Wednesday, 20 March 2019

होली का मजा न करें किरकिरा, इस तरह रखें अपनी सेहत का ध्यान

नई दिल्ली: होली का त्योहार दस्तक दे चुका है. सभी लोगों के लिए रंगों का यह उत्साह से भरने वाला है. होली की तैयारियां भी लोगों ने शुरू कर दी है. कहीं मिठाइयां बनाई जा रही हैं, तो कहीं रंगों की खरीददारी भी शुरू हो गई है. लोग अपनी होली को खास बनाने की तैयारियों में लगे हुए हैं लेकिन इसी बीच वह अपनी सेहत का ख्याल भूल जाते हैं.

त्योहार के वक्त बीमार होने से केवल खुद का ही नहीं बल्कि सबका ही मजा किरकिरा हो जाता है. इसलिए आज के अपने इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे आसान टिप्स बताने वाले हैं जिन्हें फॉलो करके आप आसानी से बीमारियों से बच सकते हैं और त्योहार का पूरा मजा ले सकते हैं.

1. अधिक पानी पिएं- होली के वक्त मौसम में बदलाव और लगातार भागदौड़ के चलते काफी ज्यादा थकावट हो जाती है. वहीं धूप में होली खेलने से भी बॉडी डीहाइट्रेट हो सकती है. इसलिए होली के दिन पानी पीना ना भूलें, ताकि आपके शरीर में पानी की कमी न हो.

2. मावे वाली मिठाई की क्वालिटी चैक करें- कोई भी त्योहार बिना मिठाई के पूरा नहीं होता. त्योहारों के वक्त में लोग जमकर मिठाई खाते हैं और खरीदते हैं. इसलिए मिठाई खरीदने से पहले मिठाई की अच्छी तरह से जांच करें. खोए की क्वालिटी जरूर जांच ले. अगर खोया मूंह में चिपकता है तो समझ जाएं कि वो नकली है और अगर नहीं चिपकता तो मतलब खोया असली है.

3. हर्बल रंगों से खेलें- होली का त्योहार रंगों के बिना कैसे पूरा हो सकता है लेकिन जिस तरह से आज के वक्त में मिलावटी मिठाई बाजार में बिकती है उसी तरह रंगों में भी मिलावट होती है. इसलिए हर्बल रंगों से ही होली खेलें. होली के लिए आप अपने ही घर में विभिन्न फूल या सब्जियों से रंग बना सकते हैं.

4. भांग पीने से बचें- होली पर भांग का सेवन बहुत आम है लेकिन भांग से सेहत पर गलत प्रभाव पड़ सकता है. होली के दिन भांग की जगह आप आम पन्ना, जलजीरा, लस्सी या नारियल के पानी का भी सेवन कर सकते हैं. बता दें, इससे आपकी सेहत पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.

Tuesday, 19 March 2019

बेहद फायदेमंद है रोजाना एक कप कॉफी की आदत, कैंसर के खतरे को करती है कम

टोक्यो : सुबह का बेहतरीन पेय होने के साथ ही कॉफी प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिससे दवा-प्रतिरोधी कैंसर के इलाज का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. जापान के कनाजावा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल तत्वों की पहचान की है, जो प्रोस्टेट कैंसर की वृद्धि को रोक सकते हैं.

ये दोनों तत्व हाइड्रोकॉर्बन यौगिक हैं, जो प्राकृतिक रूप से अरेबिका कॉफी में पाए जाते हैं. इसके पायलट अध्ययन से पता चलता है कि कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल कोशिकाओं की वृद्धि को रोक सकते हैं, जो आम कैंसर रोधी दवाओं जैसे कबाजिटेक्सेल का प्रतिरोधी है. शोध के प्रमुख लेखक हिरोकी इवामोटो ने कहा, "हमने पाया कि कहविओल एसिटेट व कैफेस्टोल ने चूहों में कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रोक दी, लेकिन इसका संयोजन एक साथ ज्यादा प्रभावी होगा."

इस शोध के लिए दल ने कॉफी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले छह तत्वों का परीक्षण किया. इस शोध को यूरोपियन एसोसिएशन ऑफ यूरोलॉजी कांग्रेस में बार्सिलोना में प्रस्तुत किया गया. शोध के तहत मानव की प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं पर प्रयोगशाला में अध्ययन किया गया.

