Tuesday, 6 November 2018

प्रदूषण बढ़ने से अस्थमा और कैंसर का खतरा, जहरीली हवा से बचने के उपाय

दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. ऐसे में आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. यदि आप इस समय जहरीली हवा से बचें तो अस्थमा और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों को अपने शरीर में प्रवेश करने से रोक सकते हैं.नई दिल्ली : दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. ऐसे में आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. यदि आप इस समय जहरीली हवा से बचें तो अस्थमा और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों को अपने शरीर में प्रवेश करने से रोक सकते हैं. दिल्ली-एनसीआर की हवा में मौजूद नाइट्रोजन ऑक्साइड से अस्थमा और चेस्ट इंफेक्शन के मरीजों को अपनी चपेट लेने के साथ ही स्वस्थ लोगों को भी अपना शिकार बना रहा है. चिकित्सकों के पास ऐसे लोगों की संख्या बढ रही है जिन्हें प्रदूषण से पहले कोई शिकायत नहीं थी. इन लोगों को पिछले कुछ समय से बलगम की शिकायत के साथ ही बुखार अपनी चपेट में ले रहा है.

डॉक्टरों का कहना है कि हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने से एनओ-टू पार्लिटकल्स खाने की नली के रास्ते शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. ऐसा होने से गले में आमतौर पर खराश और बलगम की शिकायत बनी रहती है. प्रदूषण का बढ़ता स्तर आंख, नाक, गले से होता हुआ फेंफडों, दिल और लिवर तक पहुंचता हुआ हमारी किडनी पर असर डालता है. इसकी जानकारी लंबे समय बाद लगता है. ऐसे में गले में खराश और बलगम की समस्या होने पर डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए. हवा में मौजूद पीएम कण सांस और दिल से संबंधित बीमारियों के साथ कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में ला सकता है.

प्रदूषण का स्वास्थ्य पर असर
हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं उसमें मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड के कारण जल्दी सुस्ती आने लगती है. हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है. इसके अलावा आपको भूलने की बीमारी के अलावा गले-फेंफडें के इंफेक्शन व अस्थमा जैसी समस्या होने का भी खतरा रहता है. हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर इस तरह अपना बचाव करें.

हल्दी, अदरक और तुलसी का रस पिएं
वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. पीके चतुर्वेदी बताते हैं कि वायु प्रदूषण बढ़ने पर एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर हल्दी, अदरक और तुलसी का रस सुबह में लेना चाहिए. एंटीऑक्सीडेंट से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. इसके अलावा इससे शरीर की दूसरी तरह की परेशानियों में भी आराम मिलता है. डॉ. चतुर्वेदी बताते हैं कि एंटीऑक्सीडेंट प्रदूषण की वजह से हमारे शरीर में पहुंचे हानिकारक तत्‍वों को बाहर निकालते हैं. इस मौसम में तुलसी कर सेवन बेहद फायदेमंद रहता है.

शहद और गुड़ का सेवन फायदेमंद
वायु प्रदूषण बढ़ने पर शहद और गुड़ का सेवन भी आपके इम्‍यून सिस्‍टम को मजबूत करता है. हवा में फैल रहे प्रदूषण से बचाने के साथ ही इसका सेवन शरीर को कई प्रकार की  बीमारियों के प्रभाव से बचाता है. लहसुन भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में असरदार रहता है. यह कफ से निजात दिलाने में मददगार होता है.

आहार में विटामिन सी को शामिल करें
अपने आहार में विटामिन सी को ज्यादा से ज्यादा शामिल करना चाहिए. इसके लिए आप संतरा, आंवला, नींबू और अमरूद जैसी विटामिन सी से भरपूर फलों का सेवन करें. आंवला और एलोवेरा जूस भी प्रदूषण के मौसम में आपकी स्किन को फायदा पहुंचाता है.

