Wednesday, 28 November 2018

सावधान! वायु प्रदूषण बन रहा है कैंसर का कारण, रिसर्च में हुआ खुलासा

2013 में 'इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी)' ने बाहरी वायु प्रदूषण को कैंसर का प्रमुख कारण माना था. प्रदूषण इसलिए, कैंसरकारी माना जाता है, क्योंकि यह धूम्रपान और मोटापे की तरह प्रत्यक्ष रूप से कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है. यह भी महत्वपूर्ण है कि वायु प्रदूषण सभी को प्रभावित करता है.

नई दिल्ली: वायु प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर के परस्पर संबंध के बारे में दशकों से जानकारी है. विज्ञान ने यह साबित किया है कि वायु प्रदूषण कैंसर के जोखिम को कई गुना बढ़ाता है और अत्यधिक वायु प्रदूषण फेफड़े के अलावा दूसरे अन्य तरह के कैंसर का कारण बन सकता है. 2013 में 'इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी)' ने बाहरी वायु प्रदूषण को कैंसर का प्रमुख कारण माना था. प्रदूषण इसलिए, कैंसरकारी माना जाता है, क्योंकि यह धूम्रपान और मोटापे की तरह प्रत्यक्ष रूप से कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है. यह भी महत्वपूर्ण है कि वायु प्रदूषण सभी को प्रभावित करता है.

शोध से यह सामने आया है कि हवा में मौजूद धूल के महीन कण जिन्हें 'पार्टिकुलेट मैटर' या पीएम कहा जाता है, वायु प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा बनते हैं. सबसे महीन आकार का कण, जो कि एक मीटर के 25 लाखवें हिस्से से भी छोटा होता है. प्रदूषण की वजह से होने वाले फेफड़ों के कैंसर की प्रमुख वजह है. अनेक अनुसंधानों और मैटा एनेलिसिस से यह साफ हो गया है कि वायु में पीएम की मात्रा 2.5 से अधिक होने के साथ ही फेफड़ों के कैंसर का जोखिम भी बढ़ जाता है.

मैक्स हेल्थकेयर के ओंकोलॉजी विभाग में प्रींसिपल कंस्लटेंट डॉ. गगन सैनी ने कहा कि पीएम 2.5 से होने वाले नुकसान का प्रमाण फ्री रैडिकल, मैटल और ऑर्गेनिक कोंपोनेंट के रूप में दिखाई देता है. ये फेफड़ों के जरिए आसानी से हमारे रक्त में घुलकर फेफड़ों की कोशिकाओं को क्षति पहुंचाने के अलावा उन्हें ऑक्सीडाइज भी करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शरीर को नुकसान पहुंचता है. पीएम 2.5 सतह में आयरन, कॉपर, जिंक, मैंगनीज तथा अन्य धात्विक पदार्थ और नुकसानकारी पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन एवं लिपोपॉलीसैकराइड आदि शामिल होते हैं.

डॉ. सैनी ने कहा, ये पदार्थ फेफड़ों में फ्री रैडिकल बनने की प्रक्रिया को और बढ़ा सकते हैं तथा स्वस्थ कोशिकाओं में मौजूद डीएनए के लिए भी नुकसान दायक होते हैं. पीएम 2.5 शरीर में इफ्लेमेशन का कारण भी होता है. इंफ्लेमेशन दरअसल, रोजमर्रा के संक्रमणों से निपटने की शरीर की प्रक्रिया है लेकिन पीएम 2.5 इसे अस्वस्थकर तरीके से बढ़ावा देती है और केमिकल एक्टीवेशन बढ़ जाता है. यह कोशिकाओं में असामान्य तरीके से विभाजन कर कैंसर का शुरूआती कारण बनता है.

फेफड़ों के कैंसर संबंधी आंकड़ों के अध्ययन से कैंसर के 80,000 नए मामले सामने आए हैं. इनमें धूम्रपान नहीं करने वाले भी शामिल हैं और ऐसे लोगों में कैंसर के मामले 30 से 40 फीसदी तक बढ़े हैं. इसके अलावा, मोटापा या मद्यपान भी कारण हो सकता है, लेकिन सबसे अधिक जोखिम वायु प्रदूषण से है.

डॉ. सैनी का कहना है कि दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में फेफड़ों के मामले 2013-14 में 940 से दोगुने बढ़कर 2015-16 में 2,082 तक जा पहुंचे हैं, जो कि शहर मे वायु प्रदूषण में वृद्धि का सूचक है. धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर के मरीजों में 30 से 40 वर्ष की आयुवर्ग के युवा, अधिकतर महिलाएं और साथ ही एडवांस कैंसर से ग्रस्त धुम्रपान न करने वाले लोग शामिल हैं.