Sunday, 17 March 2019

कुपोषण पर तेजी से हो रहा नियंत्रण, लेकिन अभी भी देश में 4.66 करोड़ कुपोषित बच्चे

नई दिल्ली: ताजा सर्वेक्षण रपट के अनुसार देश में कुपोषण के कारण कमजोर बच्चों का अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में करीब दो प्रतिशत कम होकर 34.70 प्रतिशत पर आ गया. इससे पहले एक दस वर्ष में इसमें सालाना एक प्रतिशत की दर से कमी दर्ज की गयी थी. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुख्य रूप से सरकारी मुहिम के कारण कुपोषण से बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट में यह कमी आयी है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण के कारण औसत से कम लंबाई और भार वाले बच्चों का अनुपात 2004-05 के 48 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 38.40 प्रतिशत पर आ गया. अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘‘ यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश में कुपोषण से अवरुद्ध शारीरिक-विकास वाले बच्चों का अनुपात 2015-16 के 38.40 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 34.70 प्रतिशत पर आ गया है.

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

वर्ष 2004-05 से 2015-16 की दस वर्ष की अवधि के दौरान छह साल के कुपोषण प्रभावित ऐसे बच्चों के अनुपात में सालाना एक प्रतिशत की दर से 10 प्रतिशत की कमी आयी थी. उसने कहा, ‘‘यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय के नये सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 से 2017-18 के दौरान कुपोषण चार प्रतिशत कम हुआ. यह सालाना दो प्रतिशत की कमी है जो कि बड़ी उपलब्धि है.’’ यह सर्वेक्षण 1.12 लाख परिवारों को लेकर किया गया.

अधिकारी ने कहा, ‘‘अब कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपात में करीब दो प्रतिशत सालाना की कमी की दर को हासिल कर लिया गया है ऐसे में सरकार का ‘पोषण अभियान का लक्ष्य’ छोटा लगने लगा है.’’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की. इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 प्रतिशत से घटाकर 2022 में 25 प्रतिशत पर लाना है.

अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) जैसे अन्य मुख्य स्वास्थ्य सूचकांकों पर भी सुधार देखने को मिला है. उन्होंने कहा कि महिलाओं में खून की कमी 2015-16 के 50-60 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 40 प्रतिशत पर आ गयी है. वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया में कुपोषण के कारण कमजोर शरीर वाले एक तिहाई बच्चे भारत में हैं. भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 4.66 करोड़ है. इसके बाद नाइजीरिया (13.9%) और पाकिस्तान (10.7%) का नाम आता है.

2% की दर से घटा कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपातः सर्वे

नई दिल्ली: ताजा सर्वेक्षण रपट के अनुसार देश में कुपोषण के कारण कमजोर बच्चों का अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में करीब दो प्रतिशत कम होकर 34.70 प्रतिशत पर आ गया. इससे पहले एक दस वर्ष में इसमें सालाना एक प्रतिशत की दर से कमी दर्ज की गयी थी. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुख्यत: सरकारी मुहिम के कारण कुरोषण से बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट में यह कमी आई है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण के कारण औसत से कम लंबाई और भार वाले बच्चों का अनुपात 2004-05 के 48 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 38.40 प्रतिशत पर आ गया.

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर पीटीआई भाषा से कहा, ''यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश में कुपोषण से अवरुद्ध शारीरिक-विकास वाले बच्चों का अनुपात 2015-16 के 38.40 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 34.70 प्रतिशत पर आ गया है. वर्ष 2004-05 से 2015-16 की दस वर्ष की अवधि के दौरान छह साल के कुपोषण प्रभावित ऐसे बच्चों के अनुपात में सालाना एक प्रतिशत की दर से 10 प्रतिशत की कमी आयी थी.

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्र

उसने कहा, ''यूनिसेफ और स्वास्थ्य मंत्रालय के नये सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 से 2017-18 के दौरान कुपोषण चार प्रतिशत कम हुआ. यह सालाना दो प्रतिशत की कमी है जो कि बड़ी उपलब्धि है.'' यह सर्वेक्षण 1.12 लाख परिवारों को लेकर किया गया. अधिकारी ने कहा, ''अब कुपोषण से कमजोर बच्चों का अनुपात में करीब दो प्रतिशत सालाना की कमी की दर को हासिल कर लिया गया है ऐसे में सरकार का 'पोषण अभियान का लक्ष्य' छोटा लगने लगा है.''

सुबह-सुबह पीएं आजवायन पानी, एक महीने में 3-4 किलोग्राम वजन कम होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की. इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 प्रतिशत से घटाकर 2022 में 25 प्रतिशत पर लाना है. अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) जैसे अन्य मुख्य स्वास्थ्य सूचकांकों पर भी सुधार देखने को मिला है.