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सब्जियां और फल धोकर खाएं
सब्जियों और फलों को अच्छी तरह से धोकर भी इस्‍तेमाल करें, क्योंकि वे खुले में प्रदूषित होते हैं. इसके अलावा हमें अपने आसपास पौधे लगाने चाहिए, क्‍योंकि इससे हमें ताजा ऑक्सीजन मिलती है.

चिकित्सकों के अनुसार हवा में प्रदूषण बढ़ने पर सुबह और शाम की लंबी वॉक नहीं करनी चाहिए. आउटडोर पार्टियां करने से बचना चाहिए. अगर आप इंडोर एक्‍सरसाइज करते हैं तो ट्रेडमिल पर व्‍यायाम करने से फिलहाल बचे. अपने घर के आसपास जहां पर भी धूल है, वहां पानी का छिड़काव करें. ज्यादा से ज्यादा कार पूलिंग का सहारा लें. टू-व्हीलर चालकों को मुंह पर मास्‍क लगाकर घर से बाहर निकलना चाहिए. दिल और अस्थमा के मरीजों के अलावा बुजुर्ग और बच्चों को घर से कम से कम बाहर निकलना चाहिए. प्रदूषण का स्‍तर बढ़ने से अस्‍थमा और दिल के रोगियों को हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है.




ZEE जानकारीः किस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश के प्राचीन ज्ञान पर अधिकार जमा लिया है

अमेरिका में आयुर्वेद की मदद से कैंसर के इलाज पर 8 हज़ार 484 शोध किए गए हैं. इतना ही नहीं अमेरिका में करीब 3 लाख लोग आयुर्वेद का इस्तेमाल कर रहे हैं, और आयुर्वेदिक तरीके से ही जीवन जी रहे हैं.

सोने की महिमा तो आपने देख ली, लेकिन आयुर्वेद के बिना धनतेरस का पर्व अधूरा है. क्योंकि भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है. आज आपको ये भी समझना चाहिए कि आयुर्वेद का ज्ञान हमारे भारत की धऱती से पूरी दुनिया में किस तरह फैला . आज हमने एक मशहूर पुस्तक पढ़ी, जिसका नाम है - Ayurveda: The Indian Art of Natural Medicine and Life Extension. इस किताब के Page Number 26 पर कुछ ज़रूरी बातें लिखी हैं .

आज से करीब ढाई हजार वर्ष पहले आयुर्वेद का ज्ञान बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से दुनिया भर में फैला . दुनिया में जहां-जहां भी बौद्ध धर्म फैला वहां लोगों को आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी मिली . और सबसे पहले Central Asia, तिब्बत, श्रीलंका, चीन, जापान और इंडोनेशिया में बौद्ध धर्म के जरिए आयुर्वेद का ज्ञान पहुंचा .आज के दौर में पूरी दुनिया आयुर्वेद को अपनाना चाहती है . अमेरिका में भी आयुर्वेद की लोकप्रियता बहुत बढ़ चुकी है .

2016 में अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग ने एक महत्वपूर्ण फैसला किया था . US department of Health ने भारत के आयुर्वेदिक संस्थानों से हाथ मिलाया था ताकि आयुर्वेदिक तरीके से कैंसर के इलाज की संभावनाएं तलाशी जा सकें . अमेरिका के National Institutes of Health ने अदरक की एक विशेष प्रजाति द्वारा कैंसर के इलाज पर 3 हज़ार 574 रिसर्च पेपर तैयार किए हैं. NIH ने हल्दी से कैंसर के इलाज पर भी 1 हज़ार 161 Research Papers तैयार किए गए हैं. अमेरिका ने अदरक के फायदों पर भी 2 हज़ार 500 Studies की हैं. अमेरिका ने सौंफ के फायदों पर 668 पेपर्स तैयार किए हैं और जीरे के फायदे पर 582 तरह के शोध किए हैं.