डॉक्टर सैनी ने कहा कि मैं अपने अनुभव से यह कह सकता हूं कि फेफड़ों के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और मैं लोगों से इन मामलों की अनदेखी नहीं करने का अनुरोध करता हूं. साथ ही, यह भी सलाह देता हूं कि वे इसकी वजह से सेहत के लिए पैदा होने वाले खतरों से बचाव के लिए तत्काल सावधानी बरतें.

वायु प्रदूषण न सिर्फ फेफड़ों के कैंसर से संबंधित है बल्कि यह स्तन कैंसर, जिगर के कैंसर और अग्नाशय के कैंसर से भी जुड़ा है.वायु प्रदूषण मुख और गले के कैंसर का भी कारण बनता है.ऐसे में मनुष्यों के लिए एकमात्र रास्ता यही बचा है कि वायु प्रदूषण से मिलकर मुकाबला किया जाए संभवत: इसके लिए रणनीति यह हो सकती है कि इसे एक बार में समाप्त करने की बजाए इसमें धीरे-धीरे प्रदूषकों को घटाने के प्रयास किए जाएं और इस संबंध में सख्त कानून भी बनाए जाए.

वैज्ञानिकों ने खोजा ऐसा तरीका, ब्रेन हेमरेज का इलाज संभव

वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में रक्तस्राव और आघात के खतरे को कम करने के लिए एक दवाई की पहचान की है.


लंदन: वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में रक्तस्राव और आघात के खतरे को कम करने के लिए एक दवाई की पहचान की है. इस दवाई को यूरिया से संबंधित विकारों के इलाज के लिए पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है. ‘कोलेजन 4’ (सी4) नामक जीन में खामी से मस्तिष्क में रक्तस्राव होता है, जिससे मस्तिष्काघात पड़ सकता है. सी4 जीन के क्षरण से आंख, गुर्दे और रक्तवाहिकाओं संबंधी ऐसे रोग हो सकते हैं, जिससे मस्तिष्क में रक्त वाहिकाएं प्रभावित होती हैं और मस्तिष्क में रक्तस्राव हो सकता है जो बचपन में भी हो सकता है.

ब्रिटेन के मैनचेस्टर और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि चूहों के ‘कोलेजन 4’ में भी इसी तरह की खामी होती है और उन्हें भी ऐसी ही बीमारी हो सकती है. पत्रिका ‘ह्यूमन मॉलीक्यूलर जेनेटिक्स’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार सोडियम फेनिल ब्यूटीरीक एसिड के इस्तेमाल से मस्तिष्क में रक्तस्राव में कमी आ सकती है.  हालांकि, इस उपचार से आंख या गुर्दे की अनुवांशिक बीमारियों का इलाज नहीं किया जा सकता.

Tuesday, 27 November 2018

पर्यावरण को साफ सुथरा रखने के लिए मांस और दूध का इस्तेमान करना होगा कम: रिपोर्ट

वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवों के बजाय पेड़ों के स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन के इस्तेमाल से पर्यावरण लक्ष्यों को हासिल करने और तापमान बढ़ने का जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है.

बोस्टन: वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवों के बजाय पेड़ों के स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन के इस्तेमाल से पर्यावरण लक्ष्यों को हासिल करने और तापमान बढ़ने का जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है. ‘क्लाइमेट पॉलिसी’ पत्रिका में छपे एक अध्ययन में पाया गया कि पशुधन क्षेत्र 2030 तक के डेढ डिग्री सेल्सियस ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बजट की करीब आधी राशि का इस्तेमाल कर सकता है.


अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इस पर गौर करना जलवायु परिवर्तन संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने की रणनीति का अहम हिस्सा होना चाहिए. अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल की हेलेन हारवॉट ने जलवायु परिवर्तन को रोकने की प्रतिबद्धता के तहत जीवों से प्राप्त प्रोटीन की जगह पेड़ों के स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन के इस्तेमाल के लिए तीन चरणों वाली रणनीति का प्रस्ताव दिया.

पहला कदम इस बात को स्वीकार करना है कि इस समय मवेशियों की संख्या सर्वोच्च बिन्दु पर है और इसे कम करने की जरूरत है. अगला कदम मवेशी उत्पादों पर निर्भरता कम करना है जिसकी शुरुआत गोमांस, गाय के दूध और सूअर के मांस जैसे उच्च ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वाले खाद्य पदार्थों से होनी चाहिए. हारवॉट ने कहा कि अंत में, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लक्ष्य, भूमि उपयोग और लोक स्वास्थ्य लाभ सहित कई मानकों के आधार पर उचित उत्पादों पर गौर करने से भी मदद मिलेगी.