वायु प्रदूषण से दुनियाभर में 88 लाख लोगों की हर साल हुई मौत, स्टडी का दावा

उन्होंने कहा कि महिलाओं में खून की कमी 2015-16 के 50-60 प्रतिशत से कम होकर 2017-18 में 40 प्रतिशत पर आ गई. वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया में कुपोषण के कारण कमजोर शरीर वाले एक तिहाई बच्चे भारत में हैं. भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 4.66 करोड़ है. इसके बाद नाइजीरिया (13.9%) और पाकिस्तान (10.7%) का नाम आता है. (इनपुटः भाषा)

Friday, 15 March 2019

World Sleep Day: महिलाओं के मुकाबले ज्यादा सोते हैं पुरुष, जानें क्या कहता है सर्वे

नई दिल्लीः बदलती जीवनशैली और काम के चलते होने वाली भागदौड़ के कारण पर्याप्त नींद तो जैसे लोगों के लिए एक सपना बन कर रह गई है. कभी काम तो कभी मोबाइल और कंप्यूटर लोगों की रातों की नींदे चोरी करती जा रही हैं. जिसके चलते लोग स्लीपिंग डिसऑर्डर और इससे होने वाली बीमारियों से घिरते जा रहे हैं. आज यानि 15 मार्च को 'वर्ल्ड स्लीप डे' है. इसलिए आज हम आपसे चर्चा कर रहे हैं स्लीपिंग डिसऑर्डर और इससे होने वाले नुकसानों के बारे में. बता दें स्लीपिंग डिसऑर्डर को लेकर हाल ही में एक सर्वे हुआ है, जो आपको चौंकाने के लिए काफी है. दरअसल, हाल ही में GOQii India ने World Sleeping Day पर एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें कहा गया है कि 'मधुमेह, हार्ट डिजीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी खतरनाक बीमारियां स्लीपिंग डिसऑर्डर और अनियमित जीवनशैली की देन हो सकती हैं.'

गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर से महिलाओं को ये खतरा, जानकर हो जाएंगे हैरान

बता दें एक अध्ययन में GOQii India ने न्यूट्रीशन्स, पानी, तनाव, नींद, धूम्रपान और शराब की खपत के आधार पर लिंग और प्रमुख शहरों के अनुसार वर्गीकृत करके कुछ ग्रुप बनाए थे. जिसमें महिलाओं और पुरुषों के स्लीप पैटर्न का एनालिसिस किया गया. फिट इंडिया द्वारा किए इस अध्ययन में कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए, जिनमें कहा गया है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कम नींद लेती हैं और पुरुष महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा सुकून से सोते हैं. वहीं नींद को लेकर कुछ और भी खुलासे इस रिपोर्ट में हुए हैं, जो इस तरह से हैं-

अगर है हाई ब्लड प्रेशर की समस्या, तो खाने में शामिल करें ये फल और सब्जियां

- पिछले साल की तुलना में कुल नींद 6.54 से बढ़कर 6.85 घंटे हो गई है.
- नींद के मामले में चेन्नई इस साल कोलकाता से आगे निकल कर पहली रैंक पर आ गया है, जिसमें कुल नींद 6.31 घंटे से बढ़कर 6.93 घंटे है.
- केवल 19% लोग जागने पर आराम और ताजगी महसूस करते हैं, जबकि 24% ने कहा कि वे जागने के बाद भी नींद महसूस करते हैं.
- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को थोड़ी अधिक मात्रा में नींद आती है.
- पुरुषों को कम नींद आती है, जिससे परेशान नींद अधिक होती है
- युवा वयस्कों (20-30) को मात्रा और गुणवत्ता दोनों के मामले में सबसे अधिक नींद आती है, इसके बाद किशोर और वयस्क होते हैं.
- सीनियर्स (60+) और पुराने वयस्कों (45-60) को कम से कम मात्रा में नींद लेते देखा जाता है-
- 55% किशोरों ने कहा कि उन्हें गहरी नींद आती है, जबकि सीनियर्स में केवल 21% ने ही ऐसा कहा.
- लगभग 45% सीनियर्स नींद के बीच में उठते हैं, लेकिन तुरंत सो जाते हैं.