अमेरिका में आयुर्वेद की मदद से कैंसर के इलाज पर 8 हज़ार 484 शोध किए गए हैं. इतना ही नहीं अमेरिका में करीब 3 लाख लोग आयुर्वेद का इस्तेमाल कर रहे हैं, और आयुर्वेदिक तरीके से ही जीवन जी रहे हैं.
पूरी दुनिया में आयुर्वेदिक Products और दवाओं से जुड़ा बाज़ार 6 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का है. 2050 तक आयुर्वेद का बाज़ार 5 ट्रिलियन डॉलर्स यानी 365 लाख करोड़ रुपये का हो जाएगा. और आपको य़े जानकर बहुत हैरानी होगी और दुख होगा कि इस वक्त आयुर्वेद का सबसे बड़ा बाज़ार.. भारत नहीं.. बल्कि अमेरिका है. अमेरिका पूरी दुनिया के 41 प्रतिशत आयुर्वेदिक उत्पादों का इस्तेमाल करता है.

इसके बाद यूरोप का नंबर आता है. जो पूरी दुनिया के 20 प्रतिशत आयुर्वेदिक उत्पादों का इस्तेमाल करता है. जड़ी बूटियों पर आधारित दवाओं और Products के निर्यात के मामले में भारत, चीन से भी पीछे है. चीन पूरी दुनिया में 13 प्रतिशत Herbal Products का निर्यात करता है. जबकि आयुर्वेद की जन्म भूमि भारत से सिर्फ 2.5 प्रतिशत Herbal Products ही दुनिया के बाज़ारों में पहुंचते हैं.

आज हमने आयुर्वेद पर दुनिया की कई अहम किताबों का अध्ययन किया है . इस दौरान हमें पता चला कि किस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश के प्राचीन ज्ञान पर अधिकार जमा लिया. भारत के पुराने शोध को आगे बढ़ाकर अंग्रेज़ों ने दुनिया भर में नाम कमाया और हमारे देश के कई ऋषियों और आचार्यों का Credit लूट लिया.

19वीं शताब्दी में Joseph कैरपुए, England के एक Surgeon थे . Medical Science की History में कैरपुए को इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि उन्होंने वर्ष 1815 में England में पहली बार राइनो-plasty की थी .राइनो-plasty, एक तरह की Plastic surgery है जिसकी मदद से नाक को जोड़ा जाता है या फिर उसके आकार में बदलाव किया जाता है. बहुत से लोगों को ये जानकार हैरानी होगी कि कैरपुए ने Plastic Surgery का ये तरीका भारत से सीखा था . हमारे देश की विरासत को नकारने वाले और दुनिया के सारे ज्ञान का श्रेय पश्चिमी देशों को देने वाले बुद्धिजीवी इस पर सवाल उठाएंगे. लेकिन ऐसे लोगों को Sir John Walton, और Stephen Lock की किताब The Oxford Medical Companion को जरूर पढ़ना चाहिए .

इस किताब के Page Number 771 पर लिखा है कि ब्रिटेन के Surgeon Doctor Joseph कैरपुए ने भारत की एक रिपोर्ट पढ़ने के बाद Plastic Surgery पर 20 वर्ष तक Research किया . Research के दौरान हमने एक और किताब पढ़ी.. जिसका नाम है - Plastic Surgery of Head and Neck... इस किताब के Page Number 214 पर लिखा है कि वर्ष 1815 में कैरपुए ने भारत के तरीके से ही नाक की Surgery की थी.

अपने Research के दौरान हमें कई और दिलचस्प जानकारियां मिलीं . Doctor B R Suhas ने अपनी एक किताब में लिखा है कि वर्ष 1782 में टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच... Anglo-मैसूर युद्ध हुआ . इस किताब के मुताबिक टीपू सुल्तान ने कुछ अंग्रेज सिपाहियों को युद्ध बंदी बना लिया. टीपू सुल्तान ने इन सिपाहियों की नाक और एक हाथ कटवा दिए. इसके बाद इन अंग्रेज सिपाहियों ने एक भारतीय सर्जन से मदद ली. इस भारतीय सर्जन ने Surgery करके इन अंग्रेज़ सिपाहियों की नाक को जोड़ दिया.