सावधान: जान भी ले सकती है भूलने की एक दुर्लभ बीमारी

आपको जानकर हैरानी होगी कि भूलने की एक दुर्लभ बीमारी जान भी ले सकती है। शोधकर्ताओं का दावा है कि डीएनए में उत्परिवर्तन से गर्भधारण के दौरान महिला को होने वाली यह बीमारी बहुत खतरनाक है।

यह बीमारी डिमेंशिया का एक प्रकार है। डेनमार्क की एक महिला के पति की मौत क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग (दिमाग की काम करने की क्षमता को कम करने वाला रोग) से हो गई थी। गर्भधारण के दौरान उसके पति के इस रोग का जीन भ्रूण में पहुंच गया। इससे भ्रूण के डीएनए में उत्परिवर्तन हो गया। उत्परिवर्तन के बाद भ्रूण से निकला एक जहरीला प्रोटीन प्लेसेंटा के जरिये महिला के दिमाग तक पहुंच गया। शोधकर्ताओं ने कहा, यह प्रोटीन धीरे-धीरे मस्तिष्क कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। यह घातक स्थिति अपरिवर्तनीय मस्तिष्क क्षति का कारण बनती है, जो महिला की मौत का कारण बनी।
सिगरेट से भी ज्यादा घातक है वायु प्रदूषण, घटा रहा है जिंदगी के 4 साल

कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में डेनमार्क के मरीजों पर अध्ययन के दौरान इस घातक बीमारी का खुलासा हुआ है। 85 प्रतिशत मामले डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) के होते है। इसमें से 10-15 प्रतिशत लोगों में आनुवांशिक कारणों से यह बीमारी होती है। एक प्रतिशत से भी कम घटनाओं में क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग की पहचान की गई। दरअसल क्रूट्सफेल्ड-जेकब रोग से पीड़ित गाय से यह रोग इनसान में फैलता है। जब कोई व्यक्ति इस रोग के शिकार जानवरों का मांस खाता है, जो यह बीमारी इनसान में पहुंच जाती है। लंदन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के मुताबिक, ब्रिटेन में हर साल दस साल लोगों में से एक को यह बीमारी होती है। गंदे रह गए सर्जरी के उपकरणों से भी ऑपरेशन के दौरान यह बीमारी हो सकती है।

Monday, 26 November 2018

अगर आपका बच्चा हो रहा है मोटा तो हो जाइए सतर्क, हो सकती है ये खतरनाक बीमारी

अमेरिका के ड्यूक विश्विद्यालय ने अपने अध्ययन के लिए अमेरिका के पांच लाख से अधिक बच्चों के स्वास्थ्य आंकडों का विश्लेषण किया.


वॉशिंगटन: एक नए अध्ययन में पता चला है कि सही वजन हजारों बच्चों को अस्थमा जैसी बीमारियों से बचा सकता है. अमेरिका के ड्यूक विश्विद्यालय ने अपने अध्ययन के लिए अमेरिका के पांच लाख से अधिक बच्चों के स्वास्थ्य आंकडों का विश्लेषण किया और पाया कि करीब एक चौथाई बच्चों (23 से 27 प्रतिशत) में अस्थमा के लिए मोटापा जिम्मेदार है. पीडिएट्रिक्स पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक दो से 17 वर्ष के बीच के कम से कम 10 प्रतिशत बच्चों के वजन यदि नियंत्रित होते तो वे बीमारी की चपेट में आने से बच सकते हैं.


ड्यूक विश्वविद्यालय के असोसिएट प्रोफेसर जेसन ई लांग कहते हैं,‘‘अस्थमा बच्चों में होने वाली क्रोनिक बीमारियों में अहम है और बचपन में वायरल संक्रमण तथा जीन संबंधी कुछ ऐसे कारण हैं जिन्हें होने से रोका नहीं जा सकता.’’ वह कहते हैं कि बचपन में अस्थमा होने के पीछे मोटापा एकमात्र कारण हो सकता है जिसे रोका भी जा सकता है. इससे पता चलता है कि बच्चों को किसी प्रकार की गतिविधि में लगाए रखना और उनका उचित वजन होना जरूरी है.

पिता के सिगरेट पीने से बेटे की सेक्सुअल लाइफ हो जाएगी बर्बाद : रिसर्च

अब तक की रिसर्च के आधार पर आपने यही सुना और पढ़ा होगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान मां के स्मोकिंग करने या शराब पीने का बच्चे पर विपरीत असर पड़ता है.


नई दिल्ली : अब तक की रिसर्च के आधार पर आपने यही सुना और पढ़ा होगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान मां के स्मोकिंग करने या शराब पीने का बच्चे पर विपरीत असर पड़ता है. कई शोध से यह भी साफ हो चुका है कि गर्भावस्था के दौरान मां के धूम्रपान करने का असर होने वाले बेटे के स्पर्म काउंट पर पड़ता है. लेकिन अब एक नई रिसर्च में साफ हुआ है कि जिस बच्चे के पिता अपनी पत्नी के गर्भधारण के दौरान स्मोकिंग करते हैं उनके होने वाले बेटे के स्पर्म काउंट स्मोकिंग नहीं करने वाले पिता की संतान से 50 प्रतिशत तक कम होते हैं.

लंदन यूनिवर्सिटी की रिसर्च में हुआ खुलासा
स्वीडन की लंदन यूनिवर्सिटी की रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पत्नी के गर्भधारण के दौरान सिगरेट पीने वाले पुरुषों के बेटों के स्पर्म काउंट में आधे की गिरावट का खतरा हो सकता है. रिसर्च से सामने आए आंकड़ों से पता चला कि जिन युवाओं के पिता स्मोकिंग करते थे, उनके स्पर्म के घनत्मव में 41 प्रतिशत और सिगरेट नहीं पीने वाले पिताओं के बच्चों के मुकाबले 51 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.

104 युवाओं को शोध में शामिल किया
इस शोध को 17 से 20 साल की उम्र के 104 युवाओं पर किया गया. यूनिवर्सिटी के जोनाथन एग्जल्सन ने बताया कि इससे पहले कई अध्ययनों से यह सामने आ चुका है कि अगर मां सिगरेट पीती है तो उसका बुरा असर गर्भ में पल रहे भ्रूण पर पड़ता है, लेकिन इस अध्ययन में पिता के सिगरेट पीने का नकारात्मक असर बेटों पर देखने में आया है.

यहां यह साफ कर दें कि स्पर्म काउंट में कमी और वीर्य से जुड़े दूसरे मापदंडों में होने वाली कमी के पीछे वातावरण से संबंधित कई कारण भी जिम्मेदार हैं. इनमें इंडोक्राइन को बाधित करने वाले केमिकल, कीटनाशक, तेज धूप, लाइफस्टाइल फैक्टर्स जिसमें खान-पान, तनाव और बॉडी मास इंडेक्स जैसी चीजें भी शामिल हैं.

MRI स्कैन से लगाया जाएगा डिमेंशिया का पता

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में डिमेंशिया का अनुमान लगाने के लिए मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) का इस्तेमाल किया.

लॉस एंजिलिसः मस्तिष्क के एमआरआई स्कैन से पता लगाया जा सकेगा कि व्यक्ति को अगले तीन वर्ष में डिमेंशिया होने की आशंका तो नहीं है. इसका मतलब है कि विकार के लक्षण नजर आने से पहले ही इसके जोखिम का अनुमान लगाया जा सकता है. अमेरिका में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में डिमेंशिया का अनुमान लगाने के लिए मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) का इस्तेमाल किया. यह अनुमान 89 फीसदी सटीक रहा.

खड़े-खड़े बेहोश होना आम बात नहीं, कोई भी हो सकता है इस खतरनाक बीमारी का शिकार

डिमेंशिया के जोखिम
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर सायरस ए राजी ने कहा, ‘‘वर्तमान में यह कहना मुश्किल है कि सोचने समझने की सामान्य क्षमता या कम क्षमता वाले बुजुर्ग व्यक्ति को यह विकार हो सकता है या नहीं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ हमने बताया कि केवल एक एमआरआई स्कैन से 2.6 वर्ष पहले ही डिमेंशिया के जोखिम का पता लगाया जा सकता है. इससे चिकित्सक समयपूर्व अपने मरीजों को सलाह दे सकेंगे और उनकी देखरेख कर सकेंगे.’’

अपनों को बेगाना कर देने वाली बीमारी है अल्जाइमर, भारत में हर साल इतने लोग आते हैं चपेट में

रहन-सहन संबंधी बंदोबस्त
शोधकर्ता कहते हैं कि अल्जाइमर रोग को रोकने या टालने के लिए अभी भी कोई दवा नहीं है लेकिन डिमेंशिया के उच्च जोखिम वाले लोगों की पहचान करना फिर भी लाभकारी साबित हो सकता है. इससे लोग सेहतमंद रहने के दौरान ही आगामी खतरे को भांपते हुए अपने आर्थिक और रहन-सहन संबंधी बंदोबस्त कर सकते हैं. (इनपुटः भाषा)