शियम और विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा होती है. ऐसे में इसके सेवन से हड्डियां मजबूत बनती हैं.