Surgery के दौरान दो British Surgeons, Thomas Crusoe और James Findley ने इस पूरी प्रक्रिया को बहुत से ध्यान से देखा . इन्होंने पूरी Surgery के चित्र बनाए और पूरी प्रक्रिया को नोट किया .Madras Gazette में भी इस Special Surgery पर एक Article छापा गया था. इसके बाद एक British Surgeon Joseph कैरपुए भारत आए . वो 20 वर्ष तक भारत में ही रहे और उन्होंने Plastic Surgery के बहुत सारे तरीके सीखे वर्ष 1815 में उन्होंने England में पहली बार सफल Plastic Surgery की वैसे भारत के महान आचार्य सु-श्रुत को दुनिया का पहला Surgeon कहा जाता है अपने ग्रंथ सु-श्रुत संहिता में उन्होंने Plastic Surgery का ज़िक्र किया है. Plastic Surgery को उस वक्त शल्य चिकित्सा कहा जाता था . आचार्य सु-श्रुत का जन्म कब हुआ ? इस पर मतभेद है लेकिन ये कह सकते हैं कि करीब 2,500 वर्ष पहले उन्होंने Plastic Surgery की शुरुआत की थी .

पश्चिमी देशों ने हमेशा हमारे देश को सपेरों और जादूगरों का देश कहकर बदनाम करने की कोशिश की . उस दौर में उन्होंने भारत के योगदान को स्वीकार नहीं किया . लेकिन अब पूरी दुनिया हमारे देश की बौद्धिक क्षमता का लोहा मानती है. अब आने वाले वक़्त में विश्व गुरू बनने के लिए हमे अपनी इन प्राचीन शक्तियों को पहचानना होगा और इन्हें पूरा सम्मान देना होगा.

Monday, 5 November 2018

जिंक युक्त चॉकलेट, चाय से जल्दी नहीं आएगा बुढ़ापा

इस अध्ययन में पाया गया कि जिंक एक जैविक अणु को सक्रिय करता है जो ऑक्सिडेटिव तनाव से बचाने में कारगर है.

बर्लिन: जिंक को वाइन, कॉफी, चाय और चॉकलेट जैसी खाने-पीने की चीजों में पाए जाने वाले पदार्थों के साथ लिया जाए तो वह ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस से बचाने में मददगार साबित हो सकता है. एक अध्ययन में ऐसा दावा किया गया है. जर्मनी की एरलान्जन-न्यूरमबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि बुढ़ापे और जीवन प्रत्याशा घटने के पीछे कुछ हद तक ऑक्सिडेटिव तनाव जिम्मेदार होता है.

इस अध्ययन में पाया गया कि जिंक एक जैविक अणु को सक्रिय करता है जो ऑक्सिडेटिव तनाव से बचाने में कारगर है. एरलान्जन-न्यूरमबर्ग यूनिवर्सिटी के इवानोवी बर्माजोव ने कहा, “यह निश्चित तौर पर संभव है कि वाइन, कॉफी, चाय या चॉकलेट भविष्य में जिंक के साथ उपलब्ध हों.”

जिंक एक ऐसा खनिज है जिसकी थोड़ी सी मात्रा की, मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए जरूरत पड़ती है. यह अध्ययन नेचर केमिस्ट्री पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

Diwali 2018:दिवाली के दौरान प्रदूषण से बचने के लिए बरतें ये सावधानियां, डॉक्टर से जानें टिप्स

दिवाली में पटाखों की धूम नहीं हो तो शायद कुछ कमी सी लगती है, लेकिन अगर पटाखें हमारे स्वास्थ्य को नुकसान व पयार्वरण को हानि पहुंचा रहे हैं तो हमें इनके इस्तेमाल के बारे में सही से सोचने की जरूरत है। दिवाली की धूम-धड़ाम के बीच स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से अपने को किस तरह से बचें व पटाखों से किस तरह बुजुर्ग व बीमार लोग अपनी स्वास्थ्य की देखभाल करें।

दिवाली अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आता है, लेकिन दमा, सीओपीडी या एलर्जिक रहाइनिटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों बढ़ जाती है। पटाखों में मौजूद छोटे कण सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिसका असर फेफड़ों पर पड़ता है। इस तरह से पटाखों के धुंए से फेफड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और हालात यहां तक भी पहुंच सकते हैं कि ऑगेर्न फेलियर और मौत तक हो सकती है। ऐसे में धुएं से बचने की कोशिश करें।

पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा या दमा का अटैक आ सकता है। हानिकारक विषाक्त कणों के फेफड़ों में पहुंचने से ऐसा हो सकता है, जिससे व्यक्ति को जान का खतरा भी हो सकता है। ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हों, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए।

पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है। पटाखों में मौजूद लैड सेहत के लिए खतरनाक है, इसके कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है। जब पटाखों से निकलने वाला धुंआ सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रुकावट आने लगती है। दिमाग को पयार्प्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है।

बच्चे और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के शोर व धुएं से बचकर रहना चाहिए। पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा करता है। पटाखों में हानिकर रसायन होते हैं, जिनके कारण बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है और उनके विकास में रुकावट पैदा करता है। पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए।

पटाखे को रंग-बिरंगा बनाने के लिए इनमें रेडियोएक्टिव और जहरीले पदाथोर्ं का इस्तेमाल किया जात है। ये पदार्थ जहां एक ओर हवा को प्रदूषित करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे कैंसर की आशंका भी रहती है।

धुएं से दिवाली के दौरान हवा में पीएम बढ़ जाता है। जब लोग इन प्रदूषकों के संपर्क में आते हैं तो उन्हें आंख, नाक और गले की समस्याएं हो सकती हैं। पटाखों का धुआं, सदीर् जुकाम और एलजीर् का काररण बन सकता है और इस कारण छाती व गले में कन्जेशन भी हो सकता है।

इसके धुएं में मौजूद कॉपर से सांस की समस्याएं, कैडमियम-खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम करता है, जिससे व्यक्ति एनिमिया का शिकार हो सकता है। जिंक की वजह से उल्टी व बुखार व लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है। मैग्निशियम व सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है।

विशेषज्ञों का कहना है कि 1०० डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शहरों के लिए 45 डेसिबल की आवाज अनुकूल है। लेकिन भारत के बड़े शहरों में शोर का स्तर 9० डेसिबल से भी अधिक है। मनुष्य के लिए उचित स्तर 85 डेसिबल तक ही माना गया है। अनचाही आवाज मनुष्य पर मनोवैज्ञानिक असर पैदा करती है।

शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, टिन्नीटस, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है। तनाव और उच्च रक्तचाप सेहत के लिए घातक है, वहीं टिन्नीटस के कारण व्यक्ति की याददाश्त जा सकती है, वडिप्रेशन का शिकार हो सकता है। ज्यादा शोर दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं। शोर में रहने से रक्तचाप पांच से दस गुना बढ़ जाता है और तनाव बढ़ता है। ये सभी कारक उच्च रक्तचाप और कोरोनरी आर्टरी रोगों का कारण बन सकते हैं।

पटाखों व प्रदूषण से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतें?

कोशिश रहे कि पटाखें न जलाएं या कम पटाखे फोड़ें। पटाखों के जलने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं जो दमा के मरीजों के लिए खतरनाक हैं। हवा में मौजूदा धुंआ बच्चों और बुजुगोर्ं के लिए घातक हो सकता है।

प्रदूषित हवा से बचें, क्योंकि यह तनाव और एलजीर् का कारण बन सकती है। एलजीर् से बचने के लिए अपने मुंह को रूमाल या कपड़े से ढक लें। दमा आदि के  मरीज अपना इन्हेलर अपने साथ रखें। अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो तो तुरंत इसका इस्तेमाल करें और इसके बाद डॉक्टर की सलाह लें। त्योहारों के दौरान स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। अगर आपको किसी तरह असहजता महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।

Sunday, 4 November 2018

अब आयुर्वेद से होगा डेंगू का इलाज, दवा चल रहा है क्लिनिकल ट्रायल

   
केंद्रीय आयुष राज्यमंत्री श्रीपद नाइक ने कहा कि डेंगू के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवा पर परीक्षण चल रहा है और हम इसे यथाशीघ्र लेकर आएंगे.

नई दिल्ली: केंद्रीय आयुष राज्यमंत्री श्रीपद नाइक ने रविवार को कहा कि डेंगू के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का ''क्लिनिकल ट्रायल'' प्रगति पर है और इसे इस्तेमाल के लिए यथाशीघ्र उपलब्ध कराया जाएगा. आयुष मंत्रालय के सचिव राजेश कोटेचा ने बताया कि यह दवा अगले कुछ वर्षों में बहुस्तरीय परीक्षणों के बाद तैयार होने की उम्मीद है. नाइक ने दिल्ली में 'आयुर्वेद में उद्यमिता एवं कारोबार विकास' पर राष्ट्रीय सम्मेलन से इतर कहा, ''डेंगू के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवा पर परीक्षण चल रहा है और हम इसे यथाशीघ्र लेकर आएंगे.''

आयुष मंत्रालय ने चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसी प्राचीन पुस्तकों को औषद्यीय ज्ञान का भंडार बताते हुए उनकी उद्यमी महत्ता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि यह अलग-अलग बीमारियों के लिए करीब 20 लाख दवाओं का आधार बन सकती हैं. उन्होंने बताया कि मंत्रालय का उद्देश्य आयुर्वेद का आकार बढ़ाने और साल 2022 तक इसका कारोबार तीन अरब डॉलर से 10 अरब डॉलर तक पहुंचाने का है. उन्होंने आयुर्वेद को डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी मोदी सरकार की पहल से जोड़ने पर जोर दिया.

सम्मेलन में मौजूद केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने बताया कि आयुर्वेद आयुष्मान भारत योजना को देश के लाखों गांवों तक ले जाने का साधन बन सकती है. उन्होंने कहा, ''आयुर्वेद के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आयुष्मान भारत योजना को देश के छह लाख गांवों तक ले जाना संभव है.''

Saturday, 3 November 2018

जानिए तुलसी के 8 चमत्कारी गुण और फायदे, कैंसर के इलाज में भी कारगर

तुलसी की पत्तियां इन्फेक्शन के खिलाफ टी साइटोकिन्स, एनके (नेचर किलर) सेल और टी लिम्फोसाइट्स जैसी इम्यून सेल्स का उत्पादन बढ़ाती हैं

तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं जो कई बीमारियों से लड़ते हैं. इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है.

नई दिल्ली: तुलसी की पूजा घर-घर होती है. इसका बहुत बड़ा पौराणिक महत्व है. औषधि के रूप में भी तुलसी का बहुत इस्तेमाल किया जाता है. सर्दी-खांसी से लेकर कई ऐसी बीमारियों के लिए तुलसी एक कारगर औषधि है. आयुर्वेद में तुलसी के पौधे को स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद बताया गया है. तुलसी में तमाम गुण होते हैं और हम इसकी पूजा भी करते हैं. तुलसी के कई गुणों के बारे में हम सभी जानते हैं, लेकिन कई ऐसे भी गुण हैं जिनके बारे में जानना चाहिए. तुलसी के कुछ अनजाने फायदे ये हैं.

1.यौन संबंधी बीमारी में कारगर
पुरुषों में यौन संबंधी बीमारी सामान्य है. ऐसे में तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. तुलसी बीज का इस्तेमाल यौन-दुर्बलता और नपुंसकता में किया जा सकता है.

2.महिलाओं के पीरियड्स संबंधी समस्याएं
महिलाओं में पीरियड्स के दौरान कई तरह की समस्याएं होती हैं. इसकी वजह से वे बहुत परेशान रहती हैं. ऐसे में तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. पीरियड्स में अनियमितता को दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों का नियमित सेवन करना चाहिए

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3.सर्दी-जुकाम में इस्तेमाल
तुलसी का काढ़ा सर्दी और जुकाम में बहुत कारगर होता है. काढ़ा बनाने के लिए तुलसी पत्ते को पानी में डालकर उसमें काली मिर्च और मिश्री मिलाकर अच्छे से मिला लें और उसका सेवन करें. यह सर्दी में बहुत कारगर होता है.

4.दस्त होने पर
अगर आप दस्त से परेशान हैं तो तुलसी के पत्तों के इस्तेमाल से आपको फायदा देगा. तुलसी के पत्तों को जीरे के साथ मिलाकर पीस लें. इसके बाद उसे दिन में 3-4 बार चाटते रहें. ऐसा करने से दस्त रुक जाती है.

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5.सांस में बदबू आने पर
बहुत लोगों को सांस के साथ बदबू आती है. इस समस्या को दूर करने में भी तुलसी के पत्ते काफी फायदेमंद होता है. सबसे बड़ी खूबी यह है कि नैचुरल होने की वजह से इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है. अगर, आप भी मुंह के बदबू की समस्या से परेशान हैं तो यह नुस्खा अपना सकते हैं.

6.जख्म ठीक करने में
तुलसी के पत्ते का रस फिटकरी के साथ मिलाकर लगाने से जख्म बहुत जल्द ठीक हो जाता है. तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं जो घाव को पकने नहीं देता है. इसके अलावा तुलसी के पत्ते को तेल में मिलाकर लगाने से जलन भी कम होती है.

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7.स्किन ग्लो में तुलसी कारगर
तुलसी का सेवन करने और पीसकर चेहरे पर लगाने से स्किन ग्लो करने लगता है. एंटी-बैक्टीरियल तत्व होने के नाते यह गंदगी को दूर करता है और चेहरे के कील-मुंहासे को भी ठीक करता है.

8.कैंसर के इलाज में
कई रिसर्च में पता चला है कि तुलसी कैंसर के इलाज में बहुत कारगर होता है.

Friday, 2 November 2018

Health Tips: सर्दी और फ्लू से बचाएगी लेमन टी, जानें इसके और भी फायदे

लेमन टी स्वाद में अच्छी होने के साथ ही शरीर के लिए भी काफी फायदेमंद रहती है। नींबू में कुछ ऐसे नेचुरल तत्व होते है जो हमारी त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होते है। इसके साथ ही ये आपको तरोताजा भी रखता है साथ ही ये हमारे शरीर के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

आइए जानते है लेमन टी के कुछ फयदे

1. नींबू में सिट्रिक एसिड पाया जाता है। जो आपकी पाचन क्रिया को ठीक बनाए रखता है। इसे रोज सुबह पिएं।

2. लेमन टी में फ्लेवोनोइड्स नाम का केमिकल पाया जाता है। इससे धमनियों में रक्त के थक्के नहीं बनते जिसके कारण हार्टअटैक का खतरा कम होता है।

3. लेमन टी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।

4. लेमन टी पीने से सर्दी और फ्लू जैसी समस्या भी नहीं होती।

5. लेमन टी में काफी एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। इसके साथ ही इसमें पोलीफीनोल और विटामिन c भी अधिकता में होता है। जो शरीर में कैंसर सेल्स को बनने से रोकता है।