राप्ती-सागर एक्सप्रेस में अंडा बिरयानी खाने से फूड पॉयजनिंग, 20 यात्री बीमार

भोपालः ट्रेनों में अच्छी केटरिंग सर्विस को लेकर किए जाने वाले दावों की आए दिन पोल खुलती नजर आती रहती है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है त्रिवेंद्रम से गोरखपुर जा रही राप्ती सागर एक्सप्रेस 12512 से, जहां अंडा बिरयानी खाने से करीब 20 यात्री फूड पॉयजनिंग का शिकार हो गए. जिससे इन यात्रियों की ट्रेन में ही हालत खराब हो गई. यात्रियों के मुताबिक राप्ती सागर एक्सप्रेस में यात्रियों ने खाने के लिए अंडा बिरयानी ऑर्डर किया था, जिसे खाने के कुछ देर बाद ही उन्हें मतली, उल्टी और पेट दर्द की शिकायत होने लगी. यात्रियों की तबीयत खराब होने के बाद इटारसी रेलवे स्टेशन पर अलर्ट जारी किया गया. जिसके बाद नागपुर में डॉक्टर्स की एक टीम ने चिकित्सकीय परीक्षण और उपचार कर आगे की यात्रा के लिए रवाना कर दिया.

मथुरा: जहरीली मिठाई खाने से एक ही परिवार के 12 लोग बीमार, 2 की हालत गंभीर

वहीं घटना की जानकारी मिलने के बाद रेल प्रशासन में हड़कंप मच गया. हालांकि, मिली जानकारी के मुताबिक उपचार के बाद सभी यात्रियों की हालत सामान्य हो गई और पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही उन्हे आगे के लिए रवाना किया गया. नागपुर रेल मंडल के जनसंपर्क अधिकारी अनिल वाल्डे ने बताया कि ''यात्रियों को बल्लारशा स्टेशन से पेट में दर्द, उल्टी और मितली की शिकायत होने की सूचना के बाद नागपुर रेलवे स्टेशन पर छह डाक्टरों के दल ने सभी यात्रियों का उपचार किया. बीमार हुए यात्री ट्रेन के एस 7 कोच में सफर कर रहे थे.''

झारखंड : लोहरदगा में प्रसाद खाने से 40 बच्चे बीमार, 2 की हालत नाजुक

अधिकारी अनिल वाल्डे ने आगे बताया कि इसी ट्रेन में यात्रा कर रहे एक यात्री अनिल थापा की मौत हो गई है, जिनका शव आमला रेलवे स्टेशन पर उतारा गया है. हांलकि यह मौत फूड पॉयजनिंग से न होकर बीमारी से बताई जा रही है. बता दें यह पहली बार नहीं है जब ट्रेन में इस तरह का दूषित खाना खाने से यात्रियों के बीमार होने का मामला सामने आया हो. इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां ट्रेन का खाना खाने से यात्री बुरी तरह से बीमार पड़ चुके हैं. वहीं फूड पॉयजनिंग की शिकायत मिलने के बाद अधिकारियों ने खाने के नमूने परीक्षण के लिए भेज दिए हैं.

Wednesday, 13 March 2019

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्र

पर्यावरण को नुकसान के कारण होती है दुनिया में एक चौथाई लोगों की मौत : संयुक्त राष्ट्रनैरोबी: दुनिया भर में समय से पहले और बीमारियों से जितनी मौत होती है, उसमें एक चौथाई मृत्यु मानवनिर्मित प्रदूषण और पर्यावरण को हुए नुकसान के कारण होती है. संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को एक रिपोर्ट में यह कहा है. 
इसमें आगाह किया गया है कि दम घोंटू उत्सर्जन, केमिकल से प्रदूषित पेयजल और पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाला नुकसान दुनिया भर में अरबों लोगों की रोजी-रोटी को प्रभावित कर रहे हैं. विश्व की अर्थव्यवस्था को भी इससे चोट पहुंच रही है. 
वैश्विक पर्यावरण परिदृश्य रिपोर्ट अमीर और गरीब देशों के बीच की बढ़ती खाई को प्रदर्शित करती है क्योंकि विकसित दुनिया में बढते उपभोग, प्रदूषण और खाद्य अपशिष्ट से हर जगह भुखमरी, गरीबी और बीमारी फैल रही है. यह रिपोर्ट छह साल में आती है और 70 देशों के 250 वैज्ञानिकों ने इसे तैयार किया है. 
ग्रीन हाउस गैस के बढ़ते उत्सर्जन से सूखा, बाढ़ और तूफान के खतरे के बीच समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और इस पर सहमति बन रही है कि जलवायु परिवर्तन से अरबों लोगों के भविष्य को खतरा होगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ पेयजल नहीं मिलने से हर साल 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इसी तरह समुद्र में बह कर पहुंचे रसायन के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है. विशाल पैमाने पर खेती के चलते तथा वन काटे जाने से भूमि क्षरण के कारण 3.2 अरब लोग प्रभावित होते हैं.  रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 60-70 लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